बेघर बच्चों के लिए नई आस
- प्रतीक्षा घिल्डियाल
- बीबीसी संवाददाता

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बेघर बच्चों का पुनर्वास एक बड़ी समस्या है
भारत की सड़कों पर क़रीब एक करोड़ से ज़्यादा बच्चे रहते हैं. इनमें से ज़्यादातर ग़रीबी के अलावा शोषण, कुपोषण और नशीले पदार्थों के सेवन के शिकार हैं.
सरकारी और ग़ैर-सरकारी संगठनों के कई प्रयासों के बावजूद इनकी संख्या बढ़ती ही जा रही है.
लेकिन समय-समय पर कुछ अनूठे प्रयासों के द्वारा इनकी स्थिति को बेहतर करने की कोशिश की जाती रही है.
अब एक ऐसा ही प्रयास हो रहा है देश की राजधानी दिल्ली में. एक गै़र-सरकारी संगठन ऐसे कुछ बच्चों को गाइड बनने की ट्रेनिंग दे रहा है जो कभी सड़कों पर रहा करते थे.
इन्हीं में से एक है सतेंद्र शर्मा. 18 साल का सतेंद्र कभी सड़कों पर रहा करता था. लेकिन सलाम बालक संस्था ने इसका पुनर्वास किया और आज ये एक टूर गाइड है.
सतेंद्र बचपन में अपने पिता के उत्पीड़न से तंग आकर घर से भाग आया था और दिल्ली के पहाड़गंज की गलियों में रहा. अब वो इन्हीं गलियों से दुनिया का परिचय करवा रहा है.
वो विदेशी पर्यटकों को पहाड़गंज और नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के आस-पास की गलियों की सैर करवाता है और उन्हें बताता है कि सड़कों पर रहने वाले बच्चों की व्यथा क्या है.
सतेंद्र का कहना है, "मुझे गाइड का काम करने से बहुत आत्मविश्वास मिला है और मेरी अंग्रेज़ी सुधर रही है."
सतेंद्र शर्मा अब टूर गाइड का काम करता है
सतेंद्र को गाइड का काम करने के लिए 8000 रुपए महीना मिलते हैं. इसके अलावा अच्छी-ख़ासी टिप भी.
ब्रिटेन से आईं रेबेक्का रफ़्ल्स कहती हैं, "इस सफ़र पर जाने से मेरी आंखें खुल गई हैं. मैंने दिल्ली की वो तस्वीर देखी जो मैं ख़ुद शायद कभी नहीं देखती."
कनाडा से आए एलेक्स कहते हैं, "जानकर अच्छा लगता है कि इन बच्चों के लिए भी एक उम्मीद की किरण है."
लेकिन क्या विदेशी पर्यटकों को दिल्ली की ऐसी शक्ल दिखाना ठीक है. क्या ये एक तरह से ग़रीबी बेचना नहीं है?
सलाम बालक संस्था की प्रमुख प्रवीण नायर इन बातों का खंडन करते हुए कहती हैं, "ये सारा काम बच्चे ख़ुद ही करते हैं. इससे उन्हें अंग्रेज़ी सीखने का और कंप्यूटर चलाने का अनुभव भी मिलता है. ये उनकी ज़िंदगी बेहतर करने का एक प्रयास है."
सतेंद्र को तो एक नया रास्ता मिल गया है लेकिन लाखों बेघर बच्चों के लिए ज़िंदगी अब भी एक संघर्ष है. भारत एक बढ़ती हुई आर्थिक शक्ति है लेकिन सड़कों पर रहने वाले बच्चों को इसकी बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था का फ़ायदा फ़िलहाल मिलता नज़र नहीं आ रहा.