कोरोना की वैक्सीन को लेकर ये दावे कितने सही हैं?

  • श्रुति मेनन
  • बीबीसी रियलिटी चेक
कोरोना वैक्सीन

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भारत में 16 जनवरी, 2021 से कोविड वैक्सीनेशन प्रोग्राम शुरू होने से कई रोज़ पहले से वैक्सीन को लेकर सोशल मीडिया पर कई तरह के दावे किए जा रहे हैं.

सरकार ने लोगों से 'अफवाहों और ग़लत जानकारियों' पर ध्यान ना देते हुए वैक्सीन लेने को कहा है.

इनमें से बड़े पैमाने पर फैलाए गए कुछ दावों के पीछे की सच्चाई क्या है, ये हम यहाँ बता रहे हैं.

दावा: वैक्सीन आपको नपुंसक बना देगा

उत्तर प्रदेश के एक नेता ने बिना कोई प्रमाण दिए ऐसा आरोप लगाया.

समाजवादी पार्टी के नेता आशुतोष सिन्हा का कहना है, "मुझे लगता है कि वैक्सीन में ऐसा कुछ है जिससे नुकसान पहुँच सकता है. आप इससे नपुंसक बन सकते हैं या फिर कुछ भी हो सकता है."

पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव इससे पहले वैक्सीन को लेकर संदेह जता चुके हैं. उन्होंने वैक्सीन को सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी के नाम पर 'बीजेपी वैक्सीन' कह कर बुलाया.

लेकिन इसे लेकर प्रमाण मौजूद नहीं है जिससे यह साबित होता कि वैक्सीन आपको नपुंसक बना देगा. इसे दावे को भारत के सबसे बड़े ड्रग नियामक ने भी 'पूरी तरह से बकवास' बताया है.

वैक्सीन को पूरी तरह से सुरक्षित बताया गया है हालांकि ये जरूर कहा गया है कि इससे हल्के बुख़ार और दर्द की शिकायत हो सकती है.

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्ष वर्धन ने भी इस दावे को ख़ारिज किया.

यह पहली बार नहीं है जब नपुंसक होने की अफ़वाह भारत में वैक्सीनेशन प्रोग्राम के राह का रोड़ा बना हो.

जब भारत में कुछ दशक पहले पोलियो उन्मूलन को लेकर वैक्सीनेशन शुरू हुआ था तब भी इस तरह की अफवाहें फैली थीं.

कई लोगों ने इसकी वजह से वैक्सीन लेने से मना कर दिया था. तब इस दावे में कोई सच्चाई नहीं थी और इस बार भी इस दावे को लेकर कोई प्रमाण मौजूद नहीं है.

दावा: अमेरिका और इंग्लैंड में वैक्सीन महंगा होगा

एक और व्यापक पैमाने पर प्रसारित होने वाला ग़लत दावा है, जिसमें भारत की तुलना अमेरिका और इंग्लैंड से करते हुए यह कहा जा रहा है कि भारत में तो वैक्सीन मुफ़्त है लेकिन अमेरिका और इंग्लैंड में इसके लिए आपको क़ीमत चुकानी होगी.

एक ट्विटर यूजर ने पोस्ट किया है कि अमेरिका में वैक्सीन के लिए 5000 और इंग्लैंड में 3000 रुपये देने होंगे जबकि भारत में ये मुफ्त में मिलेगा.

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इस ट्वीट को हिंदी न्यूज़ चैनल एबीपी न्यूज़ ने लेकर ट्वीट किया लेकिन बाद हटा लिया. इसमें बताई गई क़ीमतें बिल्कुल भी सही नहीं थी.

अमेरिकी सरकार ने कहा है कि कोविड के वैक्सीन के लिए कोई क़ीमत नहीं वसूली जाएगी हालांकि इन्हें लगाने का शुल्क लग सकता है.

लेकिन बड़ी संख्या में अमेरिकियों को यह शुल्क हेल्थ इंश्योरेंस की वजह से नहीं देना पड़ेगा.

और जिन लोगों के पास हेल्थ इंश्योरेंस नहीं है, वे स्पेशल कोविड रिलीफ़ फंड के तहत कवर होंगे.

इसलिए उन्हें भी पैसे देने की जरूरत नहीं पड़ेगी.

इंग्लैंड को लेकर भी जो दावा किया गया है, वो सही नहीं है. ब्रिटेन के स्वास्थ्य सेवा के अंतर्गत वहाँ वैक्सीन के लिए कोई पैसे नहीं लगते हैं. यह सेवा टैक्स के पैसे चलाई जाती है और मरीज़ों का इलाज मुफ़्त होता है.

शुरुआती दौर में भारत में वैक्सीनेशन प्रोग्राम मुफ़्त में चलाया गया लेकिन इस दौर में वैक्सीन स्वास्थ्यकर्मियों और फ्रंटलाइनर्स को दिए जाएंगे. लेकिन अभी तक सरकार ने यह स्पष्ट नहीं किया है कि इसके बाद क्या होगा.

भारत सरकार ने वैक्सीन स्पलाई करने वालों के साथ मिलकर वैक्सीन के दाम कम रखने की कोशिश की है. कम से कम शुरुआती दौर में तो ज़रूर ही.

दावा: भारत के कोविड वैक्सीन में सुअर का मांस

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भारत के कुछ इस्लामी विद्वानों ने कहा है कि किसी भी मुसलमानों को कोविड वैक्सीन नहीं लेनी चाहिए क्योंकि उनमें पोर्क मिलाया गया हो सकता है.

लेकिन सच्चाई यह है कि भारत में बनाए जा रहे दोनों ही वैक्सीन में पोर्क का इस्तेमाल नहीं किया गया है.

हालांकि पोर्क जिलेटिन का इस्तेमाल कुछ बीमारियों के वैक्सीन में स्टैबेलाइज़र के तौर पर जरूर किया जाता है. इस्लाम में सुअर के मांस से बनी चीज़ों को हराम माना जाता है.

इस मुद्दे ने ट्विटर पर बहुत जोर पकड़ा हुआ है. ट्विटर पर इसे लेकर काफी पोस्ट शेयर किए जा रहे हैं जिसमें मुसलमानों को यह कहा जा रहा है कि कोविड वैक्सीन 'हलाल' नहीं है हालांकि इसमें किसी खास वैक्सीन की चर्चा नहीं की जा रही है.

अभी भारत में कोरोना के दो वैक्सीनों की इजाज़त मिली हुई है इसमें एक कोविशिल्ड है जो ब्रिटेन में ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राज़ेनेका की मदद से बनाई गई वैक्सीन का स्थानीय नाम है. दूसरी वैक्सीन कोवैक्सीन नाम से है. इसे भारत बायोटेक ने यही विकसित किया है.

इन दोनों में ही पोर्क का इस्तेमाल नहीं किया गया है.

दो दूसरे महत्वपूर्ण कोविड वैक्सीनों में से एक फाइज़र ने बनाया है तो एक मॉडर्ना ने तैयार किया है. इन दोनों वैक्सीन में भी पोर्क जिलेटिन का इस्तेमाल नहीं किया गया है.

चीनी कंपनियों की ओर से वैक्सीन में इस्तेमाल किए गए चीजों का ज़िक्र किया गया है लेकिन किसी भी चीनी कंपनी के वैक्सीन को भारत में अभी इस्तेमाल की इजाज़त नहीं दी गई है.

चीनी वैक्सीन को लेकर कुछ दूसरे देशों में विवाद भी पैदा हुए हैं. मसलन मुस्लिम बहुल देश इंडोनेशिया में इसके इस्तेमाल को लेकर विवाद खड़ा हुआ है. यहाँ चीनी कंपनी की ओर से तैयार सिनोवैक वैक्सीन के इस्तेमाल की इजाज़त मिली हुई है.

दावा: वैक्सीन में माइक्रोचिप लगाए गए है

दूसरे देशों की तरह ही भारत के सोशल मीडिया में भी इस तरह के ग़लत दावे खूब किए जा रहे हैं कि वैक्सीन में माइक्रोचिप रखे गए हैं.

एक छोटे से वीडियो में एक मुसलमान धर्मगुरु को यह कहते हुए देखा जा रहा है कि वैक्सीन में चिप लगा हुआ है जिससे आपके दिमाग को नियंत्रित किया जाएगा. इस महीने की शुरुआत में यह वीडियो फेसबुक और ट्विटर पर वायरल हुआ था.

माइक्रोचिप किसी भी वैक्सीन का हिस्सा नहीं है हालांकि यह दावा पूरी दुनिया में बार-बार षड्यंत्रकारी सोच वाले समूहों की ओर से फैलाया जाता रहा है.

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