तमिलनाडु में कोयम्बटूर अब से कोयमपुतुर और तुतीकोरिन अब से थुतुक्कुड़ी
डी बालासुब्रमण्यन
बीबीसी तमिल संवाददाता
भारत के दक्षिणी राज्य तमिलनाडु में सरकार ने प्रदेश की सैकड़ों जगहों के नाम अंग्रेज़ी से बदल कर तमिल भाषा में कर दिए हैं.
इस तमिल भाषी राज्य की सरकार का कहना है कि ये शहरों और गांवों के अंग्रेज़ी नामों की स्पेलिंग बदल कर उन्हें तमिल उच्चारण जैसा बनाने की कोशिश है.
लंबे समय से माना जाता रहा है कि तमिलनाडु के शहरों और गांवों के नामों के उच्चारण और अंग्रेज़ी में उन नामों की स्पेलिंग में मेल नहीं है. अंग्रेज़ी में इन शहरों और गांवों के नामों का इस्तेमाल भारत में ब्रितानी औपनिवेशिक काल से होता रहा है.
उदाहरण के तौर पर प्रदेश की राजधानी चेन्नई (पहले का मद्रास) के नज़दीक बसे 'तिरुवालिकेन्नी ' (Tiruvallikkeni) का मललब है 'पवित्र तालाब जिसमें कमल खिलते हैं'. ब्रितानी साम्राज्य के दौरान इस जगह का नाम 'ट्रिप्लीकेन' (Triplicane) रख दिया गया जो इस जगह के असल नाम के उच्चारण और अर्थ से कोसों दूर था. और न ही इस नाम से यहां की विशेषता का ही पता चलता था.
हालांकि तमिलनाडु में लोग इस जगह को 'तिरुवालिकेन्नी 'नाम से ही जानते हैं और इस तमिल भाषा में ही लिखते हैं लेकिन अंग्रेज़ी में इसे अलग लिखा जाता है.
ये ब्रितानी काल में जगह का नाम बिगाड़ देने का एक उदाहरण मात्र है. लेकिन नाम बदले जाने के इस तरह के कई और उदाहरण हैं जिनका नाता ब्रितानी दौर से है.
उदारण के लिए अंग्रेज़ी के 'डीए' यानी 'दा' का उच्चारण तमिल में अलग तरह से, 'टीएचए' यानी 'ता' किया जाता है. इसी की तर्ज़ पर कांचीपुरम ज़िले के एक गांव 'कांदलूर' का नाम अब बदल कर 'कांतलूर' कर दिया गया है. न सिर्फ़ जगहों के नामों की स्पेलिंग में 'दा' को बदल कर 'ता' किया गया है बल्कि नामों में कुछ और बदलाव भी किए गए हैं.
तमिल वर्णमाला में हर उच्चारण फ़ैमिली में संक्षिप्त रूप अक्षर और लंबे रूप अक्षर होते हैं. जहां संक्षिप्त रूप अक्षर को कुरिल कहा जाता है वहीं लंबे रूप अक्षर को नेडिल कहा जाता है. उच्चारण में नेडिल, कुरिल से दोगुना लंबा होता है.
लेकिन जब अक्षरों को अंग्रेज़ी में लिखा जाता है नाम की स्पेलिंग में ये बारीक फ़र्क़ ग़ायब हो जाता है. अब 'कांदलूर' को ही ले लीजिए, यहां शब्द का पहला अक्षर लंबे रूप का है यानी इसका सही उच्चारण 'का' होता है जबकि अंग्रेज़ी में इसे केवल 'क' लिख दिया जाता है. इसी तरह शब्द का तीसरा अक्षर 'लू' भी लंबे रूप का होता है जबकि अंग्रेज़ी में इसे केवल 'लु' लिख दिया जाता है.
ये बदलाव अलग-अलग या बेतरतीब नहीं है, बल्कि एक पैटर्न की तरह देखे जा सकते हैं. इस कारण अधिकतर मामलों में इसी तरह के संक्षिप्त रूप और लंबे रूप अक्षरों के तमिल उच्चारण और अंग्रेज़ी उच्चारण में सरकार समानता लाने की कोशिश कर रही है.
बदले हुए 1018 जगहों के नामों की सूची देखने के लिए यहां क्लिक करें.
भाषा समितियां
जगहों के नामों में बदलाव करने के लिए सबसे पहले सरकार ने ज़िला कलेक्टर की अध्यक्षता में ज़िला स्तर समितियों का गठन किया. इसमें स्थानीय लेखक और बुद्धिजीवियों को शामिल किया गया.
ज़िला स्तर की इस समिति ने पहले उन जगहों की पहचान की जिनके नामों की स्पेलिंग को बदले जाने की ज़रूरत थी. चर्चा के बाद इन नामों की सही स्पेलिंग क्या होनी चाहिए इस पर फ़ैसला किया गया सिफ़ारिशों पर राज्य स्तर पर एक रिव्यू समिति ने विचार किया जिसके बाद या तो उन्हें स्वीकार किया गया या फिर रिजेक्ट कर दिया गया. कुछ मामलों में रिव्यू समिति ने सिफ़ारिशों पर चर्चा कर नए स्पेलिंग की पेशकश की.
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बात सरहद पार
समाप्त
इसके बाद प्रदेश सरकार ने एक गैज़ेट नोटिफ़िकेशन जारी कर 1018 जगहों के नाम बदले जाने की घोषणा की.
सिर्फ़ तमिल में संक्षिप्त रूप और लंबे रूप अक्षरों के उच्चारणों के कारण ही नाम बदले जाने की ज़रूरत महसूस हुई ऐसा नहीं है. अंग्रेज़ी और तमिल के उच्चारण में और भी कई तरह के मिसमैच हैं.
एक दिलचस्प मामला 'तमिल' शब्द के उच्चारण का है. तमिल शब्द की असल उच्चारण ठीक वैसा नहीं है जैसा किया जाता है. इसमें मौजूद एक ख़ास अक्षर का उच्चारण कुछ वैसा ही है जैसा जाने माने फ्रांसीसी विचारक 'ज़ैक डेरीडा' (Jacques Derrida) के नाम के पहले अक्षर का उच्चारण.
तमिल में इस ख़ास व्यंजन वर्ण (तमिल शब्द का आख़िरी अक्षर) का उच्चारण लंबे समय से अंग्रेज़ी में 'एल' किया जाता है और इस कारण तमिल शब्द का उच्चारण भी हमेशा से ग़लत ही होता रहा है.
इस मुश्किल के चलते पहले भी जानकारों ने कोशिश की थी कि अंग्रेज़ी में ऐसे अक्षर तलाशे जाएं जिससे तमिल भाषा के शब्द के अंग्रेज़ी में उच्चारण संबंधी फ़र्क़ को कम किया जा सके. जैसे 'ज़ेडएच' की जगह पर 'एल' का इस्तेमाल.
कई लोग तमिल शब्द को अंग्रेज़ी में 'Tamil' की बजाय 'Thamizh' लिखने लगे. इस मुहिम के कारण कई शब्दों को लोग अंग्रेज़ी में पुराने रूप से हट कर लिखने लगे. सरकार ने भी अब जगहों के नामों का उच्चारण स्थानीय भाषा जैसा करने के लिए 'ज़ेडएच' वाले शब्दों में इसकी जगह 'एल' का इस्तेमाल किया है. उदाहरण के तौर पर राज्य के उत्तर में बसे एक महत्वपूर्ण शहर का नाम अंग्रेज़ी में "विलुपुरम" (Vilupuram') लिखा जाता था लेकिन अब से ये नाम "विज़ुप्पुरम" (Vizhuppuram) लिखा जाएगा
इमेज स्रोत, Arun SANKAR / AFP
कई इलाक़ों में लोगों के लिए शब्द के ख़ास उच्चारण का भावनात्मक महत्व भी है. हालांकि जानकार मानते हैं कि ज़रूरी नहीं कि पूरे राज्य में लोग अपेक्षानुरुप शब्द का सही उच्चारण कर पाएं.
राज्य में पहले भी भाषा और शब्द उच्चारण को लेकर विवाद हुए हैं और कई नामों को बदलने की माँग होती रही है. ऐसे दो मुख्य बदलाव तब हुए जब राज्य और इसकी राजधानी का नाम बदला गया.
जातिगल समानता, राज्य की स्वायत्तता समेत भाषा पर अधिकार के मुद्दे के साथ साल 1967 में सत्ता में आई राजनीतिक पार्टी द्रविड़ मुनेत्र कड़गम से सत्ता में आने के बाद सबसे पहले राज्य का नाम बदला.
पार्टी ने राज्य का नाम 'मद्रास स्टेट' से बदल कर 'तमिलनाडु' कर दिया जिसका अर्थ है तमिलों का प्रदेश.
राजधानी मद्रास का नाम बदल कर 'चेन्नई' करना भी एक और महत्वपूर्ण बदलाव था.
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सैकड़ों तरह के कोरोना वायरस होते हैं. इनमें से ज्यादातर सुअरों, ऊंटों, चमगादड़ों और बिल्लियों समेत अन्य जानवरों में पाए जाते हैं. लेकिन कोविड-19 जैसे कम ही वायरस हैं जो मनुष्यों को प्रभावित करते हैं
कुछ कोरोना वायरस मामूली से हल्की बीमारियां पैदा करते हैं. इनमें सामान्य जुकाम शामिल है. कोविड-19 उन वायरसों में शामिल है जिनकी वजह से निमोनिया जैसी ज्यादा गंभीर बीमारियां पैदा होती हैं.
ज्यादातर संक्रमित लोगों में बुखार, हाथों-पैरों में दर्द और कफ़ जैसे हल्के लक्षण दिखाई देते हैं. ये लोग बिना किसी खास इलाज के ठीक हो जाते हैं.
लेकिन, कुछ उम्रदराज़ लोगों और पहले से ह्दय रोग, डायबिटीज़ या कैंसर जैसी बीमारियों से लड़ रहे लोगों में इससे गंभीर रूप से बीमार होने का ख़तरा रहता है.
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जब लोग एक संक्रमण से उबर जाते हैं तो उनके शरीर में इस बात की समझ पैदा हो जाती है कि अगर उन्हें यह दोबारा हुआ तो इससे कैसे लड़ाई लड़नी है.
यह इम्युनिटी हमेशा नहीं रहती है या पूरी तरह से प्रभावी नहीं होती है. बाद में इसमें कमी आ सकती है.
ऐसा माना जा रहा है कि अगर आप एक बार कोरोना वायरस से रिकवर हो चुके हैं तो आपकी इम्युनिटी बढ़ जाएगी. हालांकि, यह नहीं पता कि यह इम्युनिटी कब तक चलेगी.
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वैज्ञानिकों का कहना है कि औसतन पांच दिनों में लक्षण दिखाई देने लगते हैं. लेकिन, कुछ लोगों में इससे पहले भी लक्षण दिख सकते हैं.
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (डब्ल्यूएचओ) का कहना है कि इसका इनक्यूबेशन पीरियड 14 दिन तक का हो सकता है. लेकिन कुछ शोधार्थियों का कहना है कि यह 24 दिन तक जा सकता है.
इनक्यूबेशन पीरियड को जानना और समझना बेहद जरूरी है. इससे डॉक्टरों और स्वास्थ्य अधिकारियों को वायरस को फैलने से रोकने के लिए कारगर तरीके लाने में मदद मिलती है.
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दोनों वायरस बेहद संक्रामक हैं.
ऐसा माना जाता है कि कोरोना वायरस से पीड़ित एक शख्स औसतन दो या तीन और लोगों को संक्रमित करता है. जबकि फ़्लू वाला व्यक्ति एक और शख्स को इससे संक्रमित करता है.
फ़्लू और कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए कुछ आसान कदम उठाए जा सकते हैं.
बार-बार अपने हाथ साबुन और पानी से धोएं
जब तक आपके हाथ साफ न हों अपने चेहरे को छूने से बचें
खांसते और छींकते समय टिश्यू का इस्तेमाल करें और उसे तुरंत सीधे डस्टबिन में डाल दें.
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हर पांच में से चार लोगों में कोविड-19 फ़्लू की तरह की एक मामूली बीमारी होती है.
इसके लक्षणों में बुख़ार और सूखी खांसी शामिल है. आप कुछ दिनों से बीमार होते हैं, लेकिन लक्षण दिखने के हफ्ते भर में आप ठीक हो सकते हैं.
अगर वायरस फ़ेफ़ड़ों में ठीक से बैठ गया तो यह सांस लेने में दिक्कत और निमोनिया पैदा कर सकता है. हर सात में से एक शख्स को अस्पताल में इलाज की जरूरत पड़ सकती है.
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अस्थमा यूके की सलाह है कि आप अपना रोज़ाना का इनहेलर लेते रहें. इससे कोरोना वायरस समेत किसी भी रेस्पिरेटरी वायरस के चलते होने वाले अस्थमा अटैक से आपको बचने में मदद मिलेगी.
अगर आपको अपने अस्थमा के बढ़ने का डर है तो अपने साथ रिलीवर इनहेलर रखें. अगर आपका अस्थमा बिगड़ता है तो आपको कोरोना वायरस होने का ख़तरा है.
क्या ऐसे विकलांग लोग जिन्हें दूसरी कोई बीमारी नहीं है, उन्हें कोरोना वायरस होने का डर है?स्टॉकपोर्ट से अबीगेल आयरलैंड
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ह्दय और फ़ेफ़ड़ों की बीमारी या डायबिटीज जैसी पहले से मौजूद बीमारियों से जूझ रहे लोग और उम्रदराज़ लोगों में कोरोना वायरस ज्यादा गंभीर हो सकता है.
ऐसे विकलांग लोग जो कि किसी दूसरी बीमारी से पीड़ित नहीं हैं और जिनको कोई रेस्पिरेटरी दिक्कत नहीं है, उनके कोरोना वायरस से कोई अतिरिक्त ख़तरा हो, इसके कोई प्रमाण नहीं मिले हैं.
जिन्हें निमोनिया रह चुका है क्या उनमें कोरोना वायरस के हल्के लक्षण दिखाई देते हैं?कनाडा के मोंट्रियल से मार्जे
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कम संख्या में कोविड-19 निमोनिया बन सकता है. ऐसा उन लोगों के साथ ज्यादा होता है जिन्हें पहले से फ़ेफ़ड़ों की बीमारी हो.
लेकिन, चूंकि यह एक नया वायरस है, किसी में भी इसकी इम्युनिटी नहीं है. चाहे उन्हें पहले निमोनिया हो या सार्स जैसा दूसरा कोरोना वायरस रह चुका हो.
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शहरों को क्वारंटीन करना और लोगों को घरों पर ही रहने के लिए बोलना सख्त कदम लग सकते हैं, लेकिन अगर ऐसा नहीं किया जाएगा तो वायरस पूरी रफ्तार से फैल जाएगा.
फ़्लू की तरह इस नए वायरस की कोई वैक्सीन नहीं है. इस वजह से उम्रदराज़ लोगों और पहले से बीमारियों के शिकार लोगों के लिए यह ज्यादा बड़ा ख़तरा हो सकता है.
क्या खुद को और दूसरों को वायरस से बचाने के लिए मुझे मास्क पहनना चाहिए?मैनचेस्टर से एन हार्डमैन
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पूरी दुनिया में सरकारें मास्क पहनने की सलाह में लगातार संशोधन कर रही हैं. लेकिन, डब्ल्यूएचओ ऐसे लोगों को मास्क पहनने की सलाह दे रहा है जिन्हें कोरोना वायरस के लक्षण (लगातार तेज तापमान, कफ़ या छींकें आना) दिख रहे हैं या जो कोविड-19 के कनफ़र्म या संदिग्ध लोगों की देखभाल कर रहे हैं.
मास्क से आप खुद को और दूसरों को संक्रमण से बचाते हैं, लेकिन ऐसा तभी होगा जब इन्हें सही तरीके से इस्तेमाल किया जाए और इन्हें अपने हाथ बार-बार धोने और घर के बाहर कम से कम निकलने जैसे अन्य उपायों के साथ इस्तेमाल किया जाए.
फ़ेस मास्क पहनने की सलाह को लेकर अलग-अलग चिंताएं हैं. कुछ देश यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि उनके यहां स्वास्थकर्मियों के लिए इनकी कमी न पड़ जाए, जबकि दूसरे देशों की चिंता यह है कि मास्क पहने से लोगों में अपने सुरक्षित होने की झूठी तसल्ली न पैदा हो जाए. अगर आप मास्क पहन रहे हैं तो आपके अपने चेहरे को छूने के आसार भी बढ़ जाते हैं.
यह सुनिश्चित कीजिए कि आप अपने इलाके में अनिवार्य नियमों से वाकिफ़ हों. जैसे कि कुछ जगहों पर अगर आप घर से बाहर जाे रहे हैं तो आपको मास्क पहनना जरूरी है. भारत, अर्जेंटीना, चीन, इटली और मोरक्को जैसे देशों के कई हिस्सों में यह अनिवार्य है.
अगर मैं ऐसे शख्स के साथ रह रहा हूं जो सेल्फ-आइसोलेशन में है तो मुझे क्या करना चाहिए?लंदन से ग्राहम राइट
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अगर आप किसी ऐसे शख्स के साथ रह रहे हैं जो कि सेल्फ-आइसोलेशन में है तो आपको उससे न्यूनतम संपर्क रखना चाहिए और अगर मुमकिन हो तो एक कमरे में साथ न रहें.
सेल्फ-आइसोलेशन में रह रहे शख्स को एक हवादार कमरे में रहना चाहिए जिसमें एक खिड़की हो जिसे खोला जा सके. ऐसे शख्स को घर के दूसरे लोगों से दूर रहना चाहिए.
मैं पांच महीने की गर्भवती महिला हूं. अगर मैं संक्रमित हो जाती हूं तो मेरे बच्चे पर इसका क्या असर होगा?बीबीसी वेबसाइट के एक पाठक का सवाल
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गर्भवती महिलाओं पर कोविड-19 के असर को समझने के लिए वैज्ञानिक रिसर्च कर रहे हैं, लेकिन अभी बारे में बेहद सीमित जानकारी मौजूद है.
यह नहीं पता कि वायरस से संक्रमित कोई गर्भवती महिला प्रेग्नेंसी या डिलीवरी के दौरान इसे अपने भ्रूण या बच्चे को पास कर सकती है. लेकिन अभी तक यह वायरस एमनियोटिक फ्लूइड या ब्रेस्टमिल्क में नहीं पाया गया है.
गर्भवती महिलाओंं के बारे में अभी ऐसा कोई सुबूत नहीं है कि वे आम लोगों के मुकाबले गंभीर रूप से बीमार होने के ज्यादा जोखिम में हैं. हालांकि, अपने शरीर और इम्यून सिस्टम में बदलाव होने के चलते गर्भवती महिलाएं कुछ रेस्पिरेटरी इंफेक्शंस से बुरी तरह से प्रभावित हो सकती हैं.
मैं अपने पांच महीने के बच्चे को ब्रेस्टफीड कराती हूं. अगर मैं कोरोना से संक्रमित हो जाती हूं तो मुझे क्या करना चाहिए?मीव मैकगोल्डरिक
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अपने ब्रेस्ट मिल्क के जरिए माएं अपने बच्चों को संक्रमण से बचाव मुहैया करा सकती हैं.
अगर आपका शरीर संक्रमण से लड़ने के लिए एंटीबॉडीज़ पैदा कर रहा है तो इन्हें ब्रेस्टफीडिंग के दौरान पास किया जा सकता है.
ब्रेस्टफीड कराने वाली माओं को भी जोखिम से बचने के लिए दूसरों की तरह से ही सलाह का पालन करना चाहिए. अपने चेहरे को छींकते या खांसते वक्त ढक लें. इस्तेमाल किए गए टिश्यू को फेंक दें और हाथों को बार-बार धोएं. अपनी आंखों, नाक या चेहरे को बिना धोए हाथों से न छुएं.
बच्चों के लिए क्या जोखिम है?लंदन से लुइस
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चीन और दूसरे देशों के आंकड़ों के मुताबिक, आमतौर पर बच्चे कोरोना वायरस से अपेक्षाकृत अप्रभावित दिखे हैं.
ऐसा शायद इस वजह है क्योंकि वे संक्रमण से लड़ने की ताकत रखते हैं या उनमें कोई लक्षण नहीं दिखते हैं या उनमें सर्दी जैसे मामूली लक्षण दिखते हैं.
हालांकि, पहले से अस्थमा जैसी फ़ेफ़ड़ों की बीमारी से जूझ रहे बच्चों को ज्यादा सतर्क रहना चाहिए.