तेजस्वी या टोनी नाम में क्या रखा है?: ब्लॉग
- दिव्या आर्य
- बीबीसी संवाददाता

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राष्ट्रीय जनता दल के नेता लालू प्रसाद यादव के कहने पर उनकी बहू का नाम शादी के बाद बदल दिया गया है. 'रेचल' जैसे मुश्किल नाम की जगह 'राजश्री' जैसा सरल नाम रख दिया गया है.
ऐसा खुद रेचल के पति और बिहार के उप-मुख्यमंत्री रहे युवा नेता तेजस्वी यादव ने बिहार में पत्रकारों को बताया.
उन्होंने कहा, "उनका नाम रेचल उर्फ राजश्री है, उन्होंने स्वयं ये नाम रखने का फैसला किया ताकि यहां के लोगों को कहने में, प्रोनाउन्स करने में दिक्कत ना हो, और ये राजश्री नाम हमारे पिता जी ने ही उन्हें दिया है."
एक पत्रकार ने पलट कर पूछा सरनेम क्या रहेगा. तेजस्वी ने फौरन जवाब दिया, "यादव रहेगा, और क्या!".
जब मैंने अपने एक पुरुष मित्र से इसकी चर्चा की तो वो बोला, "नाम में क्या रखा है, उनका निजी फैसला था, सो उन्होंने बदल लिया".
चलिए कुछ देर के लिए मान लेते हैं कि नाम में कुछ नहीं रखा. ना इस बात में कि एक ईसाई नाम को हिन्दू नाम में बदला गया. और आइए कुछ देर के लिए एक अलग निजी फैसला करते हैं और तेजस्वी यादव के मुश्किल नाम को सरल नाम - टोनी - में बदल देते हैं.
इससे रेचल के परिवारवालों को अपने दामाद का नाम लेने में आसानी होगी. ठीक वैसे ही जैसे तेजस्वी यादव के पिता ने कहा कि बिहार के उनके परिवार को 'राजश्री' बोलने में सहूलियत रहेगी.
खुद को नई पीढ़ी और नई सोच का बतानेवाले तेजस्वी को इससे कोई गुरेज़ भी नहीं होगा. दूसरे धर्म में शादी और परंपरा निभाने के लिए 'टोनी यादव' कहलाना पड़े, तो भी क्या.
बल्कि ये भी क्यों ना मान लें कि 'टोनी', एक बहू की ही तरह, अपना सरनेम भी बदलने को तैयार हो जाएंगे.
यानी बचपन से बनी अपनी पहचान को मिटाने में उन्हें ज़रा तकलीफ नहीं होगी. अपने ससुराल में अपनी पत्नी के परिवारवालों के साथ रहने में भी नहीं. अपना पड़ोस या दोस्त छोड़ने में भी नहीं
आख़िर नाम में क्या रखा है?
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परंपरा या स्वेच्छा
शादी के बाद बहू का नाम ससुराल वालों की पसंद के मुताबिक बदल देना कई परिवारों में परंपरागत तरीके से किया जाता रहा है. बहू के नाम में पति का सरनेम जोड़ना और पति के घर में जाकर रहने लगना तो और भी ज़्यादा आम है.
पद्म श्री से सम्मानित लेखिका ऊषा किरन ख़ान के मुताबिक, "हज़ारों हज़ार साल से हमने देखा है कि धर्म को मानने वाले ज़्यादातर लोग स्त्री को दोयम दर्जे का स्थान देते हैं".
"नाम बदलने की उम्मीद भी उन्हीं से की जाती है और धर्म बदलने की भी. इस आधुनिक समय में पढ़े-लिखे होने के बावजूद जो तेजस्वी के मामले में जो हुआ है वो उसी भेड़चाल का हिस्सा है."
'भेड़चाल', परंपरा और धर्म के बीच ये रीतें इतना आम हो गई हैं कि कई औरतें इन्हें नापसंद करने के बावजूद सवाल नहीं उठातीं बल्कि सहजता से खुद को बदली परिस्थिति में ढाल लेती हैं.
यहां तक कि सार्वजनिक मंच पर सफाई भी देती हैं. जैसे प्रियंका चोपड़ा जोनस ने दी थी और कहा था कि, "मैंने अपने नाम को बदला नहीं, उसमें अपने पति का नाम 'जोनस' जोड़ दिया है. ये बीच का रास्ता है ताकि मेरी पहचान भी बनी रहे और मैं अपने मां-बाप की परंपरा का आदर कर सकूं."
यादव परिवार में ब्याही रेचल ने नाम बदलने का फैसला स्वेच्छा से लिया या परंपरा निभाने को ही अपनी इच्छा मान लिया, ये हम नहीं जान पाएंगे क्योंकि उन्होंने मीडिया से कोई बातचीत नहीं की है. फैसले की आवाज़ उनके पति रहे हैं.
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धर्म, राजनीति, परंपरा
कहा जाता है 'पर्सनल इज़ पोलिटिकल' यानी हमारे निजी फै़सले हमारी राजनीतिक समझ और विचारधारा दिखलाते हैं.
और 'टोनी' या तेजस्वी यादव के जीवन के बड़े फै़सले तो निजी हो भी नहीं सकते. वो राजनेता हैं और अपनी पार्टी के शीर्ष पर होने के नाते कुछ मूल्यों का अवलोकन करते हैं.
बिहार विधान सभा में वो विपक्ष के नेता हैं और सार्वजनिक पद पर होने की वजह से उनका आचरण सबकी नज़र में है.
उनकी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, सेक्यूलर मूल्यों की बात करती है और हर व्यक्ति को उसके धर्म के मुताबिक आज़ादी से जीने के अधिकार की बात करती है. औरतों के समान अधिकार की भी बात होती है।
ऐसे में किसी दूसरे धर्म की औरत से शादी के बाद, 'निजी फैसला' बताते हुए उसे अपने धर्म का नाम देना, सवाल खड़े कर सकता है.
क्या ये देश के बदलते माहौल में बहुसंख्यक धर्म के वोटरों को साथ रखने की, दूसरे धर्म में शादी करने के बाद, अपने धर्म के रूढ़ीवादी तबके में स्वीकार्य बने रहने की कोशिश तो नहीं?
उस दौर में जब अंतरजातीय और अंतरधार्मिक रिश्तों के प्रति असहिष्णुता बढ़ी है और कानूनी तौर पर ऐसी शादियां रजिस्टर करवाने की प्रक्रिया और जटिल हुई है.
ऊषा किरन ख़ान मानती हैं कि, "जिनका जीवन सार्वजनिक है, उसमें कुछ निजी नहीं रह जाता. ऐसे में बहुत सी बाधाओं को पार कर इन्होंने कम से कम प्रेम के लिए विवाह तो किया. तो इन्हें उसके लिए थोड़ी छूट मैं दे सकती हूं."
लेकिन लोगों की नज़र में इस अंतरधार्मिक शादी पर भी परंपरा और राजनीतिक महत्वाकांक्षा का साया रहा.
सोशल मीडिया वेबसाइट, ट्विटर पर एक यूज़र ने लिखा, "तो रेचल बन गईं राजश्री!! और ये अल्पसंख्यकों के अधिकारों की बात करते हैं. राजनेताओं की कथनी और करनी के एक होने की उम्मीद करना शायद कुछ ज़्यादा मांग लेने जैसा है."
लगभग इसी वक्त हुई बॉलीवुड अदाकारा कटरीना कैफ और विक्की कौशल की शादी भी दो अलग धर्मों के लोगों और परिवारों के बीच बना संबंध है. लेकिन इस शादी में कटरीना को 'कविता' का नाम नहीं लेना पड़ा.
रेचल के लिए भी शादी का कदम उठाने के लिए अपनी धार्मिक और निजी पहचान पीछे छोड़ना ज़रूरी नहीं होना चाहिए.
बहू को ससुराल की संपत्ति माननेवाली रूढ़िवादी परंपरा को आगे बढ़ानेवाला ये कदम हमें असहज क्यों नहीं करता?
इसे, नाम बदलने के निजी फैसले में सुविधाजनक तरीके से ढांपकर हम अपनी आंखें क्यों बंद कर लेना चाहते हैं?
क्यों ना तेजस्वी से 'टोनी' बनने की कल्पना कर हम ये देखने की कोशिश करें कि नाम में क्या क्या रखा है.
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