क़यामत के दिन आप क्या करेंगे?

माया सभ्यता के कैलेंडर में आज के बाद कोई तारीख़ नहीं लिखी है
माया सभ्यता के कैलेंडर के आधार पर कई लोग ये मानने लगे थे कि 21 दिसंबर को दुनिया खत्म हो जाएगी. इन्हीं आशंकाओं के बीच माया सभ्यता के गढ़ मैक्सिको की सरकार ने 'कयामत' का जश्न भी आयोजित कर लिया. वहाँ लाखों पर्यटक पहुंचे.
हालांकि इस बात का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है कि दुनिया ख़त्म होगी या नहीं लेकिन हमने इन्हीं ख़बरों के आधार पर बीबीसी हिंदी के फ़ेसबुक पेज के पाठकों को कल्पना के घोड़े पर सवार होकर बताने को कहा कि अगर वास्तव में दुनिया 21 दिसंबर को ख़त्म हो रही होती तो वे अपना अंतिम दिन कैसे मनाते?
और हमारे पाठकों ने हमें जो जवाब भेजे या हमसे जो बातें बांटी उसे हम यहां लाए हैं आपके लिए.
'मैं अपने जीवन के अंतिम दिन खूब मज़े करुंगा'- ये कहना है चंपालाल मोरवाल प्रजापत का.
जबकि शर्देन्दु पांडे कहते हैं कि 'हम सभी सिर्फ़ एक नज़र यानी प्यार से एक दूसरे की तरफ देखें चाहे वो दो देश हों, दो अलग-अलग जाति के लोग हों या अलग-अलग संप्रदाय के.'
जबकि असीम ख़ान कहते हैं कि 'मरने से पहले मैं किसी को ज़िंदगी की सौगात देकर जाना चाहता हूँ.'
और मोहम्मद फैसल कहते हैं कि 'मौत तो आनी है, पर वो अल्लाह़ देगा माया कैलेंडर नहीं.'
'क़यामत का डर नहीं'
मुकेश पंजियार का कहना है, ''कल कयामत हो या ना हो मगर मैं कल सुबह सबसे पहले भगवान की पूजा करूंगा उसके बाद सपरिवार किसी मंदिर में जाकर यथाशक्ति दान करूँगा, फिर किसी गरीब को भर पेट अपने घर पर भोजन कराऊंगा. अपने सारे दोस्तों से बात करुंगा और जो नहीं मिलेंगे उनसे फोन पर बात करूंगा और अपने सारे रिश्तेदार से बात करूँगा और सारा वक्त अपने माता-पिता, पत्नी और बच्चे के साथ बिताऊंगा.
'ऐसा कुछ भी नहीं होने वाला सो हम आने वाले नए साल के स्वागत के लिए पार्टी मनाएंगे' ये कहना है दिव्या शुक्ला का.
हफीज़ नूरी कहते हैं इस्लाम के मुताबिक 'अभी क़यामत नहीं आ रही है. इसीलिए मैं पूरी ज़िम्मेदारी से कह रही हूं कि क़यामत नहीं आएगी. माया कैलेंडर बक़वास है.'
नौशाद अली और अरमान ख़ान भी इसे बक़वास मानते हैं.
'मैं चाहूँगा इससे पहले मेरी नौकरी लग जाए और मेरी मां के चेहरे पर विजयी मुस्कान हो और वो मुझसे कहे कि बेटा 'यू हैव़ डन इट.' ये कहना है ओम जुएल का.
'मुझे इस बात पर तनिक भी यक़ीन नहीं है और अगर ऐसा होता भी है तो हमें कोई चिंता नहीं है', ये कहना है गिरिजेश त्रिपाठी का.
रविरंजन कहते हैं कि हमें आनंद फिल्म के उस डायलॉग का अनुसरण करना चाहिए, ''बाबु मोशाय ज़िंदगी लंबी नहीं बल्कि बड़ी होनी चाहिए.''
'मुझे इन बातों में तनिक भी दम नही लगता किंतु कल्पना की बात है तो दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ खूब मज़े करना चाहता हूँ. संसार की हर उस वस्तु का उपयोग करना चाहता हूँ जिसका मैनें अभी तक उपयोग नही किया है, पूरी दूनिया से बोल के अलविदा लेना चाहूंगा'- ये कहना है भिनयाराम खोट का.
सतपाल ठक्कर का कहते हैं, ''डर पैदा मत कीजिए हमारे गाँव मे भी ये अफवाह़ की आँधी चल रही है, बच्चे व अनपढ़ औरतें भयभीत हैं.''
संजीव यादव कहते हैं कि हमें बड़ा आश्चर्य है बीबीसी ये अफवाह फैला रहा है और हमसे हमारी अंतिम इच्छा पूछ रहा है.
धर्माराज थेगिम का मानना है कि मौत किसी के ससुराल से दहेज में मिलने वाला सामान नहीं जो शोर और बारात सौगात बनकर हमारे घरों तक आएगी.
क़यामत के दिन की आशंका पश्चिमी देशों के मुक़ाबले भारत में कम दिखा
और हमेशा की तरह से हमारे नियमित पाठक नवल जोशी की राय थोड़ी अलग है ये कहते हैं, ''सामूहिक रुप से इस तरह धीरे-धीरे मौत के नज़दीक होते जाना यह एहसास सचमुच नया और कुछ हद तक मज़ेदार भी है. इस तरह मरने का एहसास कुछ नये किस्म का होगा, अधिकतर लोग मरने के बाद फिर से जन्म होगा यह उम्मीद लेकर ही मरते हैं तो कुछ प्रलय या क़यामत का ख्य़ाल लेकर मरते हैं कि कम से कम उस दिन तो फिर से जी लेगें. ''
अभिषेक कुमार कहते हैं मैं बीबीसी हिंदी के वेबसाइट पन्ने को अपने अंत समय तक पढ़ते रहना चाहूँगा. जुगनू वार्ष्णेय चाहते हैं कि नेकी पर चलें ताकि हँसते हुए निकले दम.
विजय पवार अपने परिवार के साथ अंतिम पलों को बिताना चाहते हैं वहीं मोमिन खां कहते हैं नमाज़ पढ़ते हुए.