हाथरस मामला: अभी तक क्या हुआ है- ग्राउंड रिपोर्ट
- दिलनवाज़ पाशा
- बीबीसी संवाददाता, हाथरस (यूपी) से

पीड़िता के अंतिम संस्कार के बाद बची राख.
उत्तर प्रदेश के हाथरस में हुए कथित गैंगरेप की घटनास्थल से कुछ दूर दो युवा खड़े हैं. एक ने कमर पर कीटनाशक छिड़कने वाली मशीन बांध रखी है. वो अपनी फ़सल पर कीटनाशक छिड़कने निकले थे. खेत पर जाने के बजाए वो यहाँ चले आए हैं.
ये दलित युवा बेहद आक्रोशित हैं. वो पीड़िता को नहीं जानते. पूछने पर कहते हैं, "हमारी बहन के साथ दरिंदगी हुई है. हमारा ख़ून उबल रहा है. जबसे सोशल मीडिया पर उसके बारे में पढ़ा है, हम बेचैन हैं. हम अब ऐसी घटनाओं को बर्दाश्त नहीं करेंगे. चुनाव आने दो, इसका जवाब दिया जाएगा."
हालांकि यूपी के एडीजी (लॉ एंड ऑर्डर) प्रशांत कुमार का कहना है कि फ़ोरेंसिक रिपोर्ट में ये साफ़ कहा गया है कि महिला के साथ रेप नहीं हुआ. बल्कि मौत का कारण गर्दन में आई गंभीर चोटें हैं.
वहीं दूसरी ओर दिल्ली के सफ़दरजंग अस्पताल की ओर से जारी बयान में कहा गया है, ''20 वर्ष की महिला को 28 सितंबर को सफ़दरजंग अस्पताल में लाया गया और उनकी हालत काफ़ी गंभीर थी. जब उन्हें भर्ती किया गया तो वह सर्वाइकल स्पाइन इंजरी, क्वेड्रिफ़्लेजिया (ट्रॉमा से लकवा मारना) और सेप्टिकेमिया (गंभीर संक्रमण) से पीड़ित थीं. ''
हालांकि यूपी पुलिस ये बार बार कह रही है कि रीढ़ की हड्डी नहीं टूटी बल्कि गर्दन की हड्डियां टूटी थी जो गला दबाने की कोशिश में टूट गईं. और यही मौत का कारण है.
यहाँ बाजरे के खेत हैं. गाँव को मुख्य मार्ग से जोड़ने वाली सड़क से क़रीब 100 मीटर दूर बाजरे के ही खेत में कथित गैंगरेप हुआ था. घटनास्थल पर पत्रकारों का आना-जाना लगा है.
यहाँ मिले कुछ स्थानीय पत्रकार कहते हैं, "ये घटना उतनी बड़ी थी नहीं, जितनी बना दी गई है. इसकी सच्चाई कुछ और भी हो सकती है."
जब मैंने उनसे पूछा कि अगर सच्चाई कुछ और है, तो फिर आपने रिपोर्ट क्यों नहीं की, उनका कहना था, "इस घटना को लेकर भावनाएँ उबाल पर हैं. हम अपने लिए कोई ख़तरा मोल क्यों लें?"
हालाँकि अपनी बात के समर्थन में उनके पास कोई ठोस सबूत नहीं थे. वो सुनी-सुनाई बातें ही ज़्यादा कह रहे थे. ये 'बातें' आगे चलकर गाँव में भी सुनाई दीं.

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स्थानीय पत्रकारों के साथ हुई अनौपचारिक बातचीत से उठे सवाल को हाथरस के एसपी विक्रांत वीर का ये बयान और गहरा करता है कि 'मेडिकल रिपोर्ट तैयार करने वाले डॉक्टरों ने अभी रेप की पुष्टि नहीं की है. फ़ॉरेंसिक जाँच की रिपोर्ट का इंतज़ार किया जा रहा है. उसके बाद ही इस बारे में स्पष्ट राय दी जा सकेगी.'
कथित गैंगरेप का शिकार हुई पीड़िता के परिवार को अभी भी मेडिकल रिपोर्ट नहीं दी गई है. जब पीड़िता को दिल्ली के सफ़दरजंग अस्पताल में भर्ती कराया गया था, तब भी उनके परिजनों के पास मेडिकल रिपोर्ट नहीं थी.
पीड़िता के भाई कहते हैं, "पुलिस ने हमें पूरे काग़ज़ नहीं दिए हैं. हमारी बहन की मेडिकल रिपोर्ट भी अभी हमें नहीं दी गई है." जब इस बारे में एसपी विक्रांत वीर से सवाल किया गया तो उनका कहना था कि ये जानकारी गोपनीय है. जाँच का हिस्सा है. हम घटना से जुड़े हर सबूत जुटा रहे हैं. फ़ॉरेंसिक सबूत भी इकट्ठे किए गए हैं.
एसपी बार-बार इस बात पर ज़ोर देते हैं कि पीड़िता के साथ उस तरह की दरिंदगी नहीं हुई, जिस तरह मीडिया रिपोर्टों में दावा किया गया है.
वो कहते हैं, "उनकी जीभ नहीं काटी गई थी. रीढ़ की हड्डी भी नहीं टूटी थी. गले पर दबाव बढ़ने की वजह से उनकी गले की हड्डी टूटी थी जिससे नर्वस सिस्टम प्रभावित हुआ था."
घटना के कुछ देर बाद रिकॉर्ड किए गए एक वीडियो में पीड़िता ने अपने साथ बलात्कार की बात नहीं की है. इसमें उन्होंने मुख्य अभियुक्त का नाम लिया है और हत्या के प्रयास की बात की है.

पीड़िता का घर
हालाँकि अस्पताल में रिकॉर्ड किए गए एक दूसरे वीडियो में और पुलिस को दिए गए बयान में पीड़िता ने अपने साथ गैंगरेप की बात की है. इस वीडियो में पीड़िता कहती है कि मुख्य अभियुक्त ने उसके साथ पहले भी छेड़ख़ानी और रेप करने की कोशिश की थी. घटना के दिन के बारे में वो बताती हैं, "दो लोगों ने रेप किया था, बाक़ी मेरी माँ की आवाज़ सुनकर भाग गए थे."
घटना के दिन को याद करते हुए पीड़िता की माँ कहती हैं, "मैं घास काट रही थी, मैंने बेटी से कहा कि घास को इकट्ठा कर ले, वो घास इकट्ठा कर रही थी. एक ही ढेरी बना पाई थी. मुझे जब वो नहीं दिखी तो मैं उसे ढूँढती फिरी. घंटा भर तक उसे ढूँढती रही. मुझे लगा कहीं घर तो नहीं चली गई है. मैंने खेतों के तीन चक्कर काटे. फिर मेढ़ के पास खेत में पड़ी मिली. गले में चुन्नी खींच रखी थी. वो बेहोश पड़ी थी. सारे कपड़े उतरे पड़े थे."
हाथरस मामलाः पीड़िता के गांव में कैसा माहौल?
वो पीछे गर्दन की ओर इशारा करते हुए कहती हैं, "रीढ़ की हड्डी टूटी हुई थी. जीभ कटी हुई थी. ऐसा लग रहा था जैसे फ़ालिज मार गया हो. मेरी लड़की में बिल्कुल जान नहीं थी."
पीड़िता ने अपने सबसे पहले बयान में सिर्फ़ एक युवक का ही नाम लिया था. इस सवाल पर उसकी माँ कहती हैं, "जब हम उसे बाजरा में से निकाल के ले गए, वो पूरी तरह बेहोश नहीं हुई थी, तब उसने एक का ही नाम बताया था. फिर एक घंटे बाद बेहोश हो गई. चार दिन बाद सुध आई तो पूरी बात बताई कि चार लड़के थे."
पीड़िता का परिवार उसे अस्पताल ले जाने से पहले चंदपा थाने लेकर गए थे. ये थाना घटनास्थल से क़रीब पौने दो किलोमीटर दूर है. उसकी माँ कहती हैं, "वो रास्ते भर ख़ून की उल्टियाँ कर रही थी. जीभ नीली पड़ती जा रही थी. मैंने उससे पूछा कि बेटा कुछ बता, उसने बस इतना कहा कि मेरा गला दबा हुआ है, मैं बता नहीं सकती हूँ. फिर वो बेसुध हो गई."

हाथरस , चंदपा में लोगों की भीड़
सफ़दरजंग अस्पताल ने पीड़िता की जो ऑटॉप्सी रिपोर्ट जारी की है, "उसमें मौत का कारण गले के पास रीढ़ की हड्डी में गहरी चोट और उसके बाद हुई दिक़्क़तों को बताया गया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि उसके गले को दबाए जाने के निशान हैं, लेकिन मौत की वजह ये नहीं है. मेडिकल रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि अभी विसरा रिपोर्ट आनी बाक़ी है और उसके बाद ही मौत की सही वजह बताई जा सकेगी."
पीड़िता की मौत के बाद सफ़दरजंग अस्पताल की प्रवक्ता ने कहा था, "20 वर्ष की महिला 28 सितंबर को साढ़े तीन बजे नए इमरजेंसी ब्लॉक में न्यूरो सर्जरी के तहत दाख़िल हुई थी. उन्हें अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज से रेफ़र किया गया था. भर्ती के समय उनकी स्थिति बहुत नाज़ुक थी. उन्हें सर्वाइकल स्पाइन इंजरी, क्वाड्रीप्लीजिया और सेप्टीसीमिया था. भरसक प्रयास और इलाज के बावजूद उनका कल 29 सितंबर को सुबह 6.25 बजे देहांत हो गया."
14 सितंबर को हुए इस कथित गैंगरेप के मामले में पुलिस ने एफ़आईआर की धाराओं को तीन बार बदला है. पहले सिर्फ़ हत्या के प्रयास का मुक़दमा दर्ज किया गया था. उसके बाद गैंगरेप की धाराएँ जोड़ीं गईं. दिल्ली के अस्पताल में 29 सितंबर को पीड़िता की मौत के बाद हत्या की धाराएँ भी जोड़ी गई हैं.
पुलिस ने इस मामले में पहली गिरफ़्तारी पाँच दिन बाद की थी. क्या पुलिस से जाँच में लापरवाहियाँ हुई हैं, इस सवाल पर पुलिस अधीक्षक कहते हैं, "14 सितंबर को सुबह लगभग साढ़े नौ बजे पीड़िता अपनी माँ और भाई के साथ थाने आईं थीं. पीड़िता के भाई ने पुलिस को दी शिकायत में कहा था कि मुख्य अभियुक्त ने हत्या की मंशा से उसका गला दबाया है. साढ़े नौ बजे मिली इस सूचना पर हमने साढ़े दस बजे एफ़आईआर कर ली थी."
एसपी विक्रांत वीर कहते हैं, "पीड़िता को तुरंत ज़िला अस्पताल भेजा गया था. जहाँ से उसे अलीगढ़ मेडिकल कॉलेज रेफ़र कर दिया गया था. इलाज भी तुरंत शुरू हो गया था. तहरीर के आधार पर पहली एफ़आईआर 307 और एससी-एसटी एक्ट की दर्ज की गई थी. फिर पीड़िता जब कुछ बोलने लायक़ हुई, तो इंवेस्टिगेटिंग ऑफ़िसर, जो सर्किल ऑफ़िसर हैं, ने बयान लिए, उसमें पीड़िता ने एक और लड़के का नाम लिया और कहा कि उसके साथ छेड़ख़ानी की गई. ये बयान हमारे पास ऑडियो-वीडियो में है. इस बयान के बाद एक और अभियुक्त का नाम रिपोर्ट में जोड़ा गया."

"इसके बाद 22 तारीख़ को पीड़िता ने अपने साथ दुष्कर्म और चार लोगों के शामिल होने की बात बताई. जब उससे पूछा गया कि पहले उसने दो लोगों का नाम क्यों लिया था और छेड़छाड़ की बात क्यों बताई थी तो उसने कहा इससे पहले उसे बहुत होश नहीं था. पीड़िता के इस बयान के बाद हमने 376डी यानी गैंगरेप की धारा जोड़ी और अभियुक्तों की गिरफ़्तारी के लिए टीमें गठित कर दीं. जल्दी ही बाक़ी तीनों अभियुक्तों को भी गिरफ़्तार कर लिया गया और जेल भेज दिया गया."
पीड़िता ने अस्पताल में दिए अपने बयान में गैंगरेप का ज़िक्र किया है. लेकिन क्या मेडिकल रिपोर्ट में गैंगरेप की पुष्टि होती है? इस सवाल पर एसपी कहते हैं, "मेडिकल रिपोर्ट एक अहम सबूत है. अभी जो मेडिकल रिपोर्ट हमें मिली है, उसमें डॉक्टरों ने चोटों का अध्ययन किया है लेकिन सेक्शुअल असॉल्ट (यौन हमले) की पुष्टि नहीं की है. अभी उन्हें फ़ॉरेंसिक रिपोर्ट मिलने का इंतज़ार है. उसके बाद ही वो उस पर राय देंगे. पीड़िता के प्राइवेट पार्ट्स पर भी किसी चोट का ज़िक्र नहीं है. ये मेडिकल रिपोर्ट हमारी केस डायरी का हिस्सा होगी."
रात के अंधेरे में अंतिम संस्कार
पुलिस ने मंगलवार देर रात पीड़िता का अंतिम संस्कार कर दिया था. परिजनों का आरोप है कि उन्हें घर में बंद करके ज़बरदस्ती अंतिम संस्कार किया गया. हालाँकि पुलिस का कहना है कि परिजनों की मौजूदगी में अंतिम संस्कार हुआ.
इस तरह रात के अंधेरे में ज़बरदस्ती किए गए अंतिम संस्कार के बाद परिजनों और दलित समुदाय का ग़ुस्सा और भड़क गया है. कुछ लोग इसे पीड़िता का 'दूसरा बलात्कार बता रहे थे.' वहीं पुलिस के इस कृत्य को साक्ष्य मिटाने की कोशिश के तौर पर भी देखा जा रहा है. आक्रोशित लोगों का कहना था कि पुलिस ने इस तरह अंतिम संस्कार करके 'दोबारा पोस्टमार्टम की संभावना को ख़त्म कर दिया है.'
पीड़िता के भाई ने बीबीसी से कहा, "हमारे रिश्तेदारों को पीटा गया. ज़बरदस्ती उसे जला दिया. हमें तो पता भी नहीं कि पुलिस ने किसका अंतिम संस्कार किया है. आख़िरी बार चेहरा तक नहीं देखने दिया गया. पुलिस को ऐसी क्या जल्दी थी?"
जब हमने एसपी से यही सवाल किया तो उनका कहना था, "मौत हुए काफ़ी देर हो चुकी थी. पोस्टमार्टम और पंचनामे की कार्रवाई होते-होते 12 बज गए थे. कुछ कारणों से पीड़िता का शव तुरंत नहीं लाया जा सका था. पीड़िता के पिता और उनके भाई शव के साथ ही आए थे. परिजनों ने रात में ही अंतिम संस्कार करने का फ़ैसला किया था. पुलिस ने क्रियाकर्म के लिए लकड़ियाँ और अन्य चीज़ें इकट्ठा करने में मदद की थी. परिजनों ने ही अंतिम संस्कार किया था."

क्या कहना है अभियुक्तों के परिजनों का?
पीड़िता के घर से अभियुक्तों का घर बहुत दूर नहीं है. एक बड़े संयुक्त घर में तीन अभियुक्तों के परिवार रहते हैं. जब मैं यहाँ पहुँचा, तो घर में सिर्फ़ महिलाएँ हीं थीं. उनका कहना था कि उनके बच्चों को झूठा फँसाया गया है.
एक अभियुक्त 32 साल का है और तीन बच्चों का पिता है. दूसरा 28 साल का है और उसके दो बच्चे हैं. बाक़ी दो की उम्र 20 साल के आसपास है और उनकी शादी नहीं हुई है.
जब उनकी माओं से पूछा गया कि अगर उनके बेटे शामिल नहीं हैं, तो फिर उनका नाम क्यों लिया गया है तो उनका कहना था, "बहुत पुरानी रंजिश है. इनका तो काम ही यही है. झूठे आरोप लगा दो. फिर बाद में पैसा ले लो. सरकार से भी मुआवज़ा लेते हैं और लोगों से भी."
परिजनों का कहना था कि पुलिस ने उन्हें गिरफ़्तार नहीं किया था बल्कि उन्हें हाज़िर किया गया था. एक महिला कहती हैं, "जब नाम आ गया तो हमने अपने बालक पुलिस के हाथ में दे दिए."
एक अभियुक्त की माँ कहती हैं कि उनका बेटा दूध की डेयरी पर काम करता है और घटना के दिन वहीं था. उसकी हाज़िरी की जाँच की जा सकती है.
अभियुक्तों के परिजन बार-बार अपने ठाकुर होने और पीड़िता के परिवार के दलित होने का ज़िक्र कर रहे थे. अभियुक्त की माँ कहती हैं, "हम ठाकुर हैं, वो हरिजन, हमसे उनका क्या मतलब. वो रास्ते में दिखते हैं तो हम उनसे वहाँ दूरी बना लेते हैं. उन्हें छुएँगे क्यों, उनके यहाँ जाएँगे क्यों?"
अभियुक्तों के बारे में क्या कहना है गाँव के लोगों का?
अभियुक्तों के बारे में गाँव की लोगों की राय उनके परिवार से अपने रिश्तों के आधार पर बँटी है. पास के ही ठाकुर परिवार की कुछ महिलाएँ कहती हैं कि एक अभियुक्त तो पहले से ही ऐसा था. सड़क चलती लड़कियों को छेड़ता था. अपने खेत पर काम कर रहे कुछ ठाकुर परिवारों से जुड़े युवक भी कहते हैं, "ये परिवार ऐसा ही है. लड़ाई-झगड़े करते रहते हैं. बड़ा परिवार है, तो इनके डर से कोई कुछ बोलता नहीं है. सभी एकजुट हो जाते हैं. इनका दबदबा है. गाँव में इनके ख़िलाफ़ कोई कुछ नहीं बोलेगा."
कुछ दूर एक दूसरे खेत पर काम कर रहा एक और युवक कहता है, "सर इस घटना के बारे में जैसा आप सोच रहे हैं वैसा नहीं है. अब एसआईटी जाँच करेगी. एक हफ़्ते में सब पता चल जाएगा कि क्या हुआ. देखते रहिए. टीम गाँव आ रही है."

पड़ोस के ही दलित परिवार के एक बुज़ुर्ग कहते हैं, "ये पहली बार नहीं है कि हम पर इस तरह का हमला किया गया है. हमारी बहू-बेटी अकेले खेत पर नहीं जा सकती है. और ये बेटी तो माँ-भाई के साथ गई थी तब भी उसके साथ ये हो गया. इन लोगों ने हमारी ज़िंदगी को नर्क बना दिया है. हम ही जानते हैं इस नर्क में हम कैसे रह रहे हैं."
गांव में जातिवाद
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से क़रीब 160 किलोमीटर दूर बसे इस गाँव में अधिकतर ठाकुर और ब्राह्मण परिवार ही रहते हैं. दलितों के क़रीब दर्जनभर घर हैं, जो आसपास ही हैं.
दलितों और गाँव के बाक़ी लोगों के बीच सीधा संबंध नज़र नहीं आता है. इस घटना के बाद तथाकथित उच्च जाति के लोगों ने पीड़िता के घर जाकर सांत्वना नहीं दी है. पीड़िता के रिश्तेदार भी यही कहते हैं कि दूसरी जाति के लोगों से उनका संबंध नहीं है.
एक अभियुक्त का नाबालिग़ भाई अपने भाई को निर्दोष बताते हुए बार-बार अपनी जाति का ज़िक्र करता है. वो कहता है, "हम गहलोत ठाकुर हैं, हमारी जाति इनसे बहुत ऊपर है. हम इन्हें हाथ लगाएँगे, इनके पास जाएँगे."
दलितों में भड़कता आक्रोश
पुलिस ने गाँव पहुँचने के सभी रास्तों पर बैरिकेडिंग की है. अधिकतर लोगों को बाहर ही रोका जा रहा है. पत्रकारों को भी पैदल ही गाँव जाने दिया जा रहा है. दलित समुदाय से जुड़े लोग पीड़िता के घर पहुँचकर सांत्वना देना चाहते हैं. लेकिन पुलिस उन्हें बाहर ही रोक रही है.
उत्तराखंड से आए दलितों के एक प्रतिनिधिमंडल को भी पुलिस ने बाहर ही रोक दिया. इसमें शामिल लोग कहते हैं, "सरकार हमारे साथ बहुत अन्याय कर रही है, हम इसे अब और नहीं सहेंगे. हम अपने लोगों के घर जाकर उन्हें ढांढस भी नहीं बंधा सकते." इस समूह में शामिल एक युवा कहता है, "इस सरकार का घमंड अब चुनावों में ही टूटेगा."

मैंने गाँव से मुख्य मार्ग तक जाने के लिए एक बाइक सवार से लिफ़्ट ली. ये यहाँ से क़रीब 30 किलोमीटर दूर स्थित एक गाँव का कोई 18-20 साल की उम्र का युवा था. वो नोएडा में नौकरी करता है और घटना का पता चलने के बाद यहाँ आया है.
वो कहते हैं, "जब से अपनी बहन के बलात्कार के बारे में पता चला है. चैन से नहीं बैठा हूँ. रोज़ सोशल मीडिया पर उसके बारे में पढ़ रहा था. उसकी मौत की ख़बर सुनते ही तुरंत गाँव चला आया. अगर वो दरिंदे मेरे सामने आए तो गोली मार दूँ."
एसआईटी जाँच
सरकार ने अब इस घटना की जाँच के लिए तीन सदस्यों की स्पेशल इंवेस्टिगेटिंग टीम गठित कर दी है, जो बुधवार शाम हाथरस पहुँच गई. अब गाँव की सीमाओं को मीडिया समेत बाक़ी सभी के लिए सील कर दिया गया है. एसआईटी ने जाँच शुरू कर दी है.
एक सप्ताह बाद एसआईटी को अपनी रिपोर्ट सौंपनी हैं. एसआईआटी की जाँच में ही घटना का पूरा सच पता चल सकेगा. घटना का सच जो भी है, इससे शायद अब बहुत ज़्यादा फ़र्क़ नहीं पड़ेगा. दलित समुदाय का ग़ुस्सा इस घटना के बाद भड़क गया है, उसे अब थामना बहुत आसान नहीं होगा.
पुलिस की भूमिका पर उठते सवाल
इस घटना के बाद पुलिस की शुरुआती जाँच और भूमिका पर कई गंभीर सवाल उठे हैं, जिनके जवाब अभी नहीं मिल सके हैं.
1. पुलिस ने घटना स्थल को सील क्यों नहीं किया. घटना के पहले दिनों में वहाँ से साक्ष्य क्यों नहीं जुटाए?
2. रात के अंधेरे में ज़बरदस्ती अंतिम संस्कार क्यों किया?
3. पीड़िता के परिवार के साथ उसकी मेडिकल रिपोर्ट साझा क्यों नहीं की?
4. तकनीकी साक्ष्य क्यों नहीं जुटाए गए और अभियुक्तों की गिरफ़्तारी में देर क्यों की गई?
हालाँकि इन सवालों पर हाथरस के एसपी विक्रांत वीर का कहना था, "पुलिस ने अपने काम में कोई लापरवाही नहीं की है. सभी सबूत जुटाए गए हैं और जुटाए जा रहे हैं. घटना की विवेचना निष्पक्षता से की जा रही है. कोई गुनाहगार बचेगा नहीं और किसी बेगुनाह को झूठा फँसाया नहीं जाएगा."
वो कहते हैं, "हमारी जाँच अपनी रफ़्तार से चल रही है, हम मामले को फ़ॉस्ट ट्रैक अदालत ले जाकर पीड़िता को इंसाफ़ दिलाएँगे."
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