पेरिस समझौते को भारत की मंज़ूरी का मतलब

  • नवीन सिंह खड़का
  • पर्यावरण संवाददाता, बीबीसी वर्ल्ड सर्विस
फ़ैक्ट्री से निकलता धुआं

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पेरिस में 191 देशों के बीच जलवायु परिवर्तन पर बनी सहमति के क़रीब एक साल बाद भारत ने इसे अपनी मंज़ूरी दे दी है.

यह समझौता मूल रूप से वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने से जुड़ा है.

पेरिस समझौता सभी देशों को वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रखने की कोशिश करने के लिए भी कहता है. यह मांग ग़रीब और बेहद ग़रीब देशों की ओर से रखी गई थी.

वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि 2 डिग्री से ऊपर के तापमान से धरती की जलवायु में बड़ा बदलाव हो सकता है. जिसके असर से समुद्र तल की ऊंचाई बढ़ना, बाढ़, ज़मीन धंसने, सूखा, जंगलों में आग जैसी आपदाएं बढ़ सकती हैं.

वैसे भी औद्योगिकीकरण शुरू होने के बाद से धरती का तापमान एक डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है.

वैज्ञानिक इसके लिए ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को ज़िम्मेदार मानते हैं. ये गैस इंसानी ज़रूरतों, जैसे; बिजली उत्पादन, गाड़ियाँ, फ़ैक्टरी और बाक़ी कई वजहों से पैदा होती हैं.

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इस दौरान जो गैस उत्सर्जित होती हैं, उनमें मूल रूप से कार्बन डायऑक्साइड शामिल है. यह गैस धरती के वायुमंडल में डरावने तौर पर जमा हो रही है. कार्बन डायऑक्साइड ही सूरज से आने वाले तापमान को सोखकर धरती के तापमान को बढ़ाती है, जिसकी वजह से जलवायु में परिवर्तन हो रहा है.

पेरिस समझौते के मुताबिक़ दुनिया के क़रीब 55 फ़ीसदी कार्बन उत्सर्जन करने वाले देशों को इसे मानना है.

भारत से पहले 61 देशों ने इस समझौते को अपनी मंजूरी दे दी है, जो क़रीब क़रीब 48 फ़ीसदी कार्बन उत्सर्जन करते हैं.

भारत की मंज़ूरी के बाद यह आंकड़ा ज़रूरी सीमा के क़रीब पहुंच गया है क्योंकि दुनिया भर के कार्बन उत्सर्जन का लगभग सात फ़ीसदी भारत ही उत्सर्जित करता है.

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चीन और अमरीका के बाद भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कार्बन उत्सर्जन करने वाला देश है. उन दोनों देशों ने पहले ही इस समझौते को मंज़ूरी दे दी है.

जहां तक प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन की बात है, तो भारत का इसमें दसवां स्थान है. भारत का हर व्यक्ति 2.5 टन से कम कार्बन डायऑक्साइड का उत्सर्जन करता है.

इसमें अमरीका पहले नंबर पर है, जहां हर आदमी क़रीब 20 टन कार्बन उत्सर्जन करता है.

भारत ने संयुक्त राष्ट्र से 2005 की तुलना में 2030 तक ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन की सीमा को 35 फ़ीसदी तक बढ़ाए जाने की मांग की है.

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भारत ने संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन को सौंपी अपनी योजना में कहा है कि वो 40 फ़ीसदी बिजली का उत्पादन गैर जीवाश्म ईंधनों से करेगा.

इसमें कहा गया है कि भारत ने भविष्य में सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा के ज़रिए सबसे ज़्यादा बिजली उत्पादन को लक्ष्य बनाया है.

भारत ने पेरिस जलवायु समझौते को अपनी मंज़ूरी देने के लिए महात्मा गांधी की जयंती को चुना है, जो कि सतत विकास के समर्थक थे.

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हालांकि भारत ने कोयले के उत्पादन को दोगुना करने की योजना बनाई है, जो कि सालाना एक अरब टन से भी ज़्यादा है. कोयला जीवाश्म ईंधनों में सबसे ज़्यादा प्रदूषण फैलाता है जिसकी वजह से भारत की योजना एक बड़े विवाद का भी मुद्दा है.

तेज़ी से विकास कर रहे दूसरे देशों की तरह भारत ने कहा है कि उसे विकास कार्यों के लिए कोयले की ज़रूरत है, जो कि सस्ता ईंधन होता है, इसलिए विकसित देशों को अपने कार्बन उत्सर्जन में बड़ी कटौती करनी चाहिए.

वहीं विकसित देशों का कहना है कि चीन और भारत जैसे विकासशील देशों को भी अपने कार्बन उत्सर्जन में बड़ी कटौती करनी होगी, ताकि जलवायु परिवर्तन पर हुए समझौते का मक़सद पूरा हो सके.

मूल रूप से पेरिस जलवायु समझौते को मानने की कोई कानूनी बाध्यता नहीं है. इसके अलावा किसी देश ने अपने कार्बन उत्सर्जन में कितनी कटौती की है, इसकी जांच का भी कोई तरीका अभी तक मौजूद नहीं है.

इसलिए आलोचकों के मुताबिक, जब तक कि ऐसा नहीं हो जाता है, पेरिस समझौता काग़ज़ों तक ही सीमित रहेगा.

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