रूस का वो गांव जहाँ गोर्बाचोफ़ अब भी हीरो हैं
- सारा रेन्सफ़ोर्ड
- बीबीसी न्यूज़, दक्षिणी रूस से

सोवियत संघ के टुकड़े हुए 25 साल हो गए हैं और रूस के बहुत से लोग इस बिखराव के लिए मिखाइल गोर्बाचोफ़ को ज़िम्मेदार मानते हैं.
लेकिन ढाई दशक के बाद भी रूस का एक गांव है जहाँ गोर्बाचोफ़ पहले की तरह मशहूर हैं और उन्हें हीरो के रूप में देखा जाता है.
ये गांव है प्रिवोलनोए. यहां के लोग गोर्बाचोफ़ की तारीफ़ करते नहीं थकते. पश्चिमी देशों में गोर्बाचोफ़ को बिना खून बहाए शीत युद्ध खत्म करने वाले शख्स के रूप में देखा जाता है.
मैं राइसा कोपेकिना से मिली जो अपने पत्थर से बने घर के बाहर जमी बर्फ को हटा रही थीं. ये वही सड़क है जिस पर वो प्राइमरी स्कूल है जहाँ राइसा और गोर्बाचोफ़ साथ पढ़े थे.
राइसा बाद में रसायन विज्ञान की अध्यापिका बन गईं, जबकि किसान का बेटा जिसे तब वो मिशा के रूप में जानती थी्, कम्युनिस्ट पार्टी में लगातार आगे बढ़ता गया और बहुत जल्द ही शीर्ष पर पहुँच गया.
अपनी जवानी के दिनों की तस्वीरों के मेज पर पड़े गट्ठर को दिखाते हुए राइसा कहती हैं, "वह सामान्य से गांव के साधारण बालक थे और हमारी आंखों के सामने ही महासचिव बने."
वह कहती हैं, "वह बहुत चतुर थे और हमें गर्व है कि हम उनके साथ रहे और उनके साथ काम किया."
राइसा 25 दिसंबर 1991 के दिन को याद करती हैं जब उनके सहपाठी ने टेलीविजन पर अपने इस्तीफ़े की घोषणा की थी और अगले ही दिन सोवियत संघ औपचारिक रूप से टूट गया था.
प्रिवोलनोए में अब भी पुराने दिनों की यादें ताज़ा हैं.
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कुछ ही समय पहले वहाँ लेनिन की पत्थर की मूर्ति लगाई गई है, लेकिन अब वहाँ एक चर्च भी है. चर्च के वार्डन विक्टर कुदरिन बताते हैं कि यहाँ किस तरह से चीजें बदली हैं.
विक्टर कुदरिन का कहना है कि गोर्बाचोफ़ ने गांव के पुराने चर्च में योगदान दिया था.
कुदरिन बताते हैं, "मैं ईसाई था, लेकिन ये बात किसी को पता नहीं थी."
लेकिन अब हालात बदल गए हैं. गांव में 'पैलेस ऑफ़ कल्चर' के अंदर कुछ बुजुर्ग लोग इस बात को लेकर खुश हैं कि वो अब प्रार्थना करने के लिए आज़ाद हैं.
एक महिला याद करती हैं कि यहाँ आने वाली एक अमरीकी महिला कैसे अपने साथ बाइबिल लेकर आई थी और वो इस गांव की पहली बाइबिल थी.
पर सवाल उठता है कि जब सोवियत संघ के टुकड़े-टुकड़े होने के लिए बहुत से लोग गोर्बाचोफ़ को कोसते हैं तो फिर इस गांव में लोगों की भावनाएं अलग क्यों हैं?
एक व्यक्ति इसका जवाब देते हैं, "बेशक, गोर्बाचोफ़ ने हमारे गांव के लिए बहुत कुछ किया है, लेकिन जब बात सोवियंत संघ की आती है तो मन खराब हो जाता है."
मिखाइल गोर्बाचोफ़ (बाएं) एक किसान परिवार में पैदा हुए और 30 की उम्र में कम्युनिस्ट पार्टी के डेलिगेट बने.
रूस में अधिकांश लोगों को सोवियत संघ के बिखरने का दुख है और इसी महीने लेवादा केंद्र द्वारा कराए गए सर्वे में ऐसा मानने वालों की तादाद 56 प्रतिशत बताई गई है.
पिछले हफ्ते ही व्लादिमीर पुतिन के प्रवक्ता ने कहा था कि राष्ट्रपति अब भी सोवियत संघ के बिखराव को एक 'तबाही' के रूप में देखते हैं.
सोवियत संघ का टूटना सुपरपावर का खत्म होना था. एक पेंशनर निकोलई ने मुझसे कहा, "जर्मनी अब एकजुट है, लेकिन हमारा देश टूट गया. ये हमारे नेताओं की गलती थी. वे इसे बचा सकते थे."
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