पेट्रोल-डीज़ल के बढ़ते दाम पर बोलीं वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण- प्रेस रिव्यू

निर्मला सीतारमण

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टेलीग्राफ इंडिया के मुताबिक़, पेट्रोल-डीज़ल की बढ़ती क़ीमत अब एक राजनीतिक मुद्दा बन गई है और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण दाम कम करने की ज़िम्मेदारी राज्यों पर डालने की कोशिश कर रही हैं.

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शनिवार को चेन्नई में कहा, 'यह एक विवादास्पद मुद्दा है, जिसमें ईंधन का दाम कम करने के सिवा कोई भी जवाब किसी को नहीं जँचेगा. केंद्र और राज्यों, दोनों को ही तेल की क़ीमतें कम करने के लिए बातचीत करना चाहिए.''

वित्त मंत्री ने कहा, यदि हम सब उपभोक्ता को मिलने वाले ईंधन के मूल्य और केंद्र द्वारा लिए जाने वाले टैक्स की बात कर रहे हैं तो राज्य जो टैक्स लगाते हैं वो भी कोई कम नहीं हैं. केंद्र और राज्य की तरफ़ से लगाया गया टैक्स बराबर है.''

पेट्रोल और डीज़ल को गुड्स एंड सर्विसेज़ टैक्स यानी जीएसटी के दायरे में लाने के बारे में उन्होंने कहा, केंद्र अपना टैक्स लगाए और राज्य अपना टैक्स लगाएं, इससे बेहतर होगा कि टैक्स सिर्फ़ एक हो जिसे केंद्र साझा करे.

हालांकि जानकार मानते हैं कि इस तरह केंद्र, राज्यों के राजस्व को हड़प लेगा और केंद्र पर राज्यों की निर्भरता बढ़ जाएगी. वित्त मंत्री ने ये बयान ऐसे समय दिया है जब भारत के कई शहरों में पेट्रोल 100 रुपए प्रति लीटर से अधिक क़ीमत पर बिक रहा है.

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भारत में पेट्रोल-डीज़ल की क़ीमत चार चरणों में तय होती है:

कच्चा तेल विदेशों से ख़रीदा जाता है, फिर देश की रिफाइनरियों में पहुँचता है और वहां से पेट्रोल पंपों पर पहुँचता है. जिस दाम पर आप पेट्रोल-डीज़ल ख़रीदते हैं, उसमें 50 प्रतिशत से अधिक अधिक टैक्स होता है.

डीलर्स को पेट्रोल-डीज़ल कम मूल्य पर मिलता है, लेकिन केंद्र सरकार के टैक्स सेंट्रल एक्साइज़, राज्यों के वैट और डीलर कमीशन के बाद उपभोक्ताओं तक पहुंचते-पहुंचते इसकी कीमत दोगुनी से भी अधिक हो जाती है.

पेट्रोल-डीज़ल की खुदरा क़ीमत में कच्चे तेल का दाम, रिफ़ाइनरी की लागत, मार्केटिंग कंपनियों का मुनाफ़ा, सरकारों की एक्साइज़ ड्यूटी और वैल्यू ऐडेड टैक्स (वैट) शामिल होता है.

एक्साइज़ ड्यूटी केंद्र सरकार के पास जाती है और वैट राज्य सरकारें लेती हैं. दोनों ही टैक्स, सरकारों के लिए राजस्व का बड़ा ज़रिया हैं.

भारत ने चीन से गोगरा, हॉट स्प्रिंग और डेमचोक में सैनिकों को बुलाने के लिए कहा

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टाइम्स ऑफ इंडिया की ख़बर के मुताबिक़, भारत ने चीन से गोगरा, हॉट स्प्रिंग और डेमचोक में तेज़ी से सैनिकों को पीछे बुलाने के लिए कहा है और इस बात पर ज़ोर दिया है कि चीन के सैनिक डेपसांग में भारतीय पट्रोलिंग को ना रोकें, ताकि पूर्वी लद्दाख में तनाव को कम किया जा सके.

भारत और चीन के बीच कमांडर स्तर की बातचीत के दसवें दौर का क्या नतीजा निकला, इस बारे में आधिकारिक तौर पर कुछ नहीं कहा गया है. शनिवार सुबह दस बजे से शुरू हुई बातचीत देर रात तक जारी रही.

अख़बार ने सूत्रों के हवाले से लिखा है कि भारत और चीन के बीच सौनिकों को पीछे करने को लेकर ऐसा कोई मतभेद नहीं है. अग्रिम ठिकानों पर दोनों देशों के मुट्ठीभर सैनिक हैं जो एक-दूसरे के नज़दीक भी नहीं हैं.

ख़बर में कहा गया है कि दोनों देशों के बीच ज्यादा दिक्कत सामरिक रूप से महत्वपूर्ण डेपसांग या बल्ग इलाक़े में है जो 16,000 फुट की ऊंचाई पर है, जहां साल 2013 के बाद से लगातार तनातनी होती रही है.

'ओबीसी आरक्षण के श्रेणीकरण में अब नहीं चलेगी मनमर्ज़ी'

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दैनिक जागरण की ख़बर के मुताबिक, ''ओबीसी यानी अन्य पिछड़ा वर्ग को मिलने वाले आरक्षण के श्रेणीकरण को लेकर गठित रोहिणी आयोग राजनीतिक रूप से संवेदनशील इस मुद्दे को लेकर किसी जल्दबाजी में नहीं है.''

ख़बर में कहा गया है कि ''आयोग ने जो आँकड़े जुटाए हैं वे चौंकाने वाले हैं. इसके तहत ओबीसी में शामिल एक हजार से ज्यादा ऐसी जातियां हैं, जिन्हें इस आरक्षण का कोई लाभ नहीं मिल रहा है. आयोग अब इन्हीं तथ्यों और आँकड़ों के आधार पर राज्यों के साथ निर्णायक चर्चा की तैयारी में है.''

ख़बर के अनुसार, ''रोहिणी आयोग ने अगले महीने से देश के उन 11 राज्यों के साथ चर्चा शुरू करने की योजना बनाई है, जो पहले से ही अपने यहां अलग-अलग आधार पर ओबीसी आरक्षण का बँटवारा कर चुके हैं. खास बात यह है कि इन राज्यों में आरक्षण कोटे का बंटवारा किसी एक तय फार्मूले पर नहीं, बल्कि वोट बैंक के लिहाज से किया गया है. ऐसे में किसी राज्य में इसे दो श्रेणियों में बांटा गया है, तो किसी राज्य में तीन, चार और पांच श्रेणियों तक इसका बँटवारा किया गया है.''

रोहिणी आयोग का मानना है कि वह जुटाए गए आँकड़ों और तथ्यों के आधार पर ओबीसी आरक्षण के उप-वर्गीकरण के पक्ष में है और राज्यों के साथ चर्चा भी इसी आधार पर होगी.

भारत में फ़िलहाल ओबीसी की करीब 2600 जातियां हैं, जिनके लिए नौकरियों और दाख़िले में 27 फीसद आरक्षण है. इसके बावजूद पूरा आरक्षण ओबीसी की 600 जातियों में ही बंट जाता है. इनमें भी करीब 100 ऐसी जातियां है, जो इसका आधे से ज्यादा लाभ ले जाती हैं.

'आउटसाइडर' का टैग हटाने के लिए पिछड़ी जातियों को लुभाएगी बीजेपी

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द हिंदू की ख़बर के मुताबिक़, तमिलनाडु में विधानसभा चुनावों से पहले भारतीय जनता पार्टी ने पिछड़ी जातियों को लुभाने के लिए एक गहन योजना तैयार की है.

ख़बर में कहा गया है कि इस योजना के ज़रिए भारतीय जनता पार्टी हिंदी बहुत राज्यों में उच्च जाति के दबदबे वाली पार्टी की अपनी छवि से बाहर निकलने की कोशिश कर रही है.

भारतीय जनता पार्टी तमिलनाडु में जल्द ही अपनी रैलियों का सिलसिला शुरू करने वाली है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 25 फरवरी को कोयंबटूर में रैली करने वाले हैं. रविवार को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी तमिलनाडु पहुंच रहे हैं. गृहमंत्री अमित शाह और पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा पहले की कई बार तमिलनाडु जा चुके हैं.

ख़बर में कहा गया है कि हिंदी-भाषी राज्यों में विजय पताका फहराने के बावजूद क्षेत्रीय संस्कृति वाले तमिलनाडु जैसे राज्यों में बीजेपी जूझती रही है. यहां तक कि पश्चिम बंगाल में, जहां बीजेपी ने बीते कुछ वर्षो में बड़ा ज़ोर लगाया है, वहां भी सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस ने चुनावी बिसात में बंगाल की बेटी और बाहरी जैसे टैग लगा दिए हैं.

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