कश्मीर पर भारत ने एक महीने में क्या खोया क्या पाया

भारतीयों के बीच आम धारणा ये है कि अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद कश्मीर समस्या हल हो गई है.
इस धारणा को भारत सरकार के उस दावे से भी बल मिलता है जिसमें ये कहा जा रहा है कि पाँच अगस्त की घोषणा के बाद से कश्मीर घाटी में बड़े पैमाने पर हिंसा नहीं हुई है.
इसका मतलब ये निकाला जा सकता है कि वहां की जनता ने भारत सरकार के फ़ैसले का कड़ा विरोध नहीं किया.
भारत कश्मीर को अंदरूनी मामला मानता है. पाकिस्तान हमेशा से भारत के इस पक्ष का विरोध करता रहा है.
कश्मीर घाटी में अलगाववादी आत्मनिर्णय का अधिकार मांगते हैं. पिछले 30 सालों से घाटी में चरमपंथ का ज़ोर रहा है.
घाटी में भारत के समर्थक भी हैं लेकिन राज्य को विशेष दर्जे के साथ. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जम्मू-कश्मीर एक विवादास्पद मुद्दा है.
भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम की ओर से दी की गई विभाजन योजना के तहत, कश्मीर को ये आज़ादी थी कि वो भारत के साथ विलय करे या पाकिस्तान के साथ.
महाराजा हरि सिंह शुरू में चाहते थे कि कश्मीर स्वतंत्र हो जाए- लेकिन अक्टूबर 1947 में उन्होंने पाकिस्तान से क़बाइलियों के आक्रमण के ख़िलाफ़ मदद के बदले भारत में शामिल होना चुना.
इसके बाद युद्ध छिड़ गया और भारत ने संयुक्त राष्ट्र से हस्तक्षेप करने के लिए कहा. संयुक्त राष्ट्र ने भारत या पाकिस्तान में शामिल होने के सवाल को हल करने के लिए जनमत संग्रह कराने की सिफ़ारिश की.
जुलाई 1949 में, भारत और पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र से अनुशंसित संघर्ष विराम रेखा को स्थापित करने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए जिसे एलओसी के नाम से जाना जाता है.
भारत ने आर्टिकल 370 को 1956 में अपनाया जिसके अंतर्गत जम्मू-कश्मीर को विशेष अधिकार दिए गए.
अब भारत ने इसके प्रावधानों को हटा दिया है. भारत का इस बात पर भी ज़ोर है कि जम्मू-कश्मीर भारत का आंतरिक मामला है.
इस पर सत्ता, विपक्ष और जनता सब की राय एक है. भारत ने साफ़ कहा है कि कश्मीर में भारत क्या करता है इससे पाकिस्तान को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ना चाहिए.
ये सही है कि जम्मू में आम तौर से भारत सरकार के फ़ैसले का स्वागत किया गया है.
लद्दाख के लेह शहर में भी इस फैसले पर ख़ुशी मनाई गई है.
कारगिल के लोग हमेशा से भारत के अंदर रहना चाहते थे लेकिन अनुच्छेद 370 के अंतर्गत मिले विशेष अधिकारों के साथ.
लेकिन क्या कश्मीर घाटी की 70 लाख जनता के लिए कश्मीर समस्या का ये अंत है?
सुधार की ओर पहला क़दम
कश्मीर घाटी से हाल में लौटे कश्मीरी पत्रकार राहुल पंडिता के विचार में भारत सरकार का फ़ैसला कश्मीर समस्या के ख़त्म होने की तरफ़ एक पहला ठोस क़दम है.
वो कहते हैं, "देखिये ये कश्मीर की समस्या का अंत तो नहीं है लेकिन भारत सरकार ने अंत की तरफ़ लिया गया पहला ठोस क़दम उठाया है."
राहुल पंडिता का तर्क ये है कि 70 साल तक सरकारों ने कश्मीर के मसले को हल करने के लिए कई तरह के क़दम उठाए लेकिन "इससे कुछ हासिल नहीं हुआ "
वो कहते हैं, "कश्मीर की समस्या इसलिए हल नहीं हुई क्योंकि कश्मीर में भारत की नींव को ही कमज़ोर रखा गया. 70 साल से कश्मीर के नेता भारत में कुछ और घाटी में कुछ और बोलते आ रहे थे. लोगों के मन में उलझन पाकिस्तान ने नहीं पैदा की बल्कि भारत सरकार ने ख़ुद की. अब ये उलझन हमेशा के लिए ख़त्म हो गई है."
इस बारे में कश्मीर घाटी के लोगों की राय क्या है इसका जवाब हमें वहां के लॉकडाउन या प्रतिबन्ध के हटने के बाद ही पता चलेगा.
ये बात तय है कि घाटी के लोगों में इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ ग़ुस्सा बहुत है, जैसा कि हिन्दू अख़बार की रिपोर्टर निरुपमा सुब्रमण्यम वहां से लौट कर ट्विटर पर कहती हैं.
वह लिखती हैं, "यह आश्चर्य की बात है कि कितने लोग मानते हैं कि भारत की कश्मीर समस्या हल हो गई है. ज़मीन पर वास्तविकता पूरी तरह से अलग है. और जश्न का माहौल समाप्त होने के बाद चुनौतियाँ स्पष्ट हो सकेंगी."
हमने लगभग पाँच अगस्त से लगभग 10 दिनों तक घाटी से रिपोर्टिंग की जिसके दौरान अक्सर लोगों ने हमें कहा कि जब हालात सामान्य होंगे तो उनके अंदर का लावा फटेगा.
इस तरह की बातें उन लोगों ने भी कहीं जो भारतीय समर्थक माने जाते हैं.
इन कश्मीरियों के अनुसार भारत सरकार को इस फ़ैसले में कश्मीर के लोगों को भी शामिल करना चाहिए था.
अलगाववादी लोगों ने हमें बताया कि कश्मीर का मसला सुलझा नहीं है बल्कि और भी उलझ गया है. उनके अनुसार उनकी लड़ाई आज़ादी की है और उन्हें इस बात से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि भारत सरकार का दावा कश्मीर की समस्या को हमेशा के लिए सुलझाने का है.
उधर पाकिस्तान की तीखी और कुछ लोगों के अनुसार बौखलाई हुई प्रतिक्रियाओं के परिपेक्ष्य में ये समझना कि कश्मीर का मसला ख़त्म हो गया है कितनी समझदारी की बात होगी?
पाकिस्तान के पूर्व विदेश सचिव शमशाद अहमद ने बीबीसी से बात करते हुए कहा कि कश्मीर का मुद्दा अब एक बार फिर से अंतर्राष्ट्रीय स्टेज पर आ चुका है.
वो कहते हैं, "भारत सरकार जो मर्ज़ी कहे लेकिन दुनिया इस बात को तस्लीम करती है कि इस मसले का हल मेज़ पर बैठ कर दोनों मुल्कों के बीच निकाला जाना चाहिए. और जब शांतिपूर्ण संकल्प की बात की जाती है तो इसका मतलब ये नहीं कि भारत की बात मान ली जाए"
इमरान क्या करेंगे?
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने पाकिस्तान-प्रशासित कश्मीर के लोगों को भरोसा दिलाया है कि वो दुनिया भर में कश्मीर के दूत बनेंगे और आख़िरी दम तक उनके लिए लड़ते रहेंगे.
भारत में आम राय ये है कि अब पाकिस्तान कुछ नहीं कर सकता क्योंकि इसके पास ना तो कोई ठोस विकल्प है और ना ही उसे अंतर्राष्ट्रीय समर्थन हासिल है.
लेकिन पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान कहते हैं उनकी सरकार के पास विकल्प है.
वो कहते हैं, "हमने पहले से ही कई विकल्प तैयार किए हैं, जिन पर काम करते हुए कश्मीरियों को आत्मनिर्णय के अधिकार का सम्मान करते हुए सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों और भारत के पहले प्रधानमंत्री, जवाहरलाल नेहरू के वादों के परिपेक्ष्य में भारत के साथ बातचीत से किसी फ़ैसले पर पहुंच सकते हैं."
इमरान ख़ान कहते हैं, "लेकिन बातचीत तभी शुरू हो सकती है, जब भारत कश्मीर के अपने अवैध क़ब्ज़े को उलट दे, कर्फ्यू (कश्मीर में ) ख़त्म कर दे, और अपने सैनिकों को बैरक में वापस ले जाए."
पाकिस्तान सरकार ने कश्मीर मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र में भी उठाया है.
शमशाद अहमद के अनुसार उनकी जानकारी के मुताबिक़ इमरान ख़ान 27 सितम्बर को अपने भाषण में कश्मीर के मसले को संयुक्त राष्ट्र में पुरज़ोर तरीक़े से उठाएंगे.
अमरीका समेत दुनिया की अधिकतर बड़ी ताक़तों ने भारत और पाकिस्तान से अपील की है कि वो कश्मीर के मुद्दे को आपसी बातचीत के ज़रिये सुलझा लें.
ब्रिटेन ने आर्टिकल 370 और जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने पर कोई ख़ास चिंता नहीं जताई है.
लेकिन ये ज़ोर देकर कहा है कि कश्मीर में मानवाधिकारों के उल्लंघन के हर आरोप की "विस्तृत, तुरंत और पूरी तरह से पारदर्शी" जांच होनी चाहिए.
विदेश मंत्री डॉमिनिक राब ने ब्रितानी संसद में कहा कि उन्होंने सात अगस्त को भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर से बातचीत में कश्मीर की चिंताओं को उठाया था.
उन्होंने ये भी कहा कि ब्रिटेन कश्मीर की स्थिति पर नज़र रखेगा.
अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कश्मीर मसला
इसके अलावा श्रीलंका में हुए यूनिसेफ सम्मेलन में पाकिस्तान ने कश्मीर मुद्दा उठाने की कोशिश की.
चीन, मलेशिया और तुर्की ने पाकिस्तान का समर्थन किया है.
अमरीका में डेमोक्रेटिक पार्टी के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों में से एक बर्नी सैंडर्स ने भी कश्मीर पर चिंता जताई है.
इस तरह भारत के ना चाहते हुए भी कश्मीर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक मुद्दा बनता दिखाई देता है.
भारत के दृष्टिकोण से भी अगर देखें तो कश्मीर का मुद्दा हल नहीं हुआ है. आर्टिकल 370 पर भारत के फ़ैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है.
अदालत ने सरकार से इस बारे में जानकारी मांगी है. लेकिन राहुल पंडिता कहते हैं कि संसद के इस फ़ैसले को ख़ारिज करना अब संभव नहीं है.
देश के गृह मंत्री अमित शाह के अनुसार उन्हें उम्मीद है कि उनकी सरकार का फैसला क़ानूनी ऐतबार से भी खरा उतरेगा.
दूसरी चुनौती होगी कश्मीर घाटी के लोगों के दिलों को जीतना जो आज के माहौल में एक कठिन काम लगता है.
लेकिन इन सब से बढ़ कर उस कश्मीर का क्या जिसका प्रशासन पाकिस्तान के हाथ में है?
भारतीय दृष्टिकोण से वो भारत का एक अटूट हिस्सा है.
इसका मतलब ये हुआ कि जब तक पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर भारत का अटूट हिस्सा नहीं बन जाता तब तक ये नहीं कहा जा सकता कि कश्मीर के मुद्दे को हल कर लिया गया है.
लेकिन राहुल पंडिता की राय में अब दोनों देशों को हालात को वास्तविकता से देखना होगा.
उनका कहना था कि वो इस बात के लिए तैयार हैं कि एलओसी को अंतरराष्ट्रीय सीमा मान लिया जाए यानी भारत का कश्मीर भारत के पास और पाकिस्तान वाला कश्मीर पाकिस्तान के पास.
ये सुझाव पहले भी आ चुका है लेकिन दोनों सरकारें इसे रद्द कर चुकी हैं.
पाकिस्तान के पूर्व विदेश सचिव शमशाद अहमद का इस बात पर ज़ोर है कि दोनों देशों के लिए कश्मीर का मुद्दा हल करने का एक ही रास्ता है और वो है मिलकर साथ बैठ कर दोनों देश बात करें और एक ऐसा फैसला करें जो कश्मीरियों को भी मंज़ूर हो.
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