लोकसभा चुनाव 2019: क्या मैन्युफैक्चरिंग से जुड़े वायदे पूरे हो रहे हैं?
- विनीत खरे
- बीबीसी रिएलिटी चेक

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत को मैन्युफ़ैक्चरिंग का अंतरराष्ट्रीय केंद्र बनाने के लिए कई कोशिशें की और कार्यक्रमों की शुरुआत की.
सरकार ने संकल्प लिया था कि साल 2025 तक अर्थव्यवस्था में मैन्युफ़ैक्चरिंग का योगदान बढ़कर 25 प्रतिशत तक हो जाए.
चुनाव नज़दीक हैं और लोग बढ़-चढ़कर प्रधानमंत्री मोदी के इस वादे पर टिप्पणी कर रहे हैं. रिएलिटी चेक ने इसकी पड़ताल की.
'मेक इन इंडिया'
सितंबर 2014 में 'मेक इन इंडिया' की शुरुआत की गई.
सरकार ने वादा किया कि 'मेक इन इंडिया' की मदद से साल 2025 तक अर्थव्यवस्था में मैन्युफ़ैक्चरिंग का योगदान बढ़कर 25 प्रतिशत हो जाएगा.
कार्यक्रम की सफ़लता के लिए सरकार ने कई कदम उठाए
1. अर्थव्यवस्था के कुछ खास सेक्टरों पर फ़ोकस किया गया
2. मौजूदा कंपनियों को सहारा दिया गया
3. विदेशी निवेश को बढ़ावा दिया गया
उधर कांग्रेस प्रमुख और विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने 'मेक इन इंडिया' कार्यक्रम की तीखी आलोचना की और कहा कि इस कार्यक्रम के बावजूद मैन्युफ़ैक्चरिंग में तेज़ी नहीं आ पाई है.
उन्होंने कहा, मेक इन इंडिया के पीछे जो सोच थी वो बहुत खराब है और ये लोगों के हुनर से तालमेल नहीं खाती.
विश्व बैंक द्वारा प्रकाशित डेटा से पता चलता है कि कई सालों से देश की अर्थव्यवस्था में उत्पादन क्षेत्र के योगदान में ज़्यादा बदलाव नहीं आया है और ये 15 प्रतिशत के आसपास स्थिर है.
ये आंकड़ा न सिर्फ़ लक्ष्य से दूर है बल्कि इसके लक्ष्य तक पहुंचने के आसार भी कम हैं.
सर्विसेज़ जैसे बैंकिंग, रीटेल, आदि का देश की अर्थव्यवस्था में योगदान 49 प्रतिशत है.
उम्मीद के लक्षण
सरकार ऐसे आंकड़े पेश कर रही है जिससे ऐसा लगे कि उद्योगों की शुरुआत में तेज़ी आई है.
'मेक इन इंडिया' की प्रगति पर हाल ही में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2018-19 की पहली तिमाही में पिछले साल के मुक़ाबले मैन्युफ़ैक्चरिंग में 13 प्रतिशत की बढ़त दर्ज की गई.
साल 2014 में भाजपा केंद्र में सत्ता में आई. भाजपा के सत्ता में आने के बाद के पहले साल में ही विदेश निवेश में बढ़ोत्तरी दर्ज की गई.
हाल के आंकड़े बताते हैं कि इसमें धीमापन आया है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक विदेशी निवेश का बड़ा हिस्सा सर्विसेज सेक्टर में जा रहा है न कि उत्पादन क्षेत्र में.
दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में लेक्चरर प्रोफ़ेसर बिस्वजीत धर कहते हैं, "कार्यक्रम के कार्यान्वयन के चार साल बाद हमें बहुत ज़्यादा प्रगति नहीं दिखती."

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कोई नई समस्या नहीं
औद्योगिक क्षेत्र में तेज़ी लाने की कोशिश पुरानी सरकारों ने भी की है और उनके सामने भी चुनौतियां पेश आई हैं.
पिछले दो दशकों में कांग्रेस और दूसरी सरकारों की कोशिशों के बावजूद अर्थव्यवस्था में मैन्युफ़ैक्चरिंग का योगदान या तो स्थिर रहा है या उसमें हल्की गिरावट आई है.
दरअसल, दशकों से सरकारें अर्थव्यवस्था में मैन्युफ़ैक्चरिंग के योगदान को बढ़ाने के लिए काम करती रही हैं लेकिन नहीं कर पाई हैं.
उधर एशिया में भारत के पास स्थित देशों को देखें तो चीन, कोरिया और जापान में मैन्युफ़ैक्चरिंग का योगदान भारत से ज़्यादा है.
खासकर चीन ने 2002 और 2009 के बीच मैन्युफ़ैक्चरिंग में बड़ी संख्या में नौकरियां पैदा की हैं. हालांकि, कुछ जानकारों का मानना है कि इस तरह की तुलना से ज़्यादा फ़ायदा नहीं है.
लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स की स्वाती ढींगरा कहती हैं, "ये याद रखना ज़रूरी है कि चीन ने जब आर्थिक बदलावों की शुरुआत की थी तब उसके पास एक बड़ा, शिक्षित वर्ग था."
"सबसे बेहतरीन दौर में भी भारत में मैन्युफ़ैक्चरिंग क्षेत्र की बढ़ोत्तरी के बावजूद नौकरियों में इज़ाफ़ा नहीं हुआ है, या फिर ऐसी नौकरियों में इज़ाफ़ा नहीं हुआ जो सुरक्षित हों."
अगर 'मेक इन इंडिया' का एक मक़सद मैन्युफ़ैक्चरिंग में ज़्यादा नौकरियां पैदा करना था तो ऐसा लगता है कि ये नहीं हो रहा है.

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कोशिशें रंग ला सकती हैं
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सरकार का कहना है कि विभिन्न बिंदुओं पर बेहतरी आई है.
1. रक्षा साज़ो सामान बढ़ोत्तरी के साथ-साथ उसके उत्पादन में बढ़ोत्तरी.
2. बायोटेक इंडस्ट्री में अच्छा खासा निवेश.
3. लोगों को उत्पादन क्षेत्र में काम करने के लिए ज़्यादा शिक्षा और ट्रेनिंग.
4. नए केमिकल और प्लास्टिक्स प्लांट.
विश्व बैंक की ईज़ ऑफ़ डूइंग बिज़नेस की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक साल 2018 में भारत की रैंकिंग में सुधार हुआ है. सरकार ने इसका प्रचार किया है.[]
इसके अलावा उम्मीद के दूसरे कारण भी हैं - जैसे भारत का ऑटोमोबाइल सेक्टर जो पिछले कुछ सालों में मज़बूती के साथ उभरा है.
मैन्युफ़ैक्चरिंग के दूसरे सेक्टरों के बारे में बात करें तो वहां भी समस्याएं हैं लेकिन कंपनियां अपने प्रयासों से आगे बढ़ने की कोशिशें कर रही हैं.
बीबीसी ने कई सेक्टरों जैसे बायोटेक, केमिकल, मोबाइल कम्युनिकेशंस और टेक्सटाइल सेक्टर में बड़े नामों से बात की.
कुछ का कहना था कि एक हद तक सरकारी नीतियों से मैन्युफ़ैक्चरिंग क्षेत्र को फ़ायदा पहुंचा है, उन्होंने कई कारण गिनाए जिससे कई चुनौतियां अभी भी बरकरार हैं.
1. विभिन्न सरकारी महकमों में समन्वय की कमी.
2. जटिल टैक्स और उनसे जुड़े विभागों की संरचना और नियम.
3. विभिन्न स्तरों पर फैला भ्रष्टाचार.
4. असल मायनों में नई खोज और हुनर की कमी.

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हर बात मैन्युफ़ैक्चरिंग तक सीमित नहीं
ऑब्ज़र्वर रिसर्ज फाउंडेशन के अभिजीत मुखोपाध्याय कहते हैं, "इस बात के आसार बहुत कम हैं कि अगले पांच से सात साल में उत्पादन में तेज़ी आए. ऐसा होने के लिए बहुत वक्त और लगातार कोशिशों की ज़रूरत होती है."
बहरहाल, भारत दुनिया के उन देशों में से है जिसकी अर्थव्यवस्था सबसे तेज़ी से बढ़ रही है, चाहे उसमें मैन्युफ़ैक्चरिंग का योगदान हो या न हो.
हाल की संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया कि साल 2019 में भारतीय अर्थव्यवस्था 7.6 प्रतिशत की रफ़्तार से और उसके अगले साल 7.4 प्रतिशत की रफ़्तार से बढ़ेगी.
ये रफ़्तार भारत को दुनिया की दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं से आगे खड़ा कर देगी.
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