जब ध्यानचंद ने ठुकराई हिटलर की पेशकश

हॉकी के जादूगर कहे जाने वाले मेजर ध्यानचंद जितना अपने खेल के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध रहे उतना ही हिटलर की पेशकश ठुकराने की वजह से भी.
शुक्रवार को उनका 109वां जन्मदिन है और इस दिन को भारत में खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है.
ध्यानचंद की ख्याति का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जाता है कि बर्लिन ओलंपिक के 36 वर्षों बाद जब उनके बेटे अशोक कुमार हॉकी खेलने जर्मनी पहुंचे तो उनसे मिलने एक व्यक्ति स्ट्रेचर पर पहुंचा था.
पद्मभूषण से सम्मानित ध्यानचंद को अब भारत रत्न देने की मांग ज़ोर पकड़ने लगी है.
पढ़ें ध्यानचंद पर ख़ास रिपोर्ट
29 अगस्त 1905 को जन्मे ध्यानचंद को आज भी दुनिया के बेहतरीन खिलाड़ियों में से एक माना जाता है.
उन्हें इस खेल में वही मुक़ाम हासिल है जो मुक्केबाज़ी में मोहम्मद अली, फुटबॉल में पेले और क्रिकेट में डॉन ब्रैडमैन को हासिल है.
ध्यानचंद ने 1928 में एम्सटर्डम, 1932 में लॉस एंजेलिस और 1936 के बर्लिन ओलंपिक खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाली भारतीय हॉकी टीम का नेतृत्व किया.
उनके बारे में अनेक किवंदतियां मशहूर हैं, लेकिन 1936 में बर्लिन ओलंपिक खेलों के दौरान जर्मनी के तानाशाह हिटलर के प्रस्ताव को ठुकराने के लिए विशेष तौर पर उन्हें याद किया जाता है.
हिटलर को इनकार
उनके खेल से प्रभावित होकर हिटलर ने उन्हें सेना में सबसे ऊंचे पद का प्रस्ताव दिया, लेकिन उन्होंने विनम्रता के साथ यह कहकर इसे ठुकरा दिया, ''मैंने भारत का नमक खाया है, मैं भारत के लिए ही खेलूंगा.'' तब ध्यानचंद लांस नायक थे.
उनके बेटे अशोक कुमार के ज़ेहन में भी पिता ध्यानचंद की अनेक यादें समाई हैं.
अशोक भी हॉकी खिलाड़ी रहे हैं और उनके गोल की मदद से भारत ने 1975 में पाकिस्तान को हराकर विश्व कप हॉकी टूर्नामेंट जीता था.
बीबीसी से ख़ास बातचीत में उन्होंने बताया कि 1972 में एक बार जब भारतीय हॉकी टीम जर्मनी दौरे पर अभ्यास कर रही थी, तभी स्ट्रेचर पर एक शख़्स को कुछ लोग लेकर आए.
वो बताते हैं, ''उन्होंने मेरा पता लगाकर, मुझे 1936 बर्लिन ओलंपिक के दौरान अख़बारों की कतरनें दिखाते हुए कहा कि ऐसे थे आपके पिता.''
पद्ममभूषण
अशोक कुमार कहते हैं, ''उस समय ध्यानचंद में क्या ख़ासियत रही होगी कि उस ज़माने में जब वो ब्रिटिश आर्मी में थे, सिपाही से मेजर बने, वह भी तब जब वह ग़ुलाम देश के निवासी थे.''
अनके बार ध्यानचंद की स्टिक को यह कहकर बदलवाया गया कि कहीं इसमें चुंबक तो नहीं लगा है.
हॉकी के इस महान खिलाड़ी का निधन तीन दिसम्बर 1979 को दिल्ली में हुआ. उन्हें खेल जगत में उल्लेखनीय सेवाओं के लिए 1956 में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया.
अब उनको भारत देने की मांग ज़ोर पकड़ने लगी है. केंद्रीय गृह राज्य मंत्री किरण रिजुजु ने भी कहा है कि इस साल के 'भारत रत्न' के लिए ध्यानचंद के नाम की सिफ़ारिश की गई है.
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