भीमा कोरेगांव: बॉम्बे हाई कोर्ट ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करने पर पुलिस को लगाई फटकार

  • मयूरेश कोन्नुर
  • बीबीसी मराठी संवाददाता
महाराष्ट्र पुलिस

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महाराष्ट्र पुलिस (सांकेतिक तस्वीर)

बॉम्बे हाई कोर्ट ने सोमवार को महाराष्ट्र पुलिस को फ़टकार लगाई है. दरअसल हाईकोर्ट ने सामाजिक कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारी के बाद महाराष्ट्र पुलिस द्वारा की गई प्रेस कॉन्फ्रेंस करने पर नाराज़गी जाहिर की.

पिछले दिनों महाराष्ट्र पुलिस ने देश के अलग-अलग हिस्सों से भीमा कोरेगांव और यलगार परिषद मामले के संदर्भ में पांच सामाजिक कार्यकर्ताओं को गिरफ़्तार किया था.

शुक्रवार को महाराष्ट्र पुलिस के एडिशनल डायरेक्टर जनरल (क़ानून और व्यवस्था ) परमबीर सिंह ने पुणे पुलिस के अपने कुछ अन्य अफ़सरों के साथ मिलकर एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस की थी. इस प्रेस कॉन्फ़्रेंस में उन्होंने सबूत के तौर पर कुछ दस्तावेज़ पेश किए थे और अभियुक्तों के ख़िलाफ़ पुख्ता सबूत होने का दावा किया था.

सामाजिक कार्यकर्ता सतीश गायकवाड़ ने इस मामले की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को सौपंने की मांग रखते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट में एक अपील दायर की थी.

उनके वकील नितिन सतपुते ने बीबीसी से सोमवार को कोर्ट में हई कार्यवाही के बारे में बताया, ''जब कोर्ट हमारी अपील पर सुनवाई कर रहा था तब हमने पुलिस के ज़रिए की गई प्रेस कॉन्फ़्रेंस का मुद्दा उठाया. इसके बाद जजों ने पुलिस से पूछा कि जब यह मामला अभी कोर्ट में चल रहा है तो वे इसे लेकर मीडिया में कैसे जा सकते हैं.''

इस अपील की सुनवाई बॉम्बे हाईकोर्ट में जज एस एस शिंधे और मृदुला भटकर कर रहे थे.

इस अपील पर अब अगली सुनवाई 7 सितंबर को होगी.

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पांच कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारी

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महाराष्ट्र पुलिस ने पिछले हफ़्ते पांच सामाजिक कार्यकर्ताओं को गिरफ़्तार किया था जिनमें वामपंथी विचारक और कवि वरवर राव, वकील सुधा भारद्वाज, मानवाधिकार कार्यकर्ता अरुण फ़रेरा, गौतम नवलखा और वरनॉन गोंज़ाल्विस शामिल हैं.

इन सभी की गिरफ़्तारी इस साल जनवरी में महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव में हुई हिंसा की जांच के सिलसिले में की गई थी.

पुलिस ने अपनी प्रेस कॉन्फ़्रेंस में कहा था कि उनकी जांच से पता चला है कि माओवादी संगठन एक बड़ी साजिश रच रहे थे. इसी प्रेस कॉन्फ़्रेंस के दौरान महाराष्ट्र पुलिस ने मीडिया के सामने कई पत्र भी पढ़े जिसके ज़रिए यह बताया गया कि ये सभी सामाजिक कार्यकर्ता माओवादी सेंट्रल कमेटी के संपर्क में थे.

पुलिस ने यह आरोप भी लगाए थे कि इन कार्यकर्ताओं के संपर्क कश्मीर में मौजूद अलगाववादियों के साथ भी हैं.

सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर अपने-अपने घरों में नज़रबंद किए गए इन पांचों कार्यकर्ताओं में से एक वरिष्ठ वकील सुधा भारद्वाज ने बाद में अपने वकील वृंदा ग्रोवर के ज़रिए एक चिट्ठी सार्वजनिक की और पुलिस के लगाए सभी आरोपों से इंकार किया.

सुधा ने अपनी चिट्ठी में लिखा था कि जो भी वकील या कार्यकर्ता छत्तीसगढ़ के बस्तर में हो रहे मानवाधिकार उल्लंघनों को सामने ला रहे थे उनके ख़िलाफ़ बदले की कार्रवाई की जा रही है.

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क्या हुआ था भीमा कोरेगाँव में

पिछले साल 31 दिसंबर को यलगार परिषद का आयोजन किया गया था. इस परिषद में माओवादियों की कथित भूमिका की जांच में लगी पुलिस ने कई राज्यों में सात कार्यकर्ताओं के घरों पर छापेमारी की थी और पांच कार्यकर्ताओं को गिरफ़्तार कर लिया गया था.

इस परिषद का आयोजन पुणे में 31 दिसंबर 2017 को किया गया था और अगले दिन 1 जनवरी को भीमा कोरेगांव में दलितों को निशाना बनाकर बड़े पैमाने पर हिंसा हुई थी. महाराष्ट्र में पुणे के क़रीब भीमा कोरेगांव गांव में दलित और अगड़ी जाति के मराठों के बीच टकराव हुआ था.

भीमा कोरेगांव में दलितों पर हुए कथित हमले के बाद महाराष्ट्र के कई इलाकों में विरोध-प्रदर्शन किए गए. दलित समुदाय भीमा कोरेगांव में हर साल बड़ी संख्या में जुटकर उन दलितों को श्रद्धांजलि देते हैं जिन्होंने 1817 में पेशवा की सेना के ख़िलाफ़ लड़ते हुए अपने प्राण गंवाए थे.

ऐसा माना जाता है कि ब्रिटिश सेना में शामिल दलितों (महार) ने मराठों को नहीं बल्कि ब्राह्मणों (पेशवा) को हराया था. बाबा साहेब आंबेडकर ख़ुद 1927 में इन सैनिकों को श्रद्धांजलि देने वहां गए थे.

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भीमा कोरेगांव

वरवर राव, सुधा भारद्वाज, अरुण फ़रेरा, गौतम नवलखा और वरनॉन गोंज़ाल्विस के ख़िलाफ़ UAPA या अनलॉफ़ुल एक्टिविटीज़ प्रिवेंशन एक्ट के तहत कार्रवाई की गई. फिलहाल सभी कार्यकर्ता अपने घरों में नज़रबंद हैं. इस मामले की अगली सुनवाई 6 सितंबर को होगी.

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