बाजवा के आने के बाद भारत-पाक संबंधों पर क्या असर होगा?

  • मारियाना बाबर
  • राजनीतिक विश्लेषक, पाकिस्तान
जनरल क़मर जावेद बाजवा

इमेज स्रोत, AP

जनरल राहिल शरीफ़ के बाद पाकिस्तान के नए सेना प्रमुख के तौर पर लेफ्टिनेंट जनरल क़मर जावेद बाजवा का नाम आना न तो चौंकाने वाली ख़बर है और न ही ऐसी ख़बर है जिसकी उम्मीद ना की जा रही हो.

जनरल राहिल शरीफ़ ने वरीयता के आधार पर चार नाम दिए थे उन चार नामों में से एक नाम प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ को चुनना था और उन्होंने जनरल क़मर जावेद बाजवा का नाम चुना है.

यह बात तो सब को मालूम थी कि नया सेना प्रमुख वही बनेगा जिसने दहशतगर्दी के ख़िलाफ़ जनरल राहिल शरीफ़ के साथ लड़ाइयां लड़ी हों.

कश्मीर से लेकर उत्तर में चरमपंथियों के साथ लड़ाई में क़मर जावेद बाजवा का लंबा अनुभव रहा है.

इमेज स्रोत, Reuters

जब पाकिस्तान में एक कमजोर हुकूमत शासन करती है तो फ़ौज की भूमिका और बढ़ जाती है.

चाहे बाजवा हो या राहिल शरीफ़, पाकिस्तान में फ़ौज एक संस्था के तौर पर काम करती हैं.

देखिए वीडियो- पाकिस्तान

इनका दखल नीतियों को बनाने को लेकर भी है फिर चाहे भारत, अफ़ग़ानिस्तान और अमरीका के साथ पाकिस्तान के संबंध की ही बात क्यों ना हो.

बाजवा के आने से भारत के साथ जो स्थिति है, वो ऐसी ही बनी रहेगी. ये ना ख़ुशी की बात है और ना ही ग़म की.

जब राहिल शरीफ़ भी आए थे तो कोई निजी नीति लेकर तो नहीं आए थे भारत-पाक संबंध में. फ़ौज एक संस्था है, वो भारत को अपने नज़र से देखता है.

इमेज स्रोत, AFP

अभी जो हालात नियंत्रण रेखा पर हैं वो बढ़नी नहीं चाहिए. ये किसी भी देश के लिए अच्छा नहीं होगा.

बाजवा को एक कदम आगे जाकर डीजीएमओ की बातचीत में तेज़ी लानी चाहिए. अगर सेना प्रमुख नहीं बात कर सकते हैं तो फ़ौज के इन अधिकारियों को मिलना चाहिए.

हालांकि सेना प्रमुखों के नहीं मिलने की ऐसी कोई ख़ास वजह नहीं है.

जहां तक रिटायर हो रहे जनरल राहिल शरीफ़ की बात है तो उन्होंने फ़ौज को एक संस्था के तौर पर मजबूत किया है.

उन्होंने परंपरागत रूप से सिर्फ़ लड़ाई में फ़ौज के इस्तेमाल की जगह चरमपंथ के ख़िलाफ़ जंग में फ़ौज का बेहतरीन इस्तेमाल किया है.

जनरल शरीफ़ जब आए थे तब जनरल कियानी ने दो बार एक्सटेंशन ले लिया था. उस वक़्त फ़ौज का हौसला बहुत कम हो चुका था.

इमेज स्रोत, AFP

क्योंकि जब जनरल समय पर नहीं जाते हैं और एक्सटेंशन ले लेते हैं तो एक किस्म की राजनीति शुरू हो जाती है.

इसलिए जनरल शरीफ़ के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही थी कि कैसे फ़ौज के हौसले को बढ़ाया जाए.

(बीबीसी संवाददाता वात्सल्य राय से बातचीत पर आधारित)

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक और ट्विटर पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)