समलैंगिक संबंधों पर क्या है भारत के पड़ोसी देशों का क़ानून

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धारा 377 पर सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फ़ैसले के बाद, सहमति से बनाए गए समलैंगिक संबधों को अपराध की श्रेणी से बाहर करने वाला भारत, नेपाल के बाद दक्षिण एशिया का दूसरा देश बन गया है.

दक्षिण एशिया के ज़्यादातर देश अब भी इसे अपराध मानते हैं.

नेपाल

नेपाल ने समलैंगिक संबंधों को साल 2007 में अपराध की श्रेणी के बाहर किया था. इसके बाद अगस्त 2015 में गे राइट्स एक्टिविस्ट काठमांडू की सड़कों पर संविधान में अपने हक की मांग के लिए उतरे. एक महीने बाद उनकी ये मांग भी मान ली गई.

नेपाल ने अपना नया संविधान सितंबर 2015 में लागू किया था और संवैधानिक रूप से अल्पसंख्यकों को सुरक्षा देने वाला दुनिया का 10वां देश बना.

हालांकि, वहां एक ही सेक्स के लोगों को आपस में शादी करने की इजाज़त नहीं है.

2015 में एक सरकारी कमेटी ने इसे भी क़ानूनी मान्यता देने की सिफ़ारिश की थी, लेकिन अभी तक ये मुमकिन नहीं हो पाया.

क़ानून नहीं होने के बावजूद, रमेश नाथ योगी और एक ट्रांसजेंडर महिला मोनिका शाह ने अगस्त 2017 में शादी की, जिसे नेपाल की पहली एलजीबीटी शादी कहते हैं.

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पाकिस्तान

समलैंगिक संबंध बनाना पाकिस्तान में अपराध है. एक ही सेक्स के साथ संबंध बनाने पर वहां उम्रक़ैद तक की सज़ा है. पाकिस्तान दंड संहिता की धारा 377 के तहत ये प्रावधान है.

लेकिन, पाकिस्तान ने तीसरे जेंडर को मान्यता देने के लिए साल 2018 में एक क़ानून पास किया था. पाकिस्तान के गे राइट्स एक्टिविस्ट्स का कहना है कि वहां खुलेआम गे होने की बात मानना सुरक्षित नहीं है.

हालांकि, कुछ लोग इस बात से इत्तेफ़ाक नहीं रखते. उनका कहना है कि कराची गे लोगों के लिए जन्नत है. भारत में समलैंगिक संबंधों पर आए फैसले को पाकिस्तान के अख़बारों में ज़्यादा जगह नहीं मिली. ज़्यादातर उदार छवि वाले अखबारों में इस ख़बर को लाइफस्टाइल या रिलेशनशिप के पन्नों पर जगह दी गई.

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बांग्लादेश

बांग्लादेश को भी एलजीबीटी के लिए सुरक्षित जगह नहीं माना जाता. समलैंगिक संबंध बानाने पर वहां 10 साल से लेकर उम्रक़ैद तक की सज़ा का प्रावधान है.

देश के दो प्रसिद्ध गे राइट्स एक्टिविस्ट की साल 2016 में हत्या कर दी गई थी. एक साल के बाद पुलिस ने गे और बाईसेक्सुअल लोगों की एक सभा में रेड डाली और उन्हे मीडिया के सामने परेड कराया.

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श्रीलंका

बांग्लादेश की तरह श्रीलंका में समलैंगिक संबंध बनाने पर 10 साल से लेकर उम्रक़ैद तक की सज़ा हो सकती है. जनवरी 2017 में इसे अपराध से बाहर करने के प्रस्ताव को वहां की कैबिनेट ने अस्वीकार कर दिया था.

कोलंबो टेलीग्राफ़ नाम के अख़बार ने 2016 में लिखा था, "श्रीलंका का समाज आमतौर पर समलैंगिकों के लिए डरावना है और वो इसमें गर्व भी महसूस करता है." इसके बावजूद वहां सज़ा देने की दर कम है.

लेकिन, मानवाधिकार संगठनों का मानना है कि समलैंगिक लोगों को न सिर्फ आम लोगों से बल्कि पुलिस से भी भेदभाव झेलना पड़ता है.

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अफ़ग़ानिस्तान

अफ़ग़ानिस्तान में गे होना आसान नहीं है. दो पुरषों के बीच संबंध की स्थिति में लंबे समय तक के लिए जेल में भेजा जा सकता है.

इसके अलावा इस्लामिक क़ानून में समलैंगिकता को अनैतिक और मुस्लिम सभ्यता के ख़िलाफ़ माना जाता है. इसलिए देश के कई हिस्सों में इसे कलंक माना जाता है.

हालांकि, कहा जाता है कि गांवों में ऐसे संबंध आम हैं. ब्रिटेन के गृह मंत्रालय ने 2017 में अफ़ग़ानिस्तान के गे शर्णार्थियों को वापस भेजने का फ़ैसला किया था जिसकी काफ़ी आलोचना हुई थी.

अफ़ग़ानिस्तान एक नए क़ानून के लिए ड्राफ्ट बना रहा है जिससे लड़कों पर होने वाले यौन अत्याचार को रोका जा सके. ऐसे अत्याचार को वहां बच्चाबाज़ी कहते हैं.

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म्यांमार

ब्रिटिश काल का कानून म्यांमार में भी है जो समलैंगिकों के रिश्तों को मान्यता नहीं देता. वहां भी जुर्माने के साथ 10 साल से लेकर उम्रक़ैद तक की सज़ा का प्रावधान है.

हालांकि, हाल के सालों में किसी को सज़ा होने की बात सामने नहीं आई है. क़ानूनी तौर पर वैध नहीं होने पर भी, म्यांमार में इसे लेकर ख़ुलापन दिखता है.

म्यांमार में फ़रवरी में एलजीबीटी समुदाय की एक परेड हुई थी. यही नहीं रंगून में एलजीबीटी थीम पर एक कैफ़े और रेस्त्रां भी खोला गया है.

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चीन

समलैंगिक संबंधों को चीन में 1997 में ही अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया था. वहां इसे एक मानसिक बीमारी माना जाता था.

एक ही सेक्स में शादी करने की वहां अब भी इजाज़त नहीं है. हालांकि, ताईवान के उच्चतम न्यायलय ने साल 2017 में ऐसी शादियों की इजाज़त दे दी थी.

दूसरे देशों की तरह यहां भी समलैंगिक लोगों को समाज में भेदभाव का शिकार होना पड़ता है. इसी साल मई में चीन के हूनान टीवी ने कथित तौर पर रेन्बो झंडे को ब्लर करके दिखाया था जिसकी काफ़ी आलोचना हुई थी.

भारतीय सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला चीन की सोशल मीडिया साइट्स साइना वीबो पर ट्रेंड कर रहा था. ज़्यादातर यूज़र्स इस फैसले का स्वागत करते दिखे. लोग इस बात को भी लिख रहे थे कि ये फैसला लेने में चीन भारत से 20 साल आगे रहा.

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