पाकिस्तानः जब गुजरांवाला के लोगों पर ब्रितानी जहाज़ों ने बम बरसाये
- सक़लैन इमाम
- बीबीसी उर्दू सेवा

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यूं तो दुश्मन के इलाके में हवाई बमबारी का पुराना इतिहास है, लेकिन शायद पाकिस्तान का गुजरांवाला दुनिया का वो पहला शहर क़रार दिया जा सकता है जहां निहत्थी जनता के विरोध-प्रदर्शनों को कुचलने के लिए पहली बार 'एरियल पुलिसिंग' यानी हवाई बमबारी का इस्तेमाल किया गया.
पाकिस्तान के पंजाब सूबे के गुजरांवाला शहर में 14 अप्रैल 1919 की दोपहर को लाहौर वाल्टन के एयरपोर्ट से उड़ने वाले तीन फौजी जहाज़ों ने निहत्थे प्रदर्शनकारियों पर क़ाबू पाने के लिए बमबारी की. इससे पहले तक हवाई बमबारी ज़मीनी फौज की मदद से दुश्मन की फौज पर की जाती थी.
गुजरांवाला की बमबारी के बाद इस हवाई ताक़त या 'एरियल पुलिसिंग' को राजनीतिक उद्देश्यों के लिए निहत्थे शहरियों पर इस्तेमाल ब्रितानी पॉलिसी का हिस्सा बना. 'एरियल पुलिसिंग' शब्द का सबसे पहले इस्तेमाल ब्रितानी राजनीतिज्ञ विंस्टन चर्चिल ने किया था. ये साल 1920 की बात है जब इराक़ में निहत्थे शिया और सुन्नी लोगों ने ब्रितानी सत्ता के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किए थे.
फिर इस बमबारी की 'एरियल पुलिसिंग' के हथियार के तौर पर सोमालिया में भी इस्तेमाल किया गया. और ये विभिन्न सूरतों में अब भी इस्तेमाल हो रही है.
जलियांवाला बाग़ का क़त्ले-आम ज़ुल्म के लिहाज़ से ब्रितानी ग़ुलामी के दौर का एक बदतरीन घटना है, जिसे अगली नस्लें कभी भूल नहीं पाएंगी.
ब्रितानी शासक रॉलेट एक्ट, 1919 के ख़िलाफ़ होने वाले विरोध की बढ़ती हुई ताक़त देखकर ख़ौफ़ज़दा हो गए थे.
ब्रिटिश-इंडियन शासक अपनी पूरी ताक़त को इस्तेमाल करके उस वक़्त के आवाम की बग़ावत को कुचलना चाहते थे.
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इस ताक़त के इस्तेमाल की पॉलिसी से कई शहरी मारे गए हुए, कितने ही ज़ख्मी हुए और राजनीतिक अस्थिरता भी बढ़ी.
भारत की ब्रिटिश डेमोग्राफ़िक लेजिसलेटिव काउंसिल ने प्रथम विश्व युद्ध के तुरंत बाद एक ऐसे क़ानून की मंज़री दी जो तमाम नागरिक अधिकारों और प्रेस की आज़ादी को कुचल देता था. इस क़ानून के मुताबिक़, क़ानून लागू करने वाले संस्थाओं को गिरफ़्तार करने और पॉलिटिकल वर्कर्स को जेल में रखने की बेइंतहा ताक़त दे दी गई थी.
इस क़ानून का नाम 'अनारकिकल एंड रिवूशल्योनरी क्राइम्स एक्ट 1919' था, लेकिन ये क़ानून के बिल को बनाने वाली ब्रितानी जज सर सिडनी रौलट के नाम से रौलट एक्ट के नाम से मशहूर हुआ. भारत के कई राजनैतिक रहनुमाओं ने इस क़ानून का विरोध किया था. पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्नाह लेजिस्लेटिव कौंसिल से इसके विरोध में इस्तीफ़ा भी दे दिया था.
इस क़ानून के ख़िलाफ़ होने वाले विरोध-प्रदर्शन और फिर हलाकतों और क़ानून लागू करने वाली संस्थाओं के कामों के जायज़े के लिए ब्रितानी सरकार ने एक इंक्वायरी कमिटी बनाई थी जिसका नाम 'डिस ऑर्डर इंक्वायरी कमिटी' था और इसके मुखिया पूर्व सौलिस्टर जनरल लॉर्ड हंटर थे.
गुजरांवाला पर बमबारी के घटना का ज़िक्र पाकिस्तान और हिन्दुस्तान के इतिहास में कम ही आता है. इसलिए इस घटना की विस्तृत जानकारी इसी जांच कमिटी से हासिल की गई हैं. इस जांच कमिटी में संयुक्त भारत की साल 1919 की राजनैतिक हालात का ज़िक्र है, लेकिन यहां सिर्फ़ गुजरांवाला पर हवाई बमबारी पर की गई जांच के हिस्सों की बातें बयान की जा रही हैं.
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बमबारी से पहले का गुजरांवाला
लाहौर से तक़रीबन 40 मील दूर लगभग 30 हज़ार लोगों के शहर गुजरांवाला में हंगामे शुरू हो गए थे. 5 अप्रैल 1919 को एक स्थानीय राजनैतिक बैठक में रौलट एक्ट को अस्वीकार कर दिया गया था. इस बैठक में मंज़ूर होने वाली संकल्प में दिल्ली के शासकों की तरफ़ से रौलट एक्ट के ख़िलाफ़ नागरिकों के प्रदर्शनों पर फायरिंग की सख्त निंदा की गई थी. विभिन्न शहरों में रहने वाले फायरिंग के इन घटनाओं से कई लोग हलाक हुए थे.
इसी बैठक में मंज़ूर होने वाली संकल्प में यह भी कहा गया था कि 6 अप्रैल को राष्ट्रीय स्तर पर विरोध दिवस मनाया जाए और उस दिन हर व्यक्ति 24 घंटों का रोज़ा रखे और सारा दिन हर क़िस्म का कारोबार बंद कर दे.
इस वक़्त गुजरांवाला के डिप्टी कमिश्नर, कर्नल ओबराईन ने इस हड़ताल के ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई का ऐलान किया था. हालांकि ये हड़ताल शांतिपूर्ण रहा. 12 अप्रैल को कर्नल ओबराईन का तबादला हो गया और उनकी जगह खान बहादुर मिर्ज़ा सुलतान अहमद को गुजरांवाला डिस्ट्रीक का अस्थायी चार्ज दिया गया.
इस दौरान भारत के तक़रीबन तमाम बड़े शहरों की तरह पंजाब के कई शहरों में भी रौलट एक्ट के ख़िलाफ़ विरोध-प्रदर्शनों का सिलसिला जारी था. 10 अप्रैल तक गुजरांवाला में और अधिक प्रदर्शनों की कोई सूचना नहीं थी. लेकिन लाहौर और अमृतसर के प्रदर्शनों पर गोलियां चलाने और हलाकतों की ख़बरें आने की वजह से लोगों में उत्तेजना बढ़ना शुरू हो गया था.
हालांकि जब 13 अप्रैल के दिन जलियांवाला बाग़ के क़त्ले-आम की ख़बरें अफ़वाहों की सूरत में फैलने लगीं तो फिर लोगों की तरफ़ से एक प्रतिक्रिया आना यक़ीनी नज़र आ रहा था. लेकिन ज़िला प्रशासन को ये अंदाज़ा नहीं था कि ये प्रतिक्रिया इतनी शिद्दत का होगा कि इसे क़ाबू में करना मुश्किल हो जाएगा. फिर भी जितनी भी पुलिस का तादाद मुमकिन थी, डिस्ट्रिक हेडक्वाटर में जमा कर ली गई थी.
प्रशासन को हालात की नज़ाकत का अहसास हो गया था. यही वजह है कि डिप्टी कमिश्नर ने गुजरांवाला में अमेरिकी मिशनरीज़ को ये संदेश भिजवाया कि वो जलियांवाला बाग़ घटना के प्रतिक्रिया की शिद्दत को महसूस करते हुए ताकीद करते हैं कि इसमें काम वाली औरतों को अस्थायी तौर शहर से बाहर सुरक्षित स्थान पर स्थानांतरित कर लिया जाए.
अमेरिकी मिशनरीज़ के बड़ों ने इस प्रस्ताव पर अमल करने से इंकार दिया. लेकिन गुजरांवाला ने सुप्रीटेंडेन्ट पुलिस, मिस्टर हिरोन ने इस बात पर दुबारा ज़ोर डाला. इस मिशनरी के एक सीनियर अधिकारी कैप्टन गुडफ्रे का गुजरांवाला जाने का सफ़र पहले से तय था. उन्होंने अपने साथ अपने परिवार को ले जाने का फ़ैसला कर लिया. फिर रात गए अमेरिका मिशनरी का सारा अमला रवाना हो गया.
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बमबारी वाले दिन की सुबह
14 अप्रैल की सुबह गुजरांवाला रेलवे स्टेशन के क़रीब कच्ची पुल पर किसी ने गाय के बछड़े को हलाक करके लटका दिया था. जैसे ही ये ख़बर मिली तो उस वक़्त के पुलिस के डिप्टी सुप्रीटेंडेन्ट पुलिस, चौधरी ग़ुलाम रसूल मौक़े पर पहुंचे और बछड़े को उतार कर दफ़नाया. लेकिन शहर में ये अफ़वाह फैल गई कि हिन्दू-मुस्लिम एकता को तोड़ने के लिए प्रशासन ने खुद ही ये बछड़ा हलाक करके लटका दिया था.
इसके बाद दिन में गुजरांवाला शहर के विभिन्न हिस्सों में भीड़ जमा होना शुरू हो गया, जिन्होंने दुकानों को बंद करवाना शुरू कर दिया. ये लोग रौलट एक्ट के ख़िलाफ़ और हिन्दू-मुस्लिम एकता के हक़ में नारे लगा रहे थे. शहर में फैले इन लोगों के प्रदर्शनों में शिद्दत आती चली जा रही थी.
ट्रेनों पर पत्थरों से हमले हुए, एक पुल जो गूरूकुल के नाम से मशहूर था, को जला दिया गया. टेलीग्राफ़ और टेलीफ़ोन व्यवस्था का लाहौर से संबंध टूट गया जिससे प्रशासन की घबराहट बढ़ गई.
उत्तेजना बढ़ने के बाद कच्ची पुल पर भी आग लगाई गई, जिससे पुल को काफ़ी नुक़सान पहुंचा. पुलिस गार्डस पर हमले हुए जिनकी मदद के लिए डिप्टी सुप्रीटेंडेन्ट ऑफ़ पुलिस ने फोर्स भेजी. इनकी मदद के लिए इस वक़्त के एक्स्ट्रा असिस्टेंट कमिश्नर आग़ा ग़ुलाम हुसैन भी कार्रवाई में शामिल हो गए.
कच्ची पुल के क़रीब एक बड़ा हुजूम एकत्रित था. सुप्रीटेंडेन्ट पुलिस, मिस्टर हिरोन भी मौजूद थे. वहां लोग पुलिस से मांग कर रहे थे कि वो भारतीय लोगों को अपना हैट उतार कर सलाम करे. इस दौरान मुठभेड़ का ख़तरा पैदा हुआ और पुलिस ने फ़ायरिंग की जिससे कई लोग ज़ख़्मी हुए.
इस घटना के बाद शहर में तनावपूर्ण स्थिति बद से बदतर होना शुरू हो गए. स्टेशन पर तक़रीरें होना शुरू हो गईं जिनमें रौलट एक्ट के ख़िलाफ़ बातें की गई और हिन्दू-मुस्लिम एकता के पक्ष में बहुत नारे लगाए गए. इस दौरान शहर के सेन्ट्रल पोस्ट ऑफ़िस को आग के हवाले कर दिया गया. हंटर इंक्वायरी कमीशन ने इस हालात के लिए ज़िम्मेदार डिप्टी कमिश्नर को माना क्योंकि वो अनुभव न होने की वजह से उस वक़्त अहम क़दम नहीं उठा पाए.
इसी दौरान शहर के लोगों की विभिन्न टोलियों ने तहसीलदार के ऑफ़िस पर हमला किया, फिर लोग ज़िला अदालतों और दूसरे सराकारी इमारतों की तरफ़ लपके. इन इमारतों को राख का ढ़ेर बना दिया.
पुलिस लाईन्स पर हमले हुए. लेकिन भीड़ के हमलों से मानवीय जानों का अभी तक कोई नुक़सान नहीं हुआ था. स्थानीय जेल पर भी हमला करने की तैयारी थी. मगर पुलिस की फ़ायरिंग से इस हमले को रोक दिया गया.
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इस मानचित्र में उन चार स्थानों का जिक्र है जहां बम बरसाए गए थे
जब सूरज चढ़ चुका था
सुबह की इस कार्रवाई के बावजूद भीड़ को कंट्रोल करना मुश्किल होता जा रहा था. आम लोगों से बार-बार टकराव की सूरत में पुलिस फ़ायरिंग किए जा रही थी. जिसके नतीजे में विभिन्न इलाक़ों की भीड़ स्टेशन की तरफ़ बढ़ रहे थे. वहां उन्होंने स्टेशन को आग लगा दी, गोदाम का माल लूट लिया. वहीं 'सेशन इंडस्ट्रियल स्कूल' को आग लगा दिया. चर्चों पर हमले भी हुए और उन्हें जलाया गया.
अब प्रशासन को अहसास हुआ कि हालात इनके कंट्रोल से बिल्कुल बाहर हो चुके हैं. शहर फौज तलब करने का फ़ैसला किया गया, लेकिन फौरी तौर पर फौज पहुंच नहीं सकती थी. सबसे क़रीब में फौजी दस्ते सियालकोट में मौजूद थे, जिनके पहुंचने में कई घंटे लग रहे थे. इसलिए एयर फोर्स की मदद ली गई.
दोपहर को तक़रीबन तीन बजकर दस मिनट पर लाहौर के वाल्टन एयरपोर्ट से रॉयल एयरफोर्स के तीन हवाई जहाज़ अपने रिवायती हथियारों के साथ परवाज़ करते हुए गुजरांवाला पहुंचे.
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गुजरांवाला पर बमबारी का आगाज़
तीन जहाज़ों के इस मिशन की क़यादत उस वक़्त के मेजर कारबेरी कर रहे थे जो 31 एस्क्वायदरन के कमांडर थे. इनका जहाज़ गुजरांवाला की सीमा में सबसे पहले पहुंचा और उन्होंने सात सौ फीट से लेकर सिर्फ़ तीन सौ फीट तक की नीची परवाज़ें की ताकि गुजरांवाला शहर और इसके आस-पास तीन मील इलाक़े का हवाई जायज़ा ले सकें.
मेजर कारबेरी के मुताबिक़, उन्होंने रेलवे स्टेशन और उसके गोदामों को जलते हुए देखा. स्टेशन से बाहर एक ट्रेन भी नज़र आई जिसमें आग लगी हुई थी. स्टेशन पर और स्टेशन से सिविल लाईन्स तक इससे जुड़ी सड़कों और गलियों में लोग ही लोग थे. सिविल लाईन्स में इंग्लिश चर्च और चार घरों पर आग लगी हुई थी.
बमबारी करने वाले जहाज़ों के पायलटों को ज़ुबानी आदेश दे दी गई थीं कि वो अगर भीड़ पर बमबारी करें तो सिर्फ़ खुले मैदानों में करें. इसके अलावा अगर पायलट्स शहर से बाहर कहीं कोई ऐसा भीड़ देखें जो शहर की तरफ़ बढ़ रहा हो तो उसे तितर-बितर करने के लिए बमबारी कर सकते हैं.
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मेजर कारबेरी के जहाज़ की बमबारी
मेजर कारबेरी ने पहली बमबारी शहर से बाहर एक भीड़ पर की जो इनके बक़ौल इसमें डेढ़ सौ लोग शामिल थे. ये एक गांव शहर के उत्रर-पश्चिम की तरफ़ था और उनकी सूचना के मुताबिक़ इस गांव का नाम 'दुहल्ला' था. हलाकतों के बारे में बाद में अलग-अलग अनुमान लगाए गए. बम गिराने के बाद मौक़े से भागने वाले देहातियों पर पचास गोलियां मशीन गन से फ़ायर की गईं.
इसके बाद मेजर कारबेरी ने शहर के दक्षिण से एक मील के फ़ासले पर 'घरजाख' नामक गांव पर दो बम गिराए. बक़ौल इनके एक बम फटा ही नहीं था. ये लोग गुजरांवाला से लौट रहे थे. बम गिरने से लोग तितर-बितर हो गए. इस भीड़ पर भी पचीस गोलियां मशीन गन से फ़ायर की गईं. इंक्वायरी कमिटी के मुताबिक़ इस बमबारी से कोई जानी नुक़सान नहीं हुआ.
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ख़ालसा हाई स्कूल पर बमबारी
इन कार्रवाईयों के बाद ये जहाज़ गुजरांवाला शहर की तरफ़ लौटे. मेजर कारबेरी ने एक लाल इमारत के क़रीब खेतों में दो सौ लोगों को छिपे देखा. ये ख़ालसा हाई स्कूल और उसका हॉस्टल था. इसके सेहन में एक बम फेंका गया. मशीन गन से तीस के क़रीब गोलियों से फ़ायर किए गए. इंक्वायरी कमिटी को सिर्फ़ एक व्यक्ति के हलाक होने की सूचना बाद में मिली. इसके अलावा शहर में दो और बम गिराए गए. मेजर कारबेरी ने कहा था कि उन्होंने इन बमों को फटते नहीं देखा था. लेकिन इस बात की पुष्टि नहीं हो सकी.
इस कमिटी की इंक्वायरी के मुताबिक़ मेजर कारबेरी ने कुल मिलाकर आठ बम गिराए थे और इनमें से दो जो शहर के अंदर गिराए थे उनके बारे में इंक्वायरी का ख़्याल है कि उनका लक्ष्य लोगों की भीड़ थी. मेजर कारबेरी ने स्टेशन की तरफ़ आने वाली भीड़ पर कुल मिलाकर डेढ़ सौ गोलियां फ़ायर की थीं.
अमृतसर के जलियाँवाला बाग में ब्रिगेडियर जनरल डायर के क़त्लेआम की कहानी.
बाक़ी दो जहाज़ों की बमबारी
इसके अलावा इंक्वायरी कमिटी के मुताबिक़ दो अन्य जहाज़ जो लाहौर से गुजरांवाला पर बमबारी के लिए भेजे गए थे, उनमें एक ने तो कोई कार्रवाई नहीं की, अलबत्ता दूसरे जहाज़ से अपनी मशीन गन से पचीस गोलियां फ़ायर की थीं.
इंक्वायरी कमिटी इन जहाज़ों से फेंके जाने वाले बमों और गोलियों की संख्या से संतुष्ट नहीं हुई थी. इसलिए उसने एक और माध्यम से अंदाज़ा लगाया कि ताक़त से ज़्यादा इस्तेमाल हुआ था.
उस वक़्त रावलपिंडी में तैनात सेकेंड डीविज़न की 'वार डायरी' में 14 अप्रैल को शाम छह बजे एक रिपोर्ट दर्ज हुई थी. 'रॉयल एयरफोर्स के लेफ्टिटेंट करबी ने गुजरांवाला में आग लगाए जाने के घटनाओं की पुष्टि की और कहा कि उन्होंने हंगामा करने वालों पर कामयाबी से फायरिंग की. इसके बाद वो जहाज़ को वज़ीराबाद के एक मैदान में उतारने पर मजबूर हुए थे. वहां प्रदर्शनकारी जमा हो गए और उनके जहाज़ पर हमला करने वाले थे लेकिन उन्होंने जहाज़ को दुबारा स्टार्ट कर लिया और उसे उड़ाने में कामयाब हो गए.'
हत्याओं की सरकारी संख्या
इन घटनाओं के बाद प्रशासन के आला अधिकारी कर्नल ओबेराईन ने इंक्वायरी कमिटी को बताया था कि 14 अप्रैल की रॉयल एयरफोर्स की बमबारी और हंगामों से गुजरांवाला में 11 लोगों की मौत हुई थी, जबकि 27 ज़ख्मी हुए थे.
गुजरांवाला में बमबारी का फ़ैसला उस वक़्त के पंजाब के लेफ्टिनेंट गवर्नर, सर माईकल ओडवायर ने किया था. उनके बक़ौल गुजरांवाला के प्रदर्शन उनके लिए एक झटके की मानिंद थे. 'हमें इस शहर से विरोध-प्रदर्शनों की ख़बर 14 अप्रैल को मिली जब पूरे पंजाब में बग़ावत अपने चरम पर थी.'
उन्हें सूबे के हर हिस्से से हमलों की ख़बरे आ रही थीं. अमृतसर के क़रीब एक ट्रेन को उलट कर भीड़ ने रेल लाईन से उतार दिया था. सर माईकल के मुताबिक़, गुजरांवाला में हालात पर क़ाबू पाने के लिए फौज रवाना करना मुमकिन नहीं था इसलिए एयरफोर्स का इस्तेमाल किया गया.
अगले दिन दोबारा बमबारी
15 अप्रैल को एयरफोर्स का एक और अफ़सर लेफ्टिनेंट डोडकेनिज़ को ऊपर से आदेश आया कि वो गुजरांवाला की तरफ़ परवाज़ करे और लाहौर और गुजरांवाला के बीच रेलवे लाईन का जायज़ा ले कि वो तबाह तो नहीं हो गई है. इसे भी ये आदेश दिया गया था कि वो गुजरांवाला की ताज़ातरीन हालात का भी हवाई जायज़ा ले. इसे किसी भी बड़ी भीड़ के ख़िलाफ़ कार्रवाई का भी आदेश दिया गया था.
इस अफ़सर को गुजरांवाला में तो कोई गड़बड़ी नज़र नहीं आई लेकिन एक मील बाहर शहर के पश्चिमी इलाक़े में तीस-चालीस लोग नज़र आए. उसने उन पर मशीन गम से फायरिंग कू. उसके बाद एक और गांव में तीस या पचास लोगों की भीड़ नज़र आया.
लेफ्टिनेंट ने इस भीड़ पर एक बम फेंका जो एक घर में गिरा और फटा. इंक्वायरी कमिटी ने स्वीकार किया कि इन दो बमों से मरने और ज़ख्मी होने वालों की संख्या की कोई जानकारी हासिल नहीं हो सका.
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