भारत के इन राज्यों के बीच हैं कुल 7 सीमा विवाद

  • राघवेंद्र राव
  • बीबीसी संवाददाता
हिमंत बिस्व सरमा

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असम-मेघालय सीमा पर कथित तौर पर अवैध लकड़ी ले जा रहे एक ट्रक को मंगलवार तड़के असम के वनकर्मियों की ओर से रोकने के बाद भड़की हिंसा और उसके बाद हुई गोलीबारी में एक फॉरेस्ट गार्ड सहित छह लोगों की मौत हो गई.

मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड संगमा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और असम के मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा को टैग करते हुए एक ट्वीट में शिकायत की है कि असम पुलिस और फॉरेस्ट गार्ड मेघालय में घुसे और बिना उकसावे के गोलीबारी करनी शुरू कर दी. संगमा की पार्टी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सहयोगी पार्टी है.

वहीं, असम पुलिस के अधिकारियों ने कहा कि ट्रक को राज्य के वेस्ट कार्बी आंगलोंग ज़िले में राज्य के वन विभाग की टीम ने रोका तो मेघालय की तरफ़ से लोगों की भीड़ ने इस टीम और पुलिसकर्मियों पर हमला कर दिया. इसके बाद असम की ओर से हालात पर काबू पाने के लिए गोली चलाई.

"मौजूदा स्थिति को देखते हुए असम के लोगों को मिज़ोरम की यात्रा न करने की सलाह दी जाती है क्योंकि असम के लोगों की व्यक्तिगत सुरक्षा के लिए किसी भी ख़तरे को स्वीकार नहीं किया जा सकता है. असम के जो लोग काम से जुड़ी मजबूरी के चलते मिज़ोरम में रह रहे हैं, उन्हें पूरी सावधानी बरतनी चाहिए."

आम तौर पर ऐसे निर्देश या एडवाइज़री विदेशों में अपने नागरिकों की सुरक्षा के लिए कोई मुल्क जारी करता है. लेकिन ऊपर जो निर्देश आपने पढ़ा, वह असम सरकार ने बीते साल मिज़ोरम के साथ हिंसक झड़प के बाद जारी किया था.

असम की ये एडवाइज़री भले ही अलग लग रही हो लेकिन भारत में अंतर्राज्यीय सीमा विवाद कई साल पुराने हैं.

26 जुलाई को असम और मिज़ोरम की सीमा पर हुई हिंसक झड़प में असम पुलिस के 6 जवान मारे गए और अनेक पुलिसकर्मी घायल हुए.

इस घटना के अगले ही दिन केंद्रीय गृह मंत्रालय ने एक सवाल के जवाब में लोकसभा को बताया कि देश में सात ऐसे मामले हैं, जहाँ पर सीमांकन और ज़मीन पर अलग-अलग दावों की वजह से प्रदेशों में विवाद हैं.

केंद्र के अनुसार सीमाओं को लेकर जिन राज्यों में विवाद है, वे हैं- हरियाणा-हिमाचल प्रदेश, केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख-हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र-कर्नाटक, असम-अरुणाचल प्रदेश, असम-नगालैंड, असम-मेघालय और असम-मिज़ोरम.

इस सूची से साफ़ है कि असम ही वो राज्य है, जिसके अपने पड़ोसी राज्यों के साथ सबसे ज़्यादा सीमा विवाद हैं.

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गृह मंत्री अमित शाह की बुलाई बैठक में शामिल मिज़ोरम के मुख्यमंत्री ज़ोरामथांगा

एक नज़र डालते हैं असम के अपने पड़ोसी राज्यों से चल रहे सीमा विवादों पर-

1. असम-अरुणाचल प्रदेश सीमा विवाद

असम और अरुणाचल प्रदेश के बीच करीब 804 किलोमीटर लंबी सीमा है. अरुणाचल की शिकायत यह है कि उत्तर-पूर्वी राज्यों के पुनर्गठन के दौरान मैदानी इलाक़ों में कई वन क्षेत्र असम में स्थानांतरित हो गए, जो परंपरागत रूप से पहाड़ी आदिवासियों के थे.

अतीत में एक त्रिपक्षीय समिति ने सिफ़रिश की थी कि असम के कुछ क्षेत्रों को अरुणाचल में शामिल कर दिया जाए. इसके विरोध में असम ने सुप्रीम कोर्ट में मुक़दमा किया और मामला फ़िलहाल सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है.

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2. असम-नगालैंड सीमा विवाद

असम का कहना है कि नगालैंड उसकी सीमाओं पर अवैध अतिक्रमण करता है और इसी को रोकने के लिए वो पर्याप्त क़दम उठा रहा है. सीमा की पहचान करने और नगालैंड के साथ सीमा विवादों के समाधान के लिए असम सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में मुक़दमा भी दायर किया हुआ है.

इस मुक़दमे के ज़रिए असम ने अपनी सीमा के भीतर के क्षेत्रों का अतिक्रमण रोकने के लिए नगालैंड के ख़िलाफ़ स्थायी निषेधाज्ञा देने की मांग की है. साथ ही, असम सरकार चाहती है कि सुप्रीम कोर्ट उसे सभी अतिक्रमित क्षेत्रों का असली मालिक घोषित करे और नगालैंड राज्य को उन क्षेत्रों का शांतिपूर्ण नियंत्रण सौंपने का निर्देश दे. यह मामला भी सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है.

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3. असम-मेघालय सीमा विवाद

कामरूप मेट्रो सहित असम के सात ज़िले उत्तरी और पश्चिमी मेघालय के साथ सीमा साझा करते हैं. इन इलाक़ों में 12 जगहों पर दोनों राज्यों के बीच गहरे सीमा विवाद हैं.

हाल ही में असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा और मेघालय के मुख्यमंत्री कॉनरैड संगमा ने शिलौंग में एक बैठक की और कहा कि यथास्थिति बनाए रखने की जगह अब दोनों राज्य इन सीमा विवादों का हल निकलने के लिए कार्रवाई करेंगे. अतीत में भी दोनों राज्य परस्पर स्वीकार्य समाधान निकालने के लिए द्विपक्षीय स्तर प्रयास करते रहे हैं.

केंद्र सरकार के कहने पर दोनों राज्यों ने नोडल अधिकारियों को नियुक्त किया है और यह अधिकारी दोनों राज्यों की सीमा समस्याओं को सुलझाने और दोनों राज्यों के बीच मतभेदों को कम करने के लिए समय-समय पर बैठकें करते रहे हैं.

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मिजोरम के मुख्यमंत्री ज़ोरामथांगा और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा

4. असम-मिज़ोरम सीमा विवाद

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असम और मिज़ोरम के बीच 164.6 किलोमीटर लंबी अंतर्राज्यीय सीमा है. ये सीमा असम के कछार, हैलाकांडी और करीमगंज ज़िलों को और मिज़ोरम के कोलासिब, ममित और आइज़ोल ज़िलों को छूती है.

औपनिवेशिक शासन के तहत मिज़ोरम को लुशाई हिल्स के नाम से जाना जाता था और ये असम का हिस्सा था. इस क्षेत्र को केवल 1972 में एक अलग संघ प्रशासित क्षेत्र बना दिया गया और 1987 में ये एक पूर्ण राज्य बन गया.

दोनों राज्यों के बीच विवाद की मुख्य वजह ब्रिटिश काल की दो अधिसूचनाएं हैं. मिज़ोरम के लोग 1875 में जारी की गई उस अधिसूचना को मानते हैं, जिसने लुशाई हिल्स को कछार के मैदानों से अलग कर दिया गया था. इस अधिसूचना को मानने के पीछे वजह ये है कि मिज़ो लोग मानते हैं कि ये अधिसूचना आदिवासी प्रमुखों के साथ बातचीत करने के बाद की गई थी.

दूसरी तरफ़ असम 1933 में जारी एक और ब्रिटिश अधिसूचना को स्वीकार करता है, जिसमें लुशाई हिल्स और मणिपुर के बीच सीमांकन किया गया था. इस अधिसूचना में कहा गया कि मणिपुर की सीमा लुशाई हिल्स, असम के कछार जिले और मणिपुर के त्रिकोणीय जंक्शन से शुरू होती है.

मिज़ो लोग इस सीमांकन को स्वीकार नहीं करते हैं और 1875 की सीमा की बात करते हैं जो उनके प्रमुखों के साथ बातचीत करके बनाई गई थी.

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5. हरियाणा-हिमाचल प्रदेश सीमा विवाद

हरियाणा और हिमाचल प्रदेश के बीच परवाणू में एक अंतर्राज्यीय सीमा विवाद है. सर्वे ऑफ इंडिया की हालिया रिपोर्ट में कहा गया था कि हिमाचल प्रदेश ने परवाणू में हरियाणा की कुछ जमीन पर नियंत्रण कर लिया है. हिमाचल प्रदेश सरकार ने हाल ही में राजस्व और वन विभागों के अधिकारियों से विवादित स्थान का निरीक्षण करवाया है.

6. केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख-हिमाचल प्रदेश सीमा विवाद

लेह-मनाली राजमार्ग पर स्थित सरचू लद्दाख और हिमाचल प्रदेश के बीच एक विवादित क्षेत्र है. ये जगह हिमाचल प्रदेश के लाहौल-स्पिति और लद्दाख के लेह ज़िले के बीच है.

सरचू में सीमा विवाद 2014 में शुरू हुआ जब जम्मू और कश्मीर पुलिस ने वहां एक चौकी स्थापित की. हिमाचल प्रदेश ने मामले की जाँच करने के बाद दावा किया कि जम्मू-कश्मीर पुलिस ने जो चौकी बनाई थी, वो हिमाचल की सीमा 14 किलोमीटर अंदर थी. तभी से ये विवाद जारी है. हिमाचल प्रदेश सरकार ने ये मामला भारत के महासर्वेक्षक के समक्ष भी उठाया है.

7. महाराष्ट्र-कर्नाटक सीमा विवाद

महाराष्ट्र कर्नाटक के साथ अपनी सीमा पर लगते हुए करीब 7,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर दावा करता है. इसमें मुख्यतः बेलगावी (बेलगाम), उत्तर कन्नड़, बीदर और गुलबर्गा जिलों के 814 गांव और बेलगावी, निप्पणी और कारवार के शहर शामिल हैं. ये सभी क्षेत्र अधिकतर मराठी भाषी हैं इसलिए महाराष्ट्र इन पर दावा करता है और चाहता है कि इनका विलय महाराष्ट्र में कर दिया जाए.

2012 में बेलगावी पर अपने दावे को मज़बूत करने के उद्देश्य से कर्नाटक सरकार ने वहां एक नए विधानसभा भवन का उद्घाटन किया और अब कर्नाटक विधानसभा का शीतकालीन सत्र यहीं आयोजित किया जाता है.

इसी साल जनवरी में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने कहा था कि महाराष्ट्र-कर्नाटक सीमा के विवादित क्षेत्रों को तब तक केंद्र शासित प्रदेश घोषित किया जाना चाहिए जब तक कि सुप्रीम कोर्ट इस मुद्दे पर अपना अंतिम आदेश नहीं दे देता.

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पूर्वोत्तर राज्यों के सीमा विवादों की जड़

प्रोफेसर संजय हज़ारिका एक प्रख्यात लेखक, पत्रकार, फिल्म निर्माता और प्रोफेसर हैं. वे दिल्ली में जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर हैं.

पूर्वोत्तर क्षेत्र में चल रहे अंतर्राज्यीय सीमा विवादों पर वे कहते हैं कि "ये सीमा विवाद हमारी औपनिवेशिक विरासत का हिस्सा हैं जिन्हें हम सुलझा नहीं पाए हैं".

प्रोफेसर हज़ारिका कहते हैं, "ऐसी ज़मीनें हैं जो सरकारी आदेश या नक्शे में चिह्नित नहीं हैं. पारंपरिक जोतें हैं, जो लोगों के पास हैं. उनके पारंपरिक चिह्नों पर अंकित हैं. इससे मामला उलझ जाता है."

उनके अनुसार पूर्वोत्तर के राज्यों के भीतर भी अलग-अलग चुनौतियाँ हैं. वे कहते हैं, "कुछ समुदायों में संपत्ति रखने की शक्ति उनके मुखिया या एक व्यक्ति के पास होती है. लेकिन सरकार की व्यवस्था ऐसे काम नहीं करती है. जहाँ एक तरफ़ सरकार के पास शक्ति और अधिकार है, वहीं दूसरी तरफ़ कबायली परंपराएँ मौजूद हैं जिन्हें लोग मानते हैं."

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असम और मिज़ोरम के बीच विवाद की पूरी कहानी

प्रोफ़ेसर हज़ारिका मानते हैं कि लोगों को शामिल किए बिना शांति नहीं बनाए रखी जा सकती. वे मेरापनी का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि मेरापानी में नागा और असमिया पक्षों के समुदायों ने एक शांति समिति के ज़रिए एक दशक तक शांति बनाए रखी. मेरापनी असम और नागालैंड की सीमा पर एक विवादित इलाका है, जहाँ अतीत में दोनों राज्यों के लोगों में हिंसक झड़पें हुई हैं.

वे कहते हैं, "स्थानीय लोगों को समस्या के समाधान में शामिल करना होगा. समाधान केवल केंद्र और राज्य सरकारों के स्तर पर नहीं हो सकता."

वरिष्ठ पत्रकार दीपक दीवान पूर्वोत्तर मामलों के विशेषज्ञ हैं.

पूर्वोत्तर राज्यों के सीमा विवादों पर वे कहते हैं कि इसकी एक बड़ी वजह कुछ क्षेत्रों में बहुत स्पष्ट सीमांकन न होना है और सीमा से जुड़े मसलों के समाधान के लिए कोई गंभीर प्रयास नहीं किया गया है.

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1972 में मिज़ोरम एक केंद्र शासित प्रदेश बना. उससे एक साल पहले 1971 में मिज़ोरम और असम के बीच सीमांकन किया गया था. लेकिन मिज़ोरम तब तक एक केंद्र शासित प्रदेश भी नहीं था तो लोगों को इसके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी और यह एकतरफा बात थी.

दीवान कहते हैं, "मिज़ो इसे स्वीकार नहीं करते. मिज़ोरम का आरोप है कि असम बांग्लादेश से आए अवैध प्रवासियों को तलहटी में धकेलने की कोशिश कर रहा है. असम के कछार, करीमगंज और हैलाकांडी जिलों में मुसलमानों का निवास है और इनमें से अधिकांश बांग्लादेश से हैं."

दीवान बताते हैं कि मेघालय में जब भी चुनाव होते हैं तो वहां मतदान केंद्रों की स्थापना पर विवाद होता है क्योंकि असम और मेघालय दोनों एक दूसरे को उन सीमावर्ती इलाकों में मतदान केंद्र बनाने से रोकते हैं जिन्हें वे अपना क्षेत्र मानते हैं और उन पर दावा करते हैं.

दीवान कहते हैं, "कुछ क्षेत्रों में बहुत स्पष्ट सीमांकन नहीं किया गया है क्योंकि कोई सीमा स्तंभ या चिह्न नहीं हैं. तलहटी में आरक्षित वन भी हैं. मिज़ो लोगों का कहना है कि बांग्लादेशियों को तलहटी में बसाया जा रहा है. असम का कहना है कि ये आरक्षित वन क्षेत्र हैं और मिज़ो अतिक्रमण कर रहे हैं."

बातचीत का रास्ता

प्रोफेसर हज़ारिका के अनुसार ऐसी स्थिति नहीं हो सकती है जिसमें पड़ोसी राज्यों में दो सशस्त्र बल एक-दूसरे का सामना कर रहे हों. वे कहते हैं, "यह अंतरराष्ट्रीय सीमा नहीं बल्कि राज्य की सीमा है. इन राज्यों को बातचीत की मेज पर वापस जाने या मध्यस्थ खोजने की जरूरत है. और राज्यों को यह स्वीकार करना होगा कि हिंसा कोई रास्ता नहीं है."

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आने वाले समय में इन सीमा विवादों को सुलझाने के लिए हज़ारिका कहते हैं कि "सीमा पर ऐसी स्थिति बनानी होगी जहां दोनों पक्षों के लोगों को फायदा हो".

उनके अनुसार वन क्षेत्रों को छोड़कर राज्यों के सीमाओं पर बहुत से क्षेत्रों को विकास क्षेत्रों में परिवर्तित किया जा सकता है जिससे रोजगार मिले और उत्पादन बढ़कर स्थानीय लोगों को लाभ हो.

वे कहते हैं, "पूर्वोत्तर में पर्याप्त दुर्भावना रही है. हमें अब लोगों के बीच सद्भावना चाहिए. पड़ोसियों के रूप में राज्यों को यह स्वीकार करने की आवश्यकता है कि चाहे वे बड़े हों या छोटे, उन्हें एक-दूसरे के साथ ही रहना है." हज़ारिका यह भी मानते हैं कि इन विवादों को सुलझाने में केंद्र को बड़े फैसले लेने होंगे और एक ईमानदार मध्यस्थ और शांतिदूत बन कर लोगों को एक साथ लाना होगा.

दीवान के अनुसार असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा शर्मा को ऐसा बयान नहीं देना चाहिए था कि वे एक इंच जमीन भी नहीं देंगे. वे कहते हैं, "ज़मीन अभी भी विवादित क्षेत्र में है. आप नहीं जानते कि ज़मीन आपकी है या मिज़ोरम की इसलिए इस तरह के बयान नहीं दिए जाने चाहिए."

दीवान का भी मानना है कि आगे बढ़ने का एक ही रास्ता है कि "राजनेता बातचीत के लिए बैठें, अपने अहंकार को पीछे छोड़ें और नारे लगाना बंद करें". उनके अनुसार इन विवादों को एक लेन-देन की प्रक्रिया ही सुलझा सकती है.

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क्या कहती है केंद्र सरकार

इन सभी सीमा विवादों पर केंद्रीय गृह मंत्रालय का कहना है कि यह सभी विवाद सीमांकन और प्रदेशों के क्षेत्रों पर दावों और प्रतिक्रिया की वजह से हैं.

गृह मंत्रालय ने संसद में यह भी कहा है कि कुछ विवादित सीमावर्ती इलाकों से कभी-कभी विरोध प्रदर्शन और हिंसा की घटनाएं सामने आती हैं.

ऐसे विवादों को सुलझाने में अपनी भूमिका पर केंद्र सरकार का कहना है कि उसका दृष्टिकोण लगातार रहा है कि अंतर्राज्यीय विवादों को केवल संबंधित राज्य सरकारों के सहयोग से ही हल किया जा सकता है और केंद्र सरकार विवाद के सौहार्दपूर्ण समाधान के लिए केवल एक 'फैसिलिटेटर' यानी मददगार के रूप में कार्य करती है.

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