वो 4 कारण जिससे अरब देशों ने क़तर से संबंध तोड़े

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सऊदी अरब और सयुंक्त अरब अमीरात समेत छह देशों के क़तर के साथ राजनयिक संबंध टूटने के लिए क्षेत्रीय और ऐतिहासिक कारण जिम्मेदार हैं.
1 - मुस्लिम ब्रदरहुड को समर्थन देने का आरोप
मध्य-पूर्व एशिया में कथित अरब क्रांति के दौरान क़तर पर मिस्र के पूर्व इस्लामिक राष्ट्रपति का समर्थन करने का आरोप लगता रहा है. सऊदी अरब और सयुंक्त अरब अमीरात ने मुस्लिम ब्रदरहुड 'आतंकी' संगठन का दर्जा देते हैं.
लेकिन क़तर ने इस संगठन के सदस्यों को अपनी बात रखने के लिए प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराया.
मिस्र के साथ क़तर के संबंधों में तनाव मिस्र के राष्ट्रपति मोहम्मद मोर्सी को अपदस्थ किए जाने के साथ ही शुरुआत हुई.
सऊदी अरब की आधिकारिक प्रेस एजेंसी ने क़तर पर मुस्लिम ब्रदरहुड, कथित दाएश (इस्लामिक स्टेट) और अल-कायदा को अपनाकर क्षेत्र में अस्थिरता पैदा करने का आरोप लगाया है.
हालांकि, क़तर ने इन आरोपों को आधारहीन बताया है.
क़तर, मिस्र के अपदस्थ राष्ट्रपति मोहम्मद मोर्सी का भी पुरज़ोर समर्थक है और उसे सीरिया में विद्रोही इस्लामिक समूहों का समर्थक माना जाता रहा है.
मोहम्मद मोर्सी हिज्बुल्ला के सदस्य थे जिसे कई अरब देश चरमपंथी संगठन मानते हैं.
मार्च 2014 में भी सऊदी अरब, बहरीन और संयुक्त अरब अमीरात ने क़तर पर उनके आंतरिक मामलों में दखल देने का आरोप लगाते हुए अपने राजदूत वापस बुला लिए थे.
लीबियाई संकट से भी जुड़े हैं तार
लीबिया साल 2011 में मुहम्मद गद्दाफी को अपदस्थ किए जाने के बाद से संकट के दौर से गुज़र रहा है. मिस्र से समर्थन हासिल करने वाले एक सैन्य अधिकारी खलीफा हफ्तार ने क़तर पर 'आतंकी संगठनों' को समर्थन देने का आरोप लगाया था.
हफ्तार तोब्रुक शहर में एक स्थित सरकार से जुड़े हुए हैं. वहीं, क़तर त्रिपोली शहर में स्थित एक प्रतिद्वंदी सरकार को समर्थन करता है.
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ईरान की तारीफ से दिक्कत?
क़तर के शेख की विवादित टिप्पणी ने कई संवेदनशील क्षेत्रीय मुद्दों को छेड़ा था लेकिन सबसे ज़्यादा नाराज़गी इसमें सऊदी अरब के धुर विरोध ईरान की तारीफ़ और सउदी अरब की निंदा से थी.
- रिपोर्टों के मुताबिक शेख तमीम ने कहा था, "ईरान से अरबों की दुश्मनी का कोई कारण नहीं है और इसरायल से हमारे रिश्ते अच्छे हैं. "
- ईरान के समर्थक लेबनान आधारित शिया आंदोलन हिज्बुल्लाह गुट के पक्ष में भी टिप्पणी की गई.
- क़तर की तरफ़ से इस टिप्पणी को फ़र्ज़ी बताए जाने के बाद भी सऊदी मीडिया में इस पर रिपोर्टें आती रहीं.
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क़तर की मीडिया पर काबू पाने की कोशिश
क़तर की तेल और गैस के मामले में समृद्धी और राजनयिक मामलों में अहम स्थान हासिल करने में इसकी न्यूज़ वेबसाइट अल जजीरा का बड़ा योगदान है. क़तर के पड़ोसी खाड़ी देशों के लिए ये चिंता का विषय बनी हुई है.
ऐतिहासिक तौर पर छह देशों को गल्फ़ को-ऑपरेशन काउन्सिल का नेतृत्व करने वाले सऊदी अरब ने क़तर सरकार से मीडिया पर काबू करने के लिए कई समझौते कर चुका है.
मिस्र भी इससे पहले क़तर की न्यूज़ वेबसाइट अल जज़ीरा पर चरमपंथ भड़काने और फर्ज़ी ख़बरें बनाने का आरोप लगाया था.
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अल जज़ीरा का झुकाव मिस्र की इस्लामिक ताकतों की तरफ़ रहा है और मिस्र के अपदस्थ पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद मोर्सी को हटाए जाने को सेना का तख्तापलट कहता रहा है.
मिस्र में अल जज़ीरा के पत्रकारों पर कार्रवाई भी जा चुकी है
अल जज़ीरा काफ़ी लोकप्रिय है लेकिन आलोचक इसे क़तर की विदेश नीति का एक औज़ार मानते हैं जो शायद ही कभी क़तर की सरकार के हितों को चुनौती दे.
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क़तर की अर्थव्यवस्था पर पड़ सकते हैं ये प्रभाव?
पड़ोसी खाड़ी देशों का एयरस्पेस प्रतिबंधित होने के बाद क़तर एयरवेज के लिए यूरोप और अन्य देशों की फ्लाइट्स मुश्किल हो जाएंगी.
जमीनी सीमा के नाम पर क़तर सिर्फ सऊदी अरब के साथ जुड़ा हुआ है, बॉर्डर बंद होने के बाद क़तर में रहने वाले लोगों के लिए खाने-पीने की चीजों के दाम बढ़ना लाज़मी है.
क़तर साल 2022 में फुटबॉल वर्ल्ड कप के आयोज़न की तैयारी कर रहा है, ऐसे में एक नया बंदरगाह, मेट्रो ट्रेन प्रोजेक्ट, और आठ स्टेडियमों के निर्माण का काम जारी है. जमीनी बॉर्डर बंद होने से क़तर को कच्चा माल मिलने में दिक्कत होने से इन प्रोजेक्ट्स में देरी हो सकती है.
क़तर में इस वक्त 1,80,000 मिस्र के निवासी रह रहे हैं जो इंजीनियरिंग, मेडिसिन, और कानून जैसे पेशों से जुड़े हुए हैं. इन नागरिकों के क़तर छोड़ने की स्थिति में क़तर को बड़ी संख्या में अपने पेशेवरों से हाथ धोना पड़ सकता है.
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