कोरोनाः क्या चीन को बेदख़ल कर दुनिया की फैक्ट्री बन पाएगा भारत?
निखिल इनामदार
बीबीसी न्यूज़
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कोविड-19 से दुनिया भर में अब तक लाखों लोग संक्रमित हो चुके हैं. चीन को ये जंग दोहरे मोर्चे पर लड़नी पड़ रही है.
एक तरफ तो कोरोना के खिलाफ़ जंग है, वहीं दूसरी तरफ़ उसे पूरी दुनिया के गुस्से से भी निबटना पड़ रहा है.
इस नाराज़गी की कीमत क्या उसे 'दुनिया की फैक्ट्री' का अपना दर्जा गंवाकर चुकानी पड़ेगी? चीन के खिलाफ दुनिया का खड़ा होना क्या भारत के लिए एक अवसर है?
चीन के पड़ोस में मौजूद भारत दुनिया के इस गुस्से को एक मौके की तरह देख रहा है.
भारत को उम्मीद है कि चीन को जल्द ही दुनिया के मैन्युफैक्चरिंग हब की अपनी हैसियत से हाथ धोना पड़ेगा.
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कोरोना वायरस के बाद क्या चीन एक बार फिर दुनिया को हैरान करने जा रहा है?
उत्तर प्रदेश की मुहिम
ऐसे में भारत दुनियाभर की कंपनियों को चीन से हटकर अपने यहां फैक्ट्रियां खोलने के लिए हर तरह से लुभाने की कोशिश कर रहा है.
एक हालिया इंटरव्यू में केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी कहा था कि चीन की कमजोर ग्लोबल हैसियत भारत के लिए एक आशीर्वाद की तरह से है जिसके जरिए भारत और ज्यादा निवेश हासिल कर सकता है.
उत्तर प्रदेश ने तो एक मुहिम जैसी छेड़ दी है. राज्य ने एक टास्क फ़ोर्स का गठन किया है जो कि चीन छोड़ने का मन बना रही कंपनियों को अपने यहां लाने की कोशिशें करेगा.
उत्तर प्रदेश की आबादी ब्राज़ील जैसे एक मुल्क के बराबर है.
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कंपनियों से संपर्क साध चुकी है सरकार
ब्लूमबर्ग के मुताबिक, चीन से अपनी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स हटाकर दूसरी जगह लगाने के बारे में सोच रही कंपनियों के लिए भारत लग्ज़मबर्ग के दोगुने आकार जिनता बड़ा लैंड पूल भी तैयार कर रहा है.
भारत अब तक 1,000 से ज्यादा अमरीकी बहुराष्ट्रीय कंपनियों से इस बाबत संपर्क भी कर चुका है.
भारत सरकार की राष्ट्रीय निवेश प्रोत्साहन एजेंसी इनवेस्ट इंडिया के चीफ़ एग्ज़िक्यूटिव (सीईओ) दीपक बागला ने बीबीसी को बताया, "कंपनियों से संपर्क करना, उनसे बातचीत और मुलाकात एक सतत प्रक्रिया है. कोविड ने केवल इस प्रक्रिया की रफ्तार को तेज कर दिया है क्योंकि इनमें से कई कंपनियां चीन में अपने जोखिम को कम करना चाहती हैं."
यूएस-इंडिया बिजनेस काउंसिल (यूएसआईबीसी) एक ताकतवर लॉबी समूह है जो कि भारत और अमरीका के बीच आपसी निवेश को बढ़ाने के लिए काम करता है.
इस समूह ने भी कहा है कि भारत ने बड़े पैमाने पर चीन को बेदखल करने की मुहिम शुरू कर दी है.
भारत में कोरोनावायरस के मामले
यह जानकारी नियमित रूप से अपडेट की जाती है, हालांकि मुमकिन है इनमें किसी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के नवीनतम आंकड़े तुरंत न दिखें.
राज्य या केंद्र शासित प्रदेश
कुल मामले
जो स्वस्थ हुए
मौतें
महाराष्ट्र
1351153
1049947
35751
आंध्र प्रदेश
681161
612300
5745
तमिलनाडु
586397
530708
9383
कर्नाटक
582458
469750
8641
उत्तराखंड
390875
331270
5652
गोवा
273098
240703
5272
पश्चिम बंगाल
250580
219844
4837
ओडिशा
212609
177585
866
तेलंगाना
189283
158690
1116
बिहार
180032
166188
892
केरल
179923
121264
698
असम
173629
142297
667
हरियाणा
134623
114576
3431
राजस्थान
130971
109472
1456
हिमाचल प्रदेश
125412
108411
1331
मध्य प्रदेश
124166
100012
2242
पंजाब
111375
90345
3284
छत्तीसगढ़
108458
74537
877
झारखंड
81417
68603
688
उत्तर प्रदेश
47502
36646
580
गुजरात
32396
27072
407
पुडुचेरी
26685
21156
515
जम्मू और कश्मीर
14457
10607
175
चंडीगढ़
11678
9325
153
मणिपुर
10477
7982
64
लद्दाख
4152
3064
58
अंडमान निकोबार द्वीप समूह
3803
3582
53
दिल्ली
3015
2836
2
मिज़ोरम
1958
1459
0
स्रोतः स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय
11: 30 IST को अपडेट किया गया
रातों-रात शिफ्ट होना मुमकिन नहीं
यूएसआईबीसी की प्रेसिडेंट और अमरीकी विदेश विभाग में दक्षिण और मध्य एशिया मामलों की सहायक मंत्री रह चुकीं निशा बिश्वाल ने बीबीसी को बताया, "हम देख रहे हैं कि भारत केंद्र और राज्य सरकारों दोनों के स्तर पर सप्लाई चेन हासिल करने की कोशिशों को प्राथमिकता दे रहा है."
उन्होंने कहा, "जिन कंपनियों की भारत में पहले से कुछ मैन्युफैक्चरिंग गतिविधियां मौजूद हैं वे चीन में अपने उत्पादन को कम करने और भारत में अपना कामकाज बढ़ाने की दिशा में पहले कदम उठा सकती हैं."
वह कहती हैं कि लेकिन, इस मामले में चीजें अभी भी आकलन के स्तर पर ही हैं और हड़बड़ी में शायद ही कोई फैसले लिए जाएं.
ऐसे माहौल में जबकि ग्लोबल लेवल पर कंपनियों के कारोबार बुरी तरह से चरमरा गए हैं, उसमें पूरी सप्लाई चेन्स को एक जगह से उठाकर दूसरी जगह ले जाना इतना आसान काम नहीं है.
उन चमकते सितारों की कहानी जिन्हें दुनिया अभी और देखना और सुनना चाहती थी.
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समाप्त
अर्थशास्त्री रूपा सुब्रह्मण्या कहती हैं, "इनमें से कई कंपनियां महामारी के चलते नकदी और दूसरी पूंजीगत मुश्किलों का सामना कर रही हैं. इस वजह से ये कंपनियां जल्दबाजी में कोई भी फैसला लेने से पहले सतर्कता से विचार करेंगी."
चीन मामलों पर नजर रखने वाले और हांगकांग में फ़ाइनेंशियल टाइम्स के पूर्व ब्यूरो चीफ़ राहुल जैकब के मुताबिक, भारत सरकार का लैंड बैंक तैयार करना सही दिशा में उठाया गया कदम है, लेकिन, बड़ी कंपनियां महज ज़मीन की उपलब्धता देखकर अपने कामकाज चीन से ले जाकर भारत शिफ़्ट नहीं करेंगी.
उन्होंने कहा, "प्रोडक्शन लाइंस और सप्लाई चेन्स ज्यादातर लोगों की समझ के मुकाबले कहीं जटिल चीजें हैं. रातों-रात इन्हें एक जगह से उठाकर दूसरी जगह मुमकिन नहीं है."
वह कहते हैं, "चीन बड़े पोर्ट्स और हाइवे जैसे इंटीग्रेटेड इंफ्रास्ट्रक्चर मुहैया कराता है. इसके अलावा, वहां उच्च दर्जे की लेबर और अत्याधुनिक लॉजिस्टिक्स भी उपलब्ध है. अंतरराष्ट्रीय कंपनियां जिस तरह की सख्त समयसीमा वाले माहौल में काम करती हैं उसमें ये सुविधाएं अहम फैक्टर साबित होती हैं."
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स्वाभाविक कारोबारी ठिकाना
ग्लोबल मल्टीनेशनल कंपनियों के लिए भारत के एक स्वाभाविक कारोबारी ठिकाना नहीं होने की एक वजह शायद भारत के बड़ी ग्लोबल सप्लाई चेन्स के साथ अच्छी तरह से जुड़े न होने की भी है.
पिछले साल भारत 12 अन्य एशियाई देशों के साथ एक अहम बहुपक्षीय व्यापार समझौते से बाहर निकल गया था. इसे क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) कहा जाता है. इस समझौते के लिए सात साल तक बातचीत जारी रही थी.
इस तरह के फ़ैसले भारतीय निर्यातकों को बिना टैरिफ़ वाले दूसरे बाज़ारों तक पहुंचने का फायदा उठाने या अपने कारोबारी सहयोगियों को इसी तरह के फ़ायदे ऑफर करने से रोकते हैं.
द फ़्यूचर इज एशियन के लेखक पराग खन्ना ने बीबीसी को बताया, "मैं कोई ऐसी चीज भारत में क्यों बनाऊंगा जिसे मैं सिंगापुर में बेचना चाहता हूं? संस्थानिक तौर पर व्यापार समझौतों से जुड़ा होना अच्छी कीमत पर माल ऑफर करने जितना ही अहम होता है."
नक्शे पर
दुनिया भर में पुष्ट मामले
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गोले प्रत्येक देश में कोरोना वायरस के पुष्ट मामलों की संख्या दर्शाते हैं.
स्रोत: जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी, राष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य एजेंसियां
आंकड़े कब अपडेट किए गए
5 जुलाई 2022, 1:29 pm IST
नियमों में स्थिरता का अभाव
पराग खन्ना मानते हैं कि क्षेत्रीय तौर पर जुड़ा होना खासतौर पर बेहद अहम होता है क्योंकि वैश्विक व्यापार अब 'जहां बनाएं, वहीं बेचें' वाले ट्रेंड पर चलना शुरू हो गया है. इस मॉडल में कंपनियां उत्पादन को 'आउटसोर्स' करने के बजाय 'नियर-सोर्स' करने लगी हैं. इस तरह से कंपनियां जहां मांग है वहीं चीजों के उत्पादन करने को तरजीह दे रही हैं.
भारत के उतार-चढ़ाव भर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफ़डीआई) नियमों और असमान रेगुलेशंस की वजह से भी कंपनियां अपनी इकाइयां भारत लाने में हिचक रही हैं.
ई-कॉमर्स कंपनियों को गैर-जरूरी सामानों को बेचने से रोकने और एफ़डीआई नियमों में बदलाव कर पड़ोसी देशों से आने वाली आसान पूंजी पर पाबंदियां लगाने जैसे कदमों के साथ ऐसा माना जाने लगा है कि भारत इस महामारी का इस्तेमाल अपने इर्दगिर्द एक सुरक्षात्मक दीवार बनाने में कर रहा है.
देशवासियों के नाम अपने हालिया संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'बी वोकल फ़ॉर लोकल' का जोशीला नारा दिया.
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तो अगर भारत नहीं तो कौन?
इसका मतलब है कि स्थानीय रूप से बनाए गए उत्पादों पर जोर दिया जाए. दूसरी ओर नए राहत पैकेज के प्रस्तावों में भारतीय ठेकों (कॉन्ट्रैक्ट्स या निविदाओं) के लिए बोली लगाने वाली विदेशी कंपनियों के लिए न्यूनतम सीमा को बढ़ा दिया गया है.
बिश्वाल कहती हैं, "भारत अपनी रेगुलेटरी स्थिरता में जितना ज्यादा सुधार करेगा, वैश्विक कंपनियों को अपने यहां कारोबार लगाने के लिए उत्साहित करने में उसके आसार उतने ही बढ़ जाएंगे."
फिलहाल वियतनाम, बांग्लादेश, दक्षिण कोरिया और ताइवान को चीन के खिलाफ गुस्से का फ़ायदा मिलता दिख रहा है. जैकब बताते हैं कि दक्षिण कोरिया और ताइवान आधुनिक तकनीक के लिहाज से और वियतनाम और बांग्लादेश कम तकनीक में सबसे पसंदीदा हैं.
बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने चीन से हटाकर इन देशों में उत्पादन इकाइयां लगाना करीब एक दशक पहले शुरू कर दिया था. इसकी वजह बढ़ती लेबर और पर्यावरणीय लागत थी.
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प्रवासी मज़दूर आखिर शहरों में क्यों नहीं रुक रहे?
लेबर कानूनों में बदलाव क्या होंगे फायदेमंद?
कंपनियों के चीन से धीरे-धीरे हो रहे विस्थापन में हालिया सालों में यूएस-चीन व्यापार को लेकर पैदा हुए तनाव ने रफ़्तार पैदा कर दी है.
ट्रेड वॉर शुरू होने के एक महीने पहले यानी जून 2018 से ही वियतमान से अमरीका को सामानों का आयात 50 फीसदी से ज्यादा बढ़ गया है.
ताइवान से यूएस होने वाले इंपोर्ट में इसी दौरान 30 फीसदी इजाफा हुआ है. साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट न्यूजपेपर के आकलन से इसका पता चलता है.
भारत इस खेल में पिछड़ता दिख रहा है क्योंकि वह ऐसी स्थितियां पैदा करने में नाकाम रहा है जिनमें बहुराष्ट्रीय कंपनियां न केवल स्थानीय मार्केट में अपने माल की खपत कर सकें, बल्कि वे अपने माल को पूरी दुनिया में भेजने के लिए इसे एक प्रोडक्शन हब के तौर पर भी इस्तेमाल कर सकें.
हालिया हफ्तों में कई राज्यों ने ईज़ ऑफ़ डूइंग बिजनेस (कारोबार को आसान बनाने) के नियमों से जुड़ी चिंताओं को दूर करने की दिशा में कदम उठाने शुरू किए हैं.
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कोरोनावायरस संकट के दौर में दोहरी जंग में उलझा देश
कानूनों के जरिए
इनमें सबसे अहम भारत के पुराने वक्त के लेबर कानूनों में विवादित बदलाव शामिल हैं. इन कानूनों के जरिए मजदूरों के शोषण को रोकने के लिए प्रावधान किए गए थे.
मिसाल के तौर पर, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों ने मज़दूरों को सुरक्षा देने वाले कई अहम नियम निलंबित कर दिए हैं.
इन बदलावों में फैक्टरियों को साफ़-सफ़ाई, वेंटीलेशन, लाइटिंग और शौचालयों जैसी बेसिक जरूरतों को पूरा करने तक से छूट दे दी गई है.
इन बदलावों का मकसद निवेश के माहौल को बेहतर बनाना और विदेशी पूंजी को हासिल करना है.
लेकिन, इस तरह के फैसले उलटे भी साबित हो सकते हैं और ये मदद करने की बजाय नुकसानदेह हो सकते हैं.
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सेफ्टी स्टैंडर्ड को लेकर बेहद सख्त नियम
जैकब कहते हैं, "अंतरराष्ट्रीय कंपनियां इसे लेकर बेहद चिंतित हो सकती हैं. इनके सप्लायरों के लिए श्रम, पर्यावरण और सेफ्टी स्टैंडर्ड को लेकर बेहद सख्त नियम होते हैं."
वह कहते हैं कि 2013 में बांग्लादेश की राणा प्लाज़ा गारमेंट फैक्टरी का जमींदोज होना इस दिशा में मील का पत्थर साबित हुआ. इसकी वजह से बांग्लादेश ने फैक्टरी इंफ्रास्ट्रक्चर और सेफ्टी के लिए बड़े कदम उठाए ताकि वह विदेशी निवेश हासिल कर सके.
जैकब कहते हैं, "भारत को भी बेहतर स्टैंडर्ड अपनाने होंगे. ये ऐसे नौकरशाहों के पावरपॉइंट्स पर दिए जाने वाले खोखले आइडियाज होते हैं जिनका वैश्विक व्यापार की जमीनी हकीकत से कोई वास्ता नहीं है."
ऐसा मेडिकल टेस्ट जिससे साबित हो सके कि किसी शख्स को कोरोना वायरस था और अब उसमें कुछ इम्युनिटी आ गई है. यह टेस्ट खून में एंटीबॉडीज का पता लगाता है, जिन्हें बीमारी से लड़ने के लिए शरीर पैदा करता है.
बिना लक्षण वाले
ऐसा शख्स जिसे बीमारी हुई मगर उसमें कोई लक्षण नहीं दिखाई दिए. कुछ स्टडीज से पता चला है कि कोरोना वायरस का शिकार हुए कुछ लोगों में तेज़ बुखार या कफ़ जैसे आम लक्षण नहीं नज़र आए.
कोरोना वायरस
वायरस समूह में से एक वायरस जिससे मनुष्यों या जानवरों में गंभीर या हल्की बीमारी हो सकती है. पूरी दुनिया में फैले कोरोना वायरस से कोविड-19 बीमारी हो रही है. सामान्य सर्दी या इंफ्लूएंजा (फ़्लू) फैलाने वाले दूसरे तरह के कोरोना वायरस हैं.
कोविड-19
कोरोना वायरस की वजह से फैल रही बीमारी का सबसे पहले पता 2019 के अंत में चीन के वुहान में लगा. यह मूलरूप में फ़ेफ़ड़ों पर असर डालता है.
संक्रमण की तेज़ी को रोकना
ट्रांसमिशन की दर को कम करना ताकि चार्ट पर प्रदर्शित किए जाने पर मामलों की संख्या के आधार पर पीक को फ्लैट कर कर्व को नीचे लाया जाए ताकि स्वास्थ्य सेवाओं पर बढ़ते बोझ को कम किया जा सके.
फ़्लू
इंफ्लूएंजा का संक्षिप्त नाम. एक वायरस जो कि सीजनल बीमारियों में मनुष्यों और जानवरों में फैलता है.
सामुदायिक प्रतिरोधक क्षमता
एक बड़ी आबादी तक पहुंचने के बाद किस तरह से एक बीमारी का फैलाव सुस्त पड़ता है.
लड़ने में सक्षम
ऐसा शख्स जिसका शरीर किसी बीमारी के सामने टिक सके या उसे रोक दे वह इससे इम्यून कहा जाता है. एक बार जब कोई शख्स कोरोना वायरस से उबर जाता है तो ऐसा माना जाता है कि वह एक निश्चित अवधि तक इस बीमारी का फिर से शिकार नहीं हो सकता.
वायरस के असर करने की अवधि
किसी बीमारी का शिकार होने और उसका लक्षण दिखाई देना शुरू होने के बीच की अवधि
लॉकडाउन
आवाजाही या रोज़ाना की ज़िंदगी पर पाबंदियां, जिनमें सार्वजनिक इमारतें बंद हैं और लोगों को घरों पर ही रहने के लिए कहा गया है. कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए कई देशों में लॉकडाउन को कड़े उपायों के तौर पर लागू किया गया है."
शुरुआत
किसी क्लस्टर या अलग-अलग इलाकों में तेज रफ्तार से बीमारी के कई मामले सामने आना.
महामारी
किसी गंभीर बीमारी का कई देशों में एकसाथ तेजी से फैलना महामारी कहलाता है.
एकांतवास
किसी संक्रामक बीमारी को फैलने से रोकने के लिए इसकी जद में आए लोगों को अलग रखना.
सार्स
सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम एक कोरोना वायरस का ही प्रकार है जो कि एशिया में 2003 में शुरू हुआ था.
सेल्फ-आइसोलेशन
घर पर ही रहना और अन्य लोगों से सभी तरह के संपर्क से बचना ताकि बीमारी को फैलने से रोका जा सके.
सामाजिक दूरी
अन्य लोगों से दूर रहना ताकि बीमारी के ट्रांसमिशन की रफ्तार कम की जा सके. सरकार की सलाह है कि अपने साथ रह रहे लोगों के अलावा दोस्तों और रिश्तेदारों से न मिलें. साथ ही सार्वजनिक परिवहन के इस्तेमाल से भी बचें.
आपातकालीन स्थिति
किसी संकट के वक्त सरकार द्वारा रोज़ाना की जिंदगी पर पाबंदी लगाने के मकसद से उठाए गए कदम. इसमें स्कूलों और दफ्तरों को बंद करना, लोगों की आवाजाही पर पाबंदी लगाना और यहां तक कि सैन्य बलों को तैनात करना ताकि रेगुलर इमर्जेंसी सेवाओं को सपोर्ट किया जा सके."
लक्षण
संक्रमण से लड़ने के लिए शरीर की कोशिश के तौर पर इम्यून सिस्टम से किसी बीमारी के संकेत. कोरोना वायरस का मुख्य लक्षण बुखार, सूखी खांसी और सांस लेने में दिक्कत होना है."
टीका
ऐसा इलाज जिससे शरीर एंटीबॉडीज पैदा करता है, जो कि बीमारी से लड़ता है और आगे के संक्रमण से लड़ने की इम्युनिटी देता है."
वेंटीलेटर
ऐसी मशीन जो कि ऐसे वक्त पर शरीर के लिए सांस लेने का काम करती है जब फ़ेफ़ड़े काम करना बंद करने लगते हैं.
विषाणु
एक छोटा सा एजेंट जो कि किसी जीवित सेल के भीतर अपनी कॉपी बना लेता है. वायरस की वजह से ये सेल मरने लगती हैं और शरीर की सामान्य केमिकल प्रक्रियाओं को अवरुद्ध कर देती हैं जिससे बीमारी हो जाती है.
मुख्य कहानी नीचे जारी है
ट्रांसलेटर
इन सभी शब्दों का क्या मतलब है?
भारत के सामने यही है मौका
लेकिन, अमरीका के चीन के ख़िलाफ़ सख्त रवैये को देखते हुए और जापान जिस तरह से अपनी कंपनियों को चीन से निकलने के लिए पैसे दे रहा है और जिस तरह से ब्रितानी सांसदों को चीनी टेलीकॉम दिग्गज हुआवेई को देश के नए 5जी डेटा नेटवर्क खड़ा करने की मंजूरी देने के लिए विरोध झेलना पड़ रहा है और उन पर इस फैसले पर दोबारा विचार करने का दबाव पड़ रहा है, उसके चलते पूरी दुनिया में चीन के विरोध में पैदा हुआ माहौल और मजबूत हो रहा है.
एक्सपर्ट्स का कहना है कि अब वह वक्त आ चुका है कि जबकि भारत को बड़े और व्यापक स्ट्रक्चरल रिफॉर्म करने चाहिए ताकि वह नई पैदा हुई भूराजनीतिक परिस्थितियों का इस्तेमाल दुनिया के साथ अपने कारोबारी रिश्ते में एक बड़ा बदलाव लाने में कर सके.
कोरोना वायरस क्या है?लीड्स के कैटलिन सेसबसे ज्यादा पूछे जाने वाले
बीबीसी न्यूज़स्वास्थ्य टीम
कोरोना वायरस एक संक्रामक बीमारी है जिसका पता दिसंबर 2019 में चीन में चला. इसका संक्षिप्त नाम कोविड-19 है
सैकड़ों तरह के कोरोना वायरस होते हैं. इनमें से ज्यादातर सुअरों, ऊंटों, चमगादड़ों और बिल्लियों समेत अन्य जानवरों में पाए जाते हैं. लेकिन कोविड-19 जैसे कम ही वायरस हैं जो मनुष्यों को प्रभावित करते हैं
कुछ कोरोना वायरस मामूली से हल्की बीमारियां पैदा करते हैं. इनमें सामान्य जुकाम शामिल है. कोविड-19 उन वायरसों में शामिल है जिनकी वजह से निमोनिया जैसी ज्यादा गंभीर बीमारियां पैदा होती हैं.
ज्यादातर संक्रमित लोगों में बुखार, हाथों-पैरों में दर्द और कफ़ जैसे हल्के लक्षण दिखाई देते हैं. ये लोग बिना किसी खास इलाज के ठीक हो जाते हैं.
लेकिन, कुछ उम्रदराज़ लोगों और पहले से ह्दय रोग, डायबिटीज़ या कैंसर जैसी बीमारियों से लड़ रहे लोगों में इससे गंभीर रूप से बीमार होने का ख़तरा रहता है.
एक बार आप कोरोना से उबर गए तो क्या आपको फिर से यह नहीं हो सकता?बाइसेस्टर से डेनिस मिशेलसबसे ज्यादा पूछे गए सवाल
बाीबीसी न्यूज़स्वास्थ्य टीम
जब लोग एक संक्रमण से उबर जाते हैं तो उनके शरीर में इस बात की समझ पैदा हो जाती है कि अगर उन्हें यह दोबारा हुआ तो इससे कैसे लड़ाई लड़नी है.
यह इम्युनिटी हमेशा नहीं रहती है या पूरी तरह से प्रभावी नहीं होती है. बाद में इसमें कमी आ सकती है.
ऐसा माना जा रहा है कि अगर आप एक बार कोरोना वायरस से रिकवर हो चुके हैं तो आपकी इम्युनिटी बढ़ जाएगी. हालांकि, यह नहीं पता कि यह इम्युनिटी कब तक चलेगी.
कोरोना वायरस का इनक्यूबेशन पीरियड क्या है?जिलियन गिब्स
मिशेल रॉबर्ट्सबीबीसी हेल्थ ऑनलाइन एडिटर
वैज्ञानिकों का कहना है कि औसतन पांच दिनों में लक्षण दिखाई देने लगते हैं. लेकिन, कुछ लोगों में इससे पहले भी लक्षण दिख सकते हैं.
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (डब्ल्यूएचओ) का कहना है कि इसका इनक्यूबेशन पीरियड 14 दिन तक का हो सकता है. लेकिन कुछ शोधार्थियों का कहना है कि यह 24 दिन तक जा सकता है.
इनक्यूबेशन पीरियड को जानना और समझना बेहद जरूरी है. इससे डॉक्टरों और स्वास्थ्य अधिकारियों को वायरस को फैलने से रोकने के लिए कारगर तरीके लाने में मदद मिलती है.
क्या कोरोना वायरस फ़्लू से ज्यादा संक्रमणकारी है?सिडनी से मेरी फिट्ज़पैट्रिक
मिशेल रॉबर्ट्सबीबीसी हेल्थ ऑनलाइन एडिटर
दोनों वायरस बेहद संक्रामक हैं.
ऐसा माना जाता है कि कोरोना वायरस से पीड़ित एक शख्स औसतन दो या तीन और लोगों को संक्रमित करता है. जबकि फ़्लू वाला व्यक्ति एक और शख्स को इससे संक्रमित करता है.
फ़्लू और कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए कुछ आसान कदम उठाए जा सकते हैं.
बार-बार अपने हाथ साबुन और पानी से धोएं
जब तक आपके हाथ साफ न हों अपने चेहरे को छूने से बचें
खांसते और छींकते समय टिश्यू का इस्तेमाल करें और उसे तुरंत सीधे डस्टबिन में डाल दें.
आप कितने दिनों से बीमार हैं?मेडस्टोन से नीता
बीबीसी न्यूज़हेल्थ टीम
हर पांच में से चार लोगों में कोविड-19 फ़्लू की तरह की एक मामूली बीमारी होती है.
इसके लक्षणों में बुख़ार और सूखी खांसी शामिल है. आप कुछ दिनों से बीमार होते हैं, लेकिन लक्षण दिखने के हफ्ते भर में आप ठीक हो सकते हैं.
अगर वायरस फ़ेफ़ड़ों में ठीक से बैठ गया तो यह सांस लेने में दिक्कत और निमोनिया पैदा कर सकता है. हर सात में से एक शख्स को अस्पताल में इलाज की जरूरत पड़ सकती है.
अस्थमा वाले मरीजों के लिए कोरोना वायरस कितना ख़तरनाक है?फ़ल्किर्क से लेस्ले-एन
मिशेल रॉबर्ट्सबीबीसी हेल्थ ऑनलाइन एडिटर
अस्थमा यूके की सलाह है कि आप अपना रोज़ाना का इनहेलर लेते रहें. इससे कोरोना वायरस समेत किसी भी रेस्पिरेटरी वायरस के चलते होने वाले अस्थमा अटैक से आपको बचने में मदद मिलेगी.
अगर आपको अपने अस्थमा के बढ़ने का डर है तो अपने साथ रिलीवर इनहेलर रखें. अगर आपका अस्थमा बिगड़ता है तो आपको कोरोना वायरस होने का ख़तरा है.
क्या ऐसे विकलांग लोग जिन्हें दूसरी कोई बीमारी नहीं है, उन्हें कोरोना वायरस होने का डर है?स्टॉकपोर्ट से अबीगेल आयरलैंड
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ह्दय और फ़ेफ़ड़ों की बीमारी या डायबिटीज जैसी पहले से मौजूद बीमारियों से जूझ रहे लोग और उम्रदराज़ लोगों में कोरोना वायरस ज्यादा गंभीर हो सकता है.
ऐसे विकलांग लोग जो कि किसी दूसरी बीमारी से पीड़ित नहीं हैं और जिनको कोई रेस्पिरेटरी दिक्कत नहीं है, उनके कोरोना वायरस से कोई अतिरिक्त ख़तरा हो, इसके कोई प्रमाण नहीं मिले हैं.
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कम संख्या में कोविड-19 निमोनिया बन सकता है. ऐसा उन लोगों के साथ ज्यादा होता है जिन्हें पहले से फ़ेफ़ड़ों की बीमारी हो.
लेकिन, चूंकि यह एक नया वायरस है, किसी में भी इसकी इम्युनिटी नहीं है. चाहे उन्हें पहले निमोनिया हो या सार्स जैसा दूसरा कोरोना वायरस रह चुका हो.
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जेम्स गैलेगरस्वास्थ्य संवाददाता
शहरों को क्वारंटीन करना और लोगों को घरों पर ही रहने के लिए बोलना सख्त कदम लग सकते हैं, लेकिन अगर ऐसा नहीं किया जाएगा तो वायरस पूरी रफ्तार से फैल जाएगा.
फ़्लू की तरह इस नए वायरस की कोई वैक्सीन नहीं है. इस वजह से उम्रदराज़ लोगों और पहले से बीमारियों के शिकार लोगों के लिए यह ज्यादा बड़ा ख़तरा हो सकता है.
क्या खुद को और दूसरों को वायरस से बचाने के लिए मुझे मास्क पहनना चाहिए?मैनचेस्टर से एन हार्डमैन
बीबीसी न्यूज़हेल्थ टीम
पूरी दुनिया में सरकारें मास्क पहनने की सलाह में लगातार संशोधन कर रही हैं. लेकिन, डब्ल्यूएचओ ऐसे लोगों को मास्क पहनने की सलाह दे रहा है जिन्हें कोरोना वायरस के लक्षण (लगातार तेज तापमान, कफ़ या छींकें आना) दिख रहे हैं या जो कोविड-19 के कनफ़र्म या संदिग्ध लोगों की देखभाल कर रहे हैं.
मास्क से आप खुद को और दूसरों को संक्रमण से बचाते हैं, लेकिन ऐसा तभी होगा जब इन्हें सही तरीके से इस्तेमाल किया जाए और इन्हें अपने हाथ बार-बार धोने और घर के बाहर कम से कम निकलने जैसे अन्य उपायों के साथ इस्तेमाल किया जाए.
फ़ेस मास्क पहनने की सलाह को लेकर अलग-अलग चिंताएं हैं. कुछ देश यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि उनके यहां स्वास्थकर्मियों के लिए इनकी कमी न पड़ जाए, जबकि दूसरे देशों की चिंता यह है कि मास्क पहने से लोगों में अपने सुरक्षित होने की झूठी तसल्ली न पैदा हो जाए. अगर आप मास्क पहन रहे हैं तो आपके अपने चेहरे को छूने के आसार भी बढ़ जाते हैं.
यह सुनिश्चित कीजिए कि आप अपने इलाके में अनिवार्य नियमों से वाकिफ़ हों. जैसे कि कुछ जगहों पर अगर आप घर से बाहर जाे रहे हैं तो आपको मास्क पहनना जरूरी है. भारत, अर्जेंटीना, चीन, इटली और मोरक्को जैसे देशों के कई हिस्सों में यह अनिवार्य है.
अगर मैं ऐसे शख्स के साथ रह रहा हूं जो सेल्फ-आइसोलेशन में है तो मुझे क्या करना चाहिए?लंदन से ग्राहम राइट
बीबीसी न्यूज़हेल्थ टीम
अगर आप किसी ऐसे शख्स के साथ रह रहे हैं जो कि सेल्फ-आइसोलेशन में है तो आपको उससे न्यूनतम संपर्क रखना चाहिए और अगर मुमकिन हो तो एक कमरे में साथ न रहें.
सेल्फ-आइसोलेशन में रह रहे शख्स को एक हवादार कमरे में रहना चाहिए जिसमें एक खिड़की हो जिसे खोला जा सके. ऐसे शख्स को घर के दूसरे लोगों से दूर रहना चाहिए.
मैं पांच महीने की गर्भवती महिला हूं. अगर मैं संक्रमित हो जाती हूं तो मेरे बच्चे पर इसका क्या असर होगा?बीबीसी वेबसाइट के एक पाठक का सवाल
जेम्स गैलेगरस्वास्थ्य संवाददाता
गर्भवती महिलाओं पर कोविड-19 के असर को समझने के लिए वैज्ञानिक रिसर्च कर रहे हैं, लेकिन अभी बारे में बेहद सीमित जानकारी मौजूद है.
यह नहीं पता कि वायरस से संक्रमित कोई गर्भवती महिला प्रेग्नेंसी या डिलीवरी के दौरान इसे अपने भ्रूण या बच्चे को पास कर सकती है. लेकिन अभी तक यह वायरस एमनियोटिक फ्लूइड या ब्रेस्टमिल्क में नहीं पाया गया है.
गर्भवती महिलाओंं के बारे में अभी ऐसा कोई सुबूत नहीं है कि वे आम लोगों के मुकाबले गंभीर रूप से बीमार होने के ज्यादा जोखिम में हैं. हालांकि, अपने शरीर और इम्यून सिस्टम में बदलाव होने के चलते गर्भवती महिलाएं कुछ रेस्पिरेटरी इंफेक्शंस से बुरी तरह से प्रभावित हो सकती हैं.
मैं अपने पांच महीने के बच्चे को ब्रेस्टफीड कराती हूं. अगर मैं कोरोना से संक्रमित हो जाती हूं तो मुझे क्या करना चाहिए?मीव मैकगोल्डरिक
जेम्स गैलेगरस्वास्थ्य संवाददाता
अपने ब्रेस्ट मिल्क के जरिए माएं अपने बच्चों को संक्रमण से बचाव मुहैया करा सकती हैं.
अगर आपका शरीर संक्रमण से लड़ने के लिए एंटीबॉडीज़ पैदा कर रहा है तो इन्हें ब्रेस्टफीडिंग के दौरान पास किया जा सकता है.
ब्रेस्टफीड कराने वाली माओं को भी जोखिम से बचने के लिए दूसरों की तरह से ही सलाह का पालन करना चाहिए. अपने चेहरे को छींकते या खांसते वक्त ढक लें. इस्तेमाल किए गए टिश्यू को फेंक दें और हाथों को बार-बार धोएं. अपनी आंखों, नाक या चेहरे को बिना धोए हाथों से न छुएं.
बच्चों के लिए क्या जोखिम है?लंदन से लुइस
बीबीसी न्यूज़हेल्थ टीम
चीन और दूसरे देशों के आंकड़ों के मुताबिक, आमतौर पर बच्चे कोरोना वायरस से अपेक्षाकृत अप्रभावित दिखे हैं.
ऐसा शायद इस वजह है क्योंकि वे संक्रमण से लड़ने की ताकत रखते हैं या उनमें कोई लक्षण नहीं दिखते हैं या उनमें सर्दी जैसे मामूली लक्षण दिखते हैं.
हालांकि, पहले से अस्थमा जैसी फ़ेफ़ड़ों की बीमारी से जूझ रहे बच्चों को ज्यादा सतर्क रहना चाहिए.