मां को ज़िंदा करने की चाहत में बेटे ने शव को तीन साल घर में रखा?

  • अमिताभ भट्टासाली
  • बीबीसी संवाददाता, कोलकाता से
कोलकाता में शुभब्रत मजूमदार का घर

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आज से तीन साल पहले 87 साल की उम्र में उनकी मां का देहांत हो गया. वो उनके शव को अस्पताल से घर ले कर आ गए.

लेकिन इस घटना के बाद से किसी को ये पता नहीं चला कि उनकी मां के शव को दफ़नाया गया या उनका अंतिम संस्कार कहां किया गया. ना तो उनके पड़ोसियों को कुछ ग़लत लगा, ना ही उनको लगा कि एक बार पूछ लें कि क्या हुआ.

अचानक बीते बुधवार की आधी रात को पुलिस को एक फ़ोन आया जिसके आधार पर उन्होंने दक्षिण कोलकाता के बेहाला इलाक़े में एक घर पर छापा मारा.

बेहाला के मध्यवर्गीय इलाके में एक दो तल्ला इमारत में पुलिस ने छापा मारा. जांच में जो कुछ पता चला वो किसी रोमांच पैदा करने वाली कहानी के जैसा था.

दक्षिण कोलकाता के डीसीपी निलांजन बिस्वास ने कहा, "हमें हमारे एक सूत्र से जानकारी मिली कि इस इमारत में एक शव को सालों से प्रिज़र्व कर के रखा गया है. जब हमने छापा मारा तो हमें एक बड़े से फ्रीज़र के भीतर एक महिला का शव मिला. उस शव को केमिकल्स की मदद से प्रिज़र्व किया गया था."

जांच में पता चला कि ये शव बीना मजूमदार का था जिनकी मौत अप्रैल 2015 में एक अस्पताल में हो गई थी. उनके शव को उनका बेटा शुभब्रत मजूमदार अस्पताल से ले कर घर आए लेकिन उन्होंने शव का अंतिम संस्कार नहीं किया.

उन्होंने एक बड़ा फ्रीज़र खरीदा और केमिकल का इस्तेमाल कर अपनी मां के शव को इसमें रख दिया. शव इसमें रखने से पहले उन्होंने इसे काट कर उसमें से कलेजा, और आंतें निकाल लीं और पेट पर दोबारा टांके लगा दिए.

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वैज्ञानिक तरीके से किया शव को प्रिज़र्व

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पुलिस ने इमारत से कुछ बोतलें भी बरामद की हैं जिनमें मानव शरीर के कुछ अंग रखे गए हैं.

प्राचीन मिस्र में मानव शव को संरक्षित करने के लिए कुछ ख़ास तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता था.

शुभब्रत को पुलिस ने गिरफ़्तार किया, लेकिन उन्हें ज़मानत मिल गई है. हालांकि ज़मानत मिलने के बाद उन्हें मानसिक अस्पताल ले जाया गया है, जहां मनोचिकित्सक उनकी जांच करेंगे.

हालांकि वे ख़ुद को लेदर तकनीक के जानकार बताते हैं.

फोरेन्सिक जानकारों का कहना है कि शायद उन्होंने अपनी पढ़ाई के दौरान लेदर को प्रिज़र्व करने के उपायों के बारे में जो पढ़ा था उसी जानकारी का इस्तेमाल किया है.

जांच के दौरान कथित तौर पर शुभब्रत ने कहा कि, "मैं अपनी मां को फिर से ज़िंदा करना चाहता हूं जो मेरे दिल के बेहद करीब हैं."

पुलिस अधिकारी ने बताया, "उन्हें लगता है कि अगर वो अपनी मां के शव को प्रिज़र्व कर पाएंगे तो उनकी मां इसी शरीर के साथ ज़िंदा हो जाएंगी. हमने कुछ किताबें और जर्नल भी बरामद किए हैं जिनमें शव के प्रिज़र्वेशन के बारे में और पुनर्जीवन के सिद्धांतों के बारे में बताया गया है."

शुभब्रत ना केवल इस बात पर खुद यक़ीन करते थे बल्कि उन्होंने अपने 90 साल के पिता को भी यकीन दिलाया कि ऐसा होना संभव है. उनके पिता उनके साथ उसी घर में रहते हैं.

पड़ोसियों को बीना मजूमदार की मौत की बात जानते थे लेकिन उन्हें बताया गया था कि उनके शव को मुर्दाघर में रखा गया है. बाद में उन्होंने भी इसके बारे में पड़ताल नहीं की.

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सांकेतिक तस्वीर

क्या हत्या का मकसद पेंशन थी?

इस मामले में हत्या का मक़सद चौंकाने वाला है. क्या वाकई शुभब्रत अपनी मां को पुनर्जीवित करना चाहते थे या इसके पीछे कोई और कारण था.

पुलिस ने इस मामले में आर्थिक फ़ायदे की बात से इनकार नहीं किया है.

डीसीपी बिस्वास कहते हैं, "शुभब्रत के माता-पिता फूड कॉर्पोरेशन में काम करते थे और सेवानिवृत्ति के बाद उन्हें पेंशन मिल रही थी. लेकिन पेंशनर की मौत के बाद पेंशन मिलनी बंद हो जाती है."

"लेकिन इस मामले में मिला की मौत के बाद भी इतने सालों तक पेंशन लगातार निकाली गई है. उनके बेटे के पास डेबिट कार्ड हैं और वो अपनी मां की मौत के बाद भी लगातार उनके पेंशन खाते से पैसे निकालते रहे हैं."

वो एक मृत व्यक्ति के अकाउंट से इतने साल तक पैसे कैसे निकालते रहे ये बात फ़िलहाल स्पष्ट नहीं है.

क्या उन्होंने अपनी मां का अकाउंट चालू रखने के लिए झूठे लाइफ़ सर्टिफ़िकेट दिए? क्या उन्होंने इसके लिए अपनी मां के अंगूठे के निशान का इस्तेमाल किया और इसी कारण से उनका शव प्रिज़र्व करके रखा? क्या इस मामले में बैंक भी शामिल हैं?

डीसीपी निलांजन बिस्वास कहते हैं, "इसके बारे में हमें फ़िलहाल अधिक जानकारी नहीं है. हमने बैंक को सूचित कर दिया है. उनसे पूरी जानकारी मिलने के बाद ही हम इस पर टिप्पणी कर सकेंगे."

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रॉबिन्सन स्ट्रीट केस

कुछ साल पहले सेंट्रल कोलकाता में इसी तरह की एक और घटना चर्चा में आई थी.

एक पूर्व सॉफ्टवेयर इंजीनियर पार्थ डे अपनी बड़ी बहन की शव के साथ लगभग छह महीने तक रहे थे. इस घटना को रॉबिन्सन स्ट्रीट केस के रूप में जाना जाता है.

बेहाला मामले के विपरीत डे की बहन का शव वैज्ञानिक तरीके से प्रिज़र्व नहीं किया गया था और सड़कर कंकाल बन गया था.

बाद में पार्थ डे को मानसिक रूप से बीमार पाया गया. लंबे अरसे तक इलाज के बाद वो सामान्य हो गए. हालांकि बीते साल अचानक उन्होंने आत्महत्या कर ली.

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