बायजू की बुलंदी के पीछे का वो 'सच' जिससे कई ग्राहक और कर्मचारी परेशान हैं

  • निखिल इनामदार
  • बीबीसी बिज़नेस संवाददाता
भारत का एडटेक मार्केट

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ऑनलाइन शिक्षा देने वाली कंपनी और दुनिया के सबसे मूल्यवान एडटेक स्टार्ट-अप बायजू की सेवा लेने वाले दिगंबर सिंह का कहना है कि वो महीनों से अपना रिफ़ंड लेने के लिए इस कंपनी के पीछे दौड़ रहे हैं.

पेशे से एकाउंटेंट दिगंबर सिंह ने बताया कि उन्होंने अपने बेटे को गणित और विज्ञान पढ़ाने के लिए बायजू से दो साल का प्रोग्राम ख़रीदा था. इसके लिए उन्होंने बायजू को 5,000 रुपये दिए और उसी से 35,000 रुपये की उधारी भी ली.

सिंह ने बताया, "कंपनी का एक सेल्स रिप्रेज़ेंटेटिव हमारे घर आया. उन्होंने मेरे बेटे से कई कठिन सवाल पूछे, जिनका जवाब वो नहीं दे पाया. उनके आने के बाद हम पूरी तरह से निराश हो गए थे."

इस बारे में उन्होंने बीबीसी को बताया कि बायजू का कोर्स ख़रीदते वक़्त उन्हें शर्मींदगी महसूस हुई. हालांकि उनका दावा है कि उन्हें वैसी सेवा नहीं मिली जिनका वादा उनसे किया गया था.

उन्होंने बताया कि उनसे कहा गया था कि उनके बेटे को आमने-सामने की कोचिंग दी जाएगी और एक काउंसलर की सेवा भी मिलेगी. वो काउंसलर उन्हें उनके बेटे की तरक़्क़ी बताने वाले थे. लेकिन शुरू के कुछ महीनों के बाद बायजू ने उनकी कॉल का जवाब देना बंद कर दिया.

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कंपनी के संस्थापक बायजू रवींद्रन ने 2011 में इस कंपनी की शुरुआत की थी

बायजू ने आरोपों को ग़लत बताया

हालांकि बायजू ने उनके आरोपों को 'निराधार और प्रेरित' क़रार देते हुए बीबीसी को बताया कि दिगंबर सिंह से 'फ़ॉलो-अप पीरियड के दौरान कई बार बात की गई.' उन्होंने बताया कि उनकी पॉलिसी है कि यदि कोई छात्र टैबलेट के साथ लर्निंग मैटेरियल लेने का विकल्प चुने तो 15 दिनों के भीतर वो कभी भी रिफ़ंड ले सकता है और वे उनसे 'बिना कोई प्रश्न पूछे' पैसे लौटा देते हैं.

कंपनी ने बताया कि सिंह ने उनसे प्रॉडक्ट भेजे जाने के दो महीने बाद रिफ़ंड की मांग की थी. हालांकि बीबीसी ने जब दिगंबर सिंह का मामला कंपनी के सामने रखा तो उन्होंने मांगा गया रिफ़ंड उन्हें लौटा दिया.

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बीबीसी ने इस बारे में कई अभिभावकों से बात की और उन सबने बताया कि उनसे जिन सेवाओं का वादा किया गया था, उस पर कभी अमल नहीं किया गया. मतलब बच्चे की तरक़्क़ी आंकने के लिए ट्यूशन और हर बच्चे के लिए एक ट्यूटर कभी नहीं मिला.

कम से कम तीन अलग-अलग मामलों में देश की उपभोक्ता अदालतों ने बायजू को रिफ़ंड लौटाने और सेवाओं की कमी से जुड़े मामलों में ग्राहकों को हर्जाना देने का आदेश सुनाया है.

बायजू ने इस बारे में बीबीसी को बताया कि उन्होंने इन क़ानूनी विवादों में समझौता कर लिया है. कंपनी ने यह भी बताया कि उनकी शिकायत दूर करने की दर 98 फ़ीसदी है.

हालांकि बायजू के पूर्व कर्मचारियों और ग्राहकों के इंटरव्यू के आधार पर बीबीसी ने जो जांच की तो कई आरोप सामने निकलकर आए.

बायजू की सेवाओं से असंतुष्ट अभिभावकों का आरोप है कि उन्हें सेल्स एजेंटों ने गुमराह किया. उन्होंने बताया कि उन्हें कंपनी के एजेंटों ने कॉन्ट्रैक्ट का लालच दिया था. उन एजेंटों ने ये भी कहा कि प्रॉडक्ट की बिक्री के कई महीने बाद ही 'इनकम्यूनिकेडो' में जाने की ज़रूरत होगी और इससे उनके लिए रिफ़ंड पाना मुश्किल हो गया.

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भारत में बेहतर शिक्षा की ज़रूरत को देखते हुए बायजू के सेवाओ की मांग लगातार बढ़ती गई

'कंपनी का सेल्स कल्चर काफ़ी आक्रामक'

वहीं बायजू के एक पूर्व कर्मचारी ने बताया कि एक बार प्रॉडक्ट बिक जाने के बाद कंपनी अपने एजेंटों को फ़ॉलोअप लेने के लिए ज़्यादा ज़ोर नहीं लगाती. इन लोगों ने ये भी बताया कि कंपनी के मैनेजर उन पर प्रॉडक्ट बेचने के लिए काफ़ी दबाव डालते थे.

इनका दावा है कि कंपनी का 'सेल्स कल्चर' काफ़ी दबाव डालने वाले और इसके लक्ष्य बहुत आक्रामक होते हैं. ऑनलाइन कंज़्यूमर और कर्मचारी फ़ोरम पर भी कंपनी के ख़िलाफ़ सैकड़ों शिक़ायतें पड़ी हुई हैं.

हालांकि बायजू ने प्रॉडक्ट 'बेचने की आक्रामक रणनीति' रखने से इनकार किया है. कंपनी ने बताया कि उनका "एम्लॉई कल्चर माता-पिता के प्रति ख़राब व्यवहार की अनुमति नहीं देता." कंपनी के अनुसार, किसी भी दुरुपयोग को रोकने के लिए हर तरह की कड़ी जांच और संतुलन उसके सिस्टम में मौजूद है.

बायजू को 2011 में रवींद्रन बायजू ने स्थापित किया था. इसमें फ़ेसबुक संस्थापक मार्क ज़ुकरबर्ग के 'चैन जुकरबर्ग इनिशिएटिव' और टाइगर ग्लोबल और जनरल अटलांटिक जैसे बड़े निवेशकों का धन लगा हुआ है.

कोरोना महामारी के चलते देश के सभी स्कूल पिछले क़रीब पौने दो साल से लगभग ऑनलाइन हैं. इसके कारण छात्रों को ऑनलाइन क्लासेज़ का रुख़ करने को मज़बूर होना पड़ा. इससे सिंह जैसे लाखों चिंतित अभिभावक बायजू के लिए एक अहम बाज़ार बन गए.

यही वजह है कि कोरोना महामारी शुरू होने के बाद से कंपनी की तरक़्क़ी देखने-सुनने लायक है. कंपनी का दावा है कि इस दौरान उसके 85 फ़ीसदी उपभोक्ताओं ने अपनी सेवाओं का नवीनीकरण कराया और इस दौरान पैसा देकर सेवा लेने वाले ग्राहकों की संख्या में क़रीब 60 लाख की वृद्धि हो गई.

बीबीसी ने इस बारे में कई छात्रों और अभिभावकों से बात की तो उन्होंने बायजू के लर्निंग मैटेरियल की क्वॉलिटी की सराहना की.

भारत जैसे देश में अक्सर रटकर सीखने को आदर्श माना जाता है. ऐसे देश में बायजू को श्रेय दिया जाता है कि उसने तकनीक के ज़रिए अध्ययन सामग्री को आकर्षक बनाकर पेश किया है.

कंपनी का दावा है कि उसे इस उद्योग का सबसे ​अधिक 'नेट प्रमोटर स्कोर' (एनपीएस) मिला हुआ है. इस स्कोर के ज़रिए ग्राहकों का अनुभव मापने के साथ इस कारोबार के विकास का अनुमान भी लगाया जाता है.

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कोरोना के चलते पिछले क़रीब दो साल से स्कूल की पढ़ाई पर काफ़ी असर पड़ा है

कोरोना के दौर में कंपनी ने ख़ूब की तरक़्क़ी

मार्च 2020 में लॉकडाउन के बाद से बायजू ने अब तक एक अरब डॉलर से अधिक धन जुटाया है. इस धन से कंपनी ने अपने एक दर्जन प्रतिस्पर्धियों का अधिग्रहण करते हुए उन्हें बाज़ार से हटा दिया है. ऐसा करते हुए कंपनी कोडिंग क्लास से लेकर तमाम कॉम्पटीशन एग्ज़ाम की तैयारी कराने वाली एक 'अंब्रेला होल्डिंग कंपनी' बन गई है.

बायजू शायद भारत के टीवी चैनलों पर सबसे अधिक दिखने वाला ब्रांड भी है. बॉलीवुड सुपरस्टार शाहरुख़ ख़ान कंपनी के ब्रांड एंबेसडर हैं, जो उसके लिए आकर्षक विज्ञापन अभियान चला रहे हैं.

हालांकि कई जानकारों ने सवाल खड़े किए हैं कि कंपनी की तेज़ तरक़्क़ी क्या उसकी प्रॉडक्ट 'बेचने की आक्रामक रणनीति' का परिणाम है और इस रणनीति के चलते माता-पिता की असुरक्षा और उनके क़र्ज़ दोनों बढ़े.

अभिभावकों का दावा है कि कंपनी की बिक्री रणनीति के तहत उन्हें लगातार कॉल किए गए. कंपनी अपनी रणनीति का इस्तेमाल करके उन्हें समझाती रही कि यदि उन्होंने बायजू के प्रॉडक्ट नहीं ख़रीदे तो उनके बच्चे पीछे छूट जाएंगे.

कंपनी के एक पूर्व कर्मचारी ने बताया कि बायजू का बेसिक कोर्स क़रीब 3,500 रुपये से अधिक का होता है और अधिकांश भारतीयों के लिए इसका ख़र्च उठाना कठिन होता है. उनका कहना है कि कंपनी इसके बावजूद बच्चों की ज़रूरत या उनके परिवार की आर्थिक क्षमता को समझे बिना अपना प्रॉडक्ट आगे बढ़ाती है.

बायजू के पूर्व बिजनेस डेवलपमेंट एसोसिएट नीतीश रॉय ने बीबीसी को बताया, "इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि बच्चे के पिता किसान हैं या रिक्शा चालक. एक ही प्रॉडक्ट को कई क़ीमत के रेंज में बेचा जाता है. यदि हम देखते हैं कि बच्चे के अभिभावक ख़र्च उठाने में लाचार हैं तो हम उनसे उस रेंज की सबसे कम क़ीमत लेते हैं."

बायजू ने बताया कि उनके पास "ग्राहकों की ज़रूरतों और उनकी क्षमता के आधार पर अलग-अलग क़ीमत के अलग-अलग प्रॉडक्ट हैं." उसने दावा किया कि हम "बताए गए तरीक़ों" के अनुसार क़ीमत नहीं बदलते. उसने यह भी कहा कि उसके सेल्स एक्ज़ीक्यूटिव को क़ीमत तय करने का कोई अधिकार नहीं है.

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बायजू रवींद्रन

कंपनी परपूर्व कर्मचारियों के आरोप

कंपनी के कई मौजूदा और पूर्व कर्मचारियों ने भी बीबीसी को बताया कि उन पर अवास्तविक लक्ष्यों को पाने के लिए अक्सर दबाव डाला जाता था. पिछले साल के अंत और इस साल जनवरी में दो ऐसे फ़ोन रिकॉर्ड भी ऑनलाइन सामने आए. इन रिकॉर्ड में कंपनी के गुस्साए मैनेजरों को अपने सेल्स एग्ज़ीक्यूटिव पर लक्ष्य पूरा न करने को लेकर अपमानित करते हुए सुना जा सकता है.

इस बारे में बायजू ने बीबीसी को बताया कि ये बातचीत 18 महीने पहले हुई थी और उसने हालात सुधारने के लिए ज़रूरी क़दम उठाए हैं. ऐसे उपायों के तहत उन मैनेजरों की सेवाएं ख़त्म कर दी गईं.

बीबीसी को दिए एक बयान में बायजू ने कहा, "हमारे संगठन में अपमानित करने वाले और आक्रामक व्यवहार की कोई जगह नहीं है. आपने जिस मामले का ज़िक्ऱ किया उससे जुड़े कर्मचारी हमारे साथ बने रहकर प्रबंधन के ​भरोसे का आनंद ले रहे हैं.''

हालांकि कंपनी के कई कर्मचारियों ने बीबीसी को बताया कि उन पर बिक्री बढ़ाने का दबाव इतना अधिक था कि इससे उनके मानसिक स्वास्थ्य पर भारी असर हुआ. एक सेल्स एग्जीक्यूटिव ने कहा कि बायजू में काम करते हुए उसे एंग्ज़ाइटी हो गई और उनका ब्लडप्रेशर और शुगर काफ़ी बढ़ गया.

कंपनी के कई कर्मचारियों ने बताया कि 12 से 15 घंटे काम करना उनकी नौकरी की एक नियमित पहचान थी. उनके अनुसार, जो स्टाफ़ भावी ग्राहकों के साथ 120 मिनट के "टॉक-टाइम" का लक्ष्य पूरा नहीं करते, उन्हें काम से अनुपस्थित मान लिया जाता. इसका परिणाम ये होता था कि ऐसे स्टाफ़ के उस दिन का वेतन काट लिया जाता था.

बायजू के एक पूर्व कर्मचारी ने कहा, "मेरे साथ ऐसा हफ़्ते में कम से कम दो बार होता. मुझे अपना लक्ष्य पाने के लिए दिन में कम से कम 200 कॉल करना पड़ता था."

उन्होंने बताया कि उस लक्ष्य को पाना बहुत कठिन है क्योंकि उन्हें इसे पाने के लिए कुछ लीड दिए जाएंगे. वहीं एक औसत कॉल अक्सर दो मिनट से कम की होती है.

हालांकि बायजू का कहना है कि लक्ष्य पाने में नाकाम रहने के बारे में उस पर लगाए गए आरोप ग़लत हैं.

कंपनी ने कहा, "सभी संस्थानों के सेल्स टारगेट कठोर लेकिन उचित होते हैं और बायजू कोई अपवाद नहीं है."

बायजू ने ये भी बताया कि स्टाफ़ की सेहत और उनके आराम को ध्यान में रखते हुए कंपनी ने एक मज़बूत ट्रेनिंग प्रोग्राम की पेशकश की है.

कंपनी ने आगे बताया, "हमारे समूह की कंपनियों में हज़ारों कर्मचारी हैं. पहली बार होने वाली घटना को लेकर भी हम उसका तुरंत मूल्यांकन करते हैं और दुर्व्यवहार होने पर सख़्त कार्रवाई करते हैं."

लेकिन अब मुंबई के एक स्कूल में अनाथ बच्चों को पढ़ाने वाले नीतीश रॉय ने बताया कि कंपनी में दो महीने काम करने के बाद उन्होंने इस साल के शुरू में बायजू को छोड़ दिया. ऐसा इसलिए कि वो कंपनी चलाने के तरीक़े से बहुत असहज थे.

उन्होंने कहा, "इसकी शुरुआत एक शानदार कॉन्सेप्ट से हुई थी, पर अब यह आमदनी पैदा करने वाली मशीन बन गई है."

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स्वास्थ्य की तरह शिक्षा को भी सार्वजनिक ज़रूरत बताते हुए जानकारों की राय है कि एडटेक सेक्टर को रेगुलेट करना चाहिए

'एडटेक सेक्टर को रेगुलेट करने की ज़रूरत'

भारत के स्टार्ट-अप पर रिपोर्ट करने वाली मीडिया और रिसर्च कंपनी 'मॉर्निंग कॉन्टेक्स्ट' के सह-संस्थापक प्रदीप साहा ने इस मसले पर बीबीसी से बात की.

उन्होंने बताया कि यह केवल बायजू की नहीं बल्कि पूरे 'एडटेक' क्षेत्र की समस्या है. उनके अनुसार, बढ़ती आलोचनाओं के बावजूद, उन्हें इस हालात में बड़ा बदलाव नहीं दिख रहा.

वो कहते हैं, "जो शिक़ायतें मिली हैं उनमें से अधिकतर सही हैं. लेकिन उनमें से केवल कुछ को ही जगह मिल पाती है. यदि आप इन स्टार्टअप से पैदा हो रहे राजस्व के ख़िलाफ़ इन शिक़ायतों को रखते हैं, तो स्थिति बिल्कुल साफ़ हो जाएगी."

हालांकि इस सेक्टर को रेगुलेट करने की मांग लगातार बढ़ने लगी है.

एंजेल निवेशक और बायजू के बिज़नेस मॉडल के मुखर आलोचक डॉक्टर अनिरुद्ध मालपानी ने इस बारे में बीबीसी से बातचीत की.

मालपानी ने बताया कि भारत के एडटेक स्टार्टअप पर चीन की तरह कार्रवाई करने का समय अब आ गया है. मालूम हो कि हाल में चीन ने ये ज़रूरी कर दिया है कि वहां की ऑनलाइन ट्यूटरिंग कंपनियां लाभ कमाने के लिए काम नहीं करेंगी.

डॉक्टर अनिरुद्ध मालपानी के अनुसार देश में पहले से ही इसका समाधान मौजूद है. उनका कहना है कि भारत सरकार को इस क्षेत्र को रेगुलेट करने के लिए "नेटफ़्लिक्स मॉडल" दोहराना चाहिए. उसमें मासिक सब्सक्रिप्शन मॉडल का ज़िक्ऱ है जबकि न्यूनतम लॉक-इन पीरियड नहीं होता.

हालांकि केंद्र सरकार ने अभी तक कोई क़दम नहीं उठाया है, लेकिन माता-पिता की बढ़ती शिक़ायतों को देखते हुए जल्द ही ऐसा करने की ज़रूरत पड़ सकती है. डॉक्टर मालपानी का कहना है कि वह इस क्षेत्र में सरकारी रेगुलेशन लाने के लिए अदालत जाने की सोच रहे हैं.

उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि हम किसी बिंदु पर ये नहीं भूल सकते कि स्वास्थ्य की तरह शिक्षा भी एक सार्वजनिक ज़रूरत है."

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