नहीं रहे मदनलाल खुराना: भाजपा जिन्हें 'दिल्ली का शेर' कहती थी

मदनलाल खुराना

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भाजपा नेता और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री मदनलाल खुराना का शनिवार देर रात निधन हो गया.

भाजपा की दिल्ली इकाई ने उनके निधन की पुष्टि की है. 82 वर्षीय खुराना ने रात 11 बजे कीर्ति नगर के अपने घर में आख़िरी सांस ली.

कई भाजपा नेताओं और केंद्रीय मंत्रियों ने ट्विटर पर उन्हें श्रद्धांजलि दी है. मदनलाल खुराना के बेटे और दिल्ली भाजपा प्रवक्ता हरीश खुराना ने बताया है कि उनके पिता का आज तीन बजे निगम बोध घाट पर अंतिम संस्कार किया जाएगा.

भाजपा अध्यक्ष अमित शाह कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी, विज्ञान एवं तकनीक मंत्री डॉ. हर्षवर्धन और संसदीय मामलों के राज्यमंत्री विजय गोयल ने भी ट्वीट करके दुख जताया है.

दिल्ली भाजपा प्रवक्ता तजिंदर पाल सिंह बग्गा ने बताया है कि खुराना का पार्थिव शरीर रविवार 12 बजे 14, पंडित पंत मार्ग स्थित प्रदेश भाजपा कार्यालय में अंतिम दर्शन के लिए रखा जाएगा.

'वाजपेयी के विश्वासपात्र'

मदनलाल खुराना 1993 से 1996 तक दिल्ली के मुख्यमंत्री रहे. लेकिन इसके बाद भाजपा ने दिल्ली में साहिब सिंह वर्मा को अपना चेहरा चुन लिया. केंद्र की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में वह पर्यटन मंत्री भी रहे. साल 2004 में वे कुछ महीनों के लिए राजस्थान के राज्यपाल भी रहे.

उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए वरिष्ठ पत्रकार शेखर गुप्ता ने लिखा है, "मदनलाल खुराना को श्रद्धांजलि. पुरानी पीढ़ी का एक और दिग्गज, दोस्तों और आलोचकों के लिए दरवाज़े खुले रखने वाला बड़े दिलवाला नेता चला गया. भाजपा-अकाली दल गठबंधन तैयार करने में वह वाजपेयी के विश्वासपात्र थे."

बंटवारे के बाद दिल्ली में बसा परिवार

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मदनलाल खुराना उन नेताओं में शामिल थे जो भाजपा की स्थापना से पहले से ही संघ परिवार से जुड़े हुए थे.

वह 1965 से 1967 तक जनसंघ के महासचिव रहे और दिल्ली में जनसंघ के चर्चित चेहरों में रहे. मदनलाल खुराना का जन्म मौजूदा पाकिस्तान के फै़सलाबाद में हुआ था और बंटवारे के बाद उनका परिवार दिल्ली के कीर्ति नगर की एक रिफ्यूजी कॉलोनी में आकर बस गया था.

दिल्ली उस दौर में बाहरी इलाक़ों से आकर बसे पंजाबियों और व्यापारियों के प्रभुत्व वाला शहर माना जाता था और यह एक बड़ी वजह रही कि दिल्ली भाजपा में लंबे समय तक मदनलाल खुराना, विजय कुमार मल्होत्रा और केदारनाथ साहनी की तिकड़ी का एकछत्र राज रहा.

हालांकि बाद में दिल्ली में पूर्वांचल से आए लोगों की तादाद बढ़ी और भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियों में शक्तियां पूर्वांचल के नेताओं की ओर खिसकती चली गईं. जब 2014 के आम चुनावों का ऐलान हुआ तो कभी खुराना के चुनाव कॉर्डिनेटर रहे सतीश उपाध्याय को भाजपा ने प्रदेश अध्यक्ष बना दिया. सतीश उपाध्याय के बाद अब एक और पूर्वांचली नेता मनोज तिवारी दिल्ली में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष हैं.

हालांकि नब्बे के दशक में मदनलाल खुराना भाजपा की दिल्ली इकाई का चेहरा थे. कार्यकर्ताओं के बीच उन्हें 'दिल्ली का शेर' कहा जाता था. भाजपा महासचिव कुलजीत सिंह चहल ने उन्हें इसी नाम के साथ श्रद्धांजलि दी है.

कभी मोदी को हटाने की मांग की थी

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मदनलाल खुराना, विजय कुमार मल्होत्रा, अटल बिहारी वाजपेयी

हालांकि ऐसा एक से अधिक बार हुआ जब मदनलाल खुराना को अपनी ही पार्टी से निलंबित कर दिया गया. साल 2005 में खुराना ने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को पद से हटाने की मांग कर दी थी जिसके बाद पार्टी ने उन्हें अनुशासनहीनता के चलते निलंबित कर दिया था.

तब भाजपा प्रवक्ता रहीं सुषमा स्वराज ने कहा था कि खुराना ने पार्टी के मुद्दों को सार्वजनिक रूप से उठाया था, इसलिए उन्हें निलंबित किया गया.

मदनलाल खुराना ने न केवल गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को हटाने की माँग की थी बल्कि पार्टी अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व पर भी सवाल उठाया था.

उनका आरोप था कि आडवाणी पार्टी में 'एयरकंडीशंड कल्चर' को बढ़ावा दे रहे हैं.

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माफी मांगकर वापस लौटे

खुराना का कहना था कि जिस तरह प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 1984 के सिख विरोधी दंगों के लिए माफ़ी माँगी ली और जगदीश टाइटलर को मंत्रिमंडल से हटा दिया, उसी तरह नरेंद्र मोदी को हटा कर पार्टी को गुजरात दंगों के दाग को धो लेना चाहिए.

हालांकि कुछ ही दिनों बाद उन्होंने अपनी टिप्पणियों के लिए खेद जताया और पार्टी में उन्हें वापस ले लिया गया. पार्टी महासचिव प्रमोद महाजन ने इस बारे में संवाददाताओं को बताया था कि खुराना ने पार्टी अध्यक्ष से सशर्त माफी मांगी है.

खुराना को छह वर्षों के लिए पार्टी से निष्कासित किए जाने के फैसले का पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने खुलकर विरोध किया था जिसके बाद एक बार फिर अटल और आडवाणी आमने सामने थे.

खुराना के निष्कासन के बाद उनके समर्थन में दिल्ली के केवल तीन विधायक आए थे जिसके बाद लग रहा था कि वो पार्टी में अलग थलग हो जाएंगे लेकिन एक दिन बाद ही पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने खुराना का पुरज़ोर समर्थन कर दिया.

इसके बाद कई दिनों तक मंत्रणाओं का दौर चला और भाजपा को अपनी साख बचाने के लिए रास्ते खोजने पड़े.

'खुराना तो पुराना हो गया'

इसके बाद 16 सितंबर 2005 को चेन्नई में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक होनी थी और सबकी निगाहें इस पर लगी थीं कि क्या खुराना प्रकरण और अनुशासनहीनता को लेकर पार्टी के किसी मंच पर चर्चा होगी.

जब इस प्रकरण को निपटाने में अहम भूमिका निभानेवाले भाजपा के पूर्व अध्यक्ष वैंकया नायडू को घेरने की कोशिश की गई तो उन्होंने शायराना अंदाज़ में कहा, खुराना तो पुराना हो गया. और इतना कह कर वो आगे बढ़ गए. उनका आशय था कि यह मुद्दा अब पुराना पड़ गया है.

लेकिन ऐसा हुआ नहीं. इसके छह महीने बाद ही उन्हें फिर पार्टी विरोधी बयानबाज़ी की वजह से निलंबित कर दिया गया. उन्होंने उस वक़्त भाजपा से बाग़ी होकर अलग हुईं नेता उमा भारती के साथ एक रैली में जाने की घोषणा की थी.

मदन लाल खुराना ने कहा था, "मैं कोई लल्लू पंजू नहीं हूँ, मैं राज्यपाल था लेकिन वह पद छोड़कर पार्टी के लिए काम करना चाहता था. अगर मुझे घर में ही बैठना था तो राजनिवास में बैठे रह सकता था. पार्टी ने जो वायदे किए थे वो पूरे नहीं हुए हैं, अफ़सोस तो मुझे यही है."

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