पाकिस्तान चुनावों में इस बार क्यों गायब है 'कश्मीर मुद्दा'

  • अखिल रंजन
  • बीबीसी मॉनिटरिंग
पाकिस्तान में चुनाव

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पाकिस्तान में आम चुनाव 25 जुलाई को होने हैं. जैसे-जैसे समय नजदीक आ रहा है, वहां चुनावी सरगर्मियां तेज़ हो रही हैं.

राजनीतिक पार्टियां जनता से वादे और दावे कर रही हैं.

इस बार मुस्लिम लीग, पीपीपी और पीटीआई जैसी मुख्य पार्टियां आर्थिक विकास, रोजगार, सस्ती स्वास्थ्य सेवाएं, जल संकट और बिजली जैसी मूलभूत ज़रूरतों पर बात कर रही हैं.

लेकिन उनकी चुनावी रैलियों और घोषणा पत्रों से कुछ ऐसे मुद्दे गायब हैं, जिन पर पहले वे कभी लड़ा करते थे. कश्मीर का मुद्दा इनमें से एक है.

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पार्टियां पाकिस्तानी सेना की लाइन से इतर कुछ भी बात नहीं कर रही हैं.

वो चीन से अपने संबंधों को और बेहतर करने और सिंधु नदी जल समस्या पर ही बात कर रही हैं.

कश्मीर का मुद्दा

क्रिकेटर से राजनेता बने इमरान ख़ान भी पिछले चुनावों तक 'कश्मीर विवाद' पर खुलकर बात करते थे. लेकिन पांच साल बाद उनकी पार्टी के घोषणा पत्र से ये मुद्दा गायब है. उन्होंने नौ जुलाई को 'द रोड टू न्यू पाकिस्तान' नाम से घोषणा पत्र जारी किया था.

बलूचिस्तान का मुद्दा भी पाकिस्तान की राजनीति का हिस्सा रहा है. यह अलगाववादी विद्रोहियों का घर रहा है, जहां पाकिस्तान के सुरक्षाबलों पर अधिकारों के हनन के आरोप लगते रहे हैं.

यह मुद्दा भी मुस्लिम लीग के घोषणा पत्र से गायब है. जनवरी तक मुस्लिम लीग यहां की गठबंधन सरकार का हिस्सा रही थी.

2013 के चुनावों में मुस्लिम लीग के घोषणा पत्र में बलूचिस्तान के अधिकारों को पुनर्स्थापित करने की बात कही गई थी.

पाकिस्तान का अख़बार डॉन लिखता है, "बलूचिस्तान पर भयंकर चुप्पी लोकतांत्रिक विचार रखने वाले और बुद्धिजीवियों के लिए चिंता का विषय है."

हालांकि पीपीपी ने अपने इस साल के घोषणा पत्र में कहा है कि बलूचिस्तान की स्थिति "नाजकु बनी हुई है" और "एक नई पहल की तत्काल ज़रूरत" है.

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अफ़ग़ानिस्तान का मुद्दा

पाकिस्तान हमेशा से खुद को अफ़ग़ानिस्तान की शांति प्रक्रिया में एक बड़ा सहायक बताता आया है. अमरीका भी कई मौकों पर पाकिस्तान को अफ़ग़ान तालिबान को बातचीत के लिए राजी कराने को कहा चुका है.

पिछले हफ्ते अमरीका के एक विशेष दूत ने इस्लामाबाद और काबुल का दौरा किया था, जिसके बाद उन्होंने कहा था कि पाकिस्तान को अफ़ग़ानिस्तान में शांति प्रक्रिया की बहाली में "मदद करने" की ज़रूरत है.

इसके बाद पाकिस्तान ने अफ़ग़ानिस्तान से अपनी सीमा साझा की और करीब 14 लाख शरणार्थियों को रहने की जगह दी.

पाकिस्तान की राष्ट्रीय राजनीति में शरणार्थियों का मुद्दा लंबे वक्त तक रहा है. इस पर पार्टियां खुल कर बात करती थी पर इस चुनाव में यह मुद्दा पूरी तरह गायब है.

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अमरीका से संबंध

साल 1947 में देश की स्थापना के बाद अमरीका पहला ऐसा देश था जो पाकिस्तान से रणनीतिक तौर पर जुड़ा था.

हालांकि पिछले कुछ दशकों में दोनों देशों के बीच संबंधों में काफी उतार-चढ़ाव देखने को मिला है, ख़ासकर डोनल्ड ट्रंप के अमरीका के राष्ट्रपति बनने के बाद.

आतंकवाद और अफ़ग़ानिस्तान का मुद्दा दोनों देशों के बीच नजदीकियां और दूरियां बढ़ाने की वजह रहे हैं. ऐसे में पीटीआई चीन से संबंधों पर बात तो कर रही है पर अमरीका पर सभी पार्टियों ने चुप्पी साध रखी है.

लगभग सभी पार्टियों ने चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा को पूरा करने की बात कही है.

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