नगालैंड में 13 लोगों के मारे जाने पर सेना से ग़ुस्से में लोग- ग्राउंड रिपोर्ट

  • नितिन श्रीवास्तव
  • बीबीसी संवाददाता, नगालैंड के मोन से
मोंगलोंग
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मोंगलोंग

मिट्टी की दीवारों और टीन की छत वाले एक छोटे से घर के बाहर सात नगा औरतें चुपचाप बैठी हैं.

भीतर के कमरे में चारपाई पर बैठी महिला थोड़ी-थोड़ी देर पर अपने मोबाइल पर कुछ तस्वीरें देख कर सिसक उठती है.

जिसके साथ घर बसाने का वादा हुआ था, अब सिर्फ़ उसकी यादें हैं. शादी के दस दिन बाद ही मोंगलोंग ने अपने पति होकुप को दफ़नाया है और रोज़ क़ब्र पर एक गुड़हल का फूल लेकर जाती हैं.

25 साल की मोंगलोंग ने बताया, "रात बारह बजे मैंने उसे मोबाइल पर मैसेज किया, ज़िंदा हो न? जवाब नहीं आने पर मैंने फ़ोन किया तो उसके दोस्त ने उठा कर कहा, इसके हाथ में गोली लगी है. मेरे ज़िद करने पर पति को फ़ोन दिया गया, उसने कहा चोट लगी है. फिर सब ख़त्म हो गया. आगे मेरा क्या होगा".

क्या हुआ था?

होकुप के दम तोड़ने से कुछ घंटे पहले, 4 दिसंबर को, भारतीय सेना की गोलीबारी में उनके गाँव के छह मज़दूरों की मौत हुई थी.

म्यांमार की सीमा से सटे, नगालैंड के मोन ज़िले में, सेना के एक गश्ती दल ने कोयला खदान में काम कर लौट रहे मज़दूरों के एक समूह को उग्रवादी समझकर उन पर गोलीबारी शुरू कर दी थी.

सेना ने इसे "ग़लत पहचान का मामला" बताया है, लेकिन स्थानीय लोगों ने सेना के इस दावे को लगातार ख़ारिज किया है.

मोन ज़िले की घटना के कुछ घंटों बाद ही ओटिंग गाँव के ग़ुस्साए लोगों ने एक फ़ौजी कैंप पर हमला किया. सेना की गोलियों के शिकार हुए सभी छह युवा इसी गाँव से थे.

झड़प के दौरान आठ गाँव वालों के अलावा एक फ़ौजी की भी मौत हुई. गंभीर रूप से घायल दो युवाओं का डिब्रूगढ़ के असम मेडिकल में इलाज चल रहा है लेकिन अस्पताल प्रशासन ने उनसे मिलने की अनुमति नहीं दी.

तनाव

असम के सोनारी से नगालैंड की सीमा में प्रवेश करते ही तनाव साफ़ दिखता है. सुरक्षा बढ़ी हुई है और सिपाहियों ने बीबीसी की टीम को तभी प्रवेश करने दिया जब मोन के नगा काउंसिल प्रमुख से हमने उनकी बात करवाई.

ओटिंग ख़ूबसूरत पहाड़ियों के बीच, ख़ासी ऊँचाई पर बसा हुआ एक गाँव है, जहाँ तक पहुँचने के लिए ज़्यादातर सड़क या तो कच्ची है या फिर टूटी-फूटी.

इलाक़े के लोग कोनयाक ट्राइब हैं और ईसाई धर्म के अनुयायी हैं.

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मोन ज़िले में भारतीय सेना की कार्रवाई और उसके बाद भड़की हिंसा में 15 लोगों की मौत हुई थी

हमारे पहुँचते ही पहले गाँव के क़ब्रिस्तान ले गए, जहाँ 13 नई क़ब्रों में मारे गए युवाओं को दफ़नाया गया है.

अधेड़ उम्र की एक महिला दूसरी क़ब्र पर बिलखते हुए कह रही थी, "मेरा बेटा नांगफो दो साल का था, जब उसके पिता गुज़र गए. मैंने मज़दूरी कर उसे पाला था और सोचा था कि अब वो मेरा सहारा बनेगा".

क़ब्रिस्तान से वापस आते समय मुलाक़ात तिंगाई कोनयाक से हुई जो अब यहाँ से दो घंटे दूर तीरू में रहते हैं लेकिन उनक जन्म ओटिंग में ही हुआ था.

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तिंगाई कोनयाक

उन्होंने कहा, "मैं तीरू से टिजित जा रहा था, जब वहाँ पहुँचा तो घर वालों ने फ़ोन किया कि गोला-बारूद की आवाज़ सुन रहे हो, आप कहाँ और कैसे हैं? हमने कहा हम तो दूसरे रास्ते से आए हैं. अगर हम भी उस दिन उसी रास्ता से आया होता तो आज ज़िंदा नहीं होता".

कुछ दिन पहले तक यहाँ क्रिसमस की तैयारियाँ हो रहीं थी, हर तरफ़ जश्न का माहौल था. ओटिंग के चर्च के ऊपर जगमगाते हुए सितारे और सैंटा के कटआउट्स लगे दिखे.

मगर एकाएक हुई हिंसा ने सबको झझकोर दिया है. ओटिंग गाँव में कुछ परिवार ऐसे हैं, जिनका भविष्य धुँधला दिखता है.

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नेनवांग

तीरू की कोयला खदान में काम करने वाले जुड़वा भाई थापुवांग और लांगवाँग उस ट्रक में थे, जिस पर फ़ौजी टुकड़ी ने गोली चलाई. उनके भाई नेनवांग विकलांग हैं.

उन्होंने बताया, "हमारा परिवार उन दोनों की कमाई से ही चल रहा था. निर्दोष मज़दूरों को ऐसे घात लगाकर मार दिया गया. मुझे और कुछ नहीं चाहिए, बस मेरे भाइयों को वापस ला कर दीजिए".

भारतीय सेना और राज्य सरकार की उच्च स्तरीय जाँच जारी है जबकि केंद्र सरकार ने भी मामले पर अफ़सोस जताया है.

घटना के बाद गृह मंत्री अमित शाह ने संसद को बताया था कि, "निर्णय लिया गया कि सभी सुरक्षा एजेंसियों को ये सुनिश्चहित करना चाहिए कि विद्रोहियों के ख़िलाफ़ अभियान चलाते समय भविष्य में ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटना की पुनरावृति न हो."

नगालैंड ने लंबे समय से उग्रवाद और जातीय हिंसा देखी है.

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ग्रामीणों के साथ बीबीसी संवाददाता नितिन श्रीवास्तव

राज्य में 1950 के दशक से सशस्त्र संघर्ष चल रहा है और इस आंदोलन की मांग है कि नगा लोगों का अपना स्वायत्त क्षेत्र हो. इसमें नगालैंड के अलावा उसके पड़ोसी राज्यों असम, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश के साथ-साथ म्यांमार के नगा-आबादी वाले सभी इलाक़े भी शामिल हों.

पूर्वोत्तर के कई राज्यों की तरह यहाँ पर भी भारतीय सेना को विशेष अधिकार देने वाले क़ानून, AFSPA, के ग़लत इस्तेमाल के आरोप लगते रहे हैं.

आफ़्स्पा यानी सशस्त्र बल विशेषाधिकार क़ानून एक विवादास्पद क़ानून है जो विद्रोहियों के ख़िलाफ़ सुरक्षा बलों को तलाशी और ज़ब्ती का अधिकार देता है. ये क़ानून किसी कार्रवाई के दौरान ग़लती से या ज़रूरी हालात में किसी नागरिक को मार देने वाले सैनिकों को भी बचाता है.

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नगालैंड में क्या हुआ था, अमित शाह ने बताया

आलोचक इस क़ानून को "फर्जी हत्याओं" के लिए दोषी ठहराते हैं और कहते हैं कि अक्सर इसका दुरुपयोग होता है. मोन ज़िले की ताज़ा घटना के बाद से पूर्वोत्तर भारत में AFSPA क़ानून वापस लेने की मांग बढ़ती जा रही है.

ओटिंग गाँव में हमारी मुलाक़ात मोन ज़िले के भारतीय जनता पार्टी नेता होसिया कोनयाक से हुई जो पीड़ित परिवारों से मिलने आए थे.

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मोबाइल में शादी की तस्वीर

उन्होंने कहा, "हम जानते हैं कि सिक्यॉरिटी फ़ोर्सेस इंसानों की सुरक्षा के लिए होती हैं. अमित शाह, गृह मंत्री से कहना चाहते हैं कि ये जो सिक्यॉरिटी एक्ट है ये, उन प्रोफेशनल एक्ट, उन प्रोफेशनल इंटेलिजेन्स इनपुट और पूरी तरह नाकाम है. मासूम पब्लिक को तो ये सीधा मार देता है".

हिंसा के बाद अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संस्था ह्यूमन राइट्स वॉच ने भी भारत सरकार से विवादित AFSPA क़ानून को वापस लेने की अपील की है.

इस बीच पीड़ित परिवारों के लिए केंद्र और राज्य सरकार ने लाखों के मुआवज़े की घोषणा की है. लेकिन जिनके अपने किसी दूसरे की ग़लती का शिकार हुए, उनका नुक़सान कभी पूरा नहीं हो सकेगा.

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