ईरान के तेल पर कितना निर्भर है भारत?
- नितिन श्रीवास्तव
- बीबीसी संवाददाता

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भारत और अमरीका के बीच 2+2 नाम वाली पहली बड़ी बातचीत ख़त्म तो हुई लेकिन शायद सबसे अहम मुद्दे पर परिणाम नहीं निकला.
मामला है भारत का ईरान से कच्चे तेल का आयात. कच्चा तेल या क्रूड ऑयल आयात करने वाले दुनिया के शीर्ष देशों में भारत भी है.
सऊदी अरब, इराक़, नाइजीरिया अरु वेनेज़ुएला के आलावा भारत में क़रीब 12% कच्चा तेल सीधे ईरान से आता है.
सरकारी आंकड़ों के अनुसार पिछले वर्ष भारत ने ईरान से क़रीब सात अरब डॉलर के कच्चे तेल का आयात किया था.
लेकिन पिछले कुछ दिनों से भारत पर ज़बरदस्त अमरीकी दबाव है कि वो ईरान से कच्चा तेल आयत करना बंद करे.
2018 के मई महीने में अमरीका ने ईरान पर दोबारा प्रतिबंध लगाने के अलावा एक नया फ़रमान जारी कर कहा था कि भारत, चीन और पाकिस्तान समेत एशिया के देश ईरान से तेल आयात बंद कर दें.
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बुधवार को दिल्ली में अमरीका के विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने कहा, "दूसरे देशों की तरह हमने भारत से भी कहा है कि चार नवंबर से ईरान से कच्चे तेल के निर्यात पर प्रतिबंध लग जाएंगे. उन मामलों पर हम आगे चल के ग़ौर करेंगे जिनको इन प्रतिबंधों में छूट दी जाएगी. लेकिन फ़िलहाल हमारी उम्मीद है कि हर देश ईरान से ख़रीदने वाले क्च्चे तेल की मात्रा को ज़ीरो (शून्य) तक ले आएँगे."
हालांकि भारत ने लगातार कहा है कि वे इस मामले पर 'बिना किसी दबाव फ़ैसला लेंगे', लेकिन आधिकारिक अमरीकी बयानों के चलते भारत की दुविधाएं बढ़ गई हैं.
तेल मामलों के जानकार और फ़िलहाल भाजपा सदस्य नरेंद्र तनेजा मानते हैं कि, "चीज़ें उतनी सरल नहीं है जितना दिखती हैं."
उन्होंने कहा, "ईरान पर लगाए गए पुराने प्रतिबंधों और हाल के प्रतिबंध में फ़र्क है. पुराने प्रतिबंध बहुत से देशों ने मिल-जुल कर लगाए थे जबकि इस बार यूरोपीय संघ जैसे बड़े ब्लॉक इसमें शामिल नहीं हैं. इस बार अमरीका के एक तरफ़ा प्रतिबंध हैं. हालांकि अमरीका और भारत के सामरिक संबंधों को देखते हुए थोड़ी दुविधा होना लाज़मी है."
भारत सरकार के आंकड़ों के मुताबिक इराक़ और सऊदी अरब के बाद भारत को तेल सप्लाई करने के मामले में ईरान का नंबर आता है.
दूसरी अहम बात ये है कि कच्चे तेल को ईरान से भारत लाने की क़ीमत दूसरे देशों के मुक़ाबले कम है और अरब जैसे खाड़ी देशों के मुक़ाबले ईरान भुगतान के मामले में ज़्यादा बड़ी समय-सीमा देता है.
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तीसरा, भारत और ईरान में तेल की क़ीमतों अदा करने का ज़रिए आसान है और हाल में भारत ने एक ईरानी बैंक को मुंबई में अपनी ब्रांच खोलने की इजाज़त भी दे दी है.
चौथा, अपने सामरिक हितों के मद्देनज़र भारत ने लाखों अमरीकी डॉलर ईरान के चाबहार बंदरगाह में निवेश किए हैं.
व्यापार बढ़ाने के अलावा इसका उद्देश्य पड़ोसी अफ़ग़ानिस्तान में व्यापार का खुला रास्ता भी है.
ईरान के पास मौजूद विशाल प्राकृतिक गैस भंडार और भारत में इसकी बढ़ती ज़रूरतें भी फ़ैक्टर है.
तो भारत और ईरान के बीच दोस्ती के मुख्य रूप से दो आधार हैं. एक भारत की ऊर्जा ज़रूरतें हैं और दूसरा ईरान के बाद दुनिया में सबसे ज़्यादा शिया मुस्लिम भारत में होना.
वैसे मुंबई में कुछ महीने पहले पत्रकारों से बात करते हुए भारत के पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने किसी भी दबाव से इनकार किया था.
उन्होंने कहा था, "हमें इस बात का एहसास है कि तेल की आपूर्ती के लिए कई स्त्रोत होने चाहिए. इसके बाद की सभी चीज़ें अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर छोड़ देनी चाहिए. हम सदैव अपना हित देखेंगे. जब भी ईरान मामले पर कोई फ़ैसला होगा, आप लोगों को ज़रूर बताया जाएगा".
हालांकि जब से अमरीका के ट्रंप प्रशासन ने ईरान से तेल आयात करने पर पूर्ण प्रतिबंध की बात कही है, तब से अपुष्ट खबरें आईं हैं कि भारत ने अपनी पेट्रोलियम रिफ़ाइनरियों से "दूसरे इंतज़ाम के लिए तैयार रहने को भी कह दिया है."
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उधर नए अमरीकी प्रतिबंधों ने ईरान को भी परेशान कर रखा है. साल की शुरुआत में ईरानी रियाल की क़ीमत डॉलर की तुलना आधी हो चुकी थी.
कुछ महीने पहले ईरान में वो हुआ जो पिछले कुछ सालों से नहीं हुआ था. सरकार के ख़िलाफ़ बड़ी तादाद में लोग तेहरान की सड़कों पर उतरे थे.
तेल निर्यातक देशों के संगठन ओपेक ने कुछ महीने पहले तेल उत्पादन बढ़ाने का फ़ैसला किया था और अमरीका के समर्थन वाला ये क़दम ईरान को और परेशान करने वाला है.
तीखे अमरीकी रुख़ और ईरान की आर्थिक मुश्किलों के चलते वो तेल का उत्पादन बढ़ाने की स्थिति में नहीं है.
लेकिन गोवा यूनिवर्सिटी के अंतर्राष्ट्रीय सम्बंध विभाग में पश्चिम एशिया मामलों के जानकार प्रोफ़ेसर राहुल त्रिपाठी को लगता है, "दोनों देशों के बीच तेल के व्यापार से ज़्यादा का रिश्ता है."
उनके मुताबिक़, "व्यापार के अलावा दोनों देशों में सांस्कृतिक और धार्मिक घनिष्ठ रही है. अर्थशास्त्र ज़रूरी है और ज़ाहिर तौर पर इसमें तेल की सप्लाई का बड़ा महत्व है, लेकिन तेल ही सब कुछ नहीं."
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