सरबजीत सिंह: कब क्या हुआ

सरबजीत सिंह को 1990 में पाकिस्तान के लाहौर और फ़ैसलाबाद में हुए चार बम धमाकों के आरोप में गिरफ़्तार किया गया था. इन धमाकों में क़रीब 10 लोगों की मौत हो गई थी.
आइए जानते हैं कि सरबजीत सिंह के साथ कब और क्या हुआ.
अगस्त 1990 : सरबजीत सिंह को मनजीत सिंह के नाम से भारत से लगती कौसर सीमा पर गिरफ्तार किया गया. सरबजीत ने तर्क दिया कि वे भारतीय पंजाब के तरन तारन के निवासी हैं और पेशे से किसान हैं.
उनका कहना था कि वे गलती से सीमा पार कर पाकिस्तान पहुंच गए थे.
अकतूबर 1990: सरबजीत पर जासूसी और बम धमाके कराने का आरोप लगा. लाहौर की एक अदालत में मुक़दमा चला. इस अदालत ने उन्हें मौत की सज़ा सुनाई. निचली अदालत के इस फैसले पर हाई कोर्ट ने भी अपनी मुहर लगा दी.
दया याचिका खारिज
मार्च 2006: पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट ने सरबजीत की दया याचिका खारिज करते हुए उन्हें सुनाई गई मौत की सजा को बरकरार रखा.
मार्च 2008: सरबजीत सिंह ने पाकिस्तान के राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के यहां दया याचिक दायर की. उनकी यह याचिका खारिज कर दी गई. पाकिस्तान की समाचार एजेंसियों के हवाले से खबर आई कि सरबजीत सिंह को एक अप्रैल को फांसी दे दी जाएगी. लेकिन 19 मार्च को आई खबर में बताया गया कि सरबजीत की फांसी पर 30 अप्रैल तक के लिए रोक लगा दी गई है.
भारत के तत्कालीन विदेश मंत्री प्रणब मुखर्जी ने संसद को बताया कि सरबजीत सिंह की फाँसी 30 अप्रैल तक के लिए टाल दी गई है.
इसी साल पाकिस्तान में मानवाधिकार मामलों के पूर्व मंत्री अंसार बर्नी ने राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ के पास एक सरबजीत की एक दया याचिका दायर की. बर्नी ने उनसे अपील की कि सरबजीत की मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया जाए या उन्हें रिहा कर दिया जाए.
साल 2011: सरबजीत सिंह का मामला एक बार फिर पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा. उनके पाकिस्तानी वकील ओवैश शेख ने असली आरोपी मनजीत सिंह के खिलाफ जुटाए तमाम सबूत पेश करते हुए मामला फिर से खोलने की अपील की.
उन्होंने दावा किया कि सरबजीत सिंह बेगुनाह हैं और वो मनजीत सिंह के किए की सजा काट रहे हैं.
ओवैश शेख का कहना था सरबजीत को 1990 की मई-जून में कराची बम धमाकों का अभियुक्त बनाया गया है, जबकि वास्तव में 27 जुलाई 1990 को दर्ज एफआईआर में मनजीत सिंह को इन धमाकों का अभियुक्त बताया गया है.
पाकिस्तान का कहना था कि सरबजीत ही मनजीत सिंह है, जिन्होने बम धमाकों को अंजाम दिया था.
रिहाई की अपील
मई 2012: भारत की एक जेल में बंद पाकिस्तानी नागरिक खलील चिश्ती को सुप्रीम कोर्ट ने छह महीने के लिए पाकिस्तान जाने की इजाजत दी. इसके भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष न्यायमूर्ति मार्कंडेय काटजू ने पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी से सरबजीत सिंह को रिहा करने की अपील की.
इसी महीने में सरबजीत सिंह ने राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के पास पांचवी दया याचिका दायर की.
जून 2012: पाकिस्तानी राष्ट्रपति ने सरबजीत की मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया, अधिकारियों ने कहा कि भारत से कैदी की अदला-बदली के तहत सरबजीत सिंह को रिहा किया जाएगा.लेकिन बाद में अधिकारियों ने कहा कि सरबजीत को नहीं बल्कि सुरजीत सिंह को रिहा किया जाएगा.
सुरजीत सिंह को 1980 में जासूसी के आरोप में गिरफ़्तार किया गया था.
अगस्त 2012: सरबजीत सिंह ने राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के पास नई दया याचिका दायर की.
अप्रैल 2013: लाहौर की कोट लखपत जेल में छह क़ैदियों ने सरबजीत सिंह पर ईंट और धारदार हथियार से हमला किया. इस हमले में उनके सिर में गंभीर चोटें आईं और वे कोमा में चले गए. उनका लाहौर के जिन्ना अस्पताल में इलाज चल रहा था.इलाज के दौरान ही उनकी मौत हो गई.