तस्वीरों में: कैसा दिख रहा है मरम्मत के बाद जलियाँवाला बाग़ शहीद स्मारक?

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जलियाँवाला बाग़ में श्रद्धांजलि देते हुए पीएम मोदी की एक तस्वीर
1650 गोलियां और 379 लाशें. ये दोनों आँकड़े जलियांवाला बाग़ के हैं. 1650 गोलियां अंग्रेज अधिकारी जनरल डायर ने चलवाई थीं और 379 भारतीयों की मौत हुई थी.
ये एक ऐसी घटना थी जिसने 102 साल पहले दुनिया भर के सामने अंग्रेजी शासन की क्रूरता और दमनकारी पक्ष को सामने रखा.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आगामी शनिवार को इसी घटना की याद में बनाए गए जलियांवाला बाग़ स्मारक के पुनर्निमित स्मारक को देश को समर्पित करेंगे.
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जलियांवाला बाग में इसी रास्ते से डायर और उनके सैनिक घुसे थे
प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो की ओर से बताया गया है कि पुनर्निमाण की प्रक्रिया में लंबे समय से बेकार पड़ी और कम उपयोग वाली इमारतों पर काम किया गया है ताकि उन्हें एक बार उपयोग में लाया जा सके.
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इस दिशा में काम करते हुए परिसर में चार संग्रहालय दीर्घाएं निर्मित की गई हैं जो कि तत्कालीन पंजाब में होने वाली विभिन्न घटनाओं के ऐतिहासिक महत्व को दर्शाती हैं.
3डी और प्रोजेक्शन तकनीक दिखाएगी कि क्या क्यों हुआ
पीआईबी ने बताया है कि इस दौर के इतिहास से दुनिया को अवगत करवाने के लिए ऑडियो-विज़ुअल माध्यम से प्रजेंटेशन दिए जाएंगे.
इसके साथ ही 3डी, प्रोजेक्शन मैपिंग, आर्ट, मूर्तिकला आदि की मदद से इन घटनाओं को पेश करने की कोशिश की जाएगी.
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ये उस दौर की घटनाओं के ऐतिहासिक महत्व और उनके महत्व को बताती हैं.
इतिहासकार हरजेश्वर पाल सिंह ने बीबीसी पर छपे एक लेख में बताया था कि किस तरह और किन हालातों में जनरल डायर को अमृतसर भेजा गया था.
उन्होंने लिखा था -
13 अप्रैल को लगभग शाम के साढ़े चार बज रहे थे, जनरल डायर ने जलियांवाला बाग में मौजूद क़रीब 25 से 30 हज़ार लोगों पर गोलियां बरसाने का आदेश दे दिया.
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जलियाँवाला बाग़ का फायरिंग प्वॉयंट जहां से डायर के सैनिकों ने निहत्थे लोगों पर गोलियां चलाई थीं
वो भी बिना किसी पूर्व चेतावनी के. ये गोलीबारी क़रीब दस मिनट तक बिना सेकंड रुके होती रही. जनरल डायर के आदेश के बाद सैनिकों ने क़रीब 1650 राउंड गोलियां चलाईं.
गोलियां चलाते-चलाते चलाने वाले थक चुके थे और 379 ज़िंदा लोग लाश बन चुके थे. (अनाधिकारिक तौर पर कहा जाता है कि क़रीब एक हज़ार लोगों की मौत हुई थी.
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जलियांवाला बाग़ में बनाई गयी गैलरियां
भारत में हुआ था जनरल डायर का जन्म
बेहद कम लोग जानते हैं कि निहत्थे लोगों पर गोलियां चलाने वाले अंग्रेज अधिकारी जनरल डायर का जन्म भारत में ही हुआ था.
सिंह अपने लेख में बताते हैं, "डायर का जन्म भारत में ही हुआ था और उनके पिता शराब बनाने का काम करते थे. डायर को उर्दू और हिंदुस्तानी दोनों ही भाषाएं बहुत अच्छे से आती थीं.
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एबटाबाद (अब पाकिस्तान में) में तैनाती के दौरान अपनी कार के साथ जनरल डायर
डायर को उसके लोग तो बहुत अच्छी तरह जानते थे लेकिन उसके वरिष्ठ अधिकारियों में उसकी कोई बहुत अच्छी साख नहीं थी.
इतिहास में डायर का नाम अमृतसर के कसाई के तौर पर है और ऐसा न केवल राष्ट्रवादी बल्कि इंपीरियलिस्ट भी मानते है. उनके निर्मम कृत्य को भारत में अंग्रेजों की मौजूदी के अपवाद के तौर पर देखा जाता है."
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एक पिकनिक के दौरान जनरल डायर अपनी पत्नी एनी और भतीजी एलिस के साथ
मशीन गन का इस्तेमाल
जलियावालाँ बाग़ में घटी इस घटना पर दुनिया भर में प्रतिक्रिया देखी गयी. ये एक ऐसी प्रतिक्रिया थी जिसने अंग्रेजी राज" का क्रूर और दमनकारी चेहरा सबके सामने रख दिया.
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सिंह लिखते हैं, "आधिकारिक हंटर कमीशन की जांच और अनाधिकारिक तौर पर हुई कांग्रेस की जांच में पाया गया कि जनरल डायर इस तरह की सोच रखने और सोच को अंजाम देने वाला अपने ही तरह का अकेला शख़्स था.
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हंटर कमीशन के सामने डायर ने माना था कि उन्होंने लोगों पर मशीन गन का इस्तेमाल किया और बाग़ के लिए एक संकरा सा रास्ता था और सैनिकों को आदेश दिया गया कि वो जिस ओर ज़्यादा संख्या में लोगों को देखें उधर फ़ायर करें.
जब फ़ायरिंग बंद हो गई तो वहां न घायलों के लिए मेडिकल की व्यवस्था थी और न लाशों के अंतिम कर्म की. उन्हें व्यापक रूप से "ब्रिटिश साम्राज्य के उद्धारकर्ता" के रूप में सम्मानित किया गया था.
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किसी ब्रिटिश अधिकारी द्वारा व्यक्तिगत तौर पर की गई यह निर्मम सामूहिक हत्या अपने आप में पहली घटना थी. हिंसा, क्रूरता और राजनीतिक दमन ब्रिटिश राज में पहली बार नहीं हुआ था और न ही ये अपवाद था लेकिन यह अपने आप में एक अलग स्तर की क्रूरता थी."
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