कोरोना: मौसम ने फसल तो वायरस ने ख़राब की 'किसानी'
- नीरज प्रियदर्शी
- पटना से, बीबीसी हिंदी के लिए

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कोरोना का लॉकडाउन तो 21 मार्च से आया है, लेकिन जिस राज्य की 77 फ़ीसदी आबादी कृषि कार्यों में लगी है उसके किसानों के लिए यह संकट उससे पहले आ चुका था.
लॉकडाउन की शुरुआत से पहले फ़रवरी के अंतिम और मार्च के शुरुआती हफ़्तों में बेमौसम बरसात और भारी ओलावृष्टि ने खेतों में खड़ी रबी की फसल को तबाह कर दिया.
उस बरसात में दलहनी फसलें लगभग नष्ट हो गईं. बची गेहूं की फसल. लेकिन, ख़राब मौसम इतना लंबा चला कि गेहूं की बालियां भी ठीक से नहीं फूट पाईं.
अब लॉकडाउन के पहले 21 दिनों के बीत जाने के ठीक बाद, बुधवार यानी 15 अप्रैल की सुबह को बिहार के ज़्यादातर हिस्सों में आंधी के साथ तेज़ बारिश हुई.
दुर्भाग्यवश, यह बारिश ऐसे वक़्त में हुई जब कोरोना के लॉकडाउन के कारण फसल की कटाई का काम बुरी तरह प्रभावित हो चुका है और पहले की बेमौसम बरसात ने पैदावार को लगभग आधा कर दिया है.
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मौसम ने दगा दिया
आख़िर किसी किसान के लिए सबसे बुरा क्या होता है?
दो देश,दो शख़्सियतें और ढेर सारी बातें. आज़ादी और बँटवारे के 75 साल. सीमा पार संवाद.
बात सरहद पार
समाप्त
"जब फ़सल खेत से कट कर खलिहान तक तो आ जाती है, लेकिन घर पहुंचने के पहले बारिश हो जाती है."
बुधवार की इस बारिश में गेंहू के भीगे डंठलों की बात करते हुए पटना के एक किसान रामनारायण यादव कहते हैं, "इस बारिश का होना किसानों की छाती पर मूंग दलने जैसा है. हमरी आधी फसल तो पहले की बारिश में बर्बाद हो चुकी थी, अब ऐसा लग रहा कि जो बाक़ी हैं वो भी कटाई से पहले ख़त्म हो जाएंगी."
कोरोना का यह वायरस न केवल कृषक कामगारों से उनके काम छीनने पर आमादा है बल्कि किसानी पर भी इसके संकट के बादल मंडरा रहे हैं.
फ़िलहाल आम किसान दो वक्त की रोटी का तो किसी न किसी तरह इंतजाम कर ले रहा है लेकिन अपने मवेशियों के लिए खाना जुटाना उनके लिए चुनौती पूर्ण कार्य बन गया है. इस लॉकडाउन के दरम्यान कई जगहों पर चारे की क़ीमत भी दोगुनी तक बढ़ गई है.
बिहार के कृषि विभाग ने इस साल रबी की फसलों की पैदावार का जो अनुमान लगाया है, उसके अनुसार पैदावार के 30 से 40 फ़ीसदी गिरने की संभावना है. और इस बारिश ने तो पहले से जख़्मी किसानों के ज़ख्मों को हरा कर दिया है. मौसम का घाव इस बार सबसे गहरा लगा है.
लॉकडाउन के कारण कटाई में देरी
बेमौसम बरसात के बाद बची-खुची फ़सल के जब कटने का समय आया तबतक कोरोना के प्रकोप से लॉकडाउन हो गया.
कटनी के काम के लिए मज़दूरों की कमी हो गई. पंजाब और हरियाणा से आने वाली बड़ी हार्वेस्टर मशीनें समय से नहीं पहुंच सकी. ना ही उन मशीनों को चलाने वाले ड्राइवर लॉकडाउन के कारण आ सके.
फ़सल कटाई में देरी का नतीजा ये हुआ कि कई-कई हेक्टेयर की फ़सल खेत में ही पक कर झड़ गई.
मजदूरों की कमी से मज़दूरी का रेट बढ़ गया.
बाद में जो बड़ी मशीनें पहुंच पाईं, वो मुहमांगी दर पर काम कर रही हैं. कटनी का ख़र्च निकलना भी मुश्किल हो गया है.
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छोटे और सीमांत किसानों के लिए मुश्किल
सबसे मुश्किल हालात उन छोटे और सीमांत किसानों के लिए है जिनके पास दो हेक्टेयर ज़मीन भी फसल उगाने के लिए नहीं हैं.
भारत सरकार के कृषि विभाग के आँकड़ों के मुताबिक़ राज्य की जो आबादी कृषि कार्य में लगी है उसमें सीमांत किसानों की संख्या 85 फ़ीसदी से अधिक है.
भोजपुर के रामशहर गांव के कृष्णा पासवान फ़िलहाल अपने खेत में कटाई में लगे हैं.
उनसे बातचीत में पता चला कटनी का काम 15 दिन की देरी से हो रहा था.
उन्होंने कहा, "ख़राब मौसम के कारण पहले फसल तैयार होने में देरी हुई, बाद में कटनी के लिए मज़दूर नहीं मिले."
वे कहते हैं, "अब हवा का रुख़ पश्चिम की तरफ़ मुड़ता देखा, पुरबा हवा बहने लगी, और फिर से मौसम बिगड़ने का डर सताने लगा तो परिवार को ही काम पर लगाकर कटनी कर रहे थे. खेत में मेरे साथ पत्नी और दामाद कटाई में हाथ बंटा रहे हैं."
पासवान ने बताया, "खेत उनका नहीं है, लेकिन फसल उनकी ही है."
वे कहते हैं, "9000 रुपए प्रति बीघा की मालगुज़ारी की दर पर दो बीघा में खेती किए. एक बीघा में चना उपजाया जो अभी तक खेत में लगा है, फर (फल) नहीं लगा, फसल इतनी ख़राब हो चुकी है कि अब काटने की हिम्मत नहीं हो रही. लग रहा है बीज के बराबर भी नहीं निकल पाएगा."
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पैदावार में गिरावट
कृष्णा की खेत से कुछ ही दूर पर किसान शुभ नारायण सिंह ने भी क़रीब एक बीघे में चना उपजाया. उनकी फसल थ्रेशर में कट रही थी.
कहते हैं, "इस बार पैदावार ही नहीं हुई. अगर अच्छी फसल होती तो एक बीघे में 20 मन (40 किलो का एक मन) तक चना उपजता. इस बार एक मन भी हो जाए तो बड़ी बात होगी."
इसी तरह गेहूं की बढ़िया पैदावार 35-40 मन प्रति बीघा मानी जाती है, लेकिन शुभ नारायण सिंह के मुताबिक़ "इस बार ख़राब मौसम के कारण दाना पुष्ट नहीं हो सका. पैदावार 12-13 मन प्रति बीघे पर आ गया है."
पिछली तीन फसलें तबाह हुईं
हालांकि, ये पहली बार नहीं है कि बिहार में फसलों का इतना नुक़सान पहुंचा हो, या खेती ख़राब हुई हो!
कभी बाढ़ तो कभी सुखाड़, पिछले कई सालों से यही स्थिति बनी है.
पिछले साल पहले सुखाड़ ने रबी को ख़राब किया था, तब राज्य के 38 में से 24 ज़िले सूखाग्रस्त घोषित हुए थे. बाद में खरीफ़ की फसल के समय भयंकर बाढ़ आ गई.
कृष्णा पासवान जैसे किसानों के लिए जिनके पास अपनी ज़मीन तक नहीं है, यह दौर और भी विकट है क्योंकि उन्हें खेत के मालिक को मालगुज़ारी का पैसा भी चुकाना है.
वे कहते भी है, "हम जैसे लोगों को अनुदान का लाभ भी नहीं मिलता. खेत के मालिक लाभ उठाते हैं. पिछली फसल ख़राब हुई थी तो क़र्ज़ मांग कर खेती किए, इस उम्मीद में कि बाढ़ के बाद फसल अच्छी होती है. लेकिन इस बार तो मालगुज़ारी चुकाने के लिए पैसे नहीं निकल पाएंगे. खाएंगे क्या और बेचेंगे क्या? अब तो क़र्ज़ का ब्याज़ बढ़ जाएगा."
कृषि कार्य में लगी आधी से अधिक आबादी (पांच करोड़ से अधिक) के लिए लगातार फसल ख़राब होने के कारण अब भूखमरी जैसी हालत बनती जा रही है. क्योंकि लॉकडाउन के दौरान बाक़ी दूसरे तरह के रोज़गार और धंधे भी बंद हो गए हैं.
सरकार क्या दे रही है?
बिहार सरकार किसानों के लिए राहत पैकेज, कृषि सब्सिडी या फसल क्षति के लिए अनुदान दे तो रही है, लेकिन कृषि कार्य में लगी आबादी में से 10 फ़ीसदी से भी कम लोगों को.
क्योंकि बिहार सरकार की तरफ़ से पंजीकृत किसानों की संख्या 1,32,05,137 है. जबकि कृषि विभाग अपनी वेबसाइट पर लिखता है कि राज्य की 77 फ़ीसदी आबादी (लगभग आठ करोड़) कृषि कार्यों में लगी है.
बिहार के बांका ज़िले के एक युवा किसान अजीत साह कहते हैं, "सरकार अभी तक पिछली खरीफ़ की फसल की सब्सिडी पूरी तरह नहीं दे पाई है. उसका वितरण फ़िलहाल बंद कर दिया गया है. इस बार रबी की फसलों के लिए जो अनुदान दिया जा रहा है उसमें से गेहूं की फसल को हटा दिया गया है. जबकि गेहूं ही रबी की मुख्य फसल है. सरकार की नज़र में अभी तक केवल दलहनी फसलों का ही नुक़सान हुआ है, जबकि उतना ही असर गेहूं पर भी पड़ा है."
अगली फसल की तैयारियां
किसानों के लिए अब सबसे अधिक मुश्किल है नई फसल की बुआई. क्योंकि लगातार तीन फसलें ख़राब हो जाने के उनकी पूंजी टूट गई है.
भोजपुर में ही गंगा के किनारे बसे गांव नेकनाम टोला के किसान विनय सिंह कहते हैं, "किसान फसल नहीं उगाएगा तो ख़ुद क्या खाएगा? अपने मवेशियों को क्या खिलाएगा? वह मजबूर है फसल उगाने के लिए चाहे क़र्ज़ लेकर क्यों न उगाए."
बिहार एग्रिकल्चरर यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर प्रो अजॉय कुमार सिंह बीबीसी से कहते हैं, "नई फसल की बुआई पर ज़्यादा असर नहीं पड़ना चाहिए क्योंकि अभी उसमें दो-तीन महीने का वक़्त है. तब तक शायद लॉकडाउन जैसे हालात न रहें."
क्या करें किसान?
अजॉय कुमार सिंह कहते हैं, "हालांकि, ख़राब मौसम ने स्टैंडिंग (खड़ी) फसल को बहुत नुक़सान पहुंचाया है, लेकिन किसानों को हिम्मत नहीं हारनी होगी. बची फसल पर ज़्यादा ध्यान देना होगा. मौसम पूर्वानुमानों के मुताबिक़ अगले कुछ दिनों में धूप खिलने वाले हैं. भीगी फसल को दो-तीन दिनों तक छूने की ज़रूरत भी नहीं है. उसके बाद पछुआ हवा चलेगी. तब कटनी का काम शुरू करना चाहिए."
कृषि विशेषज्ञ अजॉय कुमार बातचीत में यह भी चिंता ज़ाहिर करते हैं कि अब और बरसात हुई तो बीज उत्पादन पर भी बहुत असर पड़ेगा. अगर ऐसा हुआ तो रबी की अगली फसल भी प्रभावित होगी.
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