अगस्ता वेस्टलैंड सौदा रद्द होने से 'भारत की साख पर असर'

अगस्ता वेस्टलैंड हेलिकॉप्टर सौदा रद्द करना भारत के लिए काफ़ी मुश्किलें पैदा कर सकता है.
भारत ने 3600 करोड़ रुपये के 12 हेलिकॉप्टर ख़रीदे थे जिनमें से तीन पिछले साल दिंसबर में ही मिल गए हैं, नौ आने बाकी थे.
अब यह मामला अंतरराष्ट्रीय पंचाट में चला गया है और बहुत संभव है कि अगस्ता वेस्टलैंड इस मामले में कानूनी कार्रवाई भी करे. वह दिल्ली हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में जा सकती है.
अगस्ता वेस्टलैंड कंपनी का यह कदम मामले को और उलझा देगा क्योंकि इसके एक तिहाई पैसे दिए जा चुके हैं, दो तिहाई दिए जाने हैं. भारत के लिए यह मामला अब और उलझ जाएगा.
अंतरराष्ट्रीय पंचाट
इस मामले को अंतरराष्ट्रीय पंचाट में जाना ही है. इसके लिए दोनों पक्षों के राज़ी होने की शर्त नहीं है. इसे कहते हैं आर्बिट्रेशन आउटलेट्स कैंसिलेशन- इसके तहत मामला पंचाट में जाना ही है.
पंचाट में तीन सदस्य नियुक्त किए जाते हैं. एक भारत के रक्षा मंत्रालय की ओर से, दूसरा अगस्ता वेस्टलैंड की ओर से और तीसरा आपसी सहमति से.
अगर किसी व्यक्ति पर आपसी सहमति नहीं बन पाती है तो फ्रांस में स्थित अंतरराष्ट्रीय पंचाट के मुख्यालय की ओर से सदस्य नियुक्त किया जाता है.
अंतरराष्ट्रीय पंचाट में यह मामला वर्षों चल सकता है और उसका फ़ैसला भारत और अगस्ता वेस्टलैंड पर बाध्यकारी होगा. इसीलिए यह तय है कि स्थिति अभी और ज़्यादा उलझेगी.
साख पर असर
यह सौदा रद्द होने से भारत की साख पर भी बहुत असर पड़ेगा. यह सौदा अभी चल रहा था इसमें पैसा दिया जाना बाकी था, हेलिकॉप्टरों की आपूर्ति की जा रही थी.
भारत को अभी और भी बहुत हथियार ख़रीदने हैं. इस मामले का उन पर भी असर होगा.
यह मामला इसलिए भी और ज़्यादा उलझा हुआ है क्योंकि कंपनी इन हेलिकॉप्टरों को वापस लेगी नहीं और एयरफ़ोर्स इन्हें चला नहीं सकती. क्योंकि इन तीन हेलिकॉप्टरों को चलाने के लिए भी उसे कलपुर्ज़े चाहिए होंगे, उसे सर्विसिंग और बैकअप चाहिए होगा.
तो एयरफ़ोर्स के लिए यह एक बेहद मुश्किल सवाल यह होगा कि वह इन हेलिकॉप्टरों का क्या करे?
चुनाव का असर?
यह सही बात है कि चुनाव आ रहे हैं तो भारत यह दिखाना चाहता है या यूपीए सरकार यह दिखाना चाहती है कि वह एकदम साफ़-सुथरे ढंग से सौदे करती है. अगर कोई गड़बड़ी की आशंका हो तो वह इसे रद्द कर देती है.
अभी इस मामले की इटली में जांच चल रही है और सीबीआई भी मामले की जांच कर रही है. तो ऐसे में इस मामले को रद्द करना जल्दबाज़ी लगती है और लगता है कि यह राजनीतिक वजहों से किया गया है.
भारत क्या कर सकता था?
भारत ने यह पहला सौदा तो किया नहीं है, न ही यह पहला सौदा है जो अंतरराष्ट्रीय पंचाट में गया है. बहुत से फ़ैसले पंचाट में गए हैं कुछ का फ़ैसला हुआ है और कुछ पर पंचाट में इतना पैसा ख़र्च हो गया है कि जो कुल सौदे से भी ज़्यादा था. दरअसल पंचाट में केस लड़ना एक बेहद महंगी प्रक्रिया है.
लेकिन भारत के रक्षा मंत्रालय का कहना है कि जो अनुबंध (ईमानदारी का) किया जाता है उसमें साफ़ कहा जाता है कि कंपनी ने कोई एजेंट नहीं रखा या कोई ग़लत बात नहीं की. अगर यह साबित हो जाता है कि इस अनुबंध का उल्लंघन हुआ है तो सौदा अपने-आप रद्द हो जाता है.
लेकिन अगर मामले की जांच चल रही है तो यह साबित कैसे हो सकता है?
इसके अलावा पिछले साल जून-जुलाई में संसदीय कार्यमंत्री कमलनाथ ने कहा था कि इस सौदे की जांच के लिए एक संयुक्त संसदीय समिति बनाई जाएगी. लेकिन अभी तक न तो समिति बनी और न ही उसके सदस्य तय हुए.
तो यह फ़ैसला बहुत जल्दबाज़ी में लिया गया फ़ैसला है. अभी कोई नहीं कह सकता कि हेराफ़ेरी हुई या नहीं हुई. यह तो जांच के बाद ही पता लगेगा लेकिन अगर आप जांच करवाए बिना ऐसे फ़ैसले लेने लगेंगे तो इसका भारत की साख पर बहुत ख़राब असर होगा.
(बीबीसी संवाददाता विनीत खरे से बातचीत पर आधारित.)
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