'मोदी हुकूमत में मीडिया का एनकाउंटर हो रहा है'
- इक़बाल अहमद
- बीबीसी संवाददाता

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भारत और पाकिस्तान से इस हफ़्ते छपने वाले उर्दू अख़बारों में पाकिस्तान में जहां पूर्व क्रिकेटर और तहरीक़-ए-इंसाफ़ पार्टी के प्रमुख इमरान ख़ान के इस्लामाबाद बंद का आह्वान सुर्ख़ियां बना वहीं भारत में भोपाल जेल से फ़रार आठ क़ैदियों की कथित पुलिस मुठभेड़ में हुई मौत की ख़बर छाई रहीं.
पहले बात पाकिस्तान की.
इमरान ख़ान ने पनामा लीक्स भ्रष्टाचार मामले में प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ और उनके क़रीबी रिश्तेदारों के ख़िलाफ़ जांच की मांग की थी और इसके लिए उन्होंने दो नवंबर को राजधानी इस्लामाबाद के बंद का आह्वान किया था.
लेकिन एक दिन पहले यानी एक नवंबर को पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट ने जांच की बात मान ली जिसके बाद इमरान ने इस्लामाबाद बंद का एलान वापस ले लिया और इसके लिए जनता का शुक्रिया अदा करने के लिए दो नवंबर को धन्यवाद दिवस के तौर पर मनाया.
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अख़बार नवा-ए-वक़्त ने इमरान के बयान को सुर्ख़ी बनाते हुए लिखा है, ''नवाज़ शरीफ़ इस्तीफ़ा न भी दें, मिडिल विकेट उड़ती देख रहा हूं, इसी महीने छुटकारा मिल जाएगा.''
लेकिन इमरान ख़ान के दावों को ख़ारिज करते हुए केंद्रीय रेल मंत्री ख़्वाजा साद रफ़ीक़ ने कहा कि इमरान ख़ान को न अपने शब्दों पर और न ही अपनी हरकतों पर क़ाबू है.
केंद्रीय मंत्री के बयान का हवाला देते हुए अख़बार लिखता है, ''यौम-ए-तशक्कुर (धन्यवाद दिवस) के नाम पर सरकस दिखाया गया. हैरान हूं कि पांच-छह हज़ार कुर्सियों पर दस लाख लोग कैसे बैठ गए. तहरीक़-ए-इंसाफ़ काला चश्मा पार्टी बन कर रह गई है.''
प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ ने भी इमरान ख़ान पर जमकर हमला बोला.
अख़बार जंग ने नवाज़ शरीफ़ के बयान को सुर्ख़ी बनाते हुए लिखा है, ''झूठा, गाली देने और पगड़ी उछालने वाला पाकिस्तान का लीडर नहीं हो सकता है.''
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बिलावल भुट्टो, पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के चेयरमैन
इस मामले में पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी भी पीछे नहीं रही है. पार्टी के चेयरमैन बिलावल भुट्टो ने नवाज़ शरीफ़ को निशाना बनाया है.
अख़बार दुनिया लिखता है, ''मियां साहब आप पर भ्रष्टाचार का आरोप है, हमारा पनामा बिल मंज़ूर नहीं हुआ तो कमीशन नहीं चलेगा और कमीशन नहीं चलेगा तो हुकूमत भी नहीं चलेगी और 2017 चुनाव का साल होगा.''
इसके अलावा भारत-पाकिस्तान राजनयिक संबंधों से जुड़ी ख़बरें भी सुर्ख़ियों में रहीं.
नवा-ए-वक़्त ने लिखा है, ''आठ भारतीय राजनयिक पाकिस्तान में दहशतगर्दी नेटवर्क चला रहे हैं.''
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अख़बार लिखता है कि कथित भारतीय जासूस कुलभूषण की गिरफ़्तारी के बाद जासूसी का एक और बड़ा स्कैंडल बेनक़ाब हुआ है.
अख़बार के मुताबिक़ इस्लामाबाद स्थित भारतीय दूतावास में काम करने वाले उन पांच भारतीय राजनयिकों के नाम सामने आ गए हैं जो दर असल अपने मुल्क़ की ख़ुफ़िया एजेंसियों के अफ़सर हैं और राजनयिक के रूप में पाकिस्तान के अंदर जासूसी और दहशतगर्दी के नेटवर्क चला रहे हैं.
अख़बार लिखता है कि छह पाकिस्तानी राजनयिक भी भारत से लौट आए हैं.
रोज़नामा ख़बरें लिखता है, ''पाकिस्तान और भारत में तनाव, राजनयिक अधिकारियों में कमी की आशंका, उच्चायुक्त की भी वापसी संभव''
भारत का रुख़ करें तो प्रतिबंधित संगठन सिमी (स्टूडेन्ट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ़ इंडिया) के कथित आठ सदस्यों के भोपाल जेल से फ़रार होने और फिर कथित पुलिस मुठभेड़ में उन आठों के मारे जाने की ख़बर उर्दू के पहले पन्ने पर छाई हुई हैं.
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अख़बार जदीद ख़बर ने संपादकीय लिखा है कि भोपाल जेल में बंद आठ विचाराधीन क़ैदियों की कथित फ़र्ज़ी मुठभेड़ में मौत के बाद उन तमाम मुसलमान क़ैदियों की सुरक्षा को लेकर चिंता बढ़ गई है जो दहशतगर्दी के आरोप में भारत के अलग-अलग जेलों में बंद हैं.
अख़बार लिखता है कि उन क़ैदियों के परिजनों की रातों की नींद और दिन का चैन ग़ारत हो गया है.
भारत के एक निजी न्यूज़ चैनल एनडीटीवी पर एक दिन के बैन की ख़बर भी हर जगह छाई हुई है.
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रोज़नामा इंक़लाब ने भोपाल पुलिस मुठभेड़ और एनडीटीवी पर लगी पाबंदी को जोड़ते हुए लिखा है, ''मोदी हुकूमत में मीडिया का इंकाउंटर हो रहा है.''
अख़बार लिखता है कि एनडीटीवी पर सरकारी पाबंदी की चौतरफ़ा निंदा हो रही है.
इसके अलावा भारत-पाकिस्तान के बिगड़ते संबंधों से जुड़ी ख़बरें भी ख़ासा चर्चा में हैं.
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रोज़नामा सहारा लिखता है, ''हिंद-पाक संबंध और तनावपूर्ण, दोनों देशों के उच्चायुक्तों को बुलाने की तैयारी''
वहीं हैदराबाद से छपने वाले उर्दू दैनिक ने लिखा है कि भारत का पाकिस्तान से अपने उच्चायुक्त को वापस बुलाने की ख़बर बेबुनियाद है.
अख़बार लिखता है कि भारत ने साफ़ कहा है कि इस तरह की ख़बर बेबुनियाद, मनगढ़ंत और पूरी तरह झूठी है.
दरअसल पाकिस्तान से छपने वाले अंग्रेज़ी दैनिक एक्सप्रेस ट्रिब्यून में शुक्रवार को ये ख़बर छपी थी कि जासूसी के आरोप-प्रत्यारोप के कारण पैदा हुए तनाव को देखते हुए दोनों देश अपने-अपने उच्चायुक्त को वापस बुला सकते हैं.
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