'भारत को निशाना' बनाने वाले सीनियर हक़्क़ानी की मौत

जलालुद्दीन हक़्क़ानी

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जलालुद्दीन हक़्क़ानी के गुट का कई बड़े चरमपंथी हमलों के पीछे हाथ माना जाता है.

अफ़गान तालिबान ने घोषणा की है कि चरमपंथी गुट हक़्क़ानी नेटवर्क के संस्थापक जलालुद्दीन हक़्क़ानी की एक लंबी बीमारी के बाद मौत हो गई है.

हक़्क़ानी का चरमपंथी गुट अफ़ग़ानिस्तान में भारत के ठिकानों पर कुछ हमलों के लिए ज़िम्मेदार माना जाता रहा है.

साल 2008 में काबुल में भारतीय दूतावास पर हुए हमले में 58 लोग मारे गए थे.

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7 जुलाई 2008 - काबुल में भारतीय दूतावास पर हमले में कई लोग मारे गए. इस तस्वीर में भारतीय और अफ़गान अधिकारी एक कार से शव निकाल रहे हैं.

भारत का कहना था कि इस हमले के पीछे हक़्क़ानी नेटवर्क का ही हाथ था.

इसी गुट पर अफ़ग़ानिस्तान भारत के अलावा कई देशों के दूतावासों, अफ़ग़ान संसद की इमारत, स्थानीय बाज़ारों और कई अमरीकी सैन्य अड्डों पर हमले के लिए ज़िम्मेदार बताया जाता है.

ग़ौरतलब है कि अफ़ग़ानिस्तान की संसद के भवन का निर्माण भारत के सहयोग से ही हुआ है.

'तालिबान से रिश्ते'

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जलालुद्दीन हक़्क़ानी (बाईं ओर) पाकिस्तान की जमाते इस्लामी के प्रमुख क़ाज़ी हुसैन अहमद के साथ साल 2001 में इस्लामाबाद में मुलाक़ात के दौरान.

वो अफ़ग़ानिस्तान में अहम शख़्सियत थे और उनके तालिबान के अलावा अल-क़ायदा से भी नज़ीदीकी रिश्ते थे.

हाल के वर्षों में हक़्क़ानी नेटवर्क ने अफ़ग़ान और नेटो सेनाओं के कई ठिकानों पर सिलसलेवार हमले किए हैं. ऐसा माना जाता है कि साल 2001 के बाद से हक़्क़ानी नेटवर्क की कमान जलालुद्दीन हक़्क़ानी के बेटे को थमा दी गई थी.

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कई बार उड़ी अफ़वाह

जलालुद्दीन हक़्क़ानी की मौत के बारे में जारी बयान में मरने की तारीख़ और जगह का कोई ज़िक्र नहीं है.

अफ़ग़ान तालिबान ने बयान में कहा है, "जैसे अपनी जवानी में उन्होंने अल्लाह और उसके मज़हब के लिए मुसीबतें झेलीं, वैसी बाद के सालों में उन्होंने बीमारी से लंबे समय तक संघर्ष किया. "

जलालुद्दीन हक़्क़ानी की मौत की अफ़वाहें कई सालों से उड़ती आ रही हैं.

साल 2015 में हक़्क़ानी नेटवर्क के करीबी सूत्रों ने बीबीसी को बताया था कि जलालुद्दीन साल भर पहले मर चुके हैं. लेकिन इस बात का तस्दीक कभी नहीं हो सकी.

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तालिबान लड़ाके का इंटरव्यू

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'आदर्श योद्धा'

जलालुद्दीन हक़्क़ानी 1980 के दशक में अफ़ग़ानिस्तान में सोवियत सेना के ख़िलाफ़ गुरिल्ला संघर्ष के बाद ख़बरों में आए थे.

ये बात अमरीका भी मानता है कि वो एक ज़माने में अमरीकी ख़ुफ़िया एजेंसी सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी यानी सीआईए के ख़ास थे.

साल 1996 में अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान का शासन आने के बाद हक़्क़ानी नेटवर्क उनका सहयोगी बन गया था. जलालुद्दीन हक़्क़ानी तालिबान सरकार में मंत्री भी थे.

तालिबान ने अपने बयान में जलालुद्दीन हक़्क़ानी को एक 'आदर्श योद्धा' बताते हुए लिखा है कि वो अपने दौर के नामी जिहादी थे.

ऐसा माना जाता है कि जलालुद्दीन ने पाकिस्तान के दारुल हक़्क़ानियां मदरसे से तालीम हासिल की थी. इस मदरसे के तालिबान से गहरे संबंध बताए जाते हैं.

धाराप्रवाह अरबी बोलने वाले हक़्क़ानी ने अल-क़ायदा के पूर्व प्रमुख ओसामा बिन लादेन से भी नज़दीकी रिश्ते बनाए थे.

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अफ़ग़ान सेना ने गज़नी से तालिबान लड़ाकों को भगाया

साल 2001 में अफ़ग़ानिस्तान में अमरीकी सैन्य अभियान के बाद, पाकिस्तान-अफ़ग़ानिस्तान सीमा पर सक्रिय हुए संगठनों में हक़्क़ानी नेटवर्क प्रमुख था.

ये गुट पाकिस्तान की सीमा के भीतर से ही काम करता है. काबुल में साल 2017 में विस्फोटकों से भरे ट्रक से धमाका किया गया था जिसमें 150 लोग मारे गए थे. इस हमले के लिए हक़्क़ानी नेटवर्क को ज़िम्मेदार माना जाता है.

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