क्या कोहिनूर भारत-पाकिस्तान का नहीं, ईरान का है?

  • सौतिक बिस्वास
  • बीबीसी संवाददाता
कोहीनूर हीरा

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भारत ने बहुत पहले ही कोहिनूर पर अपना दावा किया

कोहिनूर दुनिया के सबसे विवादित और क़ीमती हीरों में एक है.

इसे हासिल करने के लिए सदियों से साजिशें रची जाती रहीं, लड़ाईयां लड़ी गईं. यह कभी म़ुगलों के पास रहा तो कभी ईरानियों के पास, अफ़ग़ानों के पास तो पंजाबियों और मराठियों के पास. फ़िलहाल तो यह ब्रिटेन की रानी के मुकुट की शोभा बढ़ा रहा है.

105 कैरेट का यह अमूल्य हीरा 19वीं सदी के बीच में ब्रितानियों के हाथ पहुंचा. यह जिस मुकुट में लगा है, उसे टावर ऑफ लंदन में प्रदर्शनी में रखा गया है.

विलियम डैलरिंपल और अनीता आनंद ने एक किताब लिखी, "कोहिनूर: द स्टोरी ऑफ़ द वर्ल्ड्स मोस्ट इनफ़ेमस डायमंड"

इस किताब में कहा गया है कि तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौज़ी के हाथ यह हीरा 1849 में लगा. उन्होंने इसे और इसके साथ इसका इतिहास बताते हुए एक नोट रानी विक्टोरिया को भेजने की सोची.

उन्होंने इस पर शोध करने की ज़िम्मेदारी दिल्ली के जूनियर असिस्टेंट मजिस्ट्रेट थियो मैटकाफ़ को सौंपी. लेकिन बाज़ारों में लोकप्रिय गप्पों के अलावा कुछ ख़ास उनके हाथ नहीं आया.

कई तरह के मिथक इस हीरे से जुड़े हैं.

मिथक: कोहिनूर मुख्य रूप से भारत का हीरा है.

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ब्रिटेन की क्वीन मदर के मरने के बाद उनके ताबूत के ऊपर यह हीरा जड़ित मुकुट रखा गया.

सच: कोहिनूर जब ब्रिटेन पहुंचा, यह 190.30 मीट्रिक कैरेट का था. इसके अलावा इसी तरह के दो और हीरे थे. एक था दरिया-ए-नूर (रोशनी की नदी), जो 175-195 मीट्रिक कैरट का था. यह फ़िलहाल ईरान में है.

दूसरा था 189.90 मीट्रिक कैरेट का ग्रेट मुग़ल डायमंड. विशेषज्ञों का मानना है कि यह हीरा दरअसल मौजूदा ओर्लोव डायमंड ही था.

ईरानी शासक नादिर शाह ने 1739 में भारत पर हमला किया तो लूट के सामान के साथ ये तीनों हीरे भी लेता गया.

कोहिनूर 19वीं सदी के शुरू में ही पंजाब पहुंचा.

मिथ दो: कोहिनूर हीरे मे कोई खोट नहीं था.

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कोहिनूर हीरे का जड़ाऊ (ब्रोच) पहनी रानी विक्टोरिया

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सच: तराशे जाने के पहले हीरे में कई ख़ामियां थीं.

इसके बीचोबीच पीले रंग की लकीरें गुजरती थी. इनमें एक लकीर बड़ी थी और प्रकाश को ठीक से परावर्तित नहीं होने देती थी. इसी वजह से रानी विक्टोरिया के पति प्रिंस अल्बर्ट ने इसे फिर से तराशे जाने पर ज़ोर दिया था.

कोहिनूर दुनिया का सबसे बड़ा हीरा नहीं है. इस मामले में यह 90वें स्थान पर है.

टावर ऑफ लंदन में इसे देखने वाले सैलानी इस पर अचरज करते हैं कि यह इतना छोटा है. वे जब पास ही रखे दूसरे दो कुलीनन डायमंड हीरों से इसकी तुलना करते हैं तो ताज्जुब में पड़ जाते हैं.

मिथक तीन: कोहिनूर 13वीं सदी में भारत के कोल्लुर खदान से निकाला गया

सच: यह जानना नामुमकिन है कि कोहिनूर हीरा कब और कहां से निकला था. कुछ लोग तो यहां तक मानते हैं कि यह भगवद् गीता के कृष्ण का स्यमंतक हीरा ही है.

मैटकाफ़ ने अपनी रिपोर्ट में लिखा था कि यह हीरा "कृष्ण के जीवन काल में निकाला गया था."

हम तो यह जानते हैं कि यह हीरा किसी खदान से नहीं निकाला गया था. यह दक्षिण भारत की किसी सूखी नदी में मिला था. भारत में कभी भी खदान से खुदाई कर हीरा नहीं निकाला गया, वे नदियों में ही मिलते रहे हैं.

मिथ चार: कोहिनूर मुग़लों का सबसे मूल्यवान खज़ाना था

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हुमायूं की मौजूदगी में तैमूर को हीरा भेंट करते हुए बाबर. मुमकिन है कि यह कोहिनूर ही रहा हो

सच: हालांकि हिंदू और सिख हीरों को सबसे मूल्यवान मानते थे, मुग़ल और ईरानी बड़े और बग़ैर तराशे हुए जवाहरात को तरजीह देते थे.

मुग़लों के पास ढेर सारे मूल्यवान पत्थर थे और कोहिनूर उनमें बस एक और मूल्यवान हीरा था. मुग़लों के ख़ज़ाने में सबसे कीमती पत्थर हीरे नहीं होते थे. वे तो लाल स्पाइनल पत्थर, बदक्शन और बाद में बर्मा के लाल माणिक्य को अधिक पसंद करते थे.

दरअसल मुग़ल सम्राट हुमायूं ने बाबर का हीरा ईरान के शाह तहमस्प को दे दिया था. समझा जाता है कि वह कोहिनूर ही था.

बाबर का हीरा बाद में दक्षिण भारत लौट आया. पर यह साफ़ नहीं है कि वह मुग़ल दरबार कब और कैसे पंहुचा.

मिथक पांच: मुग़ल सम्राट मुहम्मद शाह रंगीला से पगड़ी बदलने की रस्म के दौरान यह हीरा होशियारी से ले लिया गया था.

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मयूर सिंहासन पर बैठे हुए शाहजहां

आम लोगों में यह कहानी मशहूर है कि मुग़ल सम्राट अपनी पगड़ी मे छिपा कर कोहिनूर रखते थे और नादिर शाह ने चालाकी इसे हथिया लिया था.

पर कोहिनूर एक अलग थलग पड़ा मूल्यवान पत्थर नहीं था कि मुहम्मद शाह गुप्त रूप से पगड़ी में रखते और नादिर शाह पगड़ी बदलने के नाम पर चालाकी से ले लेते.

ईरानी इतिहासकार मारवी ने प्रत्यक्षदर्शियों के हवाले से बताया कि यह हीरा पगड़ी में रखा ही नहीं जा सकता था क्योंकि वह उस समय तक बनाए गए सबसे क़ीमती फ़र्नीचर-मयूर सिंहासन में जड़वा दिया गया था. यह सिंहासन शाहजहां ने बनवाया था.

मिथ छह: वेनिश के एक शख़्स ने ग़लत तरीके से कोहिनूर को तराशा और उसकी पालिश की, जिससे उसका आकार बहुत छोटा हो गया.

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सच: मुग़ल सम्राट औरंगजेब ने फ्रांसीसी सैलानी ज्यां बैपटिस्ट तवेनिया को अपना निजी ख़ज़ाना दिखाया था. तवेनिया ने लिखा है कि होरेंशियो बोर्जियो ने वाकई काफ़ी बड़े हीरे को काट कर बहुत ही छोटा कर दिया था.

लेकिन वह हीरा ग्रेट मुग़ल डायमंड था, जिसे हीरे के व्यापारी मीर जुमला ने शाहजहां को उपहार में दिया था.

ज़्यादातर आधुनिक विद्वान यह मानते हैं कि ग्रेट मुग़ल डायमंड दरअसल ओर्लोव हीरा था. यह फ़िलहाल क्रेमलिन में कैथरीन के राजदंड में जड़ा हुआ है.

ग्रेट मुग़ल डायमंड को भुला दिया गया है, लिहाजा, सारा ध्यान कोहिनूर पर ही टिका है.

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