विवादों से अमरीकी चुनावों की रिश्तेदारी पुरानी
- ज़ुबैर अहमद
- बीबीसी संवाददाता

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अमरीकी राष्ट्रपति पद के चुनावों और विवादों का उतना ही पुराना नाता है, जितना स्वतंत्र अमरीका का इतिहास. इसलिए अगर इस बार के चुनावी नतीजों को लेकर विवाद होता है तो ये पहली बार नहीं होगा.
ये राय अमरीकी पत्रकार फ्रेड लूकस की है, जिन्होंने अपनी एक नई किताब में इसे ज़ाहिर किया है.
व्हाइट हाउस कवर करने वाले पत्रकार लूकस का ये भी मानना है कि इस बार चुनावी मुहिम के दौरान देश और समाज जितना विभाजित नज़र आ रहा है, वैसा पहले भी कई बार हो चुका है.
भारतीय मूल की अमरीकी पत्रकार ज्योति रौतेला के अनुसार अगर इस बार के चुनावी नतीजे को चुनौती दी जाती है, तो इंटरनेट युग का ये पहला विवादित चुनाव होगा.
उनके मुताबिक़, "लेकिन इतिहास की बात करें तो विवाद से घिरे और भी कई चुनाव रहे हैं."
इसलिए ये कहना कि अमरीका में इस बार होने वाला चुनाव, समाज को सबसे अधिक बांटने वाला है, तो शायद सही नहीं होगा.
हालांकि, कई अमरीकी चुनावी विशेषज्ञ ऐसा ही मानते हैं.
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उनके मुताबिक़ ऐसा लगता है कि अमरीकी दो खेमों में बंट गए हैं और एक-दूसरे के बीच नफ़रत की एक मज़बूत दीवार खड़ी है.
अब तक मिले संकेतों के हिसाब से रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनल्ड ट्रंप और डेमोक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन के बीच मुक़ाबला कांटे का है.
सवाल उठता है कि अगर मंगलवार को होने वाले चुनाव के नतीजे विवादास्पद रहे तो क्या होगा?
संभावना है कि अगर डोनल्ड ट्रंप चुनाव ना जीते, तो नतीजों को अदालत में चुनौती दे सकते हैं. ट्रंप ने चुनाव प्रचार के दौरान बार-बार कहा है कि अमरीका की चुनाव प्रक्रिया भ्रष्ट है.
उन्होंने ये भी कहा है कि वो चुनावी नतीजे तभी स्वीकार करेंगे, जब उनकी जीत होगी. वो कई बार चुनाव में धांधली की आशंका जता चुके हैं.
मुक़ाबला इतना करीबी है कि दोनों उम्मीदवारों के बीच गतिरोध के हालात बन सकते हैं.
पत्रकार फ्रेड लूकस अपनी किताब में कहते हैं कि अमरीकी चुनाव के इतिहास में पहले भी कई बार इस तरह की स्थिति पैदा हो चुकी है. विवादों से भरे फ़ैसले लिए गए हैं और रिश्वत लेने के इल्ज़ाम भी लगे हैं.
कुछ विवादित चुनावों पर एक नज़र
साल 2000 का चुनाव: अल गोर बनाम जॉर्ज बुश
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अल गोर
इस चुनाव में आम जनता का वोट (पॉपुलर वोट) डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार अल गोर को अधिक मिला, लेकिन विजयी घोषित हुए रिपब्लिकन पार्टी के जॉर्ज बुश.
अल गोर को पांच लाख अधिक वोट मिले थे. लेकिन अमरीकी चुनाव में इलेक्टोरल कॉलेज में बढ़त हासिल करने वाला उम्मीदवार राष्ट्रपति चुना जाता है और इसमें बाज़ी मार ले गए जॉर्ज बुश.
अल गोर ने कहा वोटों की गिनती दोबारा हो. वो अदालत भी गए. हफ़्तों तक मामला उलझा रहा. आख़िर में अदालत ने कहा वोटों की दोबारा गिनती बंद हो. अल गोर ने हार मान ली और इस तरह बुश राष्ट्रपति बने.
1948 का चुनाव: हैरी ट्रुमैन बनाम थॉमस डेवी
चुनाव वाली रात राष्ट्रपति हैरी ट्रुमैन मायूस हो कर सोने चले गए. वो हार मान चुके थे. रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार थॉमस डेवी उनसे एग्जिट पोल में पांच प्रतिशत की बढ़त बनाए हुए थे.
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हैरी ट्रुमैन
उनकी जीत पक्की मानी जा रही थी. शिकागो डेली ट्रिब्यून नाम के अख़बार ने ट्रुमैन की हार की सुर्खियों के साथ अख़बार बेचना भी शुरू कर दिया था.
लेकिन राष्ट्रपति ट्रूमैन की जीत हुई. उन्हें सुबह चार बजे अमरीकी ख़ुफ़िया सर्विस के अधिकारियों ने जगाकर जीत की ख़ुशख़बरी दी.
उनकी वो तस्वीर अमर हो गई, जिसमें शिकागो ट्रिब्यून अख़बार को हाथों में लेकर वो मुस्कुराते हुए देखे जा सकते हैं. इस अख़बार में उनके हारने की ख़बर पहले पन्ने पर छपी थी.
थॉमस डेवी ने नतीजा स्वीकार करने में कुछ देर लगाई, लेकिन इसे अदालत में चुनौती नहीं दी.
1876 का चुनाव: सैमुअल टिल्डेन बनाम रदरफोर्ड हेस
इस चुनाव में डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार सैमुअल टिल्डेन चुनाव जीत के भी हार गए. उन्होंने रिपब्लिकन पार्टी के अपने प्रतिद्वंदी रदरफोर्ड हेस से पॉपुलर वोट और इलेक्टोरल कॉलेज, दोनों में बढ़त बनाई लेकिन इलेक्टोरल कॉलेज में ज़रूरी 185 वोट हासिल न कर सके.
दोनों खेमों ने एक-दूसरे के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार और चुनावी फ़र्ज़ीवाड़े के इल्ज़ाम लगाए. बाद में दोनों पक्षों में एक समझौता हुआ, जिसके मुताबिक़ रदरफोर्ड हेस राष्ट्रपति घोषित हुए. विशेषज्ञ कहते हैं ये इलेक्शन नहीं, सेलेक्शन था.
1800 का चुनाव: थॉमस जेफ़रसन बनाम जॉन एडम्स
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थॉमस जेफरसन
ये अमरीकी राष्ट्रपति पद का चौथा चुनाव था. अब तक का ऐसा अकेला चुनाव, जिसमें उपराष्ट्रपति ने राष्ट्रपति को शिकस्त दी. इस चुनाव में कामयाब रहे उपराष्ट्रपति थॉमस जेफ़रसन, जिन्होंने राष्ट्रपति जॉन एडम्स को शिकस्त दी. लेकिन फ़ैसला आसानी से नहीं हुआ था.
उस समय इलेक्टोरल कॉलेज के अंतर्गत राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति, दोनों को वोट दिए जाते थे. जिसे अधिक वोट मिलते, वो राष्ट्रपति चुना जाता. उस समय टू पार्टी सिस्टम सामने आ ही रहा था. डेमोक्रेटिक-रिपब्लिकन पार्टी की तरफ से थॉमस जेफरसन राष्ट्रपति के उम्मीदवार बने, जबकि उपराष्ट्रपति के उम्मीदवार आरोन बर्र बने.
फ़ेडरेलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार राष्ट्रपति एडम्स बने, जबकि उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार थे चार्ल्स पिंकनी. इलेक्टोरल कॉलेज वोट में एडम्स और उनके साथी जेर्सन और उनके साथी से काफी पीछे रहे. अब मुक़ाबला जेफ़र्सन और बर्र के बीच था क्योंकि दोनों उम्मीदवारों को 73-73 वोट मिले.
मामला संसद के पास गया. संसद में 35 बार वोट डाले गए और हर बार जेफ़र्सन और बर्र को बराबर के वोट मिले लेकिन 36वें राउंड में जेफ़र्सन राष्ट्रपति घोषित हुए और बर्र उप राष्ट्रपति.
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