फ्रांस: अगला चुनाव नहीं लड़ेंगे राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद

फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद
फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने एलान किया है कि वे राष्ट्रपति पद के लिए दोबारा चुनाव नहीं लड़ेंगे. उनके इस एलान ने सबको चौंका दिया है.
टेलीविजन में लाइव संबोधन के दौरान सोशलिस्ट नेता ने कहा, "मैंने फ़ैसला किया है कि मैं दोबारा जनादेश हासिल करने के लिए दावेदार नहीं बनूंगा."
सर्वेक्षणों में फ्रांस्वा ओलांद की लोकप्रियता घटी है. फ्रांस के इतिहास में वे ऐसे पहले राष्ट्रपति हैं जिन्होंने पद पर रहते हुए फिर से चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया है.
उन्होंने कहा कि दोबारा चुनाव लड़ने के जोख़िम से वे अनजान नहीं हैं. साथ ही उन्होंने अति-दक्षिणपंथी नेशनल फ्रंट के ख़तरों से सावधान रहने की चेतावनी भी दी है.
इस घोषणा के बाद पहली प्रतिक्रिया पूर्व वित्त मंत्री इमैनुएल मैक्रोन ने दी है. उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति ने एक "साहसिक निर्णय" लिया है.
मैक्रोन राष्ट्रपति पद के लिए हो रहे चुनाव में एक निर्दलीय नरमपंथी उम्मीदवार के रूप में खुद खड़े हो रहे हैं. उन्होंने कुछ महीने पहले ही सरकार से इस्तीफ़ा दिया है.
ओलांद के चुनाव लड़ने से मना करने के बाद सोशलिस्ट पार्टी में जनवरी में उम्मीदवार का चयन होगा.
ऐसी संभावना है कि प्रधानमंत्री मैन्युल वॉल्स पसंदीदा उम्मीदवार के तौर पर उभरेंगे. पिछले हफ़्ते उन्होंने उम्मीदवार बनने पर सहमति जताई थी.
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पूर्व प्रधानमंत्री फ्रांस्वा फियों
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पिछले हफ़्ते फ्रांस के 40 लाख मतदाताओं ने मध्य-दक्षिणपंथी रिपब्लिकन के प्रतिनिधित्व के लिए पूर्व प्रधानमंत्री फ्रांस्वा फियों को चुना है.
अगले साल अप्रैल और मई में दो चरणों में चुनाव होने वाले हैं.
ताज़ा चुनाव सर्वेक्षणों के मुताबिक वे अप्रैल में चुनाव के पहले चरण में जीत जाएंगे और अति-दक्षिणपंथी नेशनल फ्रंट के उम्मीदवार मरीन ली पेन से उनकी बढ़त बहुत ज़्यादा रहेगी.
सर्वेक्षणों के मुताबिक अगर मैन्युल वॉल्स सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार बनते हैं तो वे तीसरे नंबर पर आएंगे. इस तरह फियों जीत जाएंगे.
ओलांद ने कहा कि, "राष्ट्रपति पद पर आख़िरी महीनों में देश का नेतृत्व करना ही मेरा एकमात्र कर्तव्य रहेगा."
जनवरी 2015 से ओलांद के राष्ट्रपति पद पर पेरिस, नीस और अन्य जगहों पर हुए जिहादी चरमपंथी हमलों का साया पड़ने लगा था. फ्रांस में और हमलों की आशंका के मद्देनज़र वहां आपातकाल लागू है.
मध्य-दक्षिणपंथी राष्ट्रपति निकोला सार्कोज़ी के शासनकाल में अशांत माहौल में स्थितियों को सामान्य करने के वादे के साथ ओलांद सत्ता में आए थे.
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