बैंक में जमा पैसों के लिए पांच लाख का बीमा कवर, क्या होगा फायदा
- आलोक जोशी
- वरिष्ठ आर्थिक पत्रकार, बीबीसी हिन्दी के लिए

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उन लोगों के लिए यह बात समझना मुश्किल है जिनके खाते की रकम किसी डूबे हुए बैंक के साथ अटकी नहीं. हालांकि, आज़ादी के बाद से अब तक देश में एक भी शिड्यूल्ड बैंक डूबा नहीं है. लेकिन फिर भी जो कोऑपरेटिव बैंक डूब गए या जो निजी बैंक डूबने की कगार पर पहुंच गए थे उनके ग्राहकों के लिए अपना पैसा वापस पाना बिलकुल पहाड़ चढ़ने जैसा था.
मुंबई के पीएमसी बैंक का किस्सा सबसे ताज़ा है. एक तरह से समझ लें तो बिना नोटबंदी हुए ही उन ग्राहकों के खाते की सारी रकम नोटबंदी की शिकार हो जाती है जिनके बैंक पर मोरेटोरियम लग जाता है या रिजर्व बैंक जिसके कामकाज पर रोक लगा देता है.
पिछले बजट में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने वादा किया था जो पूरा हो चुका है और सरकार ने अब हर बैंक खाते में जमा पांच लाख रुपए तक की रकम पर बीमा कवर दे दिया है.
सरकारी आंकड़ों के हिसाब से देश के 98 प्रतिशत खाताधारक इसी दायरे में आते हैं. यानी सिर्फ दो परसेंट लोग ऐसे हैं जिनके खाते में या किसी एक बैंक में जिनके खातों में पांच लाख रुपए से ज्यादा की रकम है.
अब राहत की खबर यह है कि अगर किसी वजह से उनका बैंक संकट में आ गया तो नब्बे दिन के भीतर ही पांच लाख रुपए तक की रकम ग्राहकों को देने का इंतजाम किया जाएगा. यह कम बड़ी बात नहीं है. न जाने क्यों पिछली सरकारों ने और रिजर्व बैंक ने इससे पहले इस बारे में नहीं सोचा और डिपॉजिट इंश्योरेंस की सीमा बढ़ाने के लिए इतने समय तक इंतजार क्यों करना पड़ा.
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कैसे मिलेगा फायदा
खैर, देर आयद दुरुस्त आयद. कम से कम अब तो गरीब आदमी को बैंक में रखी अपनी रकम की फिक्र में दुबला नहीं होना पड़ेगा. लेकिन यहां उन लोगों को याद करना भी ज़रूरी है जो बैंक डूबने की हालत में सबसे ज्यादा मुसीबत में दिखते हैं.
ऐसे लोग अक्सर रिटायर्ड बुजुर्ग या अकेली महिलाएँ होती हैं जो अपनी भविष्य निधि या रिटायरमेंट के वक़्त मिली ग्रेच्युटी की रकम आधा या एक परसेंट ऊंचे ब्याज के चक्कर में या किसी दोस्त रिश्तेदार के कहने पर बिरादरी वाले कोऑपरेटिव बैंक में जमा कर देते हैं.
वो कितने बुरे फंसते हैं इसका अंदाजा सिर्फ इतने से लगाइए कि पीएमसी बैंक में ऐसे खातेदारों को अपनी पूरी रकम वापस पाने के लिए दस साल तक का इंतजार करना पड़ सकता है.
राहत की खबर बस इतनी है कि उन्हें भी पांच लाख रुपए तक मिल चुके हैं या जल्दी मिल जाएंगे और बाकी रकम भी कभी न कभी मिलने का भरोसा बना हुआ है.
यस बैंक के ग्राहक कुछ ज्यादा भाग्यशाली रहे क्योंकि सरकार ने इसका मैनेजमेंट बदलकर जल्दी से जल्दी बैंक को पटरी पर लाने का काम शुरू कर दिया. लेकिन इसके बावजूद जिस दिन बैंक पर रिजर्व बैंक के एक्शन की खबर आती है, वो ग्राहकों का दिल बैठाने के लिए काफी होती है.
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एक से ज़्यादा बैंकों में पैसा
ऐसे में वित्तीय जानकार काफी समय से सलाह दे रहे हैं कि आपको अपना सारा पैसा किसी एक ही बैंक में नहीं रखना चाहिए.
कम से कम दो बैंकों में पैसा रहेगा तो ऐसी किसी मुसीबत के वक्त आपके लिए एक रास्ता तो खुला रहेगा. दूसरी बात अगर एक ही बैंक में किसी एक शाखा में या अलग-अलग शाखाओं में भी आपके एक से ज्यादा खाते हैं तो ऐसी हालत में आप सब जोड़कर सिर्फ पांच लाख तक की रकम पर ही इंश्योरेंस का लाभ पाएंगे.
हां, अगर एक खाता आपके अपने नाम पर, एक आपके और आपकी पत्नी के साथ संयुक्त खाता, बच्चों के साथ अलग संयुक्त खाता, नाबालिग बच्चे के नामपर माइनर अकाउंट, एचयूएफ का खाता या आपका कारोबार का खाता भी उसी बैंक में है तो इन सबको अलग अलग खाता माना जाएगा और आपको हरेक पर पांच लाख रुपए के इंश्योरेंस का लाभ मिल सकता है. लेकिन फिर भी अगर सब कुछ एक ही बैंक में है तो अचानक नकदी की कमी हो सकती है और उसका इलाज किसी दूसरे बैंक में खाता खोलना ही है.
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पांच लाख का दायरा क्यों
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अब यह सवाल पूछना भी ज़रूरी है कि अगर 98 प्रतिशत खातेदार पांच लाख रुपए से कम ही बैंक में रखते हैं और वो इस स्कीम में कवर हो गए हैं तो फिर सरकार इस स्कीम का दायरा और बढ़ाकर पच्चीस या पचास लाख रुपए क्यों नहीं कर देती. बल्कि आज के दौर में अगर वो इसे एक करोड़ रुपए तक भी कर दे तो मध्यवर्ग के वो सारे लोग सुरक्षित हो जाएंगे जो अपनी बुढ़ापे की जमा पूंजी बैंक में रखकर उसके ब्याज से गुजारा करते हैं.
उम्र बढ़ने के साथ उनके लिए एक बैंक में खाता चलाना ही कम मशक्कत का काम नहीं है, ऐसे में जोखिम से बचने के लिए वो दो बैंकों में खाता रखेंगे उनसे यह उम्मीद करना ही ज्यादती है.
अगर सरकार को लगता है कि ऐसा करने से उसपर बहुत बोझ पड़ जाएगा, तो वो यह भी कर सकती है कि ज्यादा रकम के इंश्योरेंस के लिए कुछ फीस तय कर दे ताकि ग्राहक अपने खाते का बीमा करवा सके. या फिर कम से कम अति बुजुर्ग या सुपर सीनियर सिटिजन्स के लिए ही इस बीमा की रकम बढ़ाने का इंतजाम करे.
इससे वो वर्ग पक्के तौर पर सुरक्षित हो जाएगा जिसे उम्र के आखिरी पड़ाव पर ऐसी सुरक्षा की सबसे ज्यादा ज़रूरत है. प्रधानमंत्री मोदी ने कहा भी है कि बैंकों को बचाने के लिए ज़रूरी है कि खातेदारों के हितों की रक्षा की जाए. जाहिर है जिन खातेदारों की जमापूंजी की रक्षा सबसे ज्यादा जरूरी है उस पर अलग से ध्यान दिया जाना चाहिए.
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थोड़ा और बढ़ने की ज़रूरत
यहां यह याद दिला देना गलत नहीं होगा कि सूचना के अधिकार के तरह इंडियन एक्सप्रेस अखबार ने रिजर्व बैंक से जानकारी हासिल की है कि पिछले वित्तवर्ष में ही बैंकों ने करीब दो लाख करोड़ रुपए के कर्ज को एनपीए घोषित किया है यानी यह रकम उनके पास वापस नहीं आई है और पिछले सात साल में ऐसी रकम करीब पौने ग्यारह लाख करोड़ रुपए हो गई है.
आशंका है कि इनमें से बड़ी रकम बड़े कारोबारियों और उद्योगपतियों के पास ही गई थी. अब अगर मध्यवर्ग को राहत के लिए डिपॉजिट इंश्योरेंस की रकम बढ़ाने की उम्मीद की जा रही है तो क्या गलत है?
लेकिन अगर वो सीमा नहीं भी बढ़ाई जाती है तब भी सरकार की इस बात के लिए तारीफ तो बनती है कि उसने इसे एक लाख से बढ़ाकर पांच लाख किया और पैसा नब्बे दिन में दिलाने का भरोसा भी दिलाया. यानी सही राह पर एक कदम तो उठाया जा चुका है, अब ज़रूरत इस तरफ थोड़ा और बढ़ने की है.
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