भारत और पाकिस्तान में आप बोर नहीं होंगे
- वुसतुल्लाह ख़ान
- पाकिस्तान से बीबीसी हिंदी डॉटकॉम के लिए

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यूं समझिए कि मैंने ब्रिटेन के जीवन के 12 वर्ष गुजारे नहीं, काटे. लेकिन जी एक दिन भी नहीं लगा.
अख़बार फीके सीठे, ना मार कुटाई, ना स्कैंडल की भरमार. टीवी चैनलों में कोई मिर्च मसाला नहीं. गाली गलौच नहीं, कुत्ता जलील नहीं.
ना पुलिस एनकाउंटर और ना पैलेट गन. ना ब्रितानिया और किसी यूरोपीय हमसाये के बीच घटिया विज्ञापनों का मैच.
ऐसे माहौल में भला मुझ जैसे शरीफ़ आदमी का मन कैसे और कितने रोज लगता.
चुनांचे बोरिया बिस्तर बांधा और 11 साल पहले कराची आ गया. आने के बाद कसम ले लो, कोई एक भी दिन बोरियत का गुजरा हो.
भारत और पाकिस्तान जैसे हमारे देशों की सरकारें और राजनीति को आप भले जितना भी कोस लें, पर एक बात तो माननी ही पड़ेगी.
यहां की राजनीति आपको कुछ दे ना दे, आपके मनोरंजन का पूरा पूरा ख़्याल रखती है.
यहां सस्पेंस और थ्रिल महसूस करने के लिए सिनेमा में भी जाने की जरूरत नहीं. मनोरंजन ख़ुद चलकर आपके जीवन में बिना पूछे और मुफ़्त की बला की तरह आ जाएगा.
आज ये रैली, कल वो जुलूस, परसों वो हड़ताल, तरसों वो रेप, नरसों वो घोटाला, कुत्ते मैं तेरा ख़ून पी जाऊंगा जैसे बयानात, फ़ुल टेंशन और उसके बाद शांति बनाए रखने की अपील.
फिर कोई नया क़ानून, फिर इस क़ानून के पक्ष और विपक्ष में मुंह से झाग और कानों से धुंआ. सामने वाले का हौसला मटियामेट करने वाले अमरीश पुरियाना कहकहे- कोई बोर होना भी चाहे तो इसके लिए सिवाए मरने का कोई दूसरा रास्ता नहीं है.
यक़ीन नहीं होता कि अभी पिछले ही हफ़्ते तक हर कोई पूछ रहा था कि ज़ंग शुरू होने वाली है, नहीं हुई तो बोरियत शुरू हो गई.
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कश्मीर-कश्मीर बहुत हो गया था, कि नई फ़िल्म रिलीज़ हो गई डॉन अख़बार का अलमाइडा.
सब इसपर लग गए कि पत्रकार सिरिल अलमाइडा को अंदर की ये ख़बर किसने लाकर दी कि फौज और सिविलियन सरकार जेहादी समूहों की सरपरस्ती के मामले पर एक दूसरे से छीछालेदर कर रहे हैं.
चलो डॉन की ख़बर पर बहुत बहस हो गई, मीडिया की आज़ादी और राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे को लेकर क्यों ना अब नवाज़ शरीफ़ की ऐसी तैसी का काम अब दोबारा शुरू किया जाए.
हां तो ये रही पनामा लीक्स. त्याग पत्र ना दिया तो 30 अक्टूबर से इमरान ख़ान के जांबाज इस्लामाबाद बंद कर देंगे, ऐसा वो कहते हैं.
अरे हां, एक और फ़िल्म तो रिलीज़ होने वाले हैं- जनरल राहील शरीफ़ की जगह कौन बनेगा सेनापति? मीडिया ने नारियल जमा कर लिए हैं, या तो फर्श पर फूटेंगे या फिर सिर पर.
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आने वाले दिन बहुत मजेदार हैं. एक नया ट्रक और उसकी नई बत्ती.
पीछे पीछे भागने में बहुत मजा आएगा. जीवन तो वैसे भी कुत्ते की दुम तरह टेढ़ा है. पेट में रोटी हो ना हो, नौकरी हो ना हो, बीमारी हो ना हो, कल हो ना हो, पर सरकारों की तरफ़ से रोज बंटने वाला थ्रिल और सस्पेंस हमारे लिए बहुत है.
आख़िर सबकुछ सरकार ही क्यों करे, कुछ हाथ पैर तो ऊपर वाले को भी चलाने चाहिए.
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