शियाओं के खिलाफ लड़ता है लश्कर-ए-झंगवी

  • आसिफ़ फ़ारूकी
  • बीबीसी संवाददाता, इस्लामाबाद
पाकिस्तान में पकड़े गए चरमपंथी.

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लश्कर-ए-झंगवी पाकिस्तान के सुन्नी मुसलमानों का ख़तरनाक़ चरमपंथी संगठन है.

संगठन का नाम सुन्नी धर्म गुरु हक़ नवाज़ झंगवी के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने पाकिस्तान में क़रीब 30 साल पहले शिया विरोधी मुहिम की शुरुआत की थी. यह ईरान की इस्लामिक क्रांति की प्रतिक्रिया थी.

बहुत से लोगों का मानना है कि पाकिस्तान में सांप्रदायिक हिंसा की शुरुआत सिपाह-ए-साहबा पाकिस्तान (एसएसपी) ने की थी. झांगवी इसके संस्थापकों में से एक थे.

शोधकर्ताओं का मानना है कि देश में 1980 के दशक में ज़नरल ज़िया उल हक़ की ओर से शुरू की गई इस्लामीकरण की नीति ने 1985 में एसएसपी के विकास में मदद की.

उसी समय से संगठन ने शियाओं के ख़िलाफ़ हिंसा का सहारा लेना शुरू कर दिया था.

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शियाओं का संगठन तहरीक-ए-फ़िगाह ज़ाफ़ेरिया एसएसपी को चुनौती देना शुरू करता है. इसके बाद यह संघर्ष हिंसक होता जाता है. इस हिंसा में झंगवी समेत दोनों गुटो के बड़े नेता मारे जाते हैं.

एक दशक के संघर्ष के बाद लश्कर-ए-झंगवी में मतभेद पैदा हो जाते है और 1995 में रियाज़ बसरा के नेतृत्व एक धड़ा उनसे अलग हो जाता है.

यह संगठन शियाओं के ख़िलाफ़ हिंसा के रास्ते पर ही आगे बढना चाहता हैं और हिंसा छोड़कर मुख्यधारा की राजनीति में शामिल होने की अन्य सुन्नी संगठनों की अपील को ठुकरा देता है.

झांगवी के वफ़ादार ख़ुद को झंगवी की सेना बताते हैं और अफ़ग़ानिस्तान में अपना प्रभाव बढ़ा रहे तालिबान के साथ संपर्क बढ़ाते हैं.

तालिबान और लश्कर-ए-झंगवी दोनों ही इस्लाम की देवबंदी विचारधारा को मानने वाले हैं. तालिबान से संबंधों की वजह से बसरा और उनके साथियों को अफ़ग़ानिस्तान में मदद मिलती है.

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सरकारी ख़ुफ़िया एजंसियों ने अफ़ग़ानिस्तान में लश्कर-ए-झंगवी के प्रशिक्षण केंद्रों का पता लगाया है. ये केंद्र न केवल शिया विरोधी चरमपंथियों के प्रशिक्षण बल्कि पाकिस्तान के अपराधियों और चरमपंथियों को शरण देने के भी काम आते हैं.

अगस्त 2001 में पाकिस्तान के सैन्य नेता ज़नरल परवेज़ मुशर्रफ़ ने लश्कर-ए-झंगवी समते कई चरमपंथी संगठनों को प्रतिबंधित कर दिया था.

रियाज़ बसरा की मई 2002 में हत्या हो गई. विश्लेषकों का मानना है कि इस संगठन ने उसामा बिन लादेन के अलकायदा के नेटवर्क से संपर्क बनाना शुरू कर दिया.

इस तरह की आशंकाएं उस समय सच साबित हुईं, जब 2007 में पाकिस्तान में हुई तीन घटनाओं में लश्कर-ए-झंगवी और अलकायदा का हाथ पाया.

इन घटनाओं में अमरीकी पत्रकार डेनियल पर्ल का अपहरण और हत्या, कराची में फ़्रांसीसी इंजिनियर पर हमला और इस्लामाबाद के एक चर्च पर हुआ हमला शामिल है.

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