सीरिया: अमरीका के बाद कौन करेगा आईएस को क़ाबू?

  • प्रोफ़ेसर मुक्तदर ख़ान
  • डेलावेयर विश्वविद्यालय, अमरीका, बीबीसी हिंदी के लिए
सीरिया

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अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने बीते दिनों तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन के साथ फोन पर बात की और इसी दौरान सीरिया से अमरीकी सेनाओं को वापस बुलाने का फ़ैसला किया.

इसी फ़ोन कॉल के दौरान जब ट्रंप ने अर्दोआन से पूछा कि अगर अमरीका सीरिया से बाहर निकल जाता है तो क्या तुर्की कथित इस्लामिक स्टेट के बचे-खुचे अस्तित्व को ख़त्म कर सकता है. अर्दोआन ने इसके जवाब में हामी भरते हुए कहा कि तुर्की के लिए ऐसा करना संभव है.

तुर्की के राष्ट्रपति के इस जवाब के बाद ट्रंप ने किसी से सलाह लिए बिना जवाब दिया कि अगर तुर्की ऐसा कर सकता है तो अमरीका सीरिया से बाहर निकल रहा है.

इस कॉन्फ्रेंस कॉल में ट्रंप के साथ अमरीका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन भी मौजूद थे. मुझे लगता है कि ये जानकारी बोल्टन के दफ़्तर से ही लीक हुई है.

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ट्रंप के फ़ैसले से फंसा तुर्की

ट्रंप के इस फ़ैसले ने तुर्की के लिए बड़ी समस्या को जन्म दे दिया है.

तुर्की ये चाहता था कि अमरीका कुर्दिश लड़ाकों के एक संगठन वाईपीजी को दिए अपने हथियार वापस ले ले.

लेकिन अमरीका ने कहा है कि वो इस्लामिक स्टेट के पूरी तरह ख़त्म होने से पहले हथियार वापस नहीं लेगा.

वाईपीजी वो संगठन है जो सीरियाई युद्ध के मैदान में अमरीका की ओर से लड़ते हुए अमरीकी सिपाहियों की जगह अपना खून पसीना बहाता है.

इस क्षेत्र में अमरीका ने सिर्फ पांच हज़ार सैनिकों को तैनात कर रखा है. ये सैनिक खुफिया जानकारी के आदान-प्रदान और ड्रोन से जुड़े ऑपरेशनों में काम करते हैं और ज़मीन पर वाईपीजी के लड़ाके युद्ध करते हैं.

प्रॉक्सी वॉर का दौर

सीरियाई युद्धक्षेत्र में हर बड़ा देश अपने स्तर पर किसी न किसी संगठन का समर्थन कर रहा है.

मिसाल के लिए ईरान ने सीरिया और इराक़ में हिजबुल्लाह के लड़ाकों का इस्तेमाल किया.

तुर्की ने सीरियाई सरकार के विपक्षी खेमे का समर्थन किया और रूस बशर अल असद की सरकार का समर्थन करता है.

अमरीका के लिए वाईपीजी संगठन काम करता है.

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सीरियाई ज़मीन पर अमरीका के नाम पर वाईपीजी नाम के इसी कुर्दिश लड़ाका संगठन ने काम किया है.

अमरीका ने इस संगठन को काफ़ी मात्रा में हथियार दे रखे हैं जिससे तुर्की परेशान है.

तुर्की को लगता है कि सीरिया से अमरीका के बाहर निकलने के बाद कुर्दिश लड़ाके सीरिया के उत्तर-पूर्वी हिस्से और इराक़ के उत्तर-पश्चिमी हिस्से पर कब्जा करके अपना एक नया मुल्क खड़ा कर लेंगे.

एक नये संघर्ष की शुरुआत?

अमरीका के सैनिकों को वापस बुलाने के फ़ैसले के बाद सीरिया में एक दूसरे के साथ संघर्षरत छद्म संगठनों को संभालना बेहद मुश्किल हो जाएगा.

भ्रम की स्थिति में ये स्पष्ट नहीं होगा कि कौन सा छद्म पक्ष किसके लिए लड़ रहा है.

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अमरीका के ऐलान के बाद वाईपीजी ने अपने नियंत्रण वाले मंजिब कस्बे को सीरियाई सेना के हवाले करने के संकेत दिए हैं.

वहीं, अगर तुर्की वाईपीजी पर हमला करता है तो वो रूस के समर्थन वाली सीरियाई सेना पर भी हमला करेगा.

इसी तालमेल को बिठाने के लिए रूस और तुर्की के विदेश मंत्रियों के बीच मुलाकात हुई थी.

अमरीका के सीरिया से बाहर निकलते ही इसराइल ने सीरिया में अपने अभियान को शुरू कर दिया है.

इस तरह से सीरियाई युद्ध क्षेत्र में बाहरी ताकतों की संख्या उतनी ही है जितनी अमरीका की मौजूदगी के समय थी.

तुर्की और रुस के बीच तालमेल

सीरियाई युद्ध क्षेत्र में दुनिया के बड़े देशों की मौजूदगी की वजह उनके अलग-अलग हित हैं.

रूस का असली हित ईरान और सीरिया के साथ हैं.

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सीरिया में असद सरकार की मौजूदगी रूस के लिए ज़रूरी है. वजह ये है कि मध्य पूर्व में सीरिया ही एक मुल्क है जिसकी वजह से इस क्षेत्र में रूस अपनी मौजूदगी दर्ज करा सकता है.

वहीं, ईरान शिया देशों की बहुलता स्थापित करना चाहता है. ईरान चाहता है कि सीरिया, इराक़ से लेकर यमन और बहरीन तक शिया समर्थित देशों का एक संगठन बनाया जाए.

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तुर्की का हित इसमें है कि इस क्षेत्र में कोई कुर्दिश राज्य उभरकर न आ पाए.

इन सभी पक्षों में अमरीका एक ऐसी ताकत है जो इस्लामिक स्टेट के साथ संघर्ष करना चाहता है.

अमरीका के सीरिया से निकलने के बाद तुर्की और सीरिया इस्लामिक स्टेट से उस तरह संघर्ष नहीं करेंगे जिस तरह अमरीका कर रहा था.

रूस और सीरियाई सेना इस्लामिक स्टेट को ख़त्म करने की कोशिश की जगह असद सरकार के विपक्षी खेमे को ख़त्म करने की कोशिश में लगी हुई हैं.

कितना ताकतवर है इस्लामिक स्टेट?

इस्लामिक स्टेट को लेकर ये आशंकाएं जताई जा रही हैं कि इन हालातों में इस्लामिक स्टेट के लड़ाके वापसी कर सकते हैं.

लंबे संघर्ष के बाद उनके नियंत्रण वाले शहरों को हासिल किया गया है लेकिन अभी भी उनके पास लगभग तीस हज़ार लड़ाकों की ताकत है.

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इसलिए, वॉशिंगटन में इस बात को लेकर चिंता जताई जा रही है कि वो वापस आकर इराक़ या सीरिया के दो-तीन बड़े शहरों पर कब्जा जमा लेंगे.

वहीं, अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप का कहना है कि वो दूसरे देशों के हित में युद्ध लड़ता है जिसमें उसका पैसा खर्च होता है और वो चाहते हैं कि दूसरे मुल्क अपनी रक्षा स्वयं करें और अगर अमरीका शामिल हो तो उन देशों को आर्थिक रूप से अमरीका की मदद करनी चाहिए.

अगर अमरीकी खर्च की बात करें तो एक वक़्त था जब अमरीका प्रति दिन इराक़ में सत्तर अरब रुपये खर्च कर रहा था. अभी भी अमरीका सालाना 7 हज़ार अरब रुपये खर्च कर रहा है.

लेकिन सीरिया से लेकर इराक़ और रूस की भी ये हैसियत नहीं है कि वो आर्थिक रूप से अमरीका का एहसान उतार दें.

क्या सीरिया संकट का हल जल्द निकलेगा?

सीरियाई क्षेत्र की बात करें तो बशर अल असद ने पचास फीसदी से ज़्यादा हिस्से को अपने कब्जे में ले लिया है. लेकिन अभी भी सीरिया के तेल के कुएं असद सरकार के नियंत्रण में नहीं हैं.

ऐसे में ये होगा कि साठ से सत्तर फीसदी हिस्सा असद सरकार के नियंत्रण में होगा. बाकी हिस्से का नियंत्रण इस्लामिक स्टेट और वाईपीजी जैसे संगठनों के पास होगा.

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इस वजह से वाईपीजी और तुर्की की सेनाओं के बीच जंग होती रहेगी.

लेकिन अरब दुनिया ने एक बार फिर असद को स्वीकार करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है.

यूएई ने एक बार फिर दमिश्क में अपना दूतावास शुरू किया है. सूडान के राष्ट्रपति जनरल बशीर ने असद से मुलाकात की है.

मुझे लगता है कि 2019 के अंत में मध्य पूर्व वैसा ही दिखेगा, जैसा 2010 में दिख रहा था.

हर जगह लोकतांत्रिक विकास की जगह सैन्य तानाशाह दिखेंगे.

मिस्र में मुबारक होस्नी की जगह अल सीसी और सीरिया में असद की जगह असद मौजूद हैं. हालांकि, इराक और ट्यूनिशिया में लोकतंत्र की झलक मिल रही है.

लेकिन इतनी बात ज़रूर है कि सीरिया पहले की तरह एकीकृत मुल्क बनने की जगह मध्य पूर्व के अफ़गानिस्तान में तब्दील हो जाएगा.

(बीबीसी संवाददाता मानसी दाश के साथ बातचीत पर आधारित)

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