विदेशी मेहमानों की मास्टरनी
- श्वेता पांडेय
- मुंबई से बीबीसी हिंदी डॉट कॉम के लिए

इमेज स्रोत, PALLAVI SINGH
किसी कैफ़े में कुछ युवाओं को मस्ती करते हुए, कुछ को लैपटॉप पर काम करते हुए या पढ़ते हुए देखना एक आम बात है.
लेकिन किसी दिन आपको कैफ़े के एक कोने में 23 साल की एक लड़की कुछ विदेशियों को हिंदी सिखाती दिखाई पड़े तो नज़ारा कुछ ख़ास हो जाता है और यह नज़ारा इन दिनों मुंबई के किसी कैफ़े, ऑफ़िस या पार्क में आपको दिख जाएगा.
विदेशी मेहमानों को हिंदी सिखाने वाली इस लड़की का नाम है पल्लवी सिंह.
दिल्ली की रहने वाली पल्लवी पिछले दो सालों से मुंबई में हैं और यहां वो साइकोलॉजी विषय में मास्टर्स कर रही हैं.
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लेकिन ये तो सिर्फ़ पढ़ाई का माध्यम है असल में तो वो भारत आने वाले विदेशी पर्यटकों को हिंदी सिखाने का काम करती हैं.
हिंदी सिखाने का उनका तरीका भी नायाब है. वो व्याकरण वाली हिंदी नहीं बल्कि व्यावहारिक हिंदी सिखाती हैं. ये वो भाषा है जिसे उनके छात्र आम जीवन में इस्तेमाल कर सकें.
पल्लवी बताती हैं, “मेरे विद्यार्थी मुझसे बाज़ार में मोलभाव के लिए शब्द सीखना चाहते हैं. पोटैटो, कैरट, बनाना को हिंदी में क्या कहेंगे ये जानना चाहते हैं ताकि कोई उन्हें बेवकूफ़ न बना सके.”
घर से दूर ले आई हिंदी
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हिंदी सिखाने का काम पल्लवी ने दिल्ली में अपने ग्रेजुएशन के दिनों में शुरू कर दिया था और फिर यही काम उन्हें मुंबई ले आया.
वो बताती हैं, “मेरे माता-पिता रक्षा मंत्रालय में अच्छे पदों पर काम करते हैं और मैं भी उनके नक्शे कदम पर चल सकती थी लेकिन मैंने अपने दम पर कुछ करने की ठानी. इसलिए मैंने अकेले यहां मुंबई में रहना पसंद किया.”
पल्लवी ने यूं तो हिंदी की कोई डिग्री नहीं ली है लेकिन विदेशियों को हिंदी सिखाने के लिए उन्होंने अपना अलग मॉड्यूल बनाया है.
वो अक्षर, रंग पहचानने से लेकर छोटी मोटी व्याकरण तक की जानकारी देती हैं. साथ ही कुछ हिंदी फ़िल्मों की डीवीडी भी देती हैं.
पल्लवी कहती हैं, “हिंदी सीखने के लिए बॉलीवुड की फ़िल्मों से अच्छा कुछ हो ही नहीं सकता. जितनी अच्छी हिंदी अमिताभ बच्चन सिखा सकते हैं, मैं तो नहीं.”
कहां होती हैं कक्षाएं
पल्लवी ने अपने छात्रों को इकट्ठा करने के लिए एक फ़ेसबुक पेज बनाया और उसे अपने दोस्तों के साथ शेयर किया.
साथ ही जिन विदेशी छात्रों को वो जानती थीं, उन्हें अपनी इस योजना के बारे में भी बताया.
धीरे-धीरे कामचलाऊ हिन्दी सीखने के लिए छात्रों से उनका संपर्क होता गया.
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पल्लवी के पास अपनी कक्षा लेने के लिए कोई इंस्टीट्यूट नहीं है. ऐसे में वो कभी किसी रेस्तरां में तो कभी किसी छात्र के ऑफिस या घर पर भी चली जाती हैं.
पार्क हो या बस अड्डा पल्लवी की कामचलाऊ हिंदी की कक्षाएं कहीं भी शुरू हो जाती हैं.
“मैंने चलती हुई बस में भी क्लास दी है और इसलिए मैं अपने हिंदी सिखाने का मॉड्यूल अपने क्लच पर्स में लेकर चलती हूं. पता नहीं कब ज़रूरत पड़ जाए.”
पल्लवी की हिंदी कक्षाओं का सबसे रोचक क्षण तब आता है जब छात्र उनसे गालियां सीखना चाहते हैं.
वो बताती हैं, “मेरी एक छात्रा ने मुझसे उसे हिंदी और मराठी की गालियां सिखाने के लिए बोला, उसका कहना था कि जब कोई उसे छेड़ता है तो वो उसे उसी की भाषा में गाली देना चाहती है.”
पल्लवी कहती हैं कि चूंकि गालियां भी रोज़मर्रा के जीवन का हिस्सा है इसलिए ये भी सिखा दी जाती हैं.
अब पल्लवी अपने इस ‘यूनीक हिंदी’ स्कूल को आगे ले जाने कि फ़िराक में हैं और दिल्ली में दूतावासों में आने वाले और काम के लिए दिल्ली में रहने वाले विदेशियों को हिंदी सिखाने की कोशिश करेंगी.
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