हार्दिक पटेल के बहाने समझिए क्यों बनवानी चाहिए वसीयत

  • नितिन श्रीवास्तव
  • बीबीसी संवाददाता
हार्दिक पटेल

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गुजरात में कुछ दिनों से भूख हड़ताल पर बैठे पाटीदार नेता हार्दिक पटेल ने अपनी वसीयत या विल जारी की है. क्या होती है वसीयत और क्यों नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता इसे?

क्या आपके किसी बैंक खाते में थोड़े या ज़्यादा पैसे जमा हैं? क्या आपके नाम पर कोई घर, दुकान या ज़मीन का टुकड़ा है? क्या आपके पास सोने के आभूषण, हीरे-जवाहरात या बेशक़ीमती चीज़ें हैं?

सरल शब्दों में अगर आपके पास चल या अचल संपत्ति है तो ये लेख आपके लिए है क्योंकि आपके जीवित रहते ये तय हो जाना चाहिए कि मृत्यु के बाद आपकी इन चीज़ों का क्या होगा.

और इसीलिए आपकी वसीयत होनी बेहद ज़रूरी है. तो क्या होती है वसीयत और इसे कैसे बना और बदल सकते हैं आप?

वसीयत

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क्या होती है वसीयत

वसीयत या विल एक ऐसा ज़रूरी क़ानूनी दस्तावेज़ होता है जिसमें इसे बनाने वाला ये तय करता है कि उसकी मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति का क्या होना है.

इस दस्तावेज़ को तैयार करने वाला जीवित रहते हुए अपनी वसीयत को कभी भी निरस्त कर सकता है या इसमें बदलाव कर सकता है.

वसीयत की क़ानूनी वैधता पक्की करने के लिए ये ज़रूरी है कि इसका कार्यान्वयन ठीक से किया गया हो.

वरिष्ठ वकील गौरव कुमार के मुताबिक़, "इसका सबसे बड़ा मक़सद ये है कि पारिवारिक झगड़े न हों. दूसरी सबसे अहम बात ये है कि वसीयत तभी से लागू होगी जब उसे बनाने वाले की मृत्यु हो जाएगी."

साथ ही अगर कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति अपने प्राकृतिक वारिसों के अलावा भी किसी व्यक्ति या संस्था या दूसरे परिवार को देना चाहे तब भी वसीयत सबसे बेहतर क़ानूनी तरीका है.

अगर आपको पुश्तैनी जायदाद पर बिना किसी शर्त के मालिकाना हक़ मिला है तो वसीयत के ज़रिए आप उसे किसी को दे सकते हैं.

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कौन, कैसे बनवा सकता है वसीयत

ऐसा हर कोई व्यक्ति जो मानसिक रूप से स्वस्थ है, अपने होशो-हवास में वसीयत बनवा सकता है.

क़ानून ऐसे लोगों को भी वसीयत बनाने की इजाज़त देता है जो देख-सुन नहीं सकते, लेकिन अपने फ़ैसलों को पूरी तरह समझ सकते हैं.

क़ानून ऐसे किसी भी व्यक्ति की वसीयत पर सवाल उठा सकता है जिसकी वसीयत तब तैयार की गई हो जब वो मानसिक तौर पर बीमार रहा/रही हो.

वसीयत किसी सादे कागज़ पर भी बनाई जा सकती है और किसी स्टैंप पेपर पर भी.

हालांकि वसीयत बनाने वाले के हस्ताक्षर या निशान इसी कागज़ पर होना अनिवार्य है.

अगर वसीयतकर्ता ये करने में सक्षम नहीं है तो वो अपनी उपस्थिति में किसी दूसरे व्यक्ति को इसे कार्यान्वित (एक्ज़ीक्यूट) करने का अधिकार दे सकता है.

वसीयत बनाने वाले के हस्ताक्षर होने के बाद इस वसीयत को दो या दो से ज़्यादा गवाहों से सत्यापति किया जाना चाहिए.

वसीयत का गवाह होने के लिए 18 वर्ष से अधिक आयु होना अनिवार्य है.

सुप्रीम कोर्ट की वकील रेखा अग्रवाल के अनुसार, "अगर कोई व्यक्ति आपकी वसीयत के बाहर का है, यानी उसका नाम वसीयत में कहीं शुमार नहीं है, तो वो सबसे बेहतर और मज़बूत स्थिति होती है जिससे बाद में मतभेद न हो".

वसीयत बनाने के बाद क्या

वसीयत बनाने के बाद आप उसे ख़ुद अपनी हिफ़ाज़त में रख सकते हैं या फिर अपने वकील या रिश्तेदार के पास रखवा सकते हैं.

भारतीय पंजीकरण अधिनयम के तहत आप अपनी वसीयत की सुरक्षा के लिए उसे किसी भी रजिस्ट्रार के पास भी जमा करवा सकते हैं.

अपनी वसीयत बनाने के कुछ समय बाद अगर आप उसमें कुछ जोड़ना या हटाना चाहते हैं तो ये बहुत आसानी से हो सकता है.

आपको अपनी मौजूदा वसीयत को निरस्त करना होगा और एक नई वसीयत या विल तैयार करनी होगी.

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वसीयत बनाते समय क्या न करें

सबसे ज़रूरी बात यही है कि आपकी वसीयत न होने की स्थिति में आपकी मृत्यु के बाद पैदा होने वाले संकटों से बचा जा सकता है.

मिसाल के तौर पर इन दिनों ज़्यादा ज़ोर ऑनलाइन बैंकिंग से ट्रेडिंग पर है और कई मामलों में आपके परिवार के पास सभी छोटे-बड़े पासवर्ड या अकाउंट नंबर या राशि नहीं रहती.

जायदाद के लिहाज़ से भी हर चीज़ अगर वसीयत पर लिखी हुई है और उसकी फ़ोटोकॉपी वगैरह मौजूद है तो बाद में कागज़ात वगैरह ढूंढने की मुसीबत से बचा जा सकता है.

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वकीलों के अनुसार वसीयत बनाते समय इस बात का ध्यान रखना बेहद ज़रूरी है कि सभी तथ्य सही हैं.

यानी अगर आपने वसीयत में मौजूद नामों की स्पेलिंग, पते या जन्मस्थान और जन्मतिथि में ग़लतियां कर दीं तो बाद में इस वसीयत को अदालत में चैलेंज किया जा सकता है.

आख़िरकार आपकी वसीयत को उसके हकदारों तक पहुँचाने वाले लोग भरोसे के होने चाहिए और उन्हें आपके जीवित रहते हुए आपकी पसंद या नापसंद के बारे में पता होना चाहिए.

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