सबरीमला में प्रवेश के बाद महिलाएं बोलीं, 'धमकियां मिल रही हैं, लेकिन हम डरती नहीं हैं'

सबरीमला मंदिर में दो महिलाओं के ऐतिहासिक प्रवेश के बाद केरल दो दिन तक बंद रहा और पूरे राज्य में हिंसा होती रही.
घटना के बाद से ही इन दोनों महिलाओं को धमकियां मिल रही हैं और इनके घर के बाहर प्रदर्शन हो रहे हैं. हालांकि इन महिलाओं का कहना है कि उन्हें इन धमकियों और प्रदर्शनों से डर नहीं लगता.
इन दोनों महिलाओं ने बीबीसी से खास बातचीत की. इस वक्त ये दोनों ही किसी "सुरक्षित ठिकाने" पर हैं. जब इन दोनों से संपर्क किया गया तो वे इंटरव्यू के लिए तुरंत तैयार हो गईं.
'धमकियां देने वाले कुछ नहीं करेंगे'
इन दोनों को नहीं लगता कि जो लोग इन्हें धमकियां दे रहे हैं वो वास्तव में कुछ करेंगे.
बिंदु अम्मिनि ने बीबीसी से कहा, "24 दिसंबर की शाम जब हमने मंदिर में जाने की पहली कोशिश की थी उस वक्त हमारे घर के बाहर प्रदर्शन हो रहे थे. मेरा मानना है कि मेरे घर के आस-पास के लोग मेरे साथ कुछ नहीं करेंगे. वो मुझसे प्यार करते हैं. जिन लोगों ने हमारे घर को घेर लिया था और धमकियां दी थी, वो कुछ नहीं करेंगे."
बिंदु और कनकदुर्गा ने स्वामी अयप्पा के मंदिर में प्रवेश करके सदियों पुरानी वो परंपरा तोड़ दी, जिसके अनुसार 10 से 50 साल की उम्र की महिलाओं को इस मंदिर में जाने की मनाही है.
इन दोनों महिलाओं ने सादी वर्दी में मौजूद पुलिसवालों की सुरक्षा में अपनी दूसरी कोशिश में मंदिर में प्रवेश किया.
सुप्रीम कोर्ट ने 28 सितंबर को महिलाओं पर लगी इस पाबंदी को हटा दिया था. इसके बाद से कम से कम 10 महिलाओं ने मंदिर में जाने की नाकाम कोशिश की. इसके बाद इन दो महिलाओं ने इस मंदिर में प्रवेश कर इतिहास रच दिया.
'भविष्य का डर नहीं'
39 साल की कनकदुर्गा कहती हैं, "भविष्य के लिए मुझे किसी तरह का डर नहीं है. मैं भगवान को मानती हूं."
कनकदुर्गा जितनी धार्मिक हैं, बिंदु उतनी नहीं हैं. बिंदु कहती हैं, ''मुझे अपनी सुरक्षा को लेकर किसी तरह का कोई डर नहीं है.''
इसकी वजह वो बताती हैं कि उनका बचपन काफी कठिन रहा है. जब वो बहुत छोटी थीं तो उनके माता-पिता अलग हो गए थे और एक दिन उनकी मां ने आत्महत्या करने के फैसला कर लिया.
वो बताती हैं, "लेकिन बाद में उन्होंने ऐसा नहीं किया. लेकिन तब से मैंने बहुत मुश्किल ज़िंदगी गुज़ारी है. इसलिए मुझे अब किसी चीज़ से डर नहीं लगता."
उन्होंने पूरी ज़िंदगी संघर्ष किया. कई बार उन्हें भेदभाव का सामना भी करना पड़ा. इसके बावजूद उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और स्कूल में कई तरह की गतिविधियों में हिस्सा लिया, लेकिन हमेशा उनके साथ एक "औसत" दर्जे का टैग रहा.
कॉलेज के दिनों में वो कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) की छात्र इकाई की कार्यकर्ता रहीं. इसके बाद उन्होंने क़ानून की पढ़ाई की और एक लॉ कॉलेज में टीचर बन गईं.
भूख हड़ताल के बाद मिली मंजूरी
बिंदु और कनकदुर्गा एक फ़ेसबुक ग्रुप से जुड़ गईं. ये ग्रुप सबरीमला में 10 से 50 साल की उम्र की महिलाओं के प्रवेश के समर्थन में था.
24 दिसंबर को इन दोनों ने सबरीमला मंदिर जाने की कोशिश की, लेकिन वो सफल नहीं हो पाईं. उस दिन वो मंदिर से करीब 1.5 किलोमीटर की दूरी पर थीं, लेकिन कुछ कानून व्यवस्था बेकाबू होने के डर से उनके साथ के पुलिसवालों ने वापस लौटना सही समझा.
बिंदु ने कहा, "उस वक्त पुलिस ने हमें वापस लौटने के लिए कहा. कोट्टायम मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल पहुंचने पर हमने पुलिस से कहा कि हम सबरीमला जाना चाहते हैं. लेकिन पुलिस ने हमें घर जाने को कहा. हमने भूख हड़ताल की, जिसके बाद अधिकारियों ने मंदिर जाने में हमारी मदद करने पर हामी भर दी."
इसके बाद दोनों ने दो जनवरी को दोबारा सबरीमला जाने का फैसला किया. पुलिस ने फैसला किया कि इस बार पुलिस सादे कपड़ों में उनके साथ जाएगी.

किस रास्ते से मंदिर गईं?
क्या उन्हें उस रास्ते से ले जाया गया जिससे सिर्फ स्टाफ के सदस्य जाते हैं और उन्हें एम्बुलेंस के ज़रिए ले जाया गया था क्या? इस सवाल के जवाब में वो कहती हैं, "नहीं. मीडिया में आ रही ये खबरें गलत हैं. हम उसी रास्ते से मंदिर गई थीं, जिससे दूसरे श्रद्धालु जाते हैं."
कनकदुर्गा की तरह बिंदु को मंदिर जाने की प्रेरणा भगवान पर भरोसे की वजह से नहीं मिली थी, वो मंदिर जाकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को अमल में लाना चाहती थीं.
बिंदु कहती हैं, "मेरे मंदिर जाने के फैसले के पीछ संवैधानिक नैतिकता एक बड़ी वजह थी."
बिंदु और कनकदुर्गा ने मंदिर जाने से पहले व्रत रखने जैसे वो सारे धार्मिक अनुष्ठान किए जो सबरीमला जाने से पहले करने होते हैं.
स्वामी अयप्पा ने क्या कहा?
बिंदु जब मंदिर पहुंची तो स्वामी अयप्पा से कहने के लिए उनके पास कुछ नहीं थी.
वे बताती हैं, "स्वामी अयप्पा से मेरी बातचीत ज़रूर हुई. उन्होंने मुझसे बात की और मैं बहुत खुश हुई. मैंने भी उनसे बात की. उन्होंने मुझसे पूछा कि दर्शन कैसे रहे."
वहीं स्वामी अयप्पा में श्रद्धा रखने वाली कनकदुर्गा कहती हैं कि वो महिलाओं और पुरुषों में होने वाले भेदभाव को बर्दाश्त नहीं कर सकतीं और आने वाले सालों में दोबारा सबरीमला जाएंगी.
हालांकि बिंदु सबरीमला वापस जाएंगी या नहीं, इसपर बिंदु ने अबतक कोई फैसला नहीं किया है. लेकिन वो इस बात को लेकर बेहद खुश हैं कि उन्होंने और कनकदुर्गा ने दूसरी महिलाओं के मंदिर जाने के रास्ते खोल दिए हैं.
बिंदु जानती हैं कि उनके इस कदम के उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं. वो कहती हैं, "शायद इसके लिए मुझे मार दिया जाए."
बिंदु कहती हैं, "भविष्य में हमें सुरक्षा देने के लिए सरकार से किसी तरह की चर्चा नहीं हुई है, हालांकि पुलिस अधिकारियों ने हमें सुरक्षा देने का आश्वासन दिया है. मुझे तो वैसे भी अपनी सुरक्षा की अब कोई चिंता नहीं है."
कनकदुर्गा ने कहा, "मैं डरी हुई नहीं हूं. जब भी महिलाएं प्रगति करती हैं तो शोर तो मचाता ही है."
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