मम्मी-पापा अगर चाचा-चाची निकले तो?
- अतर अहमद और किरण राठौर
- बीबीसी एशिया नेटवर्क

इमेज स्रोत, Thinkstock
अगर आपको अचानक पता चले कि आप जिन्हें मां-बाप समझते हैं, वो आपके चाचा-चाची हैं. और जिन्हें आप अपने चाचा-चाची समझते हैं, वो असल में आपके मां-बाप हैं, तो होश उड़ेंगे ना?
क्या आप इस रिश्ते को सहजता से ले पाएंगे? किसके साथ ख़ुद को भावनात्मक रूप से जुड़ा हुआ पाएंगे. जिन्होंने पाला-पोसा या फिर जिन्होंने जन्म दिया?
आम तौर पर जिन्हें बच्चे नहीं होते, वो टेस्ट ट्यूब बेबी और गोद लेने जैसे विकल्पों का सहारा लेते हैं. लेकिन यहां हम एक अलग तरह से गोद लेने के मामले के बारे में बताने जा रहे हैं.
ब्रिटेन में रहने वाले एशियाई समुदाय के कुछ लोगों में अनौपचारिक रूप से गोद लेने का प्रचलन है. इसमें एक जोड़ा अपने घर में ही किसी दूसरे जोड़े को अपने बच्चे को सौंप देता है.
यह चलन इतना ज़्यादा है कि बहुत कम लोग गोद लेने की औपचारिकताओं की तरफ़ जाते हैं.
पहले भी यह प्रचलन आम था. परिवार के अंदर कई बार इस बात को पूरी तरह से गुप्त रखा जाता है, लेकिन कभी-कभी सच्चाई बाहर आ जाती है. ऐसा ही कुछ इन चार मामलों में हुआ है.
हुमा
हुमा
उन चमकते सितारों की कहानी जिन्हें दुनिया अभी और देखना और सुनना चाहती थी.
दिनभर: पूरा दिन,पूरी ख़बर
समाप्त
32 साल की हुमा बताती हैं कि वो अपनी मां को अपनी आंटी ही समझती थीं.
वो बताती हैं, "मैं हमेशा उन्हें अपनी आंटी के तौर पर देखा करती थी. मुझे कभी-कभी लगता था कि हमारी आंखे एक जैसी लगती है और कुछ और बातें भी मिलती-जुलती है. लेकिन मुझे कभी नहीं लगा कि वो मेरी मां हैं और उन्होंने ही मुझे जन्म दिया है."
हुमा लंदन में एक कंस्लटेंट हैं. उनका जन्म केन्या में हुआ था और वो वहां पांच महीने तक अपने मां-बाप के साथ रहीं.
पांच महीने के बाद उनके पिता ने उन्हें उनकी आंटी को दे दिया. उनकी आंटी को औलाद नहीं थी और वो एक बच्चा चाहती थीं.
17 साल की उम्र में हुमा को सच्चाई का पता चला, जब उनकी जन्म देने वाली मां ने उन्हें सच्चाई बताई.
हुमा कहती हैं, "मुझे ऐसा लगा कि जैसे किसी फ़िल्म की कहानी मेरे आंखों के सामने चल रही है. "
हुमा को कहा गया कि वो यह बात घर में किसी को नहीं बताएंगी, ताकि आपसी रिश्तों में कोई दरार ना पड़ें.
यह जानते हुए भी कि उनके अंकल और आंटी ही उनके असली मां-बाप हैं, उन्हें पूरी तरह से सामान्य होकर घर में रहना था.
इस राज़ को दिल में दफ़न कर के रखने की वजह से उनके स्वास्थ्य और पढ़ाई पर बुरा असर पड़ा.
अब वो गोद लेने वाले मां-बाप के साथ रिश्ते को नए सिरे से संवारने में लगी हैं, लेकिन जन्म देने वाले मां-बाप से दूर रहने लगी हैं.
वो कहती हैं, "अगर मेरे हाथ में होता तो मैं कभी यह राज़ जानना नहीं चाहती. इससे मुझे कम दुख पहुंचता. कुछ बातें ना कही जाएं, तभी बेहतर होती हैं."
कुलविंदर
कुलविंदर (वास्तविक नाम नहीं) जब बच्ची थीं, तब कभी-कभी अपने चाचा-चाची के यहां जाया करती थीं. एक बार जब वो वहां गई हुई थीं, तब उनके कज़न ने बताया कि वो गोद ली हुई बच्ची हैं.
वो बताती हैं, "उस वक्त मुझे गोद (Adoption) लेने का मतलब पता नहीं था. मैंने डिक्शनरी में इसका मतलब ढूंढा. फिर इसके बात डैडी के काग़ज़ों के फोल्डर में गोद लेने से संबंधित काग़ज़ात देखे. काग़ज़ देखने के बाद मुझे 10 साल की उम्र में पता चला कि मैं एक गोद ली हुई बच्ची हूं."
कुलविंदर के परिवार में सभी गोद लेने की बात जानते थे.
इसके बाद जिन्होंने कुलविंदर को गोद लिया था, उनके साथ तक़रार भी हुई, लेकिन वो कुलविंदर को यह समझाने में कामयाब हुए कि यह सब उनके दिमाग़ का वहम है.
जल्दी ही यह बात आई-गई हो गई. एक साल बाद कुलविंदर के असल माता-पिता उनके घर पर उन्हें वापस लेने के लिए आ पहुंचे.
कुलविंदर बताती हैं, "मुझे कुछ-कुछ याद है कि मुझे जन्म देने वाली मेरी मां घर आईं और मेरा हाथ पकड़ कर घर से बाहर ले जाने लगीं. किसी बात को लेकर वो लोग नाराज़ थे और उन्होंने मुझे एक महीने तक अपने साथ रखा था."
जब वो 18 साल की थीं, तब कुलविंदर के पिता ने आख़िरकार यह बात मानी कि उन्हें गोद लिया गया है. वो वाक़ई में उनके पिता नहीं, अंकल थे. लेकिन यह बात जानने के बाद कुलविंदर का गोद लेने वाले मां-बाप के साथ रिश्ता और गहरा हो गया.
कुलविंदर अब भी उसी शहर में रहती हैं, जहां उनके जन्म देने वाले माता-पिता रहते हैं, लेकिन वो उनसे कोई संबंध नहीं रखना चाहती.
सुरिंदर अरोड़ा
सुरिंदर अरोड़ा ब्रिटेन के सबसे सफल एशियाई कारोबारियों में एक हैं. उनका जन्म भारत में हुआ था. वो बताते हैं कि जन्म के कुछ दिनों बाद उन्हें उनके अंकल-आंटी को दे दिया गया था.
सुरिंदर अरोड़ा
स्कूल के दिनों में सुरिंदर की संगत बिगड़ गई और वो स्कूल जाने की बजाय आवारागर्दी में मशगूल रहते थे. उन्होंने चाकू लेकर स्कूल जाना शुरू कर दिया था.
यह देखकर उन्हें जन्म देने वाली मां ने उन्हें अपने पास वापस बुलाने का फ़ैसला ले लिया था.
उन्होंने बताया, "तभी एक दिन खाने की मेज़ पर मुझे जन्म देने वाले मां-बाप ने बताया कि मैं उनका बेटा हूं." लापरवाह और मनमौजी क़िस्म के सुरिंदर ने इस बात को बड़े आराम से लिया.
वो बताते हैं, "पहले तो वाक़ई में मुझे अचरज हुआ, लेकिन तभी मुझे ख़्याल आया कि मेरे तो दो-दो मां-बाप हैं. मैं बड़ा भाग्यशाली हूं."
सुरिंदर अरोड़ा
सुरिंदर अपनी सफलता का श्रेय दोनों ही मां-बाप को देते हैं. वो कहते हैं कि उनकी परवरिश में दोनों ने अपनी अलग-अलग भूमिकाएं निभाई हैं.
लेकिन ज़िंदगी में कुछ ऐसे लम्हें भी आए, जब उन्हें दोनों मां-बाप को लेकर असमंजस की स्थिति का सामना करना पड़ा.
वो बताते हैं, "भारत से ख़बर आई कि मेरे डैडी गुजर गए हैं, जबकि यहां लंदन में मुझे जन्म देने वाली मां कैंसर से गंभीर रूप से बीमार थीं. मुझे बिल्कुल समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं. तभी मेरी मां ने कहा कि तुम उनके इकलौते बेटे हो, इसलिए तुम्हें उनके अंतिम संस्कार में ज़रूर जाना चाहिए."
उन्होंने कहा, "मुझे बहुत खुशी है कि मैं इसके बाद वहां जा सका. मेरे पिता ने मुझे जो प्यार दिया था, उसे मैं आख़िरी सांस तक संजोकर रखूंगा. भारत से लौटने के कुछ दिनों बाद मैंने अपनी मां को भी खो दिया."
सुनील
सुनील (वास्तविक नाम नहीं) को अपनी ज़िंदगी के तीसरे दशक में पता चला कि उनका कज़न उनका अपना सगा भाई है.
एक दिन जब वो अपने ईमेल चेक कर रहे थे, तब उन्हें 'निजी और गुप्त' लिखा हुआ एक संदेश दिखा. यह ईमेल उनके कज़न का था.
ईमेल में लिखा था, "हम पूरी ज़िंदगी एक-दूसरे को अपना कज़न मानते रहे हैं, जबकि तुम मेरे अपने भाई हो और यह बात परिवार में सभी को पता है."
पहले तो सुनील ने उस ईमेल को अपने दिमाग़ से पूरी तरह से निकालने की कोशिश की. लेकिन यह बात उन्हें अंदर ही अंदर खाती रही और वो अपने रिश्तेदारों की बातचीत की कड़ियां जोड़ने लगे.
सुनील अपने भाई को कज़न मानकर बचपन में कई बार मिल चुके थे. लेकिन अब वो असलियत जानने के बाद अपने भाई से मिल रहे थे और अहसास पूरी तरह अलग था.
(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक और ट्विटर पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)