कौन हैं वो मानवाधिकार कार्यकर्ता, जिन पर हुई है पुलिस कार्रवाई

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पुणे पुलिस ने मंगलवार को देश के अलग-अलग हिस्सों में छापे मारे हैं. इसके पीछे पुलिस ने कोई ख़ास वजह नहीं बताई है.
पुलिस ने सिर्फ़ इतना ही कहा है कि यह इस साल जनवरी में महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव में हुई हिंसा की जांच का हिस्सा है.
इस दौरान भारत के पांच प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ताओं को गिरफ़्तार कर लिया गया है.
इनमें सुधा भारद्वाज, गौतम नवलखा, वरवर राव, वरनॉन गोंज़ाल्विस और अरुण फ़रेरा शामिल हैं. पांचों को देश के अलग-अलग शहरों से गिरफ़्तार किया गया.
गिरफ़्तार होने वाले ये लोग कौन हैं?
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गौतम नवलखा
गौतम नवलखा एक मशहूर ऐक्टिविस्ट हैं, जिन्होंने नागरिक अधिकार, मानवाधिकार और लोकतांत्रिक अधिकार के मुद्दों पर काम किया है.
वे अंग्रेज़ी पत्रिका इकोनॉमिक ऐंड पॉलिटिकल वीकली (ईपीडब्ल्यू) में सलाहकार संपादक के तौर पर भी काम करते हैं.
नवलखा लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था पीपल्स यूनियन फ़ॉर डेमोक्रेटिक राइट्स (पीयूडीआर) से जुड़े हैं.
नवलखा ने पीयूडीआर के सचिव के तौर पर भी काम किया है और इंटरनेशनल पीपल्स ट्राइब्यूनल ऑन ह्यूमन राइट्स ऐंड जस्टिस इन कश्मीर के संयोजक के तौर पर भी काम किया है.
उन्होंने कश्मीर और छत्तीसगढ़ में 'फ़ैक्ट फ़ाइंडिंग मिशन' पर विस्तार से काम किया है. वो कश्मीर मुद्दे पर जनमत संग्रह का भी समर्थन कर चुके हैं जिसकी वजह से उन्हें मई, 2011 में श्रीनगर में एंट्री से इनकार कर दिया गया था.
पीयूडीआर के हरीश धवन ने बीबीसी पंजाबी से कहा कि वो संस्था से लगभग चार दशकों से जुड़े हुए थे. उन्होंने मज़दूरों, दलितों आदिवासियों और सांप्रदायिक हिंसा जैसे मुद्दों पर काम किया है.
भीमा कोरेगांव हिंसा: पांच सामाजिक कार्यकर्ता ग़िरफ़्तार
हरीश ने कहा, "कश्मीर मसले पर उनका गहरा विश्लेषण और समझ एक बड़ा योगदान है. जब से कश्मीर में नागरिकों पर सैन्य कार्रवाई शुरू हुई, तब से ही वो लगातार कश्मीर जाते रहते थे. जब उन्हें पता चला कि कश्मीर की तरह ही छत्तीसगढ़ और झारखंड में भी सेना की कार्रवाई शुरू हो गई तब से वो माओवांदी आंदोलनों पर भी नज़र रखने लगे."
धवन ने नवलखा की गिरफ़्तारी और उनके घर पर छापे की आलोचना करते हुए कहा, "यह बुद्धिमान और विरोध की आवाज़ों को दबाने की एक कोशिश है. इसके ख़िलाफ़ हिम्मत से खड़े होने की ज़रूरत है."
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सुधा भारद्वाज
सुधा भारद्वाज एक वकील और ऐक्टिविस्ट हैं. वो दिल्ली के नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी में गेस्ट फ़ैकल्टी के तौर पर पढ़ाती हैं.
सुधा ट्रेड यूनियन में भी शामिल हैं और मज़दूरों के मुद्दों पर काम करती हैं.
उन्होंने आदिवासी अधिकार और भूमि अधिग्रहण पर एक सेमिनार में हिस्सा लिया था. वो दिल्ली न्यायिक अकादमी का भी एक हिस्सा हैं.
सुधा ने श्रीलंका में लेबर कोर्ट के अधिकारियों को भी संबोधित किया था.
सुधा भारद्वाज की बेटी मायशा नेहरा ने बीबीसी को फोन पर बताया कि सुबह छह बजे उनकी और उनके मां की नींद पुलिस के घर की कालबेल बजाने से ही खुली.
मायशा मेहरा ने कहा, "मां ने उसने पूछा कि क्या वो एक फोन कर सकती हैं तो उन्होंने मना कर दिया. उन्होंने हमारे लैपटाप से हार्ड ड्राइव ले लिए और फोन को लॉक कर दिया. मम्मा के ट्विटर अकाउंट और ई-मेल अकाउंट को ब्लॉक कर दिया गया है."
मायशा का कहना था कि पुलिस के साथ एक हैकर भी था जो पुलिसकर्मी नहीं था. उनका दावा था कि उस व्यक्ति ने ये बात ख़ुद उनकी मां के पूछने पर पर उनको बताई थी.
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वरवर राव
वरवर पेंड्याला राव वामपंथ की तरफ़ झुकाव रखने वाले कवि और लेखक हैं. वो 'रेवोल्यूशनरी राइटर्स असोसिएशन' के संस्थापक भी हैं.
वरवर वारंगल जिले के चिन्ना पेंड्याला गांव से ताल्लुक रखते हैं.
उन्हें आपातकाल के दौरान भी साज़िश के कई आरोपों में गिरफ़्तार किया गया था, बाद में उन्हें आरोपमुक्त करके रिहा कर दिया था.
वरवर की रामनगर और सिंकदराबाद षड्यंत्र जैसे 20 से ज़्यादा मामलों में जांच की गई थी.
उन्होंनें राज्य में माओवादी हिंसा ख़त्म करने के लिए चंद्रबाबू सरकार और माओवादी नेता गुम्माडी विट्ठल राव के मिलकर मध्यस्थता की थी.
जब वाईएस राजशेखर रेड्डी सरकार ने माओवादियों ने बातचीत की, तब भी उन्होंने मध्यस्थ की भूमिका भी निभाई.
वरवर के दामाद और पत्रकार वेणुगोपाल के मुताबिक पुलिस ने हैदराबाद में उनकी बेटी के घर पर भी छापे डाले हैं.
अरुण फ़रेरा
मुंबई के बांद्रा में जन्मे अरुण फ़रेरा मुंबई सेशंस कोर्ट और मुंबई हाई कोर्ट में प्रैक्टिस करते हैं.
वो अनलॉफ़ुल एक्टिविटीज़ प्रिवेंशन एक्ट और देशद्रोह के अभियोग में चार साल जेल में रह चुके हैं.
अरुण फ़रेरा इंडियन एसोसिएशन ऑफ़ पीपल्स लॉयर्स के कोषाध्यक्ष भी हैं.
फ़रेरा भीमा-कोरेगांव हिंसा के सिलसिले में गिरफ़्तार हुए दलित कार्यकर्ता सुधीर धावले के पक्ष में भी अपनी आवाज़ उठाते रहे हैं.
धावले को इस साल जून में गिरफ़्तार किया गया था.
मुंबई के गोरेगांव और जोगेश्वरी में 1993 में हुए दंगों के पीड़ितों के बीच काम करने के बाद, अरुण फ़रेरा का रुझान मार्क्सवाद की ओर बढ़ा था.
इन दंगों के बाद उन्होंने देशभक्ति युवा मंच नाम की संस्था के साथ काम करना शुरू कर दिया. इस संस्था को सरकार माओवादियों का फ़्रंट बताती थी.
जेल में अपने अनुभवों पर अरुण ने 'कलर्स ऑफ़ द केज, अ प्रिज़न मेमुआ' शीर्षक से किताब भी लिखी है. इस किताब का तेलुगू, बांग्ला, मराठी और पंजाबी में अनुवाद भी हो चुका है.
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वरनॉन गोंज़ाल्विस
मुंबई में रहने वाले वरनॉन गोंज़ाल्विस लेखक-कार्यकर्ता हैं.
वो मुंबई विश्वविद्यालय से गोल्ड मेडलिस्ट हैं और मुंबई के कई कॉलेजों में कॉमर्स पढ़ाते रहे हैं. उन्हें 2007 में अनलॉफ़ुल एक्टिविटीज़ प्रिवेंशन एक्ट के तहत गिरफ़्तार किया गया था. वो छह साल तक जेल में रहे थे.
गोंज़ाल्विस को नागपुर के ज़िला और सत्र न्यायालय ने यूएपीए की अलग-अलग धाराओं के तहत दोषी पाया था.
वरनॉन की पत्नी सुज़न अब्राहम भी मानवाधिकार मामलों की एक वकील हैं.
वरनन गोंज़ाल्विस के बेटे सागर अब्राहम गोंज़ांलविस ने बताया कि सब लैपटाप वगैरह के साथ बहुत सारे साहित्य साथ ले गये. सागर का कहना था कि जिस भी किताब में कहीं माओवाद, नकस्लवाद या उस तरह के कोई शब्द तक नज़र आए वो पुलिस सबूत के तौर पर साथ ले गई. वो कहते हैं, "बोल्शेविक क्रांति से संबंधित मेरी इतिहास की किताब तक वो साथ ले गए."
स्टेन स्वामी
पुलिस ने रांची के 80 वर्षीय जाने-माने सामाजिक और मानवाधिकार कार्यकर्ता स्टेन स्वामी के घर पर भी छापे मारे हैं.
स्वामी एक ईसाई पादरी हैं जिन्होंने अरसे से चर्च से दूरी बनाई हुई है.
उन्होंने सरकारी गड़बड़ियों के बारे में कई जांच रिपोर्ट भी प्रकाशित की है.
जुलाई में झारखंड पुलिस ने उन पर देशद्रोह का अभियोग लगाया था. स्वामी पर आदिवासी इलाक़ों में चल रहे पत्थलगढ़ी आंदोलन को समर्थन देने के भी आरोप लगते रहे हैं.
हाल ही में हुई एक रैली में उन्होंने भारत में लोकतंत्र को बचाने की गुहार की थी.
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