'एक मुसलमान का कुचिपुड़ी सीखना चुनौती'

हलीम ख़ान जब स्टेज पर परफ़ॉर्मेंस देने आते हैं तो कोई नहीं कह सकता कि महिला रूप में दरअसल एक आदमी है. हैदराबाद के रहने वाले हलीम ख़ान एक कुचिपुड़ी डांसर हैं.
वह बताते हैं, "बचपन में डांस के प्रति लगाव को जब हमने अपने अम्मा और अप्पा को बताया तो उनका कहना था कि इसको हमारे यहाँ बुरा मानते हैं.''
लेकिन बचपन से ही डांस के प्रति ऐसी दीवानगी रही कि माता-पिता के मना करने के बावजूद हलीम दो ट्यूशन के बीच में डांस सीखने जाते थे. यह सिलसिला आठ साल तक चलता रहा.
डांस में इस्तेमाल किए जाने वाले घुंघरू वह दोस्त के घर रखते थे, ''इस बारे में तो ज़्यादातर दोस्तों को पता था न ही घर वालों को.''
'पागल समझते थे'
बचपन में किसी को समझ नहीं आता था कि वह क्या कर रहे हैं.
इस बात को याद करते हुए हलीम कहते हैं, ''सब समझते थे कि मैं पागल हूँ, किसी को बता नहीं पाया कि मैं क्या करता हूं. हिंदू देवी-देवताओं की कहानी पढ़ना और शिव की वंदना करना यह पहले सीखा है तब जाकर उसको आत्मसात किया है.''
इसके लिए सबसे पहले खुद के साथ जिद करनी पड़ी, ''हिंदू देवी-देवताओं की कहानी को मन से स्वीकार करना और इनकी कहानी पर सच्चे दिल से से विश्वास करना था. इसके लिए पहले खुद को मनाया.''
'गुरु और माता-पिता'
इसके बाद बारी आई गुरु को मनाने की. कई चक्कर लगाने के बाद ही गुरु माने.
एक मुसलमान होते हुए कुचिपुड़ी सीखना एक चुनौती तो थी ही लेकिन मुश्किलें कई और थीं.
परिवार के ऐतराज़ों को दूर करना और उन्हें मनाना एक और चुनौती थी, जिससे उन्हें पार पाना था.
लेकिन अब उनके माता-पिता खुश हैं. अब वह जानते हैं कि हलीम एक कुचिपुड़ी डांसर हैं. आज हलीम भी गर्व से कहते हैं कि वह हिंदू कहानी जानते हैं.
पाकिस्तान में परफ़ॉर्मेंस
पाकिस्तान जाने का मौका आया तो माँ बाप ने मना किया कि पाकिस्तान मत जाओ. लेकिन हलीम गए. लाहौर में उनकी परफ़ॉर्मेंस को लोगों की अच्छी प्रतिक्रिया मिली.
पाकिस्तान में कुचिपुड़ी डांस की कहानी उर्दू में कही गई.
हलीम ने अब तक 800 से जादा परफॉर्मेंस की हैं. उन्होंने कुचिपुड़ी डांस की डीवीडी बनाई, ताकि लोग डांस सीख सके. वह इस पर डॉक्यूमेंट्री भी बना रहे हैं.
उनकी की ख्वाहिश है कि वे दुनिया को बताएं कि डांस क्या है. वह हर भाषा में काम करना चाहते हैं, कहते हैं कि डांस को किसी भाषा या धर्म में बांधना ठीक नहीं है.
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