सरकारी वादे पर कश्मीर लौटे चरमपंथी अब किस हाल में

  • माजिद जहांगीर
  • श्रीनगर से बीबीसी हिन्दी के लिए
निसार अहमद ख़ान

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निसार अहमद ख़ान किसी तरह अपनी ज़िन्दगी चला रहे हैं, वैसे ही जैसे वह अपनी पुरानी सिलाई मशीन चलाते हैं, जो मशीन कभी चलती है तो कभी ख़राब होती है.

निसार के पास घर चलाने का एक अहम ज़रिया है सिलाई मशीन, जो उन्होंने कर्ज़ लेकर ख़रीदी है.

किराए के दो कमरों में ज़िला पुलवामा के नेवा गांव में अपने बच्चों और पत्नी के साथ रहने वाले निसार की ज़िन्दगी की कहानी आम कश्मीरियों से ज़रा अलग है.

साल 1992 में निसार हथियारों की ट्रेनिंग लेने के लिए सीमा पार कर पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर पहुंच गए थे. कुछ महीनों तक मुज़फ़्फ़राबाद में हथियारों की ट्रेनिंग करने के बाद निसार ने पाकिस्तान के कराची शहर में नए सिरे से जीवन गुज़ारना शुरू किया.

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16 साल बाद वापस लौटने का फ़ैसला

कराची आकर निसार ने आसिया नाम की लड़की से शादी की. वह कई वर्षों तक कराची में रहे और अपना कामकाज करते रहे.

साल 2012 में 16 साल बाद उन्होंने अपने घर वापस लौटने का मन बनाया.

दरसअल, 2010 में तत्कालीन मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने सीमा पार गए कश्मीरी नौजवानों की घर वापसी को लेकर पुनर्वास योजना की घोषणा की थी.

उस योजना के तहत अब तक चार सौ से अधिक कश्मीरी युवा परिवार वालों के पास वापस अपने घरों को लौटे हैं. निसार भी उसी योजना के बारे में सुनकर वापस कश्मीर लौटे.

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वह कहते हैं, "जब उमर अब्दुल्ला ने पुनर्वास योजना का एलान किया तो मैंने भी अपनी पत्नी से कहा की हम भी वापस अपने घर लौटेंगे. हम नेपाल के रास्ते कश्मीर लौटे थे. मुझे लगा था कि कश्मीर आकर मुझे और मेरे परिवार को सरकार सर आखों पर बिठाएगी, लेकिन यहां आकर तो किसी ने आज तक हमारा हाल तक नहीं पूछा. अब तो हम कहते हैं कि सरकार अपनी योजना अपने पास ही रखे. सिर्फ़ एक काम करे कि मेरे बच्चों और पत्नी को वापस जाने दिया जाए."

"मेरे बच्चे क्या ग़लत कर बैठें, मैं उनको ज़्यादा देर तो नहीं रोक सकता हूं. यहां हमारी कोई मदद नहीं हुई इसलिए अब हम चाहते हैं कि हम वहां ही जाएं जहां से हम आए हैं. बच्चे कह रहे हैं कि हम वापस ही जाएंगे. मेरी वहां अच्छी ज़िंदगी चल रही थी. सरकार से अब मेरी यह विनती है कि अब हमें कुछ नहीं चाहिए."

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'ज़मीन के लिए जूते घिस गए'

निसार कहते हैं कि डिप्टी कलेक्टर ने उन्हें मकान बनाने के लिए थोड़ी ज़मीन दी थी, लेकिन वो भी उन्हें आज तक नहीं मिली.

उनका कहना था, "तीन सालों से सरकारी दफ़्तरों के चक्कर काटते-काटते मेरे जूते भी घिस गए, लेकिन हुआ कुछ भी नहीं. मैंने हर जगह ज़मीन का ये केस जीता, लेकिन डीसी साहब के दफ़्तर में मेरा केस अटक जाता है. मकान मालिक ने भी मुझे अब मकान ख़ाली करने को कहा है. मैं बाक़ी किराए के पंद्रह हज़ार नहीं दे पा रहा हूं. मुझे हर महीने ढाई हज़ार रुपये किराया देना पड़ता है. बच्चों की स्कूल फ़ीस भी नहीं दे पा रहा हूं. बच्चे कहते हैं कि आप हमें यहां क्यों लाए."

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निसार के तीन बेटे और एक बेटी हैं. ख़ुद निसार दर्ज़ी का काम करते हैं.

उनकी पत्नी आसिया हसन कहती हैं कि सरकारी घोषणा के बाद वो यहां आए. वो यह भी कहती हैं कि अगर सरकार घोषणा नहीं करती तो वह कभी कश्मीर नहीं आते.

उन्होंने कहा, "सरकार की उस घोषणा ने बहुत सारी ज़िंदगियों को तबाह कर दिया. मुझे नहीं मालूम है कि सरकार का इस घोषणा के पीछे क्या मक़सद था. अगर सरकार ने कश्मीरी नौजवानों को वापस घर बुलाया और उनको वापस बसाने का इरादा था तो फिर अपने वादों को पूरा क्यों नहीं किया गया. मुझे लगता है कि सरकार का कुछ और ही इरादा था."

"सरकार के लिए यह छोटी बात रही होगी, लेकिन जिनको वापस आना था उनके लिए ये बहुत बड़ी बात थी. लेकिन हमें नहीं पता था कि सरकार का यह एक झूठ है और उस झूठ का हम अभी तक सामना कर रहे हैं. जब हम कश्मीर आ गए तो पहले साल मेरा इस बात पर ध्यान था कि हम किसी तरह वापस चले जाएं. बहुत कोशिश की थी वापस जाने की."

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आसिया कहती हैं कि वह पाकिस्तान में बहुत ज़्यादा खुश थीं और किसी तरह वापस अपने वतन जाना चाहती हैं.

पुलवामा के डिप्टी कलेक्टर गुलाम नबी डार ने इस हवाले से बीबीसी को बताया कि वह इस मामले में देखेंगे कि वह क्या कर सकते हैं.

उनका यह भी कहना था कि वह दूसरी जगह निसार के लिए मकान बनाने के लिए ज़मीन की तलाश करेंगे.

बीते सात वर्षों में सैकड़ों ऐसे परिवार वापस कश्मीर लौटे हैं, लेकिन हर परिवार के पास सुनाने के लिए एक जैसी कहानी है.

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नेपाल को रूट बनाना चाहती है सरकार

उमर अब्दुल्ला सरकार ने जब पुनर्वास योजना की घोषणा की थी तो उन्होंने घर वापस आने के लिए चार रास्तों से वापस आने की शर्त रखी थी. जो चार रास्ते बताए गए थे उनमें सीमा के रास्ते वाघा, चका दा बाग़, सलेमाबाद और अटारी शामिल था या फिर इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट का रास्ता शामिल था.

बीते सात वर्षों में चार सौ के क़रीब पूर्व कश्मीरी चरमपंथी नेपाल के रास्ते पाकिस्तान से कश्मीर वापस लौटे हैं.

सरकार ने पुनर्वास योजना उन पूर्व चरमपंथियों के लिए रखी थी जो साल 1998 और 2009 के बीच हथियारों की ट्रेनिंग लेने पाकिस्तान गए थे.

उमर अब्दुल्ला सरकार ने नेपाल रूट को कश्मीर के पूर्व चरमपंथियों के लिए क़ानूनी रूट बनाने का केंद्र सरकार को एक प्रस्ताव दिया था. बाद में उस प्रस्ताव पर मौजूदा मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती ने भी हामी भरी थी और मांग की थी कि नेपाल के रास्ते से कश्मीर के पूर्व चरमपंथियों को आने दिया जाए.

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