कोरोना वायरस: पैसों के बदले राशन कार्ड गिरवी रखने को मजबूर ग़रीब
- प्रभाकर मणि तिवारी
- कोलकाता से बीबीसी हिंदी के लिए

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"हमारे पास पूंजी के नाम पर बस राशन कार्ड ही है. इसलिए इलाज या शादी-ब्याह के मौके पर कर्ज़ लेने के लिए हमें महाजन के पास इसे ही गिरवी रखना पड़ता है. मैंने दस साल पहले 16 हज़ार रुपए के लिए इसे गिरवी रखा था. इस पर मिलने वाला सस्ता राशन महाजन उठाता था. फिर भी कर्ज़ की मूल रकम जस की तस है."
पश्चिम बंगाल के झारखंड से सटे पुरुलिया ज़िले के झालदा एक नंबर ब्लॉक के सरजूमातू गांव की आदिवासी महिला राधा कालिंदी का यह कथन बंगाल के ग्रामीण इलाक़ों की ज़मीनी हक़ीक़त का आईना है.
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स्थानीय लोगों का दावा है कि इलाक़े के आदिवासी-बहुल गांवों में पैसों के बदले राशकार्ड गिरवी रखने की परंपरा बहुत पुरानी है.
कोरोना की वजह से जारी लंबे लॉकडाउन के दौरान राज्य की ममता बनर्जी सरकार अगर ग़रीबों को छह महीने तक सार्वजनिक वितरण प्रणाली के ज़रिए मुफ़्त चावल-दाल देने का एलान नहीं करती तो यह परंपरा जस की तस जारी ही रहती.
स्थानीय नेताओं, राशन डीलरों और प्रशासन के लोगों को भी इसकी जानकारी है. यह बात अलग है कि अब कोई इसे स्वीकार करने को तैयार नहीं है.
प्रशासन कर रहा है लीपापोती
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राशनकार्ड के बदले कर्ज़ लेने का यह मामला उजागर होने के बाद इसकी लीपापोती के प्रयास भी किए जा रहे हैं. यही वजह है कि स्थानीय प्रशासन ने पुलिस के साथ मिल कर महाजनों के पास गिरवी रखे राशकार्ड लेकर उनको असली मालिकों तक तो सौंप दिया है. लेकिन इस मामले में न तो कोई मामला दर्ज किया गया है और न ही किसी को गिरफ़्तार किया गया है.
प्रशासन की दलील है कि महाजनों को भविष्य में ऐसा नहीं करने की चेतावनी दी गई है और उनसे लिखित में इसका वादा ले लिया गया है.
झालदा के ब्लॉक डेवलपमेंट आफिसर (बीडीओ) राजकुमार विश्वास बताते हैं, "गांव वालों ने किसी के ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज नहीं कराई थी. इसलिए दोनों पक्षों में सुलहनामा हो गया है और उन्होंने आगे से ऐसा नहीं करने की बात कही है."
वैसे, इलाक़े की ज़मीनी परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए गांव वालों की मजबूरी ये है कि वह लोग पानी में रहकर मगरमच्छ यानी महाजन से बैर नहीं कर सकते. ग़रीबी रेखा से नीचे रहने वाले यह लोग अपना राशनकार्ड पाकर ही संतुष्ट हैं.
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दूसरी ओर, कर्ज़ के बदले राशनकार्ड गिरवी रखने वाले महाजनों को इसमें कोई बुराई नहीं नज़र आती. उनकी दलील है कि आख़िर कर्ज़ के बदले कोई गारंटी तो देनी होती है. उनका सवाल है कि प्रशासन ने तमाम राशनकार्ड लेकर उनके मालिकों को सौंप दिए हैं. अब हमारे पैसों का क्या होगा?
इलाक़े के सरजूमातू समेत दर्जनों गांवों में आदिवासी परिवारों की बहुलता है. उनके पास न तो खेत है और न ही रोज़गार के दूसरे साधन. नतीजतन उनको अक्सर गांव के महाजनों से कर्ज़ लेना पड़ता है.
इलाक़े के कई लोग राशकार्ड के बदले कर्ज़ लेकर दूसरे राज्यों में कमाने गए हैं. मिसाल के तौर पर गौर कालिंदी का पुत्र श्यामल चार साल पहले तीन हज़ार रुपए कर्ज़ लेकर पंजाब गया था. उसी समय से उनके कार्ड पर महाजन ही सस्ता राशन लेता रहा है.
महाजन लेते हैं ग़रीबों का राशन
गांव के लोग स्थानीय राशन डीलर को बता देते हैं कि उनके कार्ड पर महाजन को राशन दे दिया जाए. इसी तरह किसी ने पत्नी के इलाज के लिए कर्ज़ लिया था तो किसी ने पुत्री की शादी के लिए. ऐसे सैकड़ों लोगों के कार्ड इन महाजनों के पास बरसों से गिरवी रखे थे.
इसी गांव के निताई कालिंदी बताती है, "आठ साल पहले पुत्री की शादी के लिए 15 हज़ार का कर्ज़ लिया था. अब तक उसे चुका नहीं सकी हूं. बीते महीने तक तो ठीक चल रहा था. लेकिन लॉकडाउन के बाद रोज़ी-रोटी जुटाना मुश्किल हो गया था. सरकार ने छह महीने तक मुफ़्त दाल-चावल देने का एलान किया था. लेकिन कार्ड नहीं होने की वजह से हमें वह नहीं मिल रहा था."
दरअसल, इस एलान के बाद ही स्थानीय लोगों ने इलाक़े के बीडीओ के पास जाकर फरियाद की. उनसे पूछताछ के बाद पता लगा कि उन सबके राशन कार्ड तो गिरवी रखे हैं.
इलाक़े के राशन डीलर अमृत महतो कहते हैं, "गांव के ज़्यादातर लोग दूसरी जगह काम करने जाते हैं. वह लोग कह जाते हैं कि उनका राशन फलां को दे दिया जाए." झालदा के बीडीओ राजकुमार विश्वास बताते हैं, "इस मामले की जांच की जा रही है. फिलहाल महाजनों से राशनकार्ड लेकर संबंधित लोगों को सौंप दिया गया है. लेकिन दोनों पक्षों में आपसी समझौता होने की वजह से गांव वालों ने महाजन के ख़िलाफ़ कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई है."
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सरजूजमातू के अलावा आसपास के और कई दर्जन गांवों की स्थिति भी ऐसी ही है. पुरुलिया के ज़िलाशासक राहुल मजुमदार कहते हैं, "लॉकडाउन नहीं होता तो यह बात सामने ही नहीं आती."
सरजूमातू गांव के एक महाजन गुना कुईरी कहते हैं, "कुछ परिवारों ने कर्ज़ के लिए गारंटी के तौर पर राशनकार्ड गिरवी रखा था. मैंने उनसे ऐसा करने को कहा था. लेकिन अब तमाम कार्ड लौटा दिए हैं."
कार्रवाई की मांग
गांव के एक अन्य महाजन की पत्नी रासू महतो कहती हैं, "गांव के लोगों ने हमसे कर्ज़ लिया था. इसके एवज में उन लोगों ने राशनकार्ड गिरवी रखे थे. पुलिस ने कार्ड तो वापस ले लिया है. लेकिन हमारे पैसों का क्या होगा? हमने उस कार्ड पर मिलने वाले खाद्यान्न में हिस्सा देने का प्रस्ताव दिया था. लेकिन पुलिस ने इसे ख़ारिज कर दिया."
ज़िले की बाघमुंडी सीट से कांग्रेस विधायक नेपाल महतो कहते हैं, "प्रशासन को इस बात की जानकारी नहीं थी कि यह सब कब से चल रहा था. अब सबके राशनकार्ड लौटा दिए गए हैं."
पुरुलिया ज़िला भाजपा के कार्यकारी अध्यक्ष शंकर महतो कहते हैं, "मैंने जीवन में पहली बार राशनकार्ड के गिरवी रखने की घटना देखी है. सरकार ग़रीबों और ग्रामीण इलाक़ों के विकास के दावे करती रही है. लेकिन यह मामला उन दावों की पोल खोलने के लिए काफ़ी है. पार्टी ने प्रशासन को इस मामले की जांच कर दोषियों के ख़िलाफ़ कर्रवाई करने की मांग उठाई है.
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