सुब्रमण्यम स्वामी के कारण भारत मालदीव में बढ़ी टेंशन?

  • टीम बीबीसी हिन्दी
  • नई दिल्ली
सुब्रमण्यम स्वामी

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मालदीव के स्थानीय मीडिया के अनुसार वहां के भारतीय राजदूत अखिलेश मिश्रा को समन भेजा गया है.

मालदीव के स्थानीय मीडिया का कहना है कि मालदीव के विदेश मंत्रालय ने मिश्रा को बीजेपी के राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी के एक ट्वीट को लेकर समन भेजा है.

स्वामी ने 24 अगस्त को एक ट्वीट कर कहा था कि 23 सितंबर को मालदीव में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में अगर धांधली होती है तो भारत को हमला कर देना चाहिए.

स्वामी ने ये बात श्रीलंका की राजधानी कोलंबो में मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद से मुलाक़ात के बाद कही थी.

मोहम्मद नशीद निर्वासित जीवन जी रहे हैं.

नशीद ने स्वामी से मालदीव में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में धांधली की बात कही थी.

स्वामी के इस ट्वीट से दोनों देशों के बीच तनाव और बढ़ गया है.

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हालांकि भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने इस ट्वीट पर स्पष्टीकरण भी दे चुके हैं. उन्होंने कहा है कि स्वामी का ट्वीट उनकी निजी सोच है और इस ट्वीट को भारत सरकार की आधिकारिक राय से नहीं जोड़ना चाहिए.

हालांकि जब विवाद बढ़ा, तो स्वामी ने दो दिन बाद एक ट्वीट कर सफ़ाई भी दी. उन्होंने 26 अगस्त को किए एक ट्वीट में लिखा है, ''मालदीव की वर्तमान सरकार मेरे 'अगर मगर' वाले बयान से परेशान क्यों है. मालदीव में रह रहे भारतीय पहले से ही डरे हुए हैं. हमें अपने नागरिकों की सुरक्षा करनी है.''

स्वामी के इस ट्वीट को मालदीव में हाथों-हाथ लिया गया. मालदीव की वर्तमान सरकार चीन के क़रीब मानी जाती है और ये भी कहा जाता है कि भारत से इस सरकार के रिश्ते अच्छे नहीं हैं.

ऐसे में स्वामी का ट्वीट आग की तरह फैला.

मालदीव की स्थानीय भाषा धिवेही के अख़ाबार मिहारू में ख़बर छपी है कि मालदीव के विदेश सचिव अहमद सरीर ने भारतीय राजदूत अखिलेश मिश्रा को बुलाकर सवाल-जवाब किया है.

अखिलेश मिश्रा

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मालदीव में भारत के राजदूत अखिलेश मिश्रा

टकराव

हालांकि अंग्रेज़ी अख़बार मालदीव इंडिपेंडेंट से मालदीव के विदेश मंत्रालय की राजनीतिक निदेशक हीना वलीद ने कहा है कि उन्हें अभी तक समन भेजने की सूचना नहीं मिली है.

हीना वलीद ने कहा है कि भारतीय राजदूत अखिलेश मिश्रा रविवार को विदेश मंत्रालय गए थे. उन्होंने कहा कि मिश्रा ने विदेश मंत्री डॉ मोहम्मद असीम और सात अन्य राजनयिकों से बातचीत की थी.

माले में भारतीय दूतावास की प्रेस अधिकारी अर्चना नायर ने भी मालदीव इंड़िपेंडेंट से कहा है कि उन्हें समन की जानकारी नहीं है और वो स्थानीय मीडिया के आधार पर कुछ कह नहीं सकतीं.

मालदीव के इस्लामिक गुट जमीयातुल सलफ़ ने स्वामी के बयान पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है. इस गुट ने मोहम्मद नशीद पर निशाना साधते हुए कहा है कि अपने ही देश के नेता हमले के लिए उकसा रहे हैं.

इस समूह ने एक बयान में कहा है, ''हम स्पष्ट करना चाहते हैं कि एक स्वतंत्र और संप्रभु इस्लामिक राष्ट्र को अपने ही लोगों द्वारा दुश्मनों के साथ मिलकर ख़तरे में डालना शरिया में बड़ा पाप है.''

अखिलेश मिश्रा

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भारत-मालदीव के बिगड़ते संबंध

पिछले कुछ सालों में भारत और मालदीव के रिश्ते बहुत ख़राब हुए हैं. जो मालदीव कभी भारत के क़रीब हुआ करता था अब चीन के पाले में है. भारत और मालदीव के रिश्तों में इस साल सबसे ज़्यादा कड़वाहट आई है.

इसकी शुरुआत मालदीव के सुप्रीम कोर्ट के एक फ़रवरी के फ़ैसले से हो गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने फ़ैसला दिया था कि राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन ने विपक्ष के नेताओं को क़ैद करवाकर संविधान और अंतरराष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन किया है.

कोर्ट ने यह भी आदेश दिया था कि सरकार पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नाशीद समेत सभी विपक्षी नेताओं को रिहा करे. सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश को राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन ने मानने से इनकार कर दिया.

इसके साथ ही यामीन ने देश में आपातकाल की घोषणा कर दी थी. यह आपातकाल 45 दिनों तक चला. भारत ने इस आपातकाल का विरोध किया था. भारत ने कहा था कि मालदीव में सभी संवैधानिक संस्थाओं को बहाल करना चाहिए और आपातकाल को तत्काल ख़त्म करना चाहिए.

नरेंद्र मोदी

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चीन के पाले में मालदीव

मालदीव में नाटकीय राजनीतिक संकट भारत को परेशान करने वाला था. इसी संकट के बीच यामीन ने चीन, पाकिस्तान और सऊदी अरब में अपने दूत भेजे. इसके बाद चीन ने चेतावनी दी कि मालदीव के आंतरिक मामले में किसी भी देश को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए और अंतरराष्ट्रीय समुदाय इसमें रचनात्मक भूमिका अदा करे.

चीन ने कहा था कि किसी भी सूरत में मालदीव की संप्रभुता का उल्लंघन नहीं होना चाहिए. दूसरी तरफ़ मालदीव के विपक्षी नेता नशीद चाहते थे कि भारत मदद करे.

वो भारत से सैन्य हस्तक्षेप की भी उम्मीद कर रहे थे ताकि जजों को हिरासत से मुक्त कराया जा सके. नाशीद ने अमरीका से भी मदद की गुहार लगाई.

इस गतिरोध के बीच समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने एक चीनी न्यूज़ वेबसाइट के हवाले से बताया कि चीन के दो युद्धपोत मालदीव पहुंच गए हैं. भारतीय नेवी ने भी इस बात की पुष्टि की कि चीनी युद्धपोत सुंदा और लोंबोक जलडमरुमध्य से आगे बढ़ रहे हैं.

नरेंद्र मोदी

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हालांकि चीनी युद्धपोत की हिंद महासागर में तैनाती कोई नहीं बात नहीं है. चीन का जिबूती में पहले से ही एक सैन्य ठिकाना है. मालदीव में चीन की मौजूदगी बढ़ने के बाद से भारत के पांव उखड़ते गए.

चीन के लिए मालदीव सामरिक रूप से काफ़ी अहम ठिकाना है. मालदीव रणनीतिक रूप से जिस समुद्री ऊंचाई पर है वो काफ़ी अहम है. चीन की मालदीव में मौजूदगी हिंद महासागर में उसकी रणनीति का हिस्सा है. 2016 में मालदीव ने चीनी कंपनी को एक द्वीप 50 सालों की लीज महज 40 लाख डॉलर में दे दिया था.

दूसरी तरफ़ भारत के लिए भी मालदीव कम महत्वपूर्ण नहीं है.

मालदीव भारत के बिल्कुल पास में है और वहां चीन पैर जमाता है तो भारत के लिए चिंतित होना लाज़मी है. भारत के लक्षद्वीप से मालदीव क़रीब 700 किलोमीटर दूर है और भारत के मुख्य भूभाग से 1200 किलोमीटर.

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