उर्दू प्रेस रिव्यू: 'अगर पाकिस्तानी और भारतीय नेता मिलकर किताब लिख दें तो..'

पाकिस्तान से छपने वाले उर्दू अख़बारों में इस हफ़्ते पाकिस्तान में होने वाले आम चुनाव से जुड़ी ख़बरों के अलावा एक किताब के बारे में ज़ोर-शोर से चर्चा हो रही है.
तो सबसे पहले बात करते हैं उस किताब की जो इन दिनों पाकिस्तान की पूरी मीडिया में छाई हुई है. दरअसल इस किताब की बात ही कुछ और है.
भारतीय ख़ुफ़िया एजेंसी 'रॉ' के पूर्व प्रमुख एएस दुलत और पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई के पूर्व प्रमुख ले.ज (सेवानिवृत) असद दुर्रानी ने मिलकर 'द स्पाई क्रॉनिकल्स: रॉ, आईएसआई एंड द इल्यूजन ऑफ़ पीस' नाम की किताब लिखी है.
भारतीय मीडिया में तो इस किताब को लेकर कोई ख़ास चर्चा नहीं हो रही है, लेकिन पाकिस्तान में तो इसको लेकर बवाल मचा हुआ है.
अख़बार 'जंग' के मुताबिक़ पाकिस्तानी सेना का कहना है कि किताब में लिखी कई बातें हक़ीक़त से कोसों दूर हैं और इसलिए लेफ़्टिनेंट जनरल असद दुर्रानी को अपनी स्थिति स्पष्ट करनी होंगी.
अख़बार ने सेना के प्रवक्ता मेजर जनरल आसिफ़ ग़फ़ूर के हवाले से लिखा है कि जनरल दुर्रानी को 28 मई को सेना मुख्यालय तलब किया गया है.
पाकिस्तान के हित
अख़बार के अनुसार जनरल दुर्रानी को तलब कर सेना ने ये स्पष्ट संदेश देने की कोशिश की है कि अगर सेना का कोई पूर्व जनरल भी पाकिस्तान के राष्ट्रीय हितों के ख़िलाफ़ कोई बात कहेगा तो उसके ख़िलाफ़ भी कड़ी कार्रवाई की जाएगी.
दुलत और दुर्रानी ने मिलकर जो किताब लिखी है उसमें करगिल युद्ध, पाकिस्तान के एबटाबाद में अमरीकी नेवी सील्स का ओसामा बिन लादेन को मारने का ऑपरेशन, कुलभूषण जाधव की गिरफ़्तारी, हाफ़िज़ सईद, कश्मीर, बुरहान वानी वग़ैरह मुद्दों पर बातचीत की गई है.
अख़बार 'दुनिया' के मुताबिक़ पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ ने कहा है कि दुर्रानी की किताब पर बहस करने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा काउंसिल की आपातकालीन बैठक बुलाई जाए और इस पर एक राष्ट्रीय आयोग का गठन किया जाए.
अख़बार के अनुसार नवाज़ शरीफ़ ने कहा है कि अगर उनकी पार्टी सत्ता में आती है तो वो राष्ट्रीय त्रासदी पर एक राष्ट्रीय आयोग का गठन करेंगे.
संसद में बहस
'रोज़नामा ख़बरें' के अनुसार पाकिस्तानी संसद की उपरी सदन सीनेट ने भी इस बारे में गृह और रक्षा मंत्रालय से जवाब मांगा है.
सीनेट के चेयरमैन सादिक़ संजरानी ने सख़्त लहजे में कहा कि अगर किसी पाकिस्तानी राजनेता ने भारत के किसी राजनेता के साथ मिलकर इस तरह की कोई किताब लिखी होती तो ज़मीन आसमान एक कर दिया गया होता और किताब लिखने वाले पर अब तक ग़द्दारी के फ़तवे लग चुके होते.
जमात-ए-इस्लामी के नेता सीनेटर मुशताक़ अहमद ख़ान ने कहा है कि दोनों देशों के पूर्व ख़ुफ़िया प्रमुखों की साझा किताब चिंता का विषय है.
'ख़बरें ग्रुप' के संपादक इम्तनान शाहिद ने बाज़ाब्ता अपनी बाइलाइन से संपादकीय लिखा है कि इस किताब के ज़रिए जनरल दुर्रानी ने ये साबित करने की कोशिश की है कि पाकिस्तानी भारत प्रशासित कश्मीर में चरमपंथी गतिविधियों को बढ़ावा देता है और ओसामा बिन लादेन की सूरत में पाकिस्तान एक दहशतगर्द को पालता था.
पाकिस्तान में चुनाव मुद्दा
किताब के अलावा पाकिस्तान में होने वाले आम चुनाव से जुड़ी ख़बरें भी सुर्ख़ियां बटोरती रहीं.
अख़बार 'नवा-ए-वक़्त' के अनुसार 25 जुलाई को पाकिस्तान में संसद और प्रांतीय विधानसभाओं के लिए चुनाव होंगे.
अख़बार के अनुसार चुनाव आयोग ने 25 से 27 जुलाई के बीच चुनाव कराने की अनुमति मांगी थी.
पाकिस्तान के राष्ट्रपति ममनून हुसैन ने 25 जुलाई को चुनाव कराने का फ़ैसला किया है. मौजूदा सरकार का कार्यकाल 31 मई को ख़त्म हो रहा है.
पाकिस्तान के क़ानून के मुताबिक़ वहां एक कार्यवाहक प्रधानमंत्री और राज्यों में कार्यवाहक मुख्यमंत्रियों की निगरानी में चुनाव कराए जाते हैं.
राज्यों में कार्यवाहक मुख्यमंत्रियों की नियुक्ति पर सत्तारुढ़ मुस्लिम लीग (नवाज़) और विपक्षी पार्टियों में सहमति हो गई है लेकिन कार्यवाहक प्रधानमंत्री पर अभी तक सहमति नहीं बन पाई है. इस बीच सभी पार्टियों ने चुनावी तैयारियां में पूरी ताक़त लगा दी है.
इमरान ख़ान का चुनावी वादा
पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ के प्रमुख इमरान ख़ान ने तो चुनावी घोषणा पत्र भी जारी कर दिया है.
सत्ता में आने के सौ दिन के अंदर क्या काम करेंगे इमरान ख़ान ने इसका ब्यौरा जारी किया है.
अख़बार 'दुनिया' के मुताबिक़ इमरान ख़ान ने दावा किया है कि उनका उद्देश्य पाकिस्तान को एक कल्याणकारी राज्य बनाना है.
लेकिन विपक्षी पार्टी पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी ने इमरान ख़ान का मज़ाक़ उड़ाते हुए उसे शेख़ चिल्ली की कहानियां क़रार दिया है.
अख़बार 'एक्सप्रेस' के मुताबिक़ पत्रकारों से बात करते हुए पीपीपी की नेता नफ़ीसा शाह ने कहा, "इमरान ख़ान ने 50 दिन में 100 लोटे इकट्ठे किए. उनके पास हर साइज़ में हर रंग के लोटे और ड्रम मौजूद हैं. उनके हाथ में प्रधानमंत्री की लकीर ही नहीं है."
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