ट्रंप ने मोदी को दिया जी7 देशों के सम्मेलन में आने का न्योता - प्रेस रिव्यू
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अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस साल के आख़िर में होने वाले जी7 देशों के सम्मेलन के लिए औपचारिक तौर पर न्योता दिया है.
अख़बार 'टाइम्स ऑफ़ इंडिया' के पहले पन्ने पर छपी एक ख़बर के अनुसार ट्रंप पहले विश्व की सात बड़ी आर्थिक शक्तियों के इस समूह के सदस्यों की संख्या बढ़ाने की बात कर चुके हैं.
अख़बार के अनुसार मंगलवार शाम दोनों नेताओं में क़रीब 25 मिनट तक बातचीत हुई जिस दौरान अमरीका में काले नागरिक जॉर्ज फ्लाड की मौत के बाद जारी तनाव, भारत और चीन सीमा पर जारी तनाव, कोरोना महामारी से मुक़ाबला करने और विश्व स्वास्थ्य संगठन में सुधारों की ज़रूरत के विषय पर चर्चा हुई.
इसी दौरान ट्रंप ने मोदी को इस साल अमरीका में आयोजित होने वाले जी7 देशों के सम्मेलन में आने का न्योता दिया.
अख़बार के अनुसार मोदी ने कहा कि सम्मेलन की सफलता के लिए अमरीका और दूसरे सदस्य देशों के साथ कम करने में उन्हें खुशी होगी.
भारत के वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद सीएसआईआर ने कहा है कि उन्हें भारत में बीमारी फैला रहे नोवल कोरोना वायरस के जेनेटिक कोड में कुछ ऐसे गुण मिले हैं जो दुनिया के दूसरे हिस्सों में बीमारी फैला रहे कोरोना वायरस के गुणों से अलग है.
अख़बार 'द इंडियन एक्सप्रेस' में छपी एक ख़बर के अनुसार इस स्टडी में शामिल एक वैज्ञानिक का कहना है कि हो सकता है कि इस कारण भारत में ये वायरस कमज़ोर हो.
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बात सरहद पार
समाप्त
अख़बार कहता है कि स्टडी में भारतीय कोरोना मरीज़ों से वायरस के नमूने एकत्र किए गए थे. इनमें से 41 फीसदी मामलों में वायरस के जीनोम सीक्वेंस में Clade I/A3i नाम का एक कोड मिला है. वैश्विक स्तर पर हो रही स्टडी में केवल 3.5 फीसदी मामलों में वायरस में ये कोड मिला है.
वैज्ञानिक भाषा में Clade ऐसे जीवों के समूह को कहा जाता है जिसका नाता एक ही पूर्वज से होता है. एक तरह से समझा जाए तो इसी वायरस का एक दूसरा प्रकार हो सकता है. अख़बार के अनुसार सोमवार को सीएसआईआर के सेंटर फ़ॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजिकल से सोशल मीडिया पर नोवल कोरोना वायरस SARS-CoV-2 के जीनोम एनालिसस के बारे में हो रही स्टडी के बारे में जानकारी पोस्ट की थी.
स्टडी में पाया गया था कि भारत में जो कोरोना वायरस लोगों को संक्रमित कर रहा हैं वो Clade A3i जेनेटिक कोड वाला वायरस है.
स्टडी के अनुसार, "ऐसा लगता है कि फरवरी 2020 ये वायरस के इस क्लस्टर ने लोगों को संक्रमित करना शुरू हुआ था और भारत में फैलने लगा. भारत में कोरोना वायरस मरीज़ों से जितने नमूने इकट्ठा किए गए हैं उनमें से 41 फीसदी मामलों में ये जीनोम पाया गया है."
अख़बार के अनुसार शोधकर्ताओं ने कोरोना वायरस के पूरे जेनेटिक मटिरियल, यानी सभी 64 जीनोम को सीक्वेंस किया है और पाया है कि तमिलनाडु, तेलंगाना, महाराष्ट्र और दिल्ली में जो वायरस बीमारी फैला रहा है वो Clade A3i क्लस्ट से जुड़ा है.
इससे पहले इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रीसर्च आईसीएमआर ने कहा था कि भारत में नोवल कोरोना वायरस के तीन वेरियंट मौजूद हैं- एक जो वुहान से आया है और दूसरा और तीसरा अमरीका और यूरोप से हवाई यात्रियों के ज़रिए आया.
हाल के दिनों में बेहद तेज़ी से पॉपुलर हुए 'मित्रों मोबाइल ऐप' को गूगल प्ले स्टोर ने हटा दिया है.
अख़बार 'बिज़नेस स्टैन्डर्ड' के अनुसार ये मोबाइल ऐप अप्रैल में लांच किया गया था जिसके बाद से इसके अब कर 50 लाख डाउनलोड हो चुके हैं. ऐप डेवलपर्स ने इस ऐप को 'मित्रों' नाम से प्ले स्टोर में पोस्ट किया था और इसे चीनी कंपनी टिकटॉक के भारतीय विकल्प के तौर पर पेश किया था. भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने संबोधन में मित्रों शब्द का अक्सर प्रयोग करते हैं.
पहले कहा जा रहा था कि ये मोबाइल ऐप जिस टीम ने बनाया था उसका नेतृत्व आईआईटी के छात्र शिवान्क अग्रवाल कर रहे थे. हालांकि ऐप डेवलपर को खोजने की तमाम कोशिशों के बाद भी इसे बनाने वाले टीम के बारे में केवल यही जानकारी मिल सकी थी कि ये टीम शॉपकिलर के नम से काम कर रही थी और इसके बारे में कोई जानकारी सार्वजनिक मौजूद नहीं थी.
गूगल प्ले स्टोर का कहना है कि गूगल की "स्पैम और मिनिमम फंक्शनलिटी पॉलिसी" के अनुसार एक ही चीज़ को बार-बार परोसने वाले ऐप को वो हटा सकता है. इन नियम के तहत दूसरे मोबाइल ऐप के कन्टेन्ट को कॉपी कर उसमें बिना कोई बदलाव कर उसी तरह से परोस देना नियमों का उल्लंघन है.
हाल में ख़बरों में आया था कि इस मोबाइल ऐप का सोर्स एक पाकिस्तानी डेवलपर ने लिखा है. शॉपकिलर ने पाकिस्तानी कंपनी क्यूबॉक्सस (Qboxus) से इस ऐप का सोर्स कोड खरीदा था और कोड और सॉफ्टवेयर खरीदने-बेचने वाले ऑनलाइन माक्रेटप्लेस कोडकैन्यन के ज़रिए ये सोर्स कोड खरीदा गया था.
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गौतम नवलखा
गौतम नवलखा की सुनवाई पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक
सिविल राइट एक्टिविस्ट गौतम नवलखा के मामले में दिल्ली हाई कोर्ट में चल रही सुनवाई पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है.
अंग्रेज़ी अख़बार 'इकोनॉमिक टाइम्स' के अनुसार इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी की याचिका पर गौतम नवलखा को एक नोटिस भी जारी किया है.
एनआईए ने अपनी याचिका में गौतम नवलखा की जमानत याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट में चल रही सुनवाई पर किसी अंतरिम आदेश को लेकर एतराज जताया था. एनआईए की दलील है कि गौतम नवलखा दिल्ली हाई कोर्ट के क्षेत्राधिकार से बाहर हैं.
27 मई को इस मामले में दिल्ली हाई कोर्ट में सुनवाई हुई थी जिसमें उच्च न्यायालय ने निचली अदालत में मौजूद मामले से जुड़े रिकॉर्ड पेश करने के लिए कहा था.
इसके साथ ही हाई कोर्ट ने गौतम नवलखा को जल्दबाज़ी में दिल्ली से मुंबई शिफ्ट करने पर भी फटकार लगाई थी.
एनआईए ने इस आदेश के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है. मंगलवार को इस याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस अरुण मिश्रा ने दिल्ली हाई कोर्ट में चल रही सुनवाई पर रोक लगा दी.
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पिंजरा तोड़ की कार्यकर्ता को मिली जमानत
'द हिंदू' अख़बार में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली की एक अदालत ने पिछले साल दिसंबर में नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ पुरानी दिल्ली के दरियागंज इलाक़े में हुई हिंसा के सिलसिले में 'पिंजरा तोड़' नामक संगठन से जुड़ीं देवांगना कलिता को ज़मानत दे दी है. 'पिंजरा तोड़' दिल्ली के कॉलेजों की महिला छात्रों एवं पूर्व छात्रों का संगठन है.
रिपोर्ट के अनुसार अदालत ने कहा, "अब तक की जाँच में सीधे तौर पर ऐसे कोई सबूत नहीं मिले हैं जिनके आधार पर देवांगना को आईपीसी के सेक्शन-23/353 के तहत दोषी ठहराया जा सके."
अदालत ने यह भी कहा कि "सीसीटीवी फ़ुटेज यह नहीं दिखाता कि वह किसी हिंसक गतिविधि में शामिल थीं."
मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट अभिनव पांडेय ने जेएनयू की छात्रा देवांगना कलिता को 30 हज़ार रुपये के ज़मानत बांड और इतनी ही राशि के दो मुचलकों पर ज़मानत दी और उन पर 'कड़ी' शर्तें लगाई हैं.
अदालत ने उन्हें निर्देश दिया है कि इस तरह की गतिविधियों में संलिप्त नहीं हों और जाँच एजेंसी के साथ सहयोग करें.
कलिता को तीसरे मामले में रविवार को गिरफ़्तार किया गया था और उन्हें तीन दिन की पुलिस हिरासत में भेजा गया था. इससे पहले कलिता को उतर-पूर्वी दिल्ली में फ़रवरी में हुई सांप्रदायिक हिंसा से जुड़े दो अलग-अलग मामलों में गिरफ़्तार किया गया था.
'पिंजड़ा तोड़' संगठन की स्थापना साल 2015 में हुई थी जिसका उद्देश्य छात्रावासों एवं पेइंग गेस्ट हाउसों में छात्राओं पर लगी पाबंदियों को कम करवाना था.
कोरोना वायरस क्या है?लीड्स के कैटलिन सेसबसे ज्यादा पूछे जाने वाले
बीबीसी न्यूज़स्वास्थ्य टीम
कोरोना वायरस एक संक्रामक बीमारी है जिसका पता दिसंबर 2019 में चीन में चला. इसका संक्षिप्त नाम कोविड-19 है
सैकड़ों तरह के कोरोना वायरस होते हैं. इनमें से ज्यादातर सुअरों, ऊंटों, चमगादड़ों और बिल्लियों समेत अन्य जानवरों में पाए जाते हैं. लेकिन कोविड-19 जैसे कम ही वायरस हैं जो मनुष्यों को प्रभावित करते हैं
कुछ कोरोना वायरस मामूली से हल्की बीमारियां पैदा करते हैं. इनमें सामान्य जुकाम शामिल है. कोविड-19 उन वायरसों में शामिल है जिनकी वजह से निमोनिया जैसी ज्यादा गंभीर बीमारियां पैदा होती हैं.
ज्यादातर संक्रमित लोगों में बुखार, हाथों-पैरों में दर्द और कफ़ जैसे हल्के लक्षण दिखाई देते हैं. ये लोग बिना किसी खास इलाज के ठीक हो जाते हैं.
लेकिन, कुछ उम्रदराज़ लोगों और पहले से ह्दय रोग, डायबिटीज़ या कैंसर जैसी बीमारियों से लड़ रहे लोगों में इससे गंभीर रूप से बीमार होने का ख़तरा रहता है.
एक बार आप कोरोना से उबर गए तो क्या आपको फिर से यह नहीं हो सकता?बाइसेस्टर से डेनिस मिशेलसबसे ज्यादा पूछे गए सवाल
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जब लोग एक संक्रमण से उबर जाते हैं तो उनके शरीर में इस बात की समझ पैदा हो जाती है कि अगर उन्हें यह दोबारा हुआ तो इससे कैसे लड़ाई लड़नी है.
यह इम्युनिटी हमेशा नहीं रहती है या पूरी तरह से प्रभावी नहीं होती है. बाद में इसमें कमी आ सकती है.
ऐसा माना जा रहा है कि अगर आप एक बार कोरोना वायरस से रिकवर हो चुके हैं तो आपकी इम्युनिटी बढ़ जाएगी. हालांकि, यह नहीं पता कि यह इम्युनिटी कब तक चलेगी.
कोरोना वायरस का इनक्यूबेशन पीरियड क्या है?जिलियन गिब्स
मिशेल रॉबर्ट्सबीबीसी हेल्थ ऑनलाइन एडिटर
वैज्ञानिकों का कहना है कि औसतन पांच दिनों में लक्षण दिखाई देने लगते हैं. लेकिन, कुछ लोगों में इससे पहले भी लक्षण दिख सकते हैं.
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (डब्ल्यूएचओ) का कहना है कि इसका इनक्यूबेशन पीरियड 14 दिन तक का हो सकता है. लेकिन कुछ शोधार्थियों का कहना है कि यह 24 दिन तक जा सकता है.
इनक्यूबेशन पीरियड को जानना और समझना बेहद जरूरी है. इससे डॉक्टरों और स्वास्थ्य अधिकारियों को वायरस को फैलने से रोकने के लिए कारगर तरीके लाने में मदद मिलती है.
क्या कोरोना वायरस फ़्लू से ज्यादा संक्रमणकारी है?सिडनी से मेरी फिट्ज़पैट्रिक
मिशेल रॉबर्ट्सबीबीसी हेल्थ ऑनलाइन एडिटर
दोनों वायरस बेहद संक्रामक हैं.
ऐसा माना जाता है कि कोरोना वायरस से पीड़ित एक शख्स औसतन दो या तीन और लोगों को संक्रमित करता है. जबकि फ़्लू वाला व्यक्ति एक और शख्स को इससे संक्रमित करता है.
फ़्लू और कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए कुछ आसान कदम उठाए जा सकते हैं.
बार-बार अपने हाथ साबुन और पानी से धोएं
जब तक आपके हाथ साफ न हों अपने चेहरे को छूने से बचें
खांसते और छींकते समय टिश्यू का इस्तेमाल करें और उसे तुरंत सीधे डस्टबिन में डाल दें.
आप कितने दिनों से बीमार हैं?मेडस्टोन से नीता
बीबीसी न्यूज़हेल्थ टीम
हर पांच में से चार लोगों में कोविड-19 फ़्लू की तरह की एक मामूली बीमारी होती है.
इसके लक्षणों में बुख़ार और सूखी खांसी शामिल है. आप कुछ दिनों से बीमार होते हैं, लेकिन लक्षण दिखने के हफ्ते भर में आप ठीक हो सकते हैं.
अगर वायरस फ़ेफ़ड़ों में ठीक से बैठ गया तो यह सांस लेने में दिक्कत और निमोनिया पैदा कर सकता है. हर सात में से एक शख्स को अस्पताल में इलाज की जरूरत पड़ सकती है.
अस्थमा वाले मरीजों के लिए कोरोना वायरस कितना ख़तरनाक है?फ़ल्किर्क से लेस्ले-एन
मिशेल रॉबर्ट्सबीबीसी हेल्थ ऑनलाइन एडिटर
अस्थमा यूके की सलाह है कि आप अपना रोज़ाना का इनहेलर लेते रहें. इससे कोरोना वायरस समेत किसी भी रेस्पिरेटरी वायरस के चलते होने वाले अस्थमा अटैक से आपको बचने में मदद मिलेगी.
अगर आपको अपने अस्थमा के बढ़ने का डर है तो अपने साथ रिलीवर इनहेलर रखें. अगर आपका अस्थमा बिगड़ता है तो आपको कोरोना वायरस होने का ख़तरा है.
क्या ऐसे विकलांग लोग जिन्हें दूसरी कोई बीमारी नहीं है, उन्हें कोरोना वायरस होने का डर है?स्टॉकपोर्ट से अबीगेल आयरलैंड
बीबीसी न्यूज़हेल्थ टीम
ह्दय और फ़ेफ़ड़ों की बीमारी या डायबिटीज जैसी पहले से मौजूद बीमारियों से जूझ रहे लोग और उम्रदराज़ लोगों में कोरोना वायरस ज्यादा गंभीर हो सकता है.
ऐसे विकलांग लोग जो कि किसी दूसरी बीमारी से पीड़ित नहीं हैं और जिनको कोई रेस्पिरेटरी दिक्कत नहीं है, उनके कोरोना वायरस से कोई अतिरिक्त ख़तरा हो, इसके कोई प्रमाण नहीं मिले हैं.
जिन्हें निमोनिया रह चुका है क्या उनमें कोरोना वायरस के हल्के लक्षण दिखाई देते हैं?कनाडा के मोंट्रियल से मार्जे
बीबीसी न्यूज़हेल्थ टीम
कम संख्या में कोविड-19 निमोनिया बन सकता है. ऐसा उन लोगों के साथ ज्यादा होता है जिन्हें पहले से फ़ेफ़ड़ों की बीमारी हो.
लेकिन, चूंकि यह एक नया वायरस है, किसी में भी इसकी इम्युनिटी नहीं है. चाहे उन्हें पहले निमोनिया हो या सार्स जैसा दूसरा कोरोना वायरस रह चुका हो.
कोरोना वायरस से लड़ने के लिए सरकारें इतने कड़े कदम क्यों उठा रही हैं जबकि फ़्लू इससे कहीं ज्यादा घातक जान पड़ता है?हार्लो से लोरैन स्मिथ
जेम्स गैलेगरस्वास्थ्य संवाददाता
शहरों को क्वारंटीन करना और लोगों को घरों पर ही रहने के लिए बोलना सख्त कदम लग सकते हैं, लेकिन अगर ऐसा नहीं किया जाएगा तो वायरस पूरी रफ्तार से फैल जाएगा.
फ़्लू की तरह इस नए वायरस की कोई वैक्सीन नहीं है. इस वजह से उम्रदराज़ लोगों और पहले से बीमारियों के शिकार लोगों के लिए यह ज्यादा बड़ा ख़तरा हो सकता है.
क्या खुद को और दूसरों को वायरस से बचाने के लिए मुझे मास्क पहनना चाहिए?मैनचेस्टर से एन हार्डमैन
बीबीसी न्यूज़हेल्थ टीम
पूरी दुनिया में सरकारें मास्क पहनने की सलाह में लगातार संशोधन कर रही हैं. लेकिन, डब्ल्यूएचओ ऐसे लोगों को मास्क पहनने की सलाह दे रहा है जिन्हें कोरोना वायरस के लक्षण (लगातार तेज तापमान, कफ़ या छींकें आना) दिख रहे हैं या जो कोविड-19 के कनफ़र्म या संदिग्ध लोगों की देखभाल कर रहे हैं.
मास्क से आप खुद को और दूसरों को संक्रमण से बचाते हैं, लेकिन ऐसा तभी होगा जब इन्हें सही तरीके से इस्तेमाल किया जाए और इन्हें अपने हाथ बार-बार धोने और घर के बाहर कम से कम निकलने जैसे अन्य उपायों के साथ इस्तेमाल किया जाए.
फ़ेस मास्क पहनने की सलाह को लेकर अलग-अलग चिंताएं हैं. कुछ देश यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि उनके यहां स्वास्थकर्मियों के लिए इनकी कमी न पड़ जाए, जबकि दूसरे देशों की चिंता यह है कि मास्क पहने से लोगों में अपने सुरक्षित होने की झूठी तसल्ली न पैदा हो जाए. अगर आप मास्क पहन रहे हैं तो आपके अपने चेहरे को छूने के आसार भी बढ़ जाते हैं.
यह सुनिश्चित कीजिए कि आप अपने इलाके में अनिवार्य नियमों से वाकिफ़ हों. जैसे कि कुछ जगहों पर अगर आप घर से बाहर जाे रहे हैं तो आपको मास्क पहनना जरूरी है. भारत, अर्जेंटीना, चीन, इटली और मोरक्को जैसे देशों के कई हिस्सों में यह अनिवार्य है.
अगर मैं ऐसे शख्स के साथ रह रहा हूं जो सेल्फ-आइसोलेशन में है तो मुझे क्या करना चाहिए?लंदन से ग्राहम राइट
बीबीसी न्यूज़हेल्थ टीम
अगर आप किसी ऐसे शख्स के साथ रह रहे हैं जो कि सेल्फ-आइसोलेशन में है तो आपको उससे न्यूनतम संपर्क रखना चाहिए और अगर मुमकिन हो तो एक कमरे में साथ न रहें.
सेल्फ-आइसोलेशन में रह रहे शख्स को एक हवादार कमरे में रहना चाहिए जिसमें एक खिड़की हो जिसे खोला जा सके. ऐसे शख्स को घर के दूसरे लोगों से दूर रहना चाहिए.
मैं पांच महीने की गर्भवती महिला हूं. अगर मैं संक्रमित हो जाती हूं तो मेरे बच्चे पर इसका क्या असर होगा?बीबीसी वेबसाइट के एक पाठक का सवाल
जेम्स गैलेगरस्वास्थ्य संवाददाता
गर्भवती महिलाओं पर कोविड-19 के असर को समझने के लिए वैज्ञानिक रिसर्च कर रहे हैं, लेकिन अभी बारे में बेहद सीमित जानकारी मौजूद है.
यह नहीं पता कि वायरस से संक्रमित कोई गर्भवती महिला प्रेग्नेंसी या डिलीवरी के दौरान इसे अपने भ्रूण या बच्चे को पास कर सकती है. लेकिन अभी तक यह वायरस एमनियोटिक फ्लूइड या ब्रेस्टमिल्क में नहीं पाया गया है.
गर्भवती महिलाओंं के बारे में अभी ऐसा कोई सुबूत नहीं है कि वे आम लोगों के मुकाबले गंभीर रूप से बीमार होने के ज्यादा जोखिम में हैं. हालांकि, अपने शरीर और इम्यून सिस्टम में बदलाव होने के चलते गर्भवती महिलाएं कुछ रेस्पिरेटरी इंफेक्शंस से बुरी तरह से प्रभावित हो सकती हैं.
मैं अपने पांच महीने के बच्चे को ब्रेस्टफीड कराती हूं. अगर मैं कोरोना से संक्रमित हो जाती हूं तो मुझे क्या करना चाहिए?मीव मैकगोल्डरिक
जेम्स गैलेगरस्वास्थ्य संवाददाता
अपने ब्रेस्ट मिल्क के जरिए माएं अपने बच्चों को संक्रमण से बचाव मुहैया करा सकती हैं.
अगर आपका शरीर संक्रमण से लड़ने के लिए एंटीबॉडीज़ पैदा कर रहा है तो इन्हें ब्रेस्टफीडिंग के दौरान पास किया जा सकता है.
ब्रेस्टफीड कराने वाली माओं को भी जोखिम से बचने के लिए दूसरों की तरह से ही सलाह का पालन करना चाहिए. अपने चेहरे को छींकते या खांसते वक्त ढक लें. इस्तेमाल किए गए टिश्यू को फेंक दें और हाथों को बार-बार धोएं. अपनी आंखों, नाक या चेहरे को बिना धोए हाथों से न छुएं.
बच्चों के लिए क्या जोखिम है?लंदन से लुइस
बीबीसी न्यूज़हेल्थ टीम
चीन और दूसरे देशों के आंकड़ों के मुताबिक, आमतौर पर बच्चे कोरोना वायरस से अपेक्षाकृत अप्रभावित दिखे हैं.
ऐसा शायद इस वजह है क्योंकि वे संक्रमण से लड़ने की ताकत रखते हैं या उनमें कोई लक्षण नहीं दिखते हैं या उनमें सर्दी जैसे मामूली लक्षण दिखते हैं.
हालांकि, पहले से अस्थमा जैसी फ़ेफ़ड़ों की बीमारी से जूझ रहे बच्चों को ज्यादा सतर्क रहना चाहिए.