विशाखापट्टनम गैस लीक: 'जान बचा कर भागे लेकिन लॉकडाउन में कहां जाते'
- विजय गजम
- बीबीसी हिंदी के लिए

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सांकेतिक तस्वीर
मैं आंध्र प्रदेश के विशाखापटनम शहर के दूर पद्मनाभापुरम गांव में रहता हूं. हम लोग पिछले एक साल से यहां रह रहे हैं.
मेरे घर से विशाखापट्टनम तक पहुंचने के लिए किसी को आरआर वेंकटपुरम, गोपालापट्टनम और एनएडी इलाक़े से होकर गुज़रना होता है.
लॉकडाउन के चलते मैं इन दिनों अपने घर में ही क़ैद हूं. बुधवार को मुझे कुछ निजी काम से शहर जाना पड़ा. शहर पहुंचने के रास्ते में मैं उस फ़ैक्ट्री के पास से भी गुजरा था जहां गुरुवार की सुबह गैस लीक होने की दुर्घटना हुई है.
बुधवार की शाम फ़ैक्ट्री में सन्नाटा पसरा हुआ था क्योंकि इन दिनों फ़ैक्ट्री में केवल सुबह को ही काम हो रहा है. वो भी कम से कम कर्मचारियों के साथ. घर पहुंचने के बाद मैंने अपने बेटे को कुछ कहानियां सुनाईं और हम लोग सो गए.
सुबह के साढ़े तीन बजे जब हम गहरी नींद में थे तब किसी ने मेरे घर का दरवाज़ा ज़ोरों से खटखटाया. मैंने अपनी पत्नी को दरवाज़ा खोलने को कहा, खुद पीछे-पीछे आया. दरवाज़े पर पड़ोस की नागमणी खड़ी थीं. उन्हें सांस लेने में दिक्कत हो रही थी और वो ज़ोर-ज़ोर से सांस लेने की कोशिश कर रही थीं.
उन्होंने लगभग चिल्लाते हुए मुझसे कहा, "कब से दरवाज़ा पीट रही हूं. पॉलिमर्स में धमाका हो गया है. यहां से भागो."
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पूरी हवा में भर गई थी गैस की गंध
एलजी की पॉलिमर्स कंपनी में सुबह-सुबह गैस लीक की दुर्घटना हुई है. नागमणी का बेटा उसी कंपनी में काम करता है.
पहले तो मैं नागमणी की बात ठीक से समझ नहीं पाया और ना ही उतनी सुबह मुझे स्थिति का कुछ अंदाज़ा हुआ. लेकिन हमने देखा कि लोग उन्हीं कपड़ों में गलियों में दौड़ रहे हैं, जो पहन कर सोए होंगे.
लोग चिल्ला रहे थे, "अपने परिवार के साथ यहां से निकलो."
इसके बाद मुझे हवा में गैस की गंध का एहसास हुआ. मेरी आंखों में जलन होने लगी. हमने घर से बाहर निकलने का फ़ैसला लिया.
धीरे-धीरे हवा में गैस की गंध बढ़ती जा रही थी. मुझे पहले से ही सांस लेने में तकलीफ़ है. एक पल के लिए पैनिक जैसा एहसास भी हुआ.
मेरी पत्नी ने पूछा कि हम लोग कहां जाएंगे. मैंने उससे बिना सोचे-विचारे सबसे पहले घर से निकलने को कहा. हमने जल्दी-जल्दी अपने कपड़े बदले. हमने कोई बैग नहीं बांधा बस निकल पड़े.
घर के बाहर सैकड़ों बाइक, कार और आटो रिक्शा पर लोग दिखाई दिए. कई महिलाएं नाइटी पहने में ही दौड़ रहीं थीं.
सड़क पर इतनी भीड़ थी कि मैं अपनी बाइक नहीं चला पा रहा था. मैंने अपनी पत्नी और बेटे को कुछ दूर पैदल चलने को कहा और किसी तरह भीड़ से बाइक निकालने में कामयाब हुआ.
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जैसे-तैसे जान बची
काफ़ी मुश्किलों के बाद हम सिमाचलम इलाके में पहुंच पाए. मैंने अपने दफ़्तर को घटना की जानकारी दी और कुछ तस्वीरें भेज दीं.
जहां मैं अपने परिवार के साथ था वहां ढेरों लोग आते गए और जल्द ही वहां लोगों की भीड़ एकत्रित हो गई. मेरे कुछ दोस्त भी अपने बच्चों के साथ वहां आ गए थे. हर कोई सुरक्षित जगह तक पहुंचने की कोशिश में था.
धीरे-धीरे गैस की गंध इस इलाके तक पहुंचने लगी. मैं आगे बढ़कर हनुमंता वाका जंक्शन तक पहुंचा. पूरा रास्ता लोगों से भरा हुआ था क्योंकि हर कोई सुरक्षित इलाके की तलाश में भाग रहा था. आख़िर में हम विशाखापट्टनम में समुद्रतट पर पहुंच गए.
समुद्रतट पर शांति थी और हवा में गैस का असर भी नहीं लग रहा था. मैं अब इस सोच में पड़ गया था कि लॉकडाउन को देखते हुए कहां जाएं? कौन हमें रखेगा?
कई सवाल एक साथ मेरे दिमाग में उठ रहे थे. हमारे कुछ रिश्तेदार शहर के चाइना वालटेयर इलाक़े में रहते हैं.
मेरे बेटे ने भी कहा कि हमें चाइना वालटेयर इलाक़े में रह रहे हमारे रिश्तेदारों के यहां चलना चाहिए.
उस वक्त सुबह के छह बज रहे थे. इतनी सुबह हम उन्हें डिस्टर्ब करने से भी हिचक रहे थे. मैंने उन लोगों को फ़ोन किया और स्थिति के बारे में बताया. उन्होंने तुरंत हमें घर आने को कहा. यह हमारे लिए राहत की बात थी और हम उनके घर पहुंच गए.
वहां पहुंचने के बाद मैंने अपना वॉट्सऐप खोला. तब मुझे जान बचाने के लिए भाग रहे पीड़ितों के भयावह वीडियो देखने को मिले.
कई लोग दूसरे इलाके मेघाद्री गेड्डा की तरफ भाग रहे थे तो कई लोग सड़कों पर ही रूके हुए थे.
जब मैं अपने परिवार की सुरक्षा को लेकर आश्वस्त हो गया तब मैंने अपना काम शुरू किया.
(विजय गजम बीबीसी तेलुगू सेवा के सहयोगी पत्रकार हैं.)
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